किसान मक्के की मेड़ विधि से करें खेती, कम लागत में मिलेगी अच्छी उपज

मक्का एक बहुउपयोगी फसल है, जिसका उपयोग ना केवल मानव के भोजन में होता है बल्कि पशुपालन, मुर्गी प्लान, मछली पालन आदि में भी इसका उपयोग किया जाता है। अब सरकार मक्के से इथेनॉल भी बनाने जा रही है जिससे बाजार में मक्के की माँग बढ़ने की संभावना है। मक्के की माँग बढ़ने से किसानों को इसकी खेती से अच्छा मुनाफा होने की उम्मीद है। ऐसे में किसान मक्के की खेती की नई तकनीकों को अपनाकर पैदावार बढ़ा सकते हैं।

इस वर्ष किसान खरीफ सीजन में ऊपरी जमीन जहां वर्षा के पानी का जमाव नहीं होता है वहाँ मक्का की मेढ़ विधि से बुआई करके अधिक मुनाफा कमा सकते हैं। मक्का की मेड़ विधि से बुआई करने से बीज, खाद एवं पानी की बचत होती है जिससे उत्पादन लागत में कमी आती है। इस तकनीक से बुआई करके किसान फसल को पकने से पहले गिरने से बचा सकते है।

मक्का की मेड़ विधि से खेती करने पर मिलने वाले लाभ

  1. इस विधि द्वारा मक्का फसल की बुआई करने पर 20 से 30 प्रतिशत तक सिंचाई जल की बचत होती है।
  2. मेड़ विधि से मक्का लगाने पर 25 से 40 प्रतिशत बीज एवं 25 प्रतिशत तक नाइट्रोजन की बचत की जा सकती है।
  3. इस विधि से मक्का लगाने पर अत्यधिक वर्षा होने पर भी फसल को कोई नुकसान नहीं होता है। अधिक वर्षा की स्थिति में दो मेढ़ों के बीच के नाले का उपयोग जल निकास के लिए किया जाता है, जिससे जल जमाव के कारण फसल नुकसान से बचाया जा सकता है तथा दो पंक्तियों के बीच खाली स्थान रहने से तेज हवा के बहने पर भी सामान्यतः खड़ी फसल गिरती नहीं हैं।
  4. मेढ़ों पर फसल लगाने से सूर्य की किरणों तथा वायु की समुचित उपलब्धता के कारण पौधों का स्वास्थ्य अच्छा रहता है। जिससे गुणवत्ता, उत्पादन तथा उत्पादकता में वृद्धि होती है।

किसान कैसे करें मक्के की मेड़ पर बुआई

मक्के की मेड़ पर बुआई खासकर खरीफ सीजन में किसानों के लिए बहुत ही लाभदायक होती है। खरीफ मौसम में फसल को जलभराव से बचाने हेतु मेड़ों पर ही बुआई करनी चाहिए। बेड प्लांटर की मदद से मेड़ से मेड़ की दूरी 70 सेंटीमीटर (40 सेंटीमीटर चौड़ी मेड़ एवं 30 सेंटीमीटर चौड़ी नाली) रखनी चाहिए। इसके लिए किसानों को मक्का के दानों को उचित गहराई पर बोने वाले बेड प्लांटर का उपयोग करना चाहिए।

किसानों को मेड़ पर दो पौधों के बीच की दूरी 20 सेंटीमीटर रखते हुए एक पंक्ति प्रति बेड ही लगानी चाहिए। अधिक उपज लेने हेतु प्रति एकड़ 30,000 पौधे लगाने चाहिए। पूर्व-पश्चिम मुखाग्र मेड़ पर दक्षिण दिशा में बुआई करनी चाहिए। किसान फसल अवशेषों में सीधी बुआई करने के लिए हैप्पी सीडर या जीरोटिल बेड प्लांटर का उपयोग करें।

किसान इस तरह ले सकते हैं पेड़ी गन्ने की अधिक पैदावार

देश में किसान कम लागत में अधिक पैदावार प्राप्त कर अपनी आमदनी बढ़ा सकें इसके लिए कृषि विभाग और कृषि वैज्ञानिकों के द्वारा किसानों को लगातार सलाह दी जाती है। इस कड़ी में उत्तर प्रदेश के पीलीभीत के जिला गन्ना अधिकारी खुशीराम भार्गव ने किसानों को गन्ने की अधिक पैदावार प्राप्त करने के लिए कुछ टिप्स दिये हैं। जिन्हें अपनाकर किसान न केवल गन्ना उत्पादन की लागत को कम कर सकते हैं बल्कि अधिक पैदावार भी प्राप्त कर सकते हैं।

कृषि अधिकारी ने बताया कि किसानों को गन्ने की पेड़ी प्रबंधन पर विशेष रूप से ध्यान देना चाहिए। उन्होंने कहा कि अधिकांश किसान भाई पौधा गन्ना में तो अधिक मेहनत और देखभाल करते हैं लेकिन पेड़ी फसल की उचित देखभाल नहीं करते हैं जिसके कारण पेड़ी गन्ना में प्रति हेक्टेयर कम पैदावार मिलती है।

पेड़ी गन्ना से मिलती है अधिक पैदावार

गन्ना अधिकारी ने कहा कि किसानों के बीच आमतौर पर यह धारणा है कि पेड़ी की फसल बिना लागत की फसल है। पेड़ी का रकबा लगभग 50 प्रतिशत होता है परंतु ठीक से देखभाल न करने के कारण इसकी पैदावार भी कम होती है। यदि देखा जाये तो पेड़ी की फसल में ज्यादा पैदावार एवं चीनी परता पाया जाता है। पेड़ी गन्ना का उचित प्रबंधन पौधा गन्ना की कटाई के तुरंत बाद आवश्यक है।

यदि समुचित प्रबंधन ना किया जाए तो उपज में 25 से 30 प्रतिशत तक कमी आ सकती है। पेड़ी की अच्छी पैदावार लेने के लिए गन्ने की कटाई बिलकुल खेत की मिट्टी की सतह से मिलाकर करना चाहिए। ऐसा करने से कल्ले अधिक निकलते हैं। जिस खेत में लाल सड़न, उकठा, या कंडुवा बीमारी लगी हो उस खेत से पेड़ी की फसल किसानों को नहीं लेनी चाहिए। इसके लिए पौधे गन्ने के ठूठ की छटाई आवश्यक है, इस कार्य हेतु गन्ना समितियों में आर.एम.डी. यंत्र उपलब्ध है जो ट्रैक्टर चालित है। छोटे किसान फावड़े से भी ठूठ की छटाई कर सकते हैं।

किसान पेड़ी गन्ने में करें इन दवाओं का स्प्रे

पेड़ी प्रबंधन के रखरखाव के संबंध में जानकारी देते हुए उन्होंने बताया की इथोफोन दवा की 50 मिली. मात्रा को 500 लीटर पानी में घोलकर ठूंठ पर छिड़काव से फुटाव अच्छा होता है, जिससे पौधे में वृद्धि शीघ्र हो जाती है। यदि खेत में पौधे गन्ने की सूखी पत्तियों के अवशेष हों तो इसके दोनों पंक्तियों के बीच बिछाने के बाद सिंचाई कर देते हैं जिससे मृदा में नमी बनी रहती है।

कीटनाशक रसायन यूजो (क्लोरोपैरिफॉस 50 प्रतिशत प्लस 5 प्रतिशत साईपर) की 400 मिली. मात्रा को 400 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करने से काला चिटका, दीमक सैनिक कीट एवं मिलीबग जैसे कीटों से पेड़ी फसल की रक्षा की जा सकती है।

पेड़ी गन्ने के लिए 20 से 25 प्रतिशत तक उर्वरक की आवश्यकता होती है। इसके लिए 220 किलोग्राम नाइट्रोजन, 80 किलोग्राम फ़ॉस्फ़ोरस और 80 किलोग्राम पोटाश की ज़रूरत होती है। जिसे हम गोबर की सड़ी खाद, जैव उर्वरक एवं रासायनिक उर्वरकों से पूरी कर सकते हैं। 10 किलोग्राम एजोबेक्टर तथा 10 किलग्राम पी.एस.बी. को 5 क्विंटल सड़ी गोबर की खाद के साथ मिलाकर दोनों लाइनों के बीच डालकर गुड़ाई कर देनी चाहिए।

पेड़ी गन्ना की फसल को रोगों से कैसे बचाएं

फफूँदजनित रोगों से पौधों की सुरक्षा के लिए ट्राइकोडर्मा 10 किलोग्राम प्रति एकड़ का प्रयोग गोबर की खाद में तैयार कर अवश्य करना चाहिए। पेड़ी गन्ने में कहीं-कहीं गैप अधिक हो जाता है, जिसे अवश्य भरना चाहिए। इसके लिए महिला समूहों द्वारा सीडलिंग उपलब्ध है, जिसे किसान भाई अपने गन्ना प्रयवेक्षक के माध्यम से प्राप्त कर सकते हैं।

जिन किसानों के पास संसाधन की कमी है, वे पेड़ी गन्ने में जब 4 से 5 पत्तियाँ आ जायें तो एन.पी.के. 19:19:19 जल विलेय उर्वरक का क्लोरोपैरिफ़ॉस  20 ई.सी. के 2 प्रतिशत घोल के साथ पत्रप छिड़काव अवश्य करें, इससे कीटों से पौधों को सुरक्षा भी मिलेगी और बढ़वार भी होगी। समय-समय पर निराई-गुड़ाई एवं अनुकूलतम सिंचाई कर पेड़ी गन्ने का प्रबंधन किया जा सकता है।

इस तरह खेत में ही बनेगी खाद, कृषि विभाग ने किसानों को दी सलाह

अभी देश में रबी फसलों की कटाई का काम जोरों पर चल रहा है। ऐसे में किसान कुछ तकनीकें अपनाकर मिट्टी की उर्वरक क्षमता को बढ़ा सकते हैं। इसके लिए कृषि विभाग के अधिकारियों के द्वारा किसानों को सलाह दी जा रही है। किसान रबी फसलों की कटाई के बाद शेष बचे अवशेषों को मिट्टी में दवा कर उसकी खाद बना सकते हैं। इसके अलावा किसान हरी खाद के लिए ढैंचा जैसी फसलों की खेती भी कर सकते हैं।

इस क्रम में कृषि विभाग ने किसानों से गेहूं की नरवाई को खेतों में नहीं जलाने का आग्रह किया है। इसके लिए प्रशासन द्वारा पहले से ही गेहूं की नरवाई जलाने पर प्रतिबंध लगाया गया है। कृषि वैज्ञानिकों की मानें तो गेंहू फसल के ठूठ नरवाई को जलाने से खेत की उर्वरक क्षमता में कमी आती है। वहीं गेहूं की पराली को रोटावेटर की सहायता से खेत की मिट्टी में मिलाने से देशी खाद बनती है जिससे फसलों के उत्पादन में वृद्धि के साथ ही लागत में भी कमी आती है।

कृषि विभाग द्वारा दी जा रही है सलाह

किसानों को खेत में नरवाई जलाने से रोकने के लिए कृषि विभाग के अधिकारियों एवं कृषि वैज्ञानिकों द्वारा अपने-अपने क्षेत्रों में भ्रमण कर किसान भाई को नरवाई न जलाने की सलाह एवं समझाइश निरंतर दी जा रही है। मध्यप्रदेश के सीहोर उप संचालक कृषि ने बताया कि विभाग के अधिकारी अपने निरन्तर भ्रमण के दौरान किसानों को समझाइश दे रहे हैं कि किसान अपने खेत की नरवाई नहीं जलाये और नरवाई नहीं जलाने के फायदे बता रहे है।

किसान अपने खेत की नरवाई जलाने के स्थान पर रोटावेटर चलाकर नरवाई खेत की मिट्टी में मिलाये। नरवाई मिट्टी में मिला देने से खाद का काम करती है। किसान खेती को लाभ का धंधा बनाने के लिए गेहूं के नरवाई को जलाने की बजाय उसे खेतों की मिट्टी में ही मिला दें जिससे खेत में फसलों को नुकसान भी नहीं होगा और फसल की पैदावार भी अच्छी होगी।

मंडी में गेहूं ले जाने से पहले किसान करें यह काम, वरना नहीं खरीदा जाएगा समर्थन मूल्य पर गेहूं

देश के कई राज्यों में न्यूनतम समर्थन मूल्य यानि की MSP पर गेहूं की खरीद शुरू की जा चुकी है। किसान मंडियों में अपना गेहूं बेचने के लिए लेकर जाने लगे हैं, ख़ासकर मध्य प्रदेश में। मध्य प्रदेश सरकार इस वर्ष किसानों को गेहूं की न्यूनतम समर्थन मूल्य की खरीद पर 125 रुपये का बोनस देने जा रही है, वहीं इस वर्ष केंद्र सरकार द्वारा गेहूं का समर्थन मूल्य 2275 रुपये प्रति क्विंटल तय किया गया है। ऐसे में किसानों को गेहूं बेचने में किसी प्रकार की असुविधा न हो इसके लिए जबलपुर कलेक्टर दीपक सक्सेना दिशा-निर्देश जारी किए हैं।

समर्थन मूल्‍य पर गेहूँ के उपार्जन कार्य में किसी भी प्रकार की असुविधा से बचने के लिए कलेक्टर दीपक सक्सेना ने जहाँ किसानों को स्‍लॉट बुक करने के बाद एफएक्यू गुणवत्ता की उपज खरीदी केन्‍द्रों पर लाने की सलाह दी है, वहीं उपार्जन व्यवस्था से जुड़े अधिकारियों-कर्मचारियों को भी विस्तृत दिशा-निर्देश जारी कर बिना स्लॉट बुकिंग के उपार्जन केंद्रों पर आये गेहूँ की खरीदी नहीं करने की हिदायत दी है।

स्लॉट बुकिंग के बाद ही किसान मंडी में ले जाएं गेहूं

जबलपुर कलेक्टर दीपक सक्सेना ने रबी सीजन में बिना स्लॉट बुकिंग के गेहूँ की खरीदी पर रोक लगाई दी है। साथ ही उपार्जन व्यवस्था से जुड़े अधिकारियों-कर्मचारियों को हिदायत दी है कि बिना स्लॉट बुक किये उपार्जन केंद्रों पर गेहूँ लेकर आये किसानों से खरीदी न की जाये तथा ऐसे किसानों की जानकारी संकलित कर उनका पंजीयन निरस्त करने जिला आपूर्ति अधिकारी को प्रस्ताव प्रेषित किया जाये। कलेक्टर सक्सेना द्वारा उपार्जन व्यवस्था से जुड़े अधिकारियों-कर्मचारियों को दिशा-निर्देश धान उपार्जन के दौरान किसानों को हुई परेशानियों को देखते हुए जारी किये गये हैं।

एफएक्यू मापदंडों के अनुसार ही मंडी में ले जाएं गेहूं

कलेक्टर के द्वारा जारी दिशा निर्देशों में स्पष्ट कहा गया है कि किसान साफ-सुथरा गेहूं ही मंडी में बेचने के लिए लायें। स्लॉट बुक करने के बाद भी यदि किसान नान-एफएक्यू गेहूँ लेकर आते हैं तो उन्हें अपने खर्चे पर उसे अपग्रेड कराना होगा। इसके लिये प्रत्येक उपार्जन केंद्र पर छन्ना, पंखा, ग्रेडिंग मशीन और मॉइश्चर मीटर की व्यवस्था की गई है। किसान समिति को निर्धारित शुल्क का भुगतान कर अपनी उपज को अपग्रेड कराना होगा। समिति द्वारा इस शुल्क को नोटिस बोर्ड पर प्रदर्शित किया जायेगा। निर्देशों में अधिकारियों को एफएक्यू गेहूँ की जाँच का किसानवार रिकार्ड रखने कहा गया है।

किसानों को दी जाएगी रसीद

जो भी किसान मंडियों में गेहूं की उपज को साफ कराते हैं या अपनी उपज को अपग्रेड कराते हैं उसके लिए जो भी शुल्क मंडी समिति के द्वारा लिया जाता है उसकी रसीद किसानों को दी जायेगी। यदि रसीद नहीं दी जाती है तो इसे अवैध वसूली माना जायेगा और इसके लिये विरुद्ध कठोर कार्यवाही की जायेगी। कलेक्टर ने उपार्जन केंद्रों पर तुलाई के बाद गेहूँ को तुरंत बोरी में भरने और उस पर किसान टैग लगाये जाने के निर्देश भी दिये हैं। उन्होंने साफ किया कि बिना किसान टैग लगी गेहूँ से भरी बोरियां उपार्जन केंद्र पर पाये जाने को गम्भीर अनियमितता माना जायेगा।

किसानों को 3 अप्रैल से मशरूम उत्पादन तकनीक पर दिया जाएगा प्रशिक्षण, यहाँ कराना होगा पंजीयन

मशरूम एक ऐसी फसल है जिसकी खेती बहुत ही कम क्षेत्र करके किसान अधिक मुनाफा कमा सकते हैं। मशरूम में पोषक तत्वों की भरमार होती है इस वजह से देश में इसकी माँग अधिक रहती है। ऐसे में मशरूम उत्पादन से किसान अधिक से अधिक आमदनी कम सकें इसके लिए कृषि विश्वविद्यालयों एवं कृषि विज्ञान केंद्रों के द्वारा समय-समय पर किसानों एवं युवाओं को प्रशिक्षण दिया जाता है।

इस क्रम में चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के सायना नेहवाल कृषि प्रौद्योगिकी, प्रशिक्षण एवं शिक्षा संस्थान की ओर से मशरूम उत्पादन तकनीक विषय पर 3 से 5 अप्रैल तक तीन दिवसीय प्रशिक्षण शिविर का आयोजन किया जा रहा है। इस प्रशिक्षण में देश एवं प्रदेश से किसी भी वर्ग, आयु के इच्छुक महिला व पुरुष भाग ले सकेंगे।

मशरूम प्रशिक्षण में दी जाएगी यह जानकरियाँ

3 अप्रैल से शुरू होने वाले प्रशिक्षण शिविर में किसानों को मशरूम उत्पादन की विभिन्न तकनीकों की जानकारी दी जाएगी। सायना नेहवाल कृषि प्रौद्योगिकी, प्रशिक्षण एवं शिक्षा संस्थान के सह-निदेशक (प्रशिक्षण) डॉ. अशोक गोदारा ने बताया कि इस प्रशिक्षण में सफेद बटन मशरूम, ऑयस्टर मशरूम, दूधिया मशरूम, शिटाके मशरूम, कीड़ाजड़ी मशरूम इत्यादि पर संपूर्ण जानकारी दी जाएगी।

इसके अलावा मशरूम के मूल्य संवर्धित उत्पाद तैयार करना, मार्केटिंग एवं लाइसेंसिंग, मशरूम उत्पादन में मशीनीकरण, मशरूम स्पान बीज तैयार करना, मौसमी और वातानुकूलित नियंत्रण में विभिन्न मशरूम को उगाने, मशरूम की जैविक और अजैविक समस्याएँ और उसके निदान पर विस्तार से जानकारी दी जाएगी।

मशरूम उत्पादन की ट्रेनिंग के लिए आवेदन कहाँ करें?

विश्वविद्यालय की ओर से यह प्रशिक्षण किसानों ओर युवाओं को निःशुल्क दिया जाएगा। इसके लिए प्रतिभागियों को संस्थान से प्रमाण पत्र भी दिये जाएँगे। इच्छुक युवक व युवतियाँ पंजीकरण के लिए सायना नेहवाल कृषि प्रौद्योगिकी, प्रशिक्षण एवं शिक्षा संस्थान में 3 अप्रैल को ही सुबह 9 बजे आकर अपना पंजीकरण करवाकर प्रशिक्षण में भाग ले सकते हैं।

यह संस्थान विश्वविद्यालय के गेट नंबर -3, लुदास रोड पर स्थित है। प्रशिक्षण में प्रवेश पहले आओ पहले पाओ के आधार पर दिया जाएगा। पंजीकरण के लिए उम्मीदवारों को एक फोटो व आधार कार्ड की फोटो कॉपी अपने साथ लेकर जाना होगा।

कपास की खेती के लिए किसानों को दिया गया प्रशिक्षण, उत्पादन बढ़ाने के लिए दिये गये ये टिप्स

देश में विभिन्न फसलों का उत्पादन बढ़ाने के साथ ही किसान कम लागत में अधिक मुनाफा कमा सकें इसके लिए कृषि विश्वविद्यालयों के द्वारा किसानों को प्रशिक्षण दिया जाता है। इस कड़ी में चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय द्वारा किसानों को कपास का उत्पादन बढ़ाने, उन्नत किस्म के बीजों एवं तकनीकी जानकारी देने के लिए विभिन्न प्रशिक्षण शिविर आयोजित किए गए।

प्रशिक्षण शिविर में अनुसंधान निदेशक डॉ. जीतराम शर्मा ने किसानों को बताया कि गुलाबी सुंडी का प्रकोप खेतों में रखी हुई लकड़ियों छटियों (बन सठियों) के अवशेष पड़े रहने के कारण फैलता है। इसलिए फसल कटाई के बाद उनका प्रबंधन किया जाना जरुरी है। सायना नेहवाल कृषि प्रौद्योगिकी प्रशिक्षण एवं शिक्षा संस्थान के सह-निदेशक प्रशिक्षण डॉ. अशोक गोदारा ने बताया कि संस्थान द्वारा समय-समय पर विभिन्न प्रकार के प्रशिक्षण दिये जा रहे हैं।

किसान इस तरह बढ़ायें कपास का उत्पादन

प्रशिक्षण शिविर में कपास अनुभाग के प्रभारी डॉ. करमल सिंह ने प्रदेश में कपास उत्पादन के लिए आवश्यक सस्य क्रियाओं से अवगत कराया। उन्होंने बताया कि बीटी नरमा के लिए शुद्ध नाइट्रोजन, शुद्ध फास्फोरस, शुद्ध पोटाश एवं जिंक सल्फेट क्रमशः 70:24:24:10 किलोग्राम प्रति एकड़ डालने की सिफारिश की जाती है। उर्वरक की मात्रा मिट्टी की जाँच के आधार पर तय की जानी चाहिए। इसके अलावा पाँच से छः साल में एक बार 5 से 7 टन गोबर की खाद डालनी चाहिए।

कपास अनुभाग के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. सोमवीर ने कपास की मुख्य विशेषताओं एवं किस्मों के बारे में किसानों को अवगत कराया। कीट वैज्ञानिक डॉ. अनिल जाखड़ ने कपास में लगने वाले कीट व उनके प्रबंधन के लिए किसानों को जानकारी दी। इसके अतिरिक्त प्रशिक्षण शिविर में किसानों को विश्वविद्यालय की तरफ से उत्पादक सामग्री भी प्रदान की गई।

किसानों को कृषि यंत्रों एवं कस्टम हायरिंग केंद्र पर मिलेगी 80 प्रतिशत तक की सब्सिडी, इस दिन शुरू होंगे आवेदन

कृषि यंत्र एवं कस्टम हायरिंग केंद्र पर अनुदान हेतु आवेदन

आज के समय बाजार में बुआई से लेकर कटाई और उसके बाद फसल अवशेषों के प्रबंधन के लिए कई प्रकार के कृषि यंत्र उपलब्ध हैं। इन कृषि यंत्रों की कीमत अधिक होने के कारण किसान यह कृषि यंत्र खरीद नहीं पाते हैं। जिसको देखते हुए सरकार किसानों को इन कृषि यंत्रों की खरीद पर भारी सब्सिडी उपलब्ध कराती है। इसके लिए केंद्र एवं राज्य सरकार द्वारा कई योजनाएँ चलाई जा रही हैं। इस कड़ी में बिहार सरकार राज्य के किसानों को कृषि यंत्रों की खरीद के साथ-साथ कस्टम हायरिंग केंद्र की स्थापना के लिए सब्सिडी देने जा रही है।

कृषि विभाग बिहार सरकार द्वारा वित्त वर्ष 2024-25 में कृषि यंत्रीकरण राज्य योजना के अंतर्गत कुल 82 करोड़ 25 लाख रुपये की योजना को स्वीकृति दी गई है। योजना के तहत सरकार इस वर्ष किसानों को 75 प्रकार के कृषि यंत्रों पर अनुदान देगी। इसमें खेत की जुताई, बुआई, निकाई-गुड़ाई, सिंचाई, कटाई, दौनी तथा उद्यानिकी से संबंधित कृषि यंत्र शामिल है। इसके अलावा सरकार SMAM योजना के अंतर्गत इस वर्ष 104 करोड़ 16 लाख रुपये की लागत से कृषि यंत्रों के साथ कस्टम हायरिंग केंद्र, कृषि यंत्र बैंक एवं स्पेशल कस्टम हायरिंग केंद्र की स्थापना के लिए भी अनुदान देगी।

कस्टम हायरिंग केंद्र के लिये कितना अनुदान Subsidy मिलेगा

कृषि विभाग बिहार सरकार ने किसानों को अलग-अलग योजनाओं के तहत कस्टम हायरिंग सेंटर, कृषि यंत्र बैंक एवं स्पेशल कस्टम हायरिंग केंद्र की स्थापना के लिए अलग-अलग अनुदान दिए जाने का प्रावधान किया गया है। जो इस प्रकार है:-

  1. सब मिशन ऑन एग्रीकल्चर मैकेनाईजेशन (SMAM) योजना 2024-25 में राज्य के सभी जिलों में कुल 267 कस्टम हायरिंग सेंटर जिसकी अनुमानित लागत 10 लाख रुपये है पर किसानों 40 प्रतिशत अधिकतम 4 लाख रुपये तक का अनुदान दिया जाएगा।
  2. इसके अलावा सब मिशन ऑन एग्रीकल्चर मैकेनाईजेशन (SMAM) योजना 2024-25 में राज्य के 9 जिलों पटना, भोजपुर, कैमुर, बक्सर, नालंदा, रोहतास, नवादा, औरंगाबाद, एवं गया जिलों में फसल अवशेष प्रबंधन हेतु 115 स्पेशल कस्टम हायरिंग सेंटर की स्थापना के लिए अनुदान दिया जायेगा। स्पेशल कस्टम हायरिंग केंद्र की इकाई लागत पर किसानों को 80 प्रतिशत अधिकतम 12 लाख रुपये का अनुदान दिया जायेगा।
  3. वहीं सब मिशन ऑन एग्रीकल्चर मैकेनाईजेशन (SMAM) योजना 2024-25 में राज्य के चयनित गाँवों में 101 कृषि यंत्र बैंक जिसकी इकाई लागत 10 लाख रुपये है पर 80 प्रतिशत अधिकतम 8 लाख रुपये का अनुदान दिया जाएगा।

कृषि यंत्रों पर कितना अनुदान Subsidy मिलेगा?

बिहार सरकार द्वारा इस वर्ष किसानों को दो योजनाओं के तहत कृषि यंत्रों पर अनुदान दिया जायेगा। इसमें बुआई से लेकर कटाई तक उपयोग में आने वाले कृषि यंत्र एवं फसल अवशेष प्रबंधन के लिए आवश्यक सभी कृषि यंत्र शामिल है। सरकार द्वारा इन कृषि यंत्रों पर इकाई लागत का 40 से 80 प्रतिशत तक का अनुदान दिया जायेगा। किसानों को इन कृषि यंत्रों पर अनुदान यंत्र के प्रकार एवं किसान वर्ग के अनुसार दिया जाएगा।

इसमें किसानों को राज्य योजना के अंतर्गत जिलों के लिए कम से कम 18 प्रतिशत अत्यंत पिछड़ा वर्ग (EBC) के कृषकों अनुसूचित जाति/जनजाति के समतुल्य अनुदान दिया जाएगा। वहीं बिहार राज्य के कृषि यंत्र निर्माताओं द्वारा बनाये गये कृषि यंत्रों पर अनुदान दर प्रतिशत तथा अनुदान दर के अधिकतम सीमा में 10 प्रतिशत वृद्धि कर किसानों को अनुदान का लाभ दिया जायेगा। लेकिन किसी भी स्थिति में अनुदान दर यंत्र की क़ीमत 80 प्रतिशत से अधिक नहीं होगा।

कृषि यंत्र और कस्टम हायरिंग केंद्र के लिये आवेदन कब होंगे?

बिहार के किसान दोनों योजनाओं के तहत ऑनलाईन आवेदन कृषि विभाग की वेबसाइट (www.farmech.bih.nic.in) पर दिनांक 5 अप्रैल को 2:00 बजे से अपनी सुविधानुसार कहीं से भी आवेदन कर सकते हैं। आवेदन करने की अंतिम तारीख 5 मई 2024 है। वर्तमान वित्तीय वर्ष में अनुदानित दर पर कृषि यंत्रों के खरीद करने के लिए किसानों से प्राप्त योग्य आवेदन में से ऑनलाइन लॉटरी के माध्यम से आवेदक का चयन कर लॉटरी की तिथि को ही परमिट जारी किया जाएगा, जिसकी वैद्यता 21 दिनों की होगी।

कृषि यंत्र एवं कस्टम हायरिंग केंद्र पर सब्सिडी के लिए आवेदन कहाँ करें?

अनुदान पर कृषि यंत्र एवं कस्टम हायरिंग केंद्र और कृषि यंत्र बैंक लेने के लिए इच्छुक किसानों को कृषि यंत्रीकरण सॉफ्टवेयर OFMAS पर आवेदन करने से पूर्व कृषि विभाग, बिहार के DBT Portal पर Registration करना अनिवार्य है। बिना Registration नंबर के OFMAS में आवेदन स्वीकार नहीं किया जाएगा।

डीबीटी पोर्टल पर रजिस्ट्रेशन के बाद किसानों को कृषि विभाग की वेबसाइट (www.farmech.bih.nic.in) पर आवेदन करना होगा। अनुदान वाले रेट पर कृषि यंत्र खरीदने के लिए बिहार राज्य के इच्छुक प्रगतिशील किसान, जीविका समूह, ग्राम संगठन और क्लस्टर फेडरेशन अपनी सुविधानुसार कहीं से भी ऑनलाइन आवेदन कर सकते हैं।

योजना के अंतर्गत सभी प्रकार के कृषि यंत्रों के लिए किसान यंत्र की क़ीमत से अनुदान की राशि घटाकर शेष राशि का भुगतान करके संबंधित विक्रेता से यंत्र खरीद सकेंगे एवं अनुदान की राशि संबंधित कृषि यंत्र निर्माता के खाते में अंतरित की जाएगी। ऑनलाइन आवेदन के संबंध में विशेष जानकारी के लिए किसान अपने प्रखंड कृषि पदाधिकारी/ सहायक निदेशक (कृषि अभियंत्रण)/ ज़िला कृषि पदाधिकारी से संपर्क कर सकते हैं।

किसान यहाँ से कम दामों पर ऑनलाइन खरीदें लाल भिंडी की किस्म काशी लालिमा के बीज

लाल भिंडी किस्म काशी लालिमा

आजकल बाजार में लाल भिंडी बहुत ही ज्यादा लोकप्रिय होती जा रही है। हो भी क्यों ना वैज्ञानिकों का मानना है कि लाल भिंडी हरी भिंडी के मुकाबले ज्यादा फायदेमंद है। इसके अलावा किसानों को बाजार में इसकी क़ीमत हरी भिंडी की तुलना में अच्छी मिल जाती है। जिसके चलते किसानों के लिए भी इसकी खेती मुनाफे का सौदा साबित हो रही है। उत्तर प्रदेश के वाराणसी स्थित भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान द्वारा लाल भिंडी की किस्म का विकास किया गया है, इस किस्म का नाम है काशी लालिमा

लाल भिंडी की इस किस्म को केंद्रीय किस्म विमोचन समिति द्वारा वर्ष 2019 में अधिसूचित किया गया था। इस किस्म की फलियों का रंग बैंगनी-लाल होता है, जिसकी फली की लंबाई 11 से 14 सेंटीमीटर एवं व्यास 1.5 से 1.6 सेंटीमीटर तक होता है। सामान्यतः इस किस्म के पौधे पर लगभग 20-22 फलियाँ लगती हैं। पहली बार में फलियों की तुड़ाई 45 दिनों के बाद होती है एवं प्रति हेक्टेयर औसतन 14 से 15 टन की उपज प्राप्त की जा सकती है।

लाल भिंडी की खासियत क्या है?

किसान लाल भिंडी किस्म काशी लालिमा की बुआई जायद (फरवरी-मार्च) और खरीफ (जून-जुलाई) के दौरान कर सकते हैं। भिंडी की यह किस्म पीत शिरा मोजैक एवं पत्ती शिरा विन्यास पर्ण कुंचन (इनेशन लीफ कर्ल) बीमारी के प्रति ज्यादा सहनशील है। इस किस्म की फली में एंथोसाइनिन 3.2 मिलीग्राम प्रति 100 ग्राम पाया जाता है जबकि हरी फली वाली किस्मों में यह मौजूद नहीं होता है। इसकी फलियों में आयरन 51.3 पी.पी.एम., जिंक 49.7 पी.पी.एम. एवं कैल्शियम 476.5 पी.पी.एम. पाया जाता है।

लाल भिंडी में उचित मात्रा में एंटीआक्सीडेंट पाया जाता है, जो शरीर के ऊतकों में ऑक्सीकरण की प्रक्रिया को पूरा करता है जिससे कोशिकाएँ नष्ट नहीं होती हैं। हरी भिंडी की अपेक्षा लाल भिंडी में पोषक तत्वों की मात्रा अधिक होती है। काशी लालिमा में फोलिक एसिड पाया जाता है, जो गर्भ में पल रहे बच्चे के मानसिक विकास के लिए बेहद आवश्यक होता है। इस भिंडी का नियमित सेवन करने पर कैंसर, डायबिटीज, हार्ट डिजीज, कोलेस्ट्रॉल जैसी बीमारियों का खतरा भी कम होता है। जिससे इसकी बाजार माँग भी बढ़ी है। जिसका लाभ किसानों को इसके अच्छे भाव के रूप में मिल रहा है।

किसान लाल भिंडी का बीज कहाँ से खरीदें

लाल भिंडी की यह किस्म नई होने के कारण किसानों इसके बीज मिलने में काफी परेशानी होती थी, जिसको देखते हुए राष्ट्रीय बीज निगम NSC द्वारा काशी लालिमा के बीज को ऑनलाइन बेचा जा रहा है। ऐसे में जो भी किसान लाल भिंडी की इस किस्म की खेती करना चाहते हैं वे किसान इसके बीज घर बैठे ऑनलाइन कम दामों पर बुला सकते हैं। इसके लिए किसानों को www.mystore.in की वेबसाइट पर जाना होगा।

एनएससी द्वारा अभी इस किस्म के बीज पर 40 प्रतिशत का डिस्काउंट दिया जा रहा है जिसके चलते किसान अभी काशी लालिमा किस्म के 100 ग्राम बीज का पैकेट मात्र 45 रुपये में प्राप्त कर सकते हैं। इसके अलावा किसान भिंडी की इस किस्म के बीज को भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान, वाराणसी से भी खरीद सकते हैं।

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417 खरीद केंद्रों पर 1 अप्रैल से शुरू होगी गेहूं की समर्थन मूल्य पर खरीद, किसानों को 72 घंटों में भुगतान

देश के अधिकांश गेहूं उत्पादक राज्यों में 1 अप्रैल से न्यूनतम समर्थन मूल्य MSP पर गेहूं की खरीद शुरू हो जाएगी, इसमें हरियाणा राज्य भी शामिल है। हरियाणा में रबी सीजन-2024 के तहत 26 मार्च से सरसों की खरीद शुरू की जा चुकी है और अब आगामी 1 अप्रैल से गेहूं की खरीद भी शुरू होने जा रही है। इसके लिए सरकार ने प्रदेश भर में कुल 417 खरीद केंद्र बनाए हैं। इस बार पिछले वर्ष की तुलना में गेहूं की ज्यादा आवक आने की उम्मीद है, जिसे देखते हुए फसलों की खरीद के पुख्ता इंतजाम किए गए हैं।

सरकार इस वर्ष भी किसानों को गेहूं खरीदी का भुगतान सीधे उनके बैंक खातों में करेगी। फसल खरीद का भुगतान इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से 48 से 72 घंटे के अंदर-अंदर सीधे किसानों के खातों में किया जाएगा। खाद्य, नागरिक आपूर्ति एवं उपभोक्ता मामले विभाग की अतिरिक्त मुख्य सचिव डॉ. सुमिता मिश्रा ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से जिला उपायुक्तों, पुलिस अधीक्षकों और जिला खाद्य एवं आपूर्ति नियंत्रक (डीएफएससी) के साथ खरीद की तैयारियों के संबंध में बैठक कर आवश्यक दिशा-निर्देश दिए हैं।

चार एजेंसियाँ करेंगी गेहूं की खरीद

डॉ. मिश्रा ने निर्देश देते हुए कहा कि हर‍ियाणा में न्यूनतम समर्थन मूल्य 2275 रुपये पर चार खरीद एजेंसियां खाद्य, नागरिक आपूर्ति एवं उपभोक्ता मामले विभाग, हैफेड, एचएसडब्ल्यूसी और एफसीआई (केंद्रीय एजेंसी) फसलों की खरीद करेगी। सभी जिला उपायुक्त अपने जिलों में इन एजेंसियों के साथ समन्वय स्थापित करें और खरीद कार्यों की निगरानी करेंगे। जिले के अन्य वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा भी मंडियों का आकस्मिक निरीक्षण किया जाए। इसके अलावा, वरिष्ठ आईएएस अधिकारी, जो जिला इंचार्ज हैं, उनके द्वारा भी अपने अपने जिलों में मंडियों का निरीक्षण किया जाएगा।

दूसरे राज्यों के बॉर्डर पर होगी निगरानी

खरीद के सुचारू संचालन और किसी भी अप्रिय स्थिति से बचने के लिए पुलिस महानिदेशक को भी मंडियों में पर्याप्त सुरक्षा व्यवस्था सुनिश्चित करने के लिए कहा गया है। इसके अलावा, यातायात को भी नियंत्रित करने के लिए पुलिस की व्यवस्था की जाएगी, ताकि मंडियों के पास अन्य यात्रियों को यातायात जाम या भीड़ के कारण कोई असुविधा न हो। उन्होंने यह भी निर्देश दिए कि अन्य राज्यों की सीमा से लगते जिलों में नाके लगाए जाएं।

अतिरिक्त मुख्य सचिव ने कहा क‍ि पंजीकृत किसानों को ई-खरीद पोर्टल के माध्यम से एमएसपी के लिए उनके बैंक खातों में ऑनलाइन भुगतान किया जाएगा। मंडियों और खरीद केंद्रों में उचित सफाई व्यवस्था और अन्य बुनियादी सुविधाएं सुनिश्चित की जाएंगी। उन्होंने निर्देश देते हुए कहा कि इस बार गेहूं की ज्यादा आवक आने का अनुमान है, उसके अनुसार संबंधित जिला उपायुक्त फसल को स्टोर करने के लिए पर्याप्त स्थान की उपलब्धता चिह्नित कर लें।

गर्मियों में किसान इस तरह करें मिर्च की खेती, मिलेगा भरपूर उत्पादन

भारत में सब्जियों से लेकर खाने-पीने के अनेकों पकवानों में तीखापन लाने के लिए मिर्च का उपयोग किया जाता है। खास बात यह है कि भारत पूरे वैश्विक खपत का अकेले 36 फीसदी मिर्ची का उत्पादन करता है। भारत की मिर्च की माँग दुनिया भर में रहती है जिसके चलते किसानों को मिर्च के अच्छे भाव मिल जाते हैं यानि की किसानों के लिए मिर्च की खेती एक मुनाफे का सौदा है। खासकर गर्मियों में अपने ख़ाली खेतों में किसान इसे लगाकर अतिरिक्त आमदनी कर सकते हैं।

भारत में हरी और लाल मिर्च दोनों के लिए की जाती है। इसकी खेती के लिए 15 से 35 डिग्री सेल्सियस तापमान उपयुक्त माना जाता है। 40 डिग्री सेल्सियस से अधिक तापमान होने पर इसके फूल एवं फल गिरने लगते हैं। मिर्च की खेती सभी प्रकार की मिट्टी में की जा सकती है। अच्छे जल निकास वाली एवं कार्बनिक युक्त बलुई-लाल दोमट मृदा जिसका पी.एच. मान 6.0 से 7.5 हो इसकी खेती के लिए सबसे उपयुक्त होती है।

मिर्च की खेती के लिए उन्नत किस्में

देश में कृषि वैज्ञानिकों के द्वारा अधिक उपज देने वाली एवं कीट रोगों के लिए प्रति रोधी किस्में तैयार की गई हैं। किसान अपने क्षेत्र के अनुसार इन किस्मों में से किसी का चयन कर उसकी खेती कर सकते हैं। इन किस्मों में मिर्च की उन्नत प्रजातियाँ जैसे पूसा सदाबहार, पूसा ज्वाला, अर्का लोहित, अर्का सुफल, अर्का श्वेता, अर्का हरिता, मथानिया लौंग, पंत सी-1, पंत सी-2, जी-3, जी-5, हंगरेरियन वैक्स (पीले रंग वाली), जवाहर 218, आर.सी.एच.-1, एल.सी.ए.-206 आदि प्रमुख किस्में शामिल हैं।

ग्रीष्मकालीन मिर्च की नर्सरी कब एवं कैसे डालें?

गर्मी में मिर्च की खेती के लिए फरवरी-मार्च में पौधशाला में बीजों की बुआई करनी चाहिए। एक हेक्टेयर पौध तैयार करने के लिए संकर प्रजातिओं के लिए 250 ग्राम और अन्य किस्मों के लिये एक से डेढ़ किलोग्राम बीज पर्याप्त होता है। नर्सरी के लिए 1 मीटर चौड़ी, 3 मीटर लंबी और 10 से 15 से.मी. ज़मीन से उठी हुई क्यारियाँ तैयार करनी चाहिए।

किसान बीजों की बुआई से पहले बविस्टीन या कैप्टान की 2 ग्राम/ किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करें। पौधशाला में कीटों की रोकथाम हेतु 2 ग्राम फोरेट 10 वर्गमीटर की दर से जमीन में मिलाएँ या मिथाइल डिमेटोन 1 मि.ली./लीटर पानी या एसीफ़ेट 1 मि.ली./ लीटर पानी का पौधों पर छिड़काव करें।

मिर्च में कितना खाद डालें

नर्सरी में बुआई के 4-5 सप्ताह बाद पौध रोपण के लिए तैयार हो जाती है। गर्मी की फसल में पंक्ति से पंक्ति व पौधों से पौधों की दूरी 60X 30-45 सेंटीमीटर रखनी चाहिए । जायद मिर्च रोपाई हेतु प्रति हेक्टेयर 70 किलोग्राम नाइट्रोजन, 50 से 60 किलोग्राम फास्फोरस एवं 50 से 60 किलोग्राम पोटाश खेत में अंतिम जुताई के समय मिला दें। शेष बची हुई आधी मात्रा 30 व 45 दिनों के बाद टॉप ड्रेसिंग के द्वारा खेत में डालें एवं तुरंत सिंचाई कर दें।

मिर्च की फसल को संक्रमण रोग व कीटों से बचाने के लिए 400 मि.ली. मैलाथियान 50 ई.सी. को 250 लीटर पानी में मिलाकर 10 से 15 दिनों के अंतराल पर एक एकड़ में खड़ी फसल पर छिड़काव करना चाहिए।