अधिक पैदावार के लिए धान की फसल में किसान इस समय करें यूरिया का छिड़काव

धान की फसल में यूरिया का छिड़काव

देश में अभी किसानों द्वारा खरीफ फसलों की खेती की जा रही है, जिसमें धान, मक्का एवं सोयाबीन की खेती महत्वपूर्ण है | धान की खेती उत्तर भारत से दक्षिण भारत तक सभी राज्यों में की जाती है | धान की खेती के लिए अलग-अलग राज्यों के किसानों के द्वारा अलग-अलग समय पर बुआई की गई है, जिससे अभी धान की फसल अलग-अलग अवस्था में हैं | जहाँ धान की फसल में कन्से निकलना प्रारंभ हो गए हैं इस अवस्था में पौधों को ज्यादा से ज्यादा पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है | इसको देखते हुए छत्तीसगढ़ कृषि विभाग के द्वारा किसानों धान की फसल में उर्वरक कब एवं कितना देना है इसके लिए सलाह जारी की गई है |

किसान कब करें धान में यूरिया का छिड़काव

धान की फसल में जहां कन्से निकलने की अवस्था आ गई हो वहां किसान नत्रजन की दूसरी मात्रा का छिड़काव कर सकते हैं । इससे धान के कन्से की स्थिति में सुधार आएगा। फसल में कीट या खरपतवार होने की स्थिति में दोनों को नियंत्रित करने के बाद ही प्रति हेक्टेयर 40 किलो यूरिया के छिड़काव करने की सलाह किसानों को दी गई है।

कृषि विभाग के अधिकारियों ने धान फसल के प्रारंभिक गभोट अवस्था में मध्यम एवं देर अवधि वाले धान फसल के 60-75 दिन के होने पर नत्रजन की तीसरी मात्रा का छिड़काव करने को कहा है । पोटाश की सिफारिश मात्रा का 25 प्रतिशत भाग फूल निकलने की अवस्था पर छिड़काव करने से धान के दानों की संख्या और वजन में वृद्धि होती है।

धान में कीट-रोग लगने पर क्या करें

अभी धान फसल पर पीला तना छेदक कीट के वयस्क दिखाई देने पर तना छेदक के अण्डा समूह हो एकत्र कर नष्ट करने के साथ ही सूखी पत्तियों को खींचकर निकालने की सलाह दी गई है। तना छेदक की तितली एक मोथ प्रति वर्ग मीटर में होने पर फिपरोनिल 5 एससी एक लीटर प्रति दर से छिडकाव करने की सलाह कृषकों को दी गई है।

पत्ती मोडक (चितरी) रोग के नियंत्रण के लिए प्रति पौधा एक-दो पत्ती दिखाई देने पर फिपरोनिल 5 एससी 800 मिली लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करने को कहा गया है। धान की फसल में रोग के प्रारंभिक अवस्था में निचली पत्ती पर हल्के बैगनी रंग के धब्बे पड़ते हैं जो धीरे-धीरे बढ़कर चौड़े और किनारों में सकरे हो जाते हैं, इन धब्बों के बीच का रंग हल्का भूरा होता है। इसके नियंत्रण के लिए टेबूकोनाजोल 750 मिली लीटर प्रति हेक्टेयर 500 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करने की सलाह किसानों को दी गई है।

सब्सिडी पर आम, अमरुद, नींबू, केला, संतरा एवं सीताफल की बागवानी के लिए आवेदन करें

आम,अमरुद, नींबू, केला, संतरा एवं  सीताफल पर अनुदान हेतु आवेदन

भारत में मानसून का अंतिम माह चल रहा है, इसके बाद देश से धीरे–धीरे मानसून लौटने लगेगा | यह समय फलों के पौधे लगाने के लिए अच्छा है | इसको देखते हुए मध्य प्रदेश सरकार के उद्यानिकी विभाग द्वारा फलों के उत्पादन बढ़ाने के लिए राज्य प्रायोजित “फल क्षेत्र विस्तार योजना” के तहत किसानों से आवेदन आमंत्रित किए हैं | एक जिला एक उत्पाद कार्यक्रम के तहत विभिन्न फलों की बागवानी के लिए अलग-अलग जिलों का चयन किया गया है |

उद्यानिकी विभाग द्वारा अलग-अलग फलों की बागवानी के लिए चयनित जिलों के किसानों से आवेदन मांगे गए हैं | इच्छुक किसान अनुदान पर दिए गए फलों की बागवानी हेतु ऑनलाइन आवेदन कर सकते हैं |

योजना के तहत किन फलों की बागवानी के लिए आवेदन कर सकते हैं ?

मध्य प्रदेश के किसानों के लिए राज्य प्रायोजित योजना “फल क्षेत्र विस्तार” के तहत विभिन्न प्रकार के फलों की बागवानी के लिए सरकार द्वारा अनुदान दिया जाता है | किसान सीताफल, संतरा, आम, अमरुद, नींबू, केला जैसे फलों की बागवानी फसलों के लिए जारी लक्ष्य के अनुसार आवेदन कर सकते हैं |

सीताफल (ग्राफ्टेड), संतरा (ग्राफ्टेड/ टिशुकल्चर), आम (ग्राफ्टेड), अमरुद (ग्राफ्टेड/टिशुकल्चर) के लिए मध्य प्रदेश के अलीराजपुर, धार, सिवनी, आगर–मालवा, राजगढ़, अनुपपुर, बैतूल, सीधी, सिंगरौली, उमरिया, भोपाल, होशंगाबाद एवं सीहोर जिले के किसान आवेदन कर सकते हैं | वहीँ अमरुद (उच्च घनत्व ड्रिप रहित) के लिए मध्य प्रदेश के श्योपुर जिले के सामान्य, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति के किसान आवेदन कर सकते हैं |

अमरुद (उच्च घनत्व ड्रिप रहित), नींबू (उच्च घनत्व ड्रिप रहित), केला (उच्च घनत्व ड्रिप रहित) के लिए  प्रदेश के विदिशा जिले के सामान्य, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति के किसान योजना के लिए आवेदन कर सकते हैं |

अनुदान हेतु किसान आवेदन कब करें ?

ऊपर दिये हुए जिलों के किसान फलों की बागवानी के लिए ऑनलाइन आवेदन कर सकते हैं | आवेदन 15/09/2021 को सुबह 11.00 बजे से किये जा सकेंगे | किसान जारी लक्ष्य के विरुद्ध 10 प्रतिशत अधिक तक ही आवेदन कर सकेंगे |

किसान फलों के पौधे कहाँ से ले सकेंगे ?

ग्राफ्टेड आम/अमरुद के पौधे विभागीय नर्सरियों से लिए जाएंगे, जिन किस्मों के पौधे विभाग की रोपणियों में उपलब्ध नहीं है उन पौधों की व्यवस्था विभाग द्वारा प्रतिष्ठित मान्यता प्राप्त रोपणियों से कराकर रोपण करवाया जायेगा | संतरा एवं अमरुद के पौधों का रोपण प्रदेश में स्थापित टिशुकल्चर लैब में उत्पादित पौधों से कराया जायेगा |

योजना के तहत फलों की बागवानी पर दी जाने वाली सब्सिडी

राज्य में किसानों को फल क्षेत्र विस्तार योजना के तहत 40 से 50 प्रतिशत अनुदान सहयता तीन वर्षों में 60:20:20 के अनुपात में दी जाती है | इसमें सामान्य दूरी पर बागवानी पर किसानों को 40-50 प्रतिशत तथा उच्च घनत्व एवं अति उच्च घनत्व (ड्रिप रहित) पर फलों की बागवानी पर 40 प्रतिशत की सब्सिडी किसानों को दी जाती है |

अनुदान हेतु कहाँ आवेदन करें ?

आम, अमरुद, नींबू, केला, संतरा एवं  सीताफल पर अनुदान हेतु आवेदन राज्य के उद्यानिकी एवं खाद्य प्रसंस्करण विभाग मध्यप्रदेश के द्वारा आमंत्रित किये गए हैं अत; किसान भाई यदि योजनाओं के विषय में अधिक जानकारी चाहते हैं तो उद्यानिकी एवं विभाग मध्यप्रदेश पर देख सकते हैं या विकासखंड स्तर पर कार्यालय में सम्पर्क कर सकते हैं | मध्यप्रदेश में उद्यानिकी विभाग से संचालित सभी योजनाओं हेतु आवेदन ऑनलाइन किये जाते हैं अतः इच्छुक किसान जो योजना का लाभ लेना चाहते अपना पंजीयन उद्यानिकी विभाग मध्यप्रदेश फार्मर्स सब्सिडी ट्रैकिंग सिस्टम https://mpfsts.mp.gov.in/mphd/#/ पर कर सकते हैं |

किसानों को जल्द किया जायेगा गन्ना खरीदी की बकाया राशि का भुगतान

गन्ना बकाया राशि का भुगतान

खरीफ फसलों की खरीदी शुरू होने वाली है इसके साथ ही गन्ना खरीदी भी अगले माह से शुरू हो जाएगी | इसके लिए केंद्र तथा अलग–अलग राज्य सरकार ने गन्ने की सरकारी दर घोषित कर दी है | किसानों के लिए सबसे बड़ी समस्या यह है कि उन्हें चीनी मीलों के द्वारा पिछले सीजन में की गई गन्ना खरीदी की बकाया राशि का भुगतान अभी तक नहीं किया गया है | अलग–अलग राज्यों में गन्ने का भुगतान रुका हुआ है |

कुछ दिन पहले उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री गन्ना खरीदी भुगतान की समीक्षा कर रहे थे | उन्होंने बताया है कि इस सरकार में अब तक का सबसे ज्यादा किसानों को गन्ने का भुगतान किया गया है | इसके बावजूद भी किसानों को पिछले सत्र की गन्ना खरीदी का भुगतान रुका हुआ है | इसको लेकर मुख्यमंत्री ने चीनी मीलों को गन्ना किसानों को जल्द से जल्द भुगतान करने को कहा है |

45 लाख किसानों को किया गया गन्ना खरीद का भुगतान

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने बकाये गन्ना मूल्य का भुगतान अविलम्ब कराए जाने के निर्देश दिए हैं। उन्होंने कहा है कि डिफॉल्टर चीनी मिलों से गन्ना किसानों के बकाया मूल्य का तत्काल भुगतान कराया जाए। गन्ना किसानों के हितों की अनदेखी करने वाली चीनी मिलों के प्रबन्धन के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाए। उनके तरफ से बताया गया है कि पिछले वर्षों में सरकार के द्वारा 45 लाख किसानों को 1 लाख 42 हजार 650 करोड़ रूपये की भुगतान किया गया है |

चीनी मीलों पर किसानों का कितना रुपये बकाया है ?

उत्तर प्रदेश में वर्ष 2020–21 के गन्ना पेराई सत्र में 120 चीनी मीलों ने किसानों से गन्ना खरीदा था | इस सीजन में 120 चीनी मीलों के द्वारा कुल 1,028 लाख टन गन्ना की खरीदी की गई है | जिसका कुल मूल्य 33,025 करोड़ रुपए है |

इसमें से 27,750 करोड़ रूपये का भुगतान कर दिया गया है | शेष 5,275 करोड़ रुपये चीनी मीलों को गन्ना किसानों को भुगतान करना होगा | राज्य के 120 चीनी मिलों में से 53 चीनी मीलों के पास किसी भी प्रकार का बकाया नहीं है | शेष 67 चीनी मीलों पर 5,750 करोड़ रूपये का भुगतान करना बचा हुआ है |

क्या है गन्ने का मूल्य ?

पिछले माह के 28 तारीख को केंद्र सरकार ने गन्ने के उचित एवं लाभकारी मूल्य FRP में 5 रूपये प्रति क्विंटल की वृद्धि किया है | जिसके बाद गन्ना का मूल्य 285 रूपये प्रति क्विंटल से बढ़कर 290 रूपये प्रति क्विंटल हो गया है | इसके साथ ही अलग–अलग राज्य सरकारें गन्ना का अपना मूल्य तय करती है | उतर प्रदेश में गन्ने का मूल्य 315 रूपये प्रति क्विंटल है | ऐसी उम्मीद की जा रही है कि पेराई सत्र शुरू होने से पहले गन्ने के मूल्य में वृद्धि की जाएगी |

किसान इस तरह करें धान की फसल में लगने वाले रोग की पहचान एवं उनका नियंत्रण

धान की फसल में रोग की पहचान एवं नियंत्रण

अभी देश में खरीफ सीजन की मुख्य फसल धान खेत में लगी हुई है | ऐसे में अभी किसानों द्वारा धान की फसल में निराई-गुड़ाई के बाद दूसरी बार खाद दी जा रही होगी | कई राज्यों में धान की फसल में अब फूल आने लगे हैं | धान की इस अवस्था में कई प्रकार के रोग लगने की सम्भावना रहती है | कुछ रोग तो ज्यादा यूरिया के प्रयोग के कारण एवं जिंक जैसे पोषक तत्वों की कमी के कारण भी लग सकते हैं | इस समय किसानों को धान की फसल की लगातार निगरानी करते रहना चाहिए ताकि धान की फसल को समय पर कीट एवं रोगों से बचाया जा सकें |

धान की खड़ी फसल में मुख्यतः पत्ती झुलसा रोग, ब्लास्ट या झोंका रोग, जीवाणु पर्ण अंगमारी रोग, गुटन झुलसा रोग, खैरा रोग या बकानी जैसे रोग लग सकते हैं | किसान धान के रोगों की पहचान एवं उनका नियंत्रण कैसे करें इसकी जानकारी नीचे दी गई है |

पत्ती का झुलसा रोग :-

पौधे की छोटी अवस्था से लेकर परिपक्व अवस्था तक यह रोग कभी भी हो सकता है | पत्तियों में किनारे उपरी भाग से शुरू होकर मध्य भाग तक सूखने लगते हैं | सूखे पत्ते के साथ–साथ राख के रंग के चकत्ते भी दिखाई देते हैं | इस रोग से बालियां दानारहित रह जाती है |

पत्ती का झुलसा रोग का नियंत्रण

किसान इस रोग के नियंत्रण के लिए 74 ग्राम एग्रीमाइसीन–100 और 500 ग्राम काँपर आँक्सीक्लोराइड (फाइटोलान /ब्लाइटाक्स–50 /क्यूप्राविट का 500 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रति हैक्टेयर की दर से 3–4 बार 10 दिनों के अंतराल से छिड़काव करें |

  • ट्रेप्टोमाइसीन / एग्रीमाइसीन से बीज को उपचारित करके बोएं |
  • इस रोग के लगने पर नाइट्रोजन की मात्रा कम कर देनी चाहिए |

ब्लास्ट या झोंका रोग :-

यह रोग फफूंद से फैलता है | पौधे के सभी भाग इस रोग से प्रभावित होते हैं | इस रोग में पतियों पर भूरे धब्बे, कत्थई रंग एवं बीच वाला भाग राख के रंग का हो जाता है | फलस्वरूप बाली आधार से मुड़कर लटक जाती है एवं दाने का भराव भी पूरा नहीं हो पता है |

झोंका रोग या ब्लास्ट तोग का नियंत्रण

ब्लास्ट या झोंका रोग जुलाई के प्रथम पखवाड़े में रोपाई पूरी कर लें | देर से रोपाई करने पर झोंका रोग लगने की आशंका बढ़ जाती है | बीज का कार्बेन्डाजिम एवं थीरम (1:1) 3 ग्राम प्रति किलोग्राम या फंगोरिन 6 ग्राम प्रति किलोग्राम की दर से बीजोपचार करना चाहिए |

रोग के नियंत्रण के लिए कार्बेन्डाजिम (50 प्रतिशत डब्ल्यू.पी.) 500 ग्राम या ट्राइसायक्लेजोल या एडीफेनफाँस (50 प्रतिशत ई.सी.) 500 मि.ली. या हेक्साकोनाजोल (50 प्रतिशत ई.सी.) 1.0 लीटर या मैंकोजेब (75 प्रतिशत डब्ल्यू.पी.) 2.0 किलोग्राम या जिनेब (75 प्रतिशत डब्ल्यू.पी.) 2.0 किलोग्राम या कार्बेन्डाजिम (12 प्रतिशत) +मैंकोजेब (63 प्रतिशत डब्ल्यू.पी.) 750 ग्राम या आइसोप्रोथपलीन (40 प्रतिशत ई.सी.) 750 मि.ली. या कासूगामाइसिन (3 प्रतिशत एम.एल.) 1.15 लीटर दवा 500–750 लीटर पानी में घोलकर प्रति हैक्टेयर की दर से छिड़काव करें |

कार्बेन्डाजिम का 0.1 प्रतिशत की दर से दुसरा छिडकाव कल्ले फूटते समय, तीसरा छिड़काव बालियां निकलते समय और ग्रीवा संक्रमण रोकने के लिए करना चाहिए |

झुलसा या जीवाणु पर्ण अंगमारी रोग :-

यह रोग जीवाणु द्वारा होता है | पौधों की छोटी अवस्था से लेकर परिपक्व अवस्था तक यह रोग कभी भी हो सकता है | इस रोग में पत्तियों के किनारे उपरी भाग से शुरू होकर मध्य भाग तक सूखने लगते हैं | सूखे पीले पत्तों के साथ–साथ राख के रंग के चकते भी दिखाई देते हैं | पत्तों पर जीवाणु के रिसाव से छोटी–छोटी बूंदे नजर आती है तथा पौधों में शिथिलता आ जाती है | अंतत: बालियां दानों से रहित रह जाती है |

झुलसा या जीवाणु पर्ण अंगमारी रोग का नियंत्रण

झुलसना रोगने की अवस्था में नाईट्रोजन का प्रयोग कम कर देना चाहिए | इसके अलावा जिस खेत में झुलसा रोग लगा है उस खेत का पानी दुसरे खेत में नहीं जाना चाहिए | खेत में रोग को फैलने से रोकने के लिए खेत से समुचित जल निकास की व्यवस्था की जाए तो रोग को काफी हद तक नियंत्रित किया जा सकता है | रोग के नियंत्रण के लिए 74 ग्राम एग्रीमाइसीन–100 और 500 ग्राम काँपर आँक्सीक्लोराइड (फाइटोलान/ब्लाइटाक्स–50/क्युप्राविट) का 500 लीटर पानी में घोलकर बनाकर प्रति हैक्टेयर की दर से तीन–चार बार छिडकाव करें | पहला छिड़काव रोग प्रकट होने पर तथा आवश्यकतानुसार 10 दिनों के अंतराल पर करें |

नियंत्रण के लिए 15 ग्राम स्ट्रेप्टोमाइसिन सल्फेट (90 प्रतिशत) या 15 ग्राम स्ट्रेप्टोमाइक्लिन या टेट्रासाक्लिन हाईड्रोक्लोराइड 10 प्रतिशत को 500 ग्राम काँपर आँक्सीक्लोराइड (50 प्रतिशत डब्ल्यू.पी.) के साथ मिलाकर प्रति हैक्टेयर 500 से 700 लीटर पानी में घोल बनाकर 10–12 दिनों के अंतराल पर 2–3 छिड़काव करना चाहिए |

गुतान झुलसा (शीथ ब्लाइट) :-

यह रोग फफूंद द्वारा होता है | पत्ती की शीथ पर 2–3 से.मी. लंबे हरे से भूरे रंग के धब्बे पड़ते हैं जोकि बाद में चलकर भूरे रंग के हो जाते हैं | धब्बों के चारों तरफ बैंगनी रंग की पतली धारी बन जाती है |

इस तरह करें नियंत्रण

गुतान झुलसा रोग की रोकथाम के लिए ट्राईकोडर्मा विरिडी 1 प्रतिशत डब्ल्यू.पी. 5 से 10 ग्राम प्रति लीटर पानी (2.5 किलोग्राम), 500 लीटर पानी में घोलकर पर्णीय छिडकाव करें |

रोग के नियंत्रण के लिए कार्बेन्डाजिम (50 प्रतिशत डब्ल्यू.पी.) 500 ग्राम या थायोफिनेट मिथाइल (70 प्रतिशत डब्ल्यू.पी.) 1.0 किलोग्राम कार्बेन्डाजिम (50 प्रतिशत डब्ल्यू.पी.) 500 ग्राम या कार्बेन्डाजिम (12 प्रतिशत)+मैंकोजेब (63 प्रतिशत डब्यू.पी.) 750 ग्राम या प्रोपिकोनाजोल (25 प्रतिशत ई.सी.) 500 मि.ली. या हेक्साकोनाजोल (5.0 प्रतिशत ई.सी.) 1.0 लीटर दवा 500 लीटर पानी में घोलकर प्रति हैक्टेयर की दर से पर्णीय छिड़काव करें |

बकानी रोग :-

बकानी रोग के लक्षणों में प्राथमिक पत्तियों का दुर्बल तथा असामान्य रूप से लंबा होना है | फसल की परिपक्वता के समीप होने के समय संक्रमित पौधे, फसल के सामान्य स्तर से काफी ऊपर निकले हुए, हल्के हरे रंग के ध्वज–पत्रयुक्त लंबे टिलर्स दर्शाते हैं | संक्रमित पौधे में टिलर्स की संख्या प्राय: कम होती है और कुछ सप्ताह के भीतर ही नीचे से ऊपर की ओर एक के बाद दूसरी, सभी पत्तियां सुख जाती हैं | संक्रमित पौधे की जड़ें सड़कर काली हो जाती है और उनमें दुर्गंध आने लगती है |

रोग का नियंत्रण इस तरह करें

धान की फसल में बकानी रोग को रोकने के लिए कवकनाशियों के साथ बीजोपचार की संस्तुति की जाती है | कार्बेन्डाजिम के 0.1 प्रतिशत (1 ग्राम/लीटर पानी) घोल में बीजों को 24 घंटे भिगोयें तथा अंकुरित करके नर्सरी में बीजाई करें | रोपाई से पहले पौध का 0.1 प्रतिशत कार्बेन्डाजिम के घोल में 12 घंटे तक उपचार भी प्रभावी पाया गया है |

खैरा रोग :-

यह रोग मृदा में जिंक की कमी के कारण होता है, जिसे आसानी से पहचाना जा सकता है | खैरा रोग के कारण नर्सरी या मुख्य खेत में पौधों में छोटे–छोटे पैच में दिखाई देते है | इसके कारण पत्तियों पर हल्के पीले रंगे के धब्बे बनते हैं, जो बाद में कत्थई रंग के हो जाते हैं | पत्तियां मुरझा जाती है और इनके मध्य भाग क्लोरोटिक हो जाते हैं | पौधा बौना रह जाता है और पैदावार कम होती है |

प्रभावित पौधों की जड़ें भी कत्थई रंग की हो जाती हैं | पहले खेत के एक कोने में दिखने वाले धब्बे देखते ही देखते पूरी फसल में फैल जाते हैं | तेज धुप में दिनों में लक्षण अधिक गंभीर हो जाते हैं | रोगग्रस्त पौधों पर कोई स्पाइक नहीं बनता है या अगर स्पाइक बनता भी है , तो दाना नहीं बनता |

रोग का नियंत्रण

खैर रोग से धान को बचाने के लिए 25 किलोग्राम जिंक सल्फेट प्रति हैक्टेयर की दर से रोपाई से पहले खेत की तैयारी के समय डालना चाहिए | रोकथाम के लिए 5 किलोग्राम जिंक सल्फेट तथा 2.5 किलोग्राम चुना 6,000 से 7,000 लीटर पानी में घोलकर प्रति हैक्टेयर का छिडकाव करें |

इंजीनियरिंग की नौकरी छोड़ 3 दोस्तों ने शुरू किया बकरी पालन, अब हो रही लाखों रुपये की कमाई

बकरी पालन से लाखों की आमदनी

एक तरफ जहाँ देश में लाखों युवा नौकरी के लिए परेशान हो रहे हैं वहीँ कुछ युवा ऐसे भी हैं जिन्होंने अपनी राह खुद ही बना ली है | जहाँ किसान खेती की घटती लागत को लेकर परेशान हैं वहीँ कई किसान ऐसे भी है जो खेती में नए तरीकों को अपनाकर मुनाफा कमा रहे हैं | ऐसा ही कुछ कर दिखाया है मध्यप्रदेश राज्य के भोपाल शहर के तीन युवाओं ने | हेमंत माथुर, प्रवीन गुप्ता, सुनील वर्मा पेशे से इंजीनियर हैं | वर्ष 2012 से पहले देश की बड़ी मल्टीनेशनल कंपनी में जॉब करते थे | लाखों रूपये के सालाना पैकेज होने के बाबजूद भी कुछ अलग करने की चाहत में नौकरी छोड़ बकरी पालन के क्षेत्र में आकर अपना बिजनेस शुरू किया |

तीनों दोस्त न केवल “गोकुल एग्रोनोमिक्स” कंपनी बनाकर न सिर्फ खुद बकरी पालन कर रहे हैं बल्कि ट्रेनिंग देकर किसानों तथा पशुपालकों से बकरी पालन करा भी रहे हैं | सबसे बड़ी बात यह है कि अन्य बकरी पालकों को जो गोकुल कंपनी से जुड़कर बकरी पालन कर हे रहे हैं उन सभी को बकरी बेचने के लिए बाजार भी उपलब्ध करवा रहे हैं |

2 लाख रूपये की लागत से शुरू किया था बकरी पालन

आज किसान के सामने सबसे बड़ा सवाल यही रहता है की वह कितनी लागत से बकरी पालन शुरू कर सकते हैं | ऐसे किसानों के लिए इन तीन दोस्तों ने किस तरह बकरी पालन का व्यवसाय शुरू किया यह जानना जरुरी है |

हेमंत माथुर, प्रवीण गुप्ता और सुनील वर्मा ने बकरी पालने के लिए पहले एक छोटी सी जगह में 1 लाख रूपये की लागत से बकरी के लिए शेड (आवास) का निर्माण किया | इसके बाद 1 लाख रूपये की लागत से कुछ बकरियों को खरीद कर बकरी पालन का कार्य शुरू किया | यह बकरी फार्म अब लगभग 1 एकड़ क्षेत्र में फ़ैल चूका है |

प्रतिदिन कितनी लागत आती है ?

पशुपालन व्यवसाय में आवश्यक है कि पशुओं को संतुलित आहार दिया जाये जिससे बकरी को कोई रोग न हो और वह पूरी तरह स्वस्थ रहें ताकि उनके भार में वृद्धि के सामने कोई बाधा न आये तीनों दोस्तों का कहना है की उन्हें प्रति बकरी के आहार पर प्रति दिन 20 रुपये का खर्च आता है | इसमें दाना मिश्रण, हरा चारा, सुखा भूसा आदि सम्मलित है |

बकरियों की इन नस्लों का कर रहे हैं पालन

अच्छी आमदनी के लिए आवश्यक है की बकरे की सही नस्लों का पालन किया जाए ताकि प्रति बकरी/बकरा सही आमदनी प्राप्त हो सके | तीनों दोस्तों ने बताया की अभी उनके फार्म में अभी 4 प्रकार की नस्लों का पालन किया जा रहा है: बीटल,सिरोही, बारबरी और सोजट |

बकरी पालन से होने वाली आमदनी

तीनों दोस्तों का कहना है कि वह प्रतिवर्ष लगभग 1200 बकरे बेचते हैं जो की 400 से 500 रुपये प्रति किलोग्राम की दर से बाजार में बिकता है | इसके अतिरिक्त फार्म पर इच्छुक व्यक्तियों को बकरी पालन के लिए प्रशिक्षण भी दिया जाता है |

बकरी पालन शुरू करने के लिए प्रशिक्षण भी दिया जाता है

तीनों दोस्तों के द्वारा स्थापित बकरी फार्म पर इच्छुक व्यक्तियों को समय-समय पर बकरी पालन के लिए प्रशिक्षण भी दिया जाता है | तीनो दोस्तों के मुताबिक अभी तक 1 हजार से अधिक व्यक्तियों को प्रशिक्षण दिया जा चूका है जो सफल रूप से बकरी पालन फार्म शुरू कर चुके हैं |

bakri palan Training
बकरी पालन के लिए प्रशिक्षण

प्रशिक्षण के बाद पशुपालकों को बकरी का बच्चा या बकरी गोकुल बकरी पालन के तरफ से उपलब्ध कराई जाती है | इसके अलावा पशुपालक चाहे तो बकरी अपने स्तर पर बेच सकते हैं या फिर गोकुल बकरी पालक को ही देकर नगद पैसा प्राप्त कर सकते हैं | गोकुल बकरी पालन किसानों के साथ मिलकर बड़े स्तर पर बकरी पालन कर रहा है, जिससे ग्रामीण स्तर पर रोजगार मिल रहा है तथा आमदनी का अच्छा स्रोत उत्पन्न किया है |

सब्सिडी पर यह कृषि यंत्र लेने हेतु आवेदन करें

कृषि यंत्र अनुदान हेतु आवेदन

खरीफ फसल की कटाई इस माह के अंतिम सप्ताह में शुरू हो जाएगी | इसके साथ ही रबी फसल की बुवाई की तैयारी भी किसान करने लगेंगे | किसानों को समय पर योजना के तहत सब्सिडी पर कृषि यंत्र मिल सके इसके लिए अलग-अलग राज्य सरकारों ने प्रक्रिया शुरू कर दी है | इस कड़ी में मध्यप्रदेश कृषि विभाग द्वारा किसानों के लिए उपयोगी कुछ कृषि यंत्रों के लिए आवेदन आमंत्रित किये हैं | इच्छुक किसान इन कृषि यंत्रों को सब्सिडी पर लेने हेतु आवेदन कर सकते हैं |

इस बार मध्यप्रदेश के कृषि अभियांत्रिकी संचनालय द्वारा कृषि यंत्र के आवेदन के लिए 5,000 रूपये का बैंक ड्राफ्ट अनिवार्य कर दिया गया है | जिससे कोई भी किसान नाम चयन होने पर कृषि यंत्र जरुर खरीदे | इच्छुक किसान इस बार आवेदन करते समय 5,000 रूपये का बैंक ड्राफ्ट अवश्य बना कर रखें |

किसान इन कृषि यंत्रों पर सब्सिडी हेतु कर सकते हैं आवेदन

खरीफ फसल की कटाई और रबी फसल हेतु खेत की तैयारी को देखते हुए किसानों को विभिन्न प्रकार के कृषि यंत्र दिये जा रहे हैं | इच्छुक किसान आवश्यकता अनुसार इन कृषि यंत्रों को अनुदान पर प्राप्त करने के लिए आवेदन कर सकते हैं :-

  • श्रेडर / मल्चर
  • पॉवर टिलर (8 बी.एच.पी. से अधिक)
  • लेजर लेंड लेवलर
  • रीपर कम बाइंडर
  • लेवलर ब्लेड (हैवी ड्यूटी)

ऊपर दिये गये कृषि यंत्रों में से लेजर लैंड लेवलर एवं लेवलर ब्लेड (लाइट ड्यूटी एवं हैवी ड्यूटी) के लक्ष्य केवल बाढ़ प्रभावित क्षेत्र ग्वालियर एवं चम्बल संभाग के लिए जारी किये गए हैं |

कृषि यंत्रों पर दी जाने वाली सब्सिडी

मध्यप्रदेश में किसानों को अलग-अलग योजनाओं के तहत कृषि यंत्रों पर किसान वर्ग एवं श्रेणी के अनुसार अलग-अलग सब्सिडी दिए जाने का प्रावधान है, जो 40 से 50 प्रतिशत तक है | किसान जो कृषि यंत्र लेना चाहते हैं वह किसान पोर्टल पर उपलब्ध सब्सिडी कैलकुलेटर पर कृषि यंत्र की लागत के अनुसार उनको मिलने वाली सब्सिडी की जानकारी देख सकते हैं |

कृषि यंत्र अनुदान हेतु आवेदन के लिए किसानों को बनवाना होगा बैंक ड्राफ्ट

कृषि यंत्रों के आवेदन से पहले जिले के सहायक कृषि यांत्रिक के नाम से बैंक ड्राफ्ट बनाना जरुरी है | ऑनलाइन आवेदन करते समय उस ड्राफ्ट की स्कैन कॉपी अपलोड करना अनिवार्य है | ऊपर के सभी कृषि यंत्रों के लिए 5,000 रूपये का बैंक ड्राफ्ट बनाना जरुरी है | जिलेवार सहायक कृषि यंत्री की सूची देखने के लिए नीचे लिंक दी गई है |

जिलेवार सहायक कृषि यंत्री की लिस्ट हेतु क्लिक करें

जिस किसान का लाँटरी में नाम चयन नहीं होगा उन सभी किसानों को बैंक ड्राफ्ट लौटा दिया जाएगा | चयनित आवेदकों को अपना बैंक ड्राफ्ट लाटरी के बाद तीन दिवस की अवधि में सम्बंधित सहायक कृषि यंत्री, कार्यालय में जमा किया जाना आवश्यक होगा। इस व्यवस्था अंतर्गत लॉटरी से चयनित एवं प्रतीक्षा सूची के आवेदनों हेतु धरोहर राशि उनके प्रकरण के अंतिम निराकरण तक जमा रहेगा तथा उसके उपरांत कृषको को वापस लौटा दिया जाएगा।

किसान कब कर सकते हैं आवेदन ?

मध्य प्रदेश कृषि यांत्रिक विभाग द्वारा ऊपर दिए गए कृषि यंत्रों के लिए आवेदन प्रक्रिया शुरू कर दी है | मध्य प्रदेश के किसान 10 सितम्बर 2021 से आवेदन कर सकते हैं | आवेदन करने की अंतिम तिथि 20 सितम्बर 2021 है इसके पश्चात आवेदन बन्द कर दिए जाएंगे | इसके बाद 21 सितम्बर 2021 को लाँटरी जारी कर दिया जायेगा |

कृषि यंत्रों पर अनुदान प्राप्त करने के लिए आवेदन कहाँ करें ?

मध्यप्रदेश में सभी प्रकार के कृषि यंत्रों के लिए आवेदन किसान भाई ऑनलाइन e-कृषि यंत्र अनुदान पोर्टल पर कर सकते हैं परन्तु सभी किसान भाइयों को यह बात ध्यान में रखना होगा की आवेदन के समय उनके पंजीकृत मोबाइल नम्बर पर OTP वन टाइम पासवर्ड प्राप्त होगा | इसलिए किसान अपना मोबाइल अपने पास रखें | किसान https://dbt.mpdage.org/ पर जाकर आवेदन करें |

सब्सिडी पर दिए गए कृषि यंत्र लेने हेतु आवेदन करने के लिए क्लिक करें

नई गन्ना सट्टा नीति के तहत किसान अधिकतम बेच सकेंगे 6,750 क्विंटल गन्ना

गन्ने के सट्टे एवं आपूर्ति नीति

गन्ने के मूल्य में बढ़ोत्तरी के बाद गन्ने के किसानों को अगले माह से गन्ने की आपूर्ति शुरू हो जाएगी | इस वर्ष केंद्र सरकार ने गन्ने के लाभकारी मूल्य FRP में 5 रूपये प्रति क्विंटल की वृद्धि की है | जिससे केंद्र द्वारा गन्ने का मूल्य 290 रूपये प्रति क्विंटल हो गया है | उतर प्रदेश सरकार ने गन्ने का मूल्य 315 रूपये प्रति क्विंटल निर्धारित किया है | सरकार ने अगले पेराई सत्र के लिए गन्ने की नयी सट्टा नीति घोषित कर दी है। इसके तहत गन्ने के बढ़ते उत्पादन को देखते हुए प्रति किसान प्रति हेक्टेयर गन्ने की आपूर्ति सीमा बढ़ा दी गयी है | इस लक्ष्य के अनुसार ही किसान गन्ना को चीनी मिल को बेच सकते हैं |

किसान प्रति हेक्टेयर कितना गन्ना बेच सकते हैं ?

उत्तर प्रदेश सरकार ने राज्य के किसानों के लिए नई गन्ना सट्टा नीति जारी की है | इस नीति के अनुसार ही किसानों को गन्ना बेचने का लक्ष्य दिया जा रहा है | राज्य के सीमांत, लघु सीमांत तथा सामन्य किसान अधिकतम गन्ना बेचने का लक्ष्य इस प्रकार निर्धारित किया गया है |

  • सीमांत कृषक (1 हेक्टेयर तक) – 850 क्विंटल
  • लघु सीमांत किसान (2 हेक्टेयर तक) – 1,700 क्विंटल
  • सामान्य कृषक (5 हेक्टेयर तक) – 4,250 क्विंटल

इसके अलावा उपज में बढ़ोतरी की दशा में गन्ने की खरीदी लक्ष्य को बढ़ाया जाएगा | प्रदेश सरकार ने राज्य के किसानों के लिए गन्ने के अधिक पैदावार होने पर लक्ष्य निर्धारित कर दिया है |

  1. सीमांत कृषक (1 हेक्टेयर तक) – 1,350 क्विंटल
  2. लघु सीमांत किसान (2 हेक्टेयर तक) – 2,700 क्विंटल
  3. सामान्य कृषक (5 हेक्टेयर तक) – 6,750 क्विंटल

गन्ने बेचने के लिए लक्ष्य कैसे निर्धारित किया गया ?

उत्तर प्रदेश के गन्ना विकास विभाग के द्वारा आपूर्तिकर्ता कृषकों की अधिकतम गन्ना आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए पिछले 2 वर्ष, 3 वर्ष तथा 5 वर्ष की औसत गन्ना आपूर्ति में से अधिकतम औसत गन्ना आपूर्ति को पेराई सत्र 2021–22 के लिए बेसिक कोटा माने जाने का निर्देश दिये गये हैं | जो किसान नये सदस्य बने हैं या एक वर्ष से गन्ने की आपूर्ति कर रहे हैं , उस किसान को एक वर्ष का ही बेसिक कोटा माना जायेगा |

गन्ना बेचने के लिए इन किसानों को दी जाएगी प्राथमिकता

  • किसान की मृत्यु हो जाने पर उसके परिवार के सदस्य को गन्ना बेचने के लिए मान्य रहेगा | लेकिन यह सुविधा सिर्फ इस गन्ना स्तर के लिए ही रहेगी |
  • इसके अलावा अर्द्ध सैनिकों, सैनिकों, भूतपूर्व सैनिकों एवं स्वतंत्रता सेनानियों को गन्ना बेचने में प्राथमिकता दी जाएगी | इसके लिए उन्हें जारी प्रमाण-पत्र को दिखाना जरुरी है |

औसत उपज से ज्यादा होने पर किसान अधिक पैदावार को कैसे बढायें ?

किसी किसान को ऐसा लगता है की उनका गन्ने का उत्पादन पहले से अधिक होने वाला है तो ऐसी स्थिति में किसान क्राप कटिंग से पहले अंतिम तिथि 30 सितम्बर 2021 तक शुल्क के साथ आवेदन कर लक्ष्य को बढा सकते हैं | इसके साथ ही ड्रिप सिंचाई से गन्ने का उत्पादन करने वाले किसानों को अतिरिक्त सट्टे में प्राथमिकता दी जाएगी तथा अतिरिक्त सट्टे में अस्वीकृति गन्ना प्रजातियों को प्राथमिकता नहीं दी जाएगी | ट्रेंच विधि से बुवाई, सहफसली खेती एवं ड्रिप के प्रयोग एक ही खेत पर शुरू करने वाले चयनित उत्तम गन्ना कृषकों से उपज बढ़ोत्तरी के प्रार्थना – पत्र नि:शुल्क प्राप्त किये जाएंगे |

गन्ने के सर्वे से लेकर गन्ने की आपूर्ति की समय सरणी जारी कर दिया गया है ?

उत्तर प्रदेश सरकार ने राज्य के गन्ना किसानों के लिये सर्वे से लेकर गन्ने की आपूर्ति के लिए समय सारणी जारी कर दी है | किसान इस समय सरणी के आधार पर गन्ने के नए सदस्य तथा गन्ने की आपूर्ति कर सकते हैं |

  • कृषकवार सर्वे एवं सट्टा सूची का ग्रामवार प्रदर्शन 20/072021 से 30/08/2021 के मध्य रहेगा |
  • प्री–कलेंडर का ऑनलाइन वितरण 01/09/2021 से 10/09/2021 तक है |
  • समिति स्तरीय सत्ता प्रदर्शन 11/09/2021 से 30/09/2021 तक है |
  • गन्ना समितियों के नये सदस्य की भर्ती 30/09/2021 तक है |
  • कृषकवार सत्ते की मात्रा का आगमन 10/10/2021 तक है |

किसान कब से गन्ना बेच सकते हैं ?

राज्य के किसानों को गन्ना बेचने के लिए मोबाईल पर मैसेज भेजा जायेगा | किसानों हेतु ई.आर.पी. एवं मोबाईल एप पर अंतिम व्यवस्था के अंतर्गत कृषकों के लिए सुलभ स्थान पर एक अतिरिक्त टर्मिनल लगा कर पूछ-ताछ केंद्र स्थापित किया जाएगा | गन्ना आपूर्ति के सम्बंध में कोई विशेष तात्कालिक समस्या उत्पन्न होने की स्थिति में जिला गन्ना अधिकारी एवं क्षेत्रीय उप गन्ना द्वारा नियमानुसार समस्या का त्वरित निराकरण कराया जाएगा | गन्ना किसान किसी भी समस्या के निराकरण के लिए टोल फ्री नम्बर 1800-121-3203 पर फोन करके शिकायत दर्ज करा सकते हैं |

75 प्रतिशत की सब्सिडी पर 14,418 किसानों को दिए गए सोलर पम्प

कुसुम योजना के तहत सोलर पम्प की स्थापना

केंद्र सरकार के नवीन एवं नवीनकरनीय ऊर्जा मंत्रालय MNRE के द्वारा शुरू की गई कुसुम योजना ने देश में रफ्तार पकड़ ली है | कुसुम योजना के तहत किसानों को सब्सिडी पर सोलर पम्प दिए जाते हैं, जिससे कृषि की लागत तो कम होती ही है साथ ही किसान निर्वाध रूप से फसलों की सिंचाई कर सकते हैं | केंद्र तथा राज्य सरकारों के द्वारा दी जा रही सब्सिडी के कारण किसान को कम मूल्य में सोलर पम्प मिल जाते हैं | जिससे अधिक से अधिक किसान अपने खेतों पर सोलर पम्प की मदद से सिंचाई कर सकते हैं |

15 हजार के मुकाबले सरकार ने लगाये 14,418 सोलर पम्प

केंद्र सरकार के द्वारा हरियाणा को 520 करोड़ रूपये की लागत से 15,000 सोलर पम्प लगाने का लक्ष्य दिया गया था | हरियाणा सरकार ने 14,418 सोलर पम्प लगाने का लक्ष्य प्राप्त कर लिया है | इसके साथ ही देश भर में हरियाणा इस योजना को लागू करने में प्रथम स्थान प्राप्त किया है | हरियाणा में प्रधानमंत्री किसान ऊर्जा सुरक्षा एवं उत्थान महाभियान का लाभ हरियाणा के सीमांत किसान तथा डीजल पम्प से सिंचाई करने वाले किसान ज्यादा है | राज्य में सोलर पैनल से 105 मेगावाट बिजली का उत्पादन किया जा रहा है |

राज्य में सोलर पम्प पर कितनी सब्सिडी दी जा रही है?

वैसे तो कुसुम योजना के तहत अधिकांश राज्यों में किसानों को 60 प्रतिशत सब्सिडी दी जाती है परन्तु हरियाणा में 75 प्रतिशत सब्सिडी के साथ 3 एचपी से 10 एचपी क्षमता के स्टैंडअलोन सोलर पंप स्थापित किए जा रहे हैं। इस योजना के तहत भारत सरकार 30 प्रतिशत केंद्रीय वित्तीय सहायता और राज्य सरकार 45 प्रतिशत सब्सिडी प्रदान कर रही है। किसानों को कुल पंप लागत का केवल 25 प्रतिशत भुगतान करना होता है।

इस योजना के तहत सोलर पम्प को सिंचाई  / जल प्रयोक्ता संघ / समुदाय / क्लस्टर आधारित सिंचाई प्रणाली आदि के लिए किया जा सकता है | इसके साथ ही सोलर पम्प के रख रखाव, आपदा से नुकसानी तथा चोरी होने पर भरपाई के लिए बीमा कराया जाएगा | सोलर पम्प का बीमा 5 वर्षों के लिए रहता है |

42 हजार से अधिक किसानों ने किया है सोलर पम्प के लिए आवेदन

सोलर पम्प लगाने के लिए किसानों के तरफ से मांग इतनी ज्यादा है कि 15000 पंपों के लक्ष्य के मुकाबले विभाग को 42,000 से अधिक ऑनलाइन आवेदन प्राप्त हुए हैं। इस प्रतिक्रिया को देखते हुए विभाग ने चालू वित्त वर्ष के लिए 844 करोड़ रुपये की कुल परियोजना लागत के साथ 22,000 पंप स्थापित करने का लक्ष्य निर्धारित किया है और इसके लिए केन्द्रीय नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय द्वारा दरों एवं फर्मों को अंतिम रूप देने के तुरंत बाद आवेदन आमंत्रित किए जाएंगे। PM-KUSUM योजना के लिए टोल फ्री नम्बर 1800-180-3333 पर कॉल कर अधिक जानकारी ले सकते हैं |

किसानों के लिए बहुत काम की है पॉवर टिलर मशीन, जानें इससे क्या-क्या काम कर सकते हैं किसान

पॉवर टिलर कृषि मशीन

देश में छोटे और सीमांत किसानों की संख्या अधिक होने एवं जोतों का आकार कम होने के कारण ट्रेक्टर जैसे कृषि यंत्र सभी किसान नहीं ले सकते हैं | छोटे और अलग-अलग स्थानों पर खेत होने के कारण कृषि में मशीनों के उपयोग में किसानों को कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है | देश में किसानों की आर्थिक स्थिति इतनी अच्छी नहीं है की सभी किसान ट्रेक्टर, कंबाइन हार्वेस्टर जैसे बड़े और महंगे कृषि यन्त्र नहीं खरीद सकते हैं | ऐसे किसानों के लिए पॉवर टिलर एक छोटा और सस्ता कृषि यंत्र उपलब्ध है | जिसका उपयोग खेती के कई कार्यों में किया जा सकता है |

पॉवर टिलर कृषि मशीन से किये जा सकने वाले कृषि कार्य

हल्के वजन तथा दो व्हील होने के कारण आसानी से खेत के मेड़ों पर भी लेकर चला जा सकता है | इसका उपयोग पानी भरे खेतों, पडलिंग, सूखे खेत की जुताई, समतलीकरण, बुआई, रोपाई, कीटनाशक छिडकाव, निंदाई-गुड़ाई, खेत में पानी पम्प करना, फसल कटाई, फसल ढुलाई आदि जैसे कई कार्य किये जा सकते हैं |

पॉवर टिलर कितने प्रकार के होते हैं ?

कृषि कार्यों में उपयोग के अनुसार बाजार में अलग-अलग हार्स पॉवर के पॉवर टिलर मौजूद हैं | इसमें मिनी पॉवर टिलर जो कि 9 एचपी तक होता है का उपयोग छोटे बगीचे एवं किचन गार्डन में आसानी से किया जा सकता है | वहीँ मध्यम आकार के टिलर जो की 9 से 14 हार्स पॉवर तक होता है का उपयोग छोटे खेत में हल्की जुताई एवं अन्य कृषि कार्यों में किया जा सकता है | इसके आलवा बड़े पॉवर टिलर भी बाजार में मौजूद हैं जो 20 हार्स पॉवर तक के होते हैं का उपयोग लगभग सभी प्रकार के कृषि कार्यों में आसानी से किया जा सकता है |

ट्रेक्टर की तुलना में पॉवर टिलर से लाभ

  • पॉवर टिलर ट्रेक्टर की तुलना में काफी सस्ता होता है एवं उन जगहों में आसानी से कार्य कर सकता है जहाँ ट्रेक्टर नहीं पहुँच सकता |
  • ट्रेक्टर की तुलना में इसमें ईंधन की खपत कम होती है जिससे कृषि की लागत कम की जा सकती है |
  • जहाँ खेती के कार्यों में श्रमिक कम है वहां यह अधिक उपयोगी होता है | छोटा होने के चलते इसका उपयोग, पहाड़ी, पठारी और छोटे जोत वाले किसानों के बीच अधिक किया जाता है |

पॉवर टिलर के साथ यह कृषि यंत्र लगाकर करें बुआई से लेकर कटाई तक के कार्य

वैसे तो पॉवर टिलर इंजन, ट्रांसमिशन, गियर, क्लच, ब्रेक और रोटरी के साथ आता है परन्तु इसके साथ अलग-अलग कृषि कार्यों के लिए अलग-अलग प्रकार के कृषि यंत्रों को जोड़ कर बुआई से लेकर कटाई एवं फसल ढुलाई का काम भी आसानी से कर सकते हैं |

रोटरी हल इकाई :-

रोटरी हल इकाई का प्रयोग सूखे तथा हल्की नमी वाले खेतों की जुताई में किया जाता है | यह झाड़ियाँ तथा खरपतवार को खत्म करने में काम आता है | इसका उपयोग रबी फसल की बुवाई में किया जाता है | इसके संचालन में 1.5 से 2.0 लीटर प्रति घंटे की दर से डीजल की खपत होती है |

केज व्हील :-

पावर टिलर के टायर के चक्कों को बदलकर केज व्हील लगाया जाता है | इसका उपयोग धान की खेती या फिर पानी भरे खेत की जुताई के लिए किया जाता है | केज व्हील से पॉवर टिलर खेत में आसानी से चलता है तथा मिट्टी को कर्षण बनाकर पडलिंग किया जाता है |

कल्टीवेटर इकाई :-

आमतौर पर इसमें पांच टाइन होते हैं | इससे हल्की से लेकर माध्यमिक जुताई की जा सकती है | जुताई के लिए टाइन को ऊपर या नीचे कर सकते हैं | इसके संचालन में लगभग 1.4 से 1.8 लीटर प्रति घंटे की दर से डीजल की खपत होती है |

रिज फरोवर :-

सब्जी, गन्ने या आलू की बुवाई के लिए किसान इस यंत्र का प्रयोग करते हैं | इस कृषि यंत्र से किसान पावर टिलर के सहयोग से मेड बना सकता है | इसका संचालन में 1.6 से 1.8 लीटर प्रति घंटे की दर से डीजल की खपत होती है |

भूमि समतलीकरण इकाई :-

खेत में पट्टा लगाने तथा मिट्टी के बड़े–बड़े ढेलों को छोटा करने के लिए इस कृषि यंत्र का प्रयोग किया जाता है | इसके उपयोग में 1.2 से 1.5 लीटर प्रति घंटे की दर से डीजल की खपत होती है |

बीज सह उर्वरक ड्रिल :-

बीज को निश्चित दुरी तथा गहराई पर रोपने के लिए इस कृषि यंत्र का उपयोग किया जाता है | इस कृषि यंत्र का उपयोग गेहूं, मूंगफली, सोयाबीन, चना आदि की बुवाई के लिए किया जाता है |

पम्प सेट :-

फसलों के सिंचाई के लिए पम्प सेट का प्रयोग किया जाता है | पॉवर टिलर पम्प सेट को एक जगह से दुसरे जगह ले जाने में काफी आसानी होती है | इसका प्रयोग कुआँ, तलाब, नदी से पानी को बाहर निकलने के लिए उपयोग किया जाता है | इसे संचालन में 1.2 से 1.4 लीटर प्रति घंटा डीजल की खपत होती है |

स्प्रेयर इकाई :-

इस कृषि यंत्र का प्रयोग कृषि फसलों तथा बागवानी में कीटनाशक या अन्य प्रकार के दवाईयों के छिडकाव के लिए किया जाता है | इस कृषि यंत्र की संचालन में 1.2 से 1.5 लीटर प्रति घंटे की दर से डीजल की खपत होती है |

आलू खुदाई यंत्र :-

खेत से आलू को निकालने के लिए बनाया गया है | इसको पॉवर टिलर के माध्यम से संचालित किया जाता है | इसको चलाने में 1.5 से 1.8 लीटर प्रति घंटा के दर से डीजल की खपत होती है |

रीपर इकाई :-

1 फीट से अधिक लम्बी फसलों की कटाई के लिए रीपर का प्रयोग किया जाता है | पावर टिलर से चलने वाले रीपर रबी तथा खरीफ दोनों प्रकार के फसलों की कटाई के लिए उपयोग किया जाता है | इसके संचालन में 1.5 से 1.8 लीटर डीजल की खपत होता है |

ट्राली :-

ट्रेक्टर की तरह ही पॉवर टिलर में ट्राली का उपोग किया जाता है | इसका आकर छोटा होता है तथा खेतों में समान ढोने के काम आता है | पावर टिलर ट्राली का उपयोग करने में 1.2 से 1.4 लीटर डीजल का खर्च होता है |

पॉवर टिलर की कीमत क्या है ?

इसकी कीमत की बात की जाए तो इसका दाम ट्रैक्टर की तुलना में काफी कम होता है। क्वालिटी और कंपनी के अनुसार इसके दाम अलग-अलग हो सकते हैं।  बाज़ार में 14 हॉर्स पावर  के पावर टिलर की कीमत 1.5 लाख रुपये से लेकर 2 लाख रुपये तक है | जो कम्पनी के अनुसार अलग-अलग हो सकती है | अलग-अलग राज्यों में सरकार द्वारा किसानों को पॉवर टिलर पर सब्सिडी भी दी जाती हैं | इसके लिए किसानों को पहले आवेदन करना होता है उसके बाद चयन होने पर किसान सब्सिडी पर पॉवर टिलर खरीद सकते हैं |

किसान अधिक आमदनी के लिए इस तरह करें काले गेहूं की खेती

काले गेहूं की खेती

समय के साथ देश में किसानों का नवाचार करने के प्रति रुझान बढ़ता जा रहा है, आज के समय में किसान अधिक आय के लिए खेती में नए-नए प्रयोग कर रहे हैं | इसके लिए किसानों द्वारा अलग-अलग तरह की फसलों के लिए नई किस्मों की खेती की जा रही है | ऐसे ही देश में उत्पादन होने वाली सबसे मुख्य फसल गेहूं एवं धान के साथ भी हो रहा है | आजकल किसानों के बीच काले गेहूं एवं काले धान की खेती के प्रति रुझान बढ़ा है |

जैसा की स्वाभाविक है, वैसे तो देश में गेहूं की कई प्रजातियां मौजूद हैं | इसमें से कुछ प्रजातियाँ रोग प्रतिरोधक है तो कुछ प्रजातियाँ ज्यादा उत्पादन देने वाली है | स्वाद के मामले में भी कुछ प्रजातियाँ मिलती हैं लेकिन देखने में सभी के बीज एक जैसे ही रहते हैं तथा सभी का महत्व भी एक समान ही है | परन्तु हाल ही में विकसित काले गेहूं की प्रजाति ने सभी किसानों क ध्यान आकर्षित किया है |

हाल ही में कई किसानों के द्वारा आमदनी बढ़ाने के लिए काले गेहूं की खेती की शुरुआत की है | इस गेहूं का उत्पादन भी सामान्य गेहूं की तरह ही होता है तथा खेती भी सामान्य गेहूं की तरह ही है | इसके बावजूद इसमें औषधीय गुण अधिक होने के कारण बाजार में इस गेहूं की मांग अधिक है |

सामान्य गेहूं की तुलना में काले गेहूं से होने वाले फायदे

काला गेहूं दिखने में काले या बैंगनी रंग के होते हैं, पर इसके गुण सामान्य गेहूं की तुलना में अधिक होते हैं | एन्थोसाइनीन पिगमेंट की मात्रा ज्यादा होने के कारण इनका रंग काला होता है | साधारण गेहूं में एंथोसाइनिन की मात्रा 5 से 15 पीपीएम होती है जबकि काले गेहूं में इसकी मात्रा 40 से 140 पीपीएम होती है |

यह गेहूं कई प्रकार के औषधीय गुणों से भरपूर हैं इसमें एंथ्रोसाइनीन जोकि एक नेचुरल एंटी ऑक्सीडेंट व एंटीबायोटिक है प्रचुर मात्रा में पाया जाता है | जो हार्ट अटैक, कैंसर, डायबिटीज, मानसिक तनाव, घुटनों का दर्द, एनीमिया जैसे रोगों में काफी कारगर सिद्ध होता है | काले गेहूं रंग में काला तथा स्वाद में सामान्य गेहूं से थोडा अलग होता है |

किस समय पर करें काले गेहूं की बुआई

काले गेहूं की खेती भी सामान्य सिंचित गेहूं की तरह ही की जा सकती है, जैसा की आप सभी जानते हैं गेहूं एक रबी फसल है अतः काले गेहूं की खेती भी रबी मौसम में की जाती है | वैज्ञानिकों के अनुसार काले गेहूं की खेती के लिए नवम्बर का महीना उपयुक्त है | इस मौसम में खेतों में नमी होती है जो काले गेहूं के लिए काफी जरुरी है | नवम्बर के बाद काले गेहूं की बुआई करने पर पैदावार में कमी आती है |

काले गेहूं की खेती कैसे करें

गेहूं की बुवाई सीडड्रिल से करने पर उर्वरक एवं बीज की बचत की जा सकती है। काले गेहूं का उत्पादन सामान्य गेहूं की तरह ही होता है। किसान भाई बाजार से या किसी किसान से इसके बीज खरीद कर बुवाई कर सकते हैं। खरीदने के बाद किसान बीज की गुणवत्ता की जांच कर लें | पंक्तियों में बुवाई करने पर सामान्य दशा में 100 किलोग्राम तथा मोटा दाना 125 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर की आवश्यकता होती है। वहीं छिटकाव विधि से बुवाई में सामान्य दाना 125 किलोग्राम, मोटा-दाना 150 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर की दर से प्रयोग करना चाहिए। बुवाई से पहले जमाव प्रतिशत अवश्य देख ले। राजकीय अनुसंधान केन्द्रों पर यह सुविधा नि:शुल्क उपलबध है।

यदि बीज अंकुरण क्षमता कम हो तो उसी के अनुसार बीज दर बढ़ा ले तथा यदि बीज प्रमाणित न हो तो उसका शोधन अवश्य करें। इसके लिए बीजों का कार्बाक्सिन, एजेटौवैक्टर व पी.एस.वी. से उपचारित कर बुवाई कर लेना चाहिए। सीमित सिंचाई वाले क्षेत्रों में रेज्ड वेड विधि से बुवाई करने पर सामान्य दशा में 75 किलोग्राम तथा मोटा दाना 100 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर की दर से प्रयोग करना चाहिए।

खाद व उर्वरक

खेत की तैयारी के समय जिंक व यूरिया खेत में डालें तथा डीएपी खाद को ड्रिल से दें। बोते समय 50 किलो डीएपी, 45 किलो यूरिया, 20 किलो म्यूरेट पोटाश तथा 10 किलो जिंक सल्फेट प्रति एकड़ देना चाहिए। वहीं पहली सिंचाई के समय 60 किलो यूरिया दें।

सिंचाई

काले गेहूं की फसल की पहली सिंचाई तीन हफ्ते बाद करें। इसके बाद फुटाव के समय, गांठें बनते समय, बालियां निकलने से पहले, दूधिया दशा में और दाना पकते समय सिंचाई अवश्य करें।

नाबी ने विकसित की काले गेहूं की नई किस्में

सात वर्ष के रिसर्च के बाद काले गेहूं की इस नई किस्म को पंजाब के मोहाली स्थित नेशनल एग्री फूड बायोटेक्नॉलजी इंस्टीट्यूट नाबी ने विकसित किया है। नाबी के पास इसका पेटेंट भी है। इस गेहूं की खास बात यह है कि इसका रंग काला है। इसकी बालियां भी आम गेहूं जैसी हरी होती हैं, पकने पर दानों का रंग काला हो जाता है। नाबी की साइंटिस्ट और काले गेहूं की प्रोजेक्ट हेड डॉ. मोनिका गर्ग के अनुसार नाबी ने काले के अलावा नीले और जामुनी रंग के गेहूं की किस्म भी विकसित की है।

नाबी ने किसानों को बीज उपलब्ध करवाने के लिए कई कंपनियों के साथ समझौता किया है, किसान इन कंपनियों के माध्यम से अलग-अलग राज्यों में उपलब्धता के अनुसार गेहूं के बीज खरीद सकते हैं | 

किसान यहाँ से खरीद सकते हैं काले गेहूं का बीज

काले गेहूं की खेती अभी देश में नई है, जिसके चलते देशभर में चुनिन्दा किसानों के द्वारा ही इसकी खेती की जाती है | कम खेती होने के कारण अभी इसके बीज बाजार में आसानी से किसानों को उपलब्ध नहीं हो पा रहें है | ऐसे किसान जो काले गेहूं की खेती करने में इच्छुक है वह किसान 6267086404 पर संपर्क कर काले गेहूं का बीज खरीद सकते हैं |