सब्सिडी पर 50 मीट्रिक टन क्षमता का प्याज भंडार गृह बनवाने के लिए आवेदन करें

अनुदान पर प्याज भंडार गृह हेतु आवेदन

सरकारी अनुदान पर गोदाम WareHouse बनायें

उत्पादन के अनुसार भंडारण की क्षमता को पूरा करने के लिए देश तथा राज्यों में विभिन्न प्रकार की योजनाओं का क्रियान्वयन किया जा रहा है | जिसके लिए देश में भण्डारण की क्षमता को बढ़ाने के लिए राष्ट्रीय कृषि विकास योजना चलाई जा रही है, योजना के तहत किसानों को नश्वर उत्पाद के भंडार गृह बनाने के लिए अनुदान दिया जाता है | जिसके लिए अलग-अलग राज्य सरकारों के द्वारा किसानों को अलग-अलग सब्सिडी दी जाती है | अभी मध्य प्रदेश सरकार ने राज्य के सभी जिलों के किसानों को नश्वर उत्पादन की भंडारण क्षमता में वृद्धि की विशेष योजनान्तर्गत प्याज भंडारण गृह निर्माण पर सब्सिडी उपलब्ध करवाने के लिए आवेदन आमंत्रित किये गए हैं | किसान समाधान इस योजना की विस्तृत जानकारी लेकर आया है इच्छुक व्यक्ति आवेदन कर योजना का लाभ ले सकते हैं |

प्याज भंडार गृह (Store house) पर दी जाने वाली सब्सिडी

यह योजना राज्य पोषित योजना होने के कारण मध्य प्रवेश उधानिकी विभाग हितग्राही को सब्सिडी उपलब्ध करा रहा है | लाभार्थी किसानों को प्याज भंडार गृह पर 50 प्रतिशत तक की सब्सिडी दिए जाने का प्रावधान है | मध्य प्रदेश उधानिकी विभाग के तरफ से 50 मीट्रिक टन क्षमता वाले भंडारण के लिए अधिकतम 3,50,000 /- रूपये की लागत निश्चित की गई है | इसमें किसानों को लागत की अधिकतम 1,75,000 रूपये तक की सब्सिडी दी जाएगी |

योजना का लाभ लेने के लिए पात्रता

यह योजना मध्य प्रदेश के सभी जिलों में लागू की गई है तथा सभी जिले से इच्छुक किसान आवेदन कर सकते हैं | अभी सरकार ने राज्य के अनुसूचित जाति एवं जनजाति के किसानों के लिए लक्ष्य जारी किये हैं | इसके अतिरिक्त सामान्य अथवा पिछड़े वर्ग के किसान अभी योजना के लिया आवेदन नहीं कर पाएंगे |

2 हेक्टेयर क्षेत्रफल में खेती करना अनिवार्य होगा ?

हितग्राही किसान को कम से कम 2 हेक्टेयर क्षेत्रफल में प्याज का उत्पादन करना आवश्यक है | इसके साथ ही प्याज भंडारण का उपयोग किसी अन्य कामों के लिए नहीं किया जा सकता |

6 माह में प्याज भंडारण बनाना अनिवार्य होगा ?

प्याज भंडारण गृह का निर्माण NHRDF द्वारा जारी डिजाईन/ड्राइंग एवं निर्धारित मापदण्ड अनुसार होना चाहिए एवं आशय पत्र जारी होने के बाद अधिकतम 06 माह के भीतर प्याज भण्डार गृह का निर्माण पूर्ण करना आवश्यक होगा |

किसानों को कब तक दी जाएगी सब्सिडी

कृषकों द्वारा निर्मित प्याज भंडारण गृह का शत प्रतिशत भौतिक सत्यापन हेतु जिले के उप / सहायक संचालक उद्यान की अध्यक्षता में 03 सदस्यीय समिति गठित की जाएगी | समिति के मूल्यांकन एवं भौतिक सत्यापन तथा अनुसंशा के आधार पर संबंधित कृषक को अनुदान की राशि का भुगतान नियमानुसार एम.पी.एगो द्वारा डी.बी.टी. के माध्यम से कृषकों के बैंक खातों में किया जायेगा |

योजना का लक्ष्य की है ?

यह योजना राज्य के अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति के 51 जिले के किसानों के लिए हैं | राज्य के सभी जिलों को मिलाकर 425 प्याज भंडारण का लक्ष्य रखा गया है | जिस पर 743.750 लाख रूपये की कुल सब्सिडी दी जाएगी | इस लक्ष्य में अनुसूचित जाति के किसानों के लिए 173 तथा अनुसूचित जनजाति के किसानों के लिए 252 प्याज भंडारण का लक्ष्य है | जबकि अनुसूचित जाति के किसानों के लिए 302.750 लाख रूपये का सब्सिडी दिया जायेगा वहीं अनुसूचित जनजाति के किसानों को 441.00 लाख रूपये की सब्सिडी दी जाएगी |

इच्छुक किसान अनुदान हेतु कब कर सकते हैं आवेदन

प्याज भंडारण गृह निर्माण के लिए आवेदन 23/04/2021 के सुबह 11:00 बजे से किया जायेगा | यह आवेदन जिले के दिये हुए लक्ष्य के अनुसार किया जायेगा | आवेदन लक्ष्य से 10% अधिक तक आवेदन किया जा सकता है |  

प्याज भंडार गृह सब्सिडी हेतु आवेदन कहाँ करें

भंडार गृह एवं के लिए आवेदन उद्यानिकी एवं खाद्य प्रसंस्करण विभाग मध्यप्रदेश के द्वारा आमंत्रित किये गए हैं अत; किसान भाई यदि योजनाओं के विषय में अधिक जानकारी चाहते हैं तो उद्यानिकी एवं विभाग मध्यप्रदेश पर देख सकते हैं | मध्यप्रदेश में किसानों को आवेदन करने के लिए ऑनलाइन पंजीयन उद्यानिकी विभाग मध्यप्रदेश फार्मर्स सब्सिडी ट्रैकिंग सिस्टम https://mpfsts.mp.gov.in/mphd/#/ पर जाकर कृषक पंजीयन कर सकते हैं |

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अधिक उत्पादन के लिए मई एवं जून महीने में इस तरह करें फलदार पेड़-पौधों की देखभाल

फलदार पेड़-पौधों की देखभाल

गर्मी का मौसम हो और बागों में फलों का पेड़ में लटकना दोनों एक दुसरे के पूरक है | देश में कई फलदार पेड़ों के ऊपर फल गर्मी के मौसम में ही लगते हैं | जिसमें आम, लीची बेल इत्यादी प्रमुख फसल है | इसके अलवा सेब, बेर, अमरुद इत्यादी फसल सर्दी के मौसम में आते हैं परन्तु उनको भी वर्ष भर देख-रेख की आवश्यकता होती है | इन सभी फलदार वृक्षों के लिए मई तथा जून का माह काफी महत्वपूर्ण होता है | इन पेड़ों की कटाई, छंटाई, खाद, उर्वरक तथा नये पौधों का लगाना शुरू कर दिया जाता है | पेड़ों की सही देखभाल करने से एक तो ज्यादा फल लगते हैं दूसरी ओर पेड़ों की उम्र में काफी वृद्धि हो जाती है |

आम की देखभाल

मानसून के आगमन से पूर्व, नए बाग़ लगाने के लिए मई में उचित दुरी पर बाग़ का रेखांकन (निशान) करने के बाद गड्ढे खोद लेने का कार्य पूरा कर लेना चाहिए | नर्सरी में बीजू पौधों की आवश्यकतानुसार सिंचाई करनी चाहिए एवं खरपतवार निकाल देने चाहिए | पकते हुए फलों का चिड़ियाँ आदि पक्षियों से बचाव करना जरुरी है | फलों की आंतरिक सड़क रोकने के लिए बोरेक्स (4 किलोग्राम/100 लीटर) का छिडकाव करना चाहिए | जून में नीचे गिरे फलों को इकट्ठा कर लेना चाहिए तथा इन्हें स्थानीय बाजारों में भेजने की व्यवस्था करनी चाहिए | वृक्षों के नीचे की जमीन साफ़–सुथरी रखनी चाहिए और यदि अगेती किस्म के फल पक गई हो तो उन्हें तोड़कर बाजार में बेचने की उचित व्यवस्था करना चाहिए|

अमरूद

गर्मियों में आमतौर पर वातावरण निरंतर शुष्क होता जाता है, जिससे मृदा में पानी की कमी होने लगती है | उचित समय पर सिंचाई नहीं होने पर फलों की वृद्धि पर विपरीत प्रभाव पड़ सकता है, जिसके परिणामत: व छोटे रह सकते हैं | इसलिए 8–10 दिनों के अंतराल पर सिंचाई कर दी जानी चाहिए | मई में यदि बगीचों में फल मक्खी अथवा अन्य कीटों का प्रकोप हो तो किव्नाल्फास 25 ई.सी. का 2 मि.ली. प्रति लीटर या मेलाथियान 50 ई.सी. का 1 मि.ली. प्रति लीटर या मोनोक्रोटोफास 36 डब्ल्यूएससी 2 मि.मी. प्रति लीटर की दर से या 3 प्रतिशत नीम तेल का छिडकाव करें | छिडकाव प्रातः काल या देर शाम में 21 दिनों के अंतराल पर कम से कम चार बार किया जाना चाहिए |

जून में नए अमरुद के बागों की स्थापना के लिए खेत को भलीभांति तैयार करें | पौधे लगाने के लिए गड्ढों को 3 × 3 मीटर दुरी पर खोदा जाना चाहिए | प्रत्येक गड्ढे को 10 किलोग्राम गोबर की सदी खाद, 1 किलोग्राम नीम की खली, 50 ग्राम क्लोरपाइरीफाँस की धुल एवं उपरी मृदा के साथ मिलाकर भरा जाना चाहिए | पौधों में जिंक की कमी हो जाने पर पत्तियां छोटी एवं पीली लगती हैं | इसके नियंत्रण के लिए आधा किलोग्राम जिंक सल्फेट और आधा किलोग्राम बुझे हुए चुने का घोल 100 लीटर पानी में बनाकर इसका छिडकाव 15 दिनों के अंतराल पर 2 – 3 बार करना चाहिए |

बेर

देश के उत्तरी और पश्चिमी भागों में कटाई–छंटाई के लिए मई–जून (वैशाखी – ज्येष्ठ) का महिना उपयुक्त होता है, जब पौधों की अधिकांश पत्तियां झड चुकी होती हैं तथा पेड़ सुषुप्तावस्था में हो, सबसे उपयुक्त मन जाता है | छोटे पौधों में 60–90 से.मी. तक की ऊँचाई तक तने पर निकलने वाली शाखाओं को काट देना चाहिए और किसी लकड़ी अथवा बांस के सहारे सीधा करना चाहिए | बड़े वृक्षों की चटकी, टूटी और जमीन को छूती शाखाओं को छांट देना चाहिए | एक–दुसरे से मिली हुई शाखाओं को भी काट देना चाहिए | छटाई का कार्य जहाँ तक संभव हो सके, मई में पूरा कर लेना चाहिए | कटाई – छटाई करते समय, सामान्यत: पिछले वर्ष की शाखाओं का 50 प्रतिशत भाग काट देते हैं | तृतीय शाखाओं को पूर्ण रूप से एवं दिव्तीय शाखाओं की 15–20 कलियाँ काट देने पर मजबूत एवं ओजस्वी शाखाएं निकलती हैं | रोगों के प्रकोप से बचाव के लिए शाखाओं के कटे हुए स्थानों पर फफूंदनाशी (नीला थोथा या ब्लाइटाक्स – 50) का लेप कर देना चाहिए | कांट– छंट के लिए तेज धार वाले औजार का प्रयोग करना चाहिए, ताकि शाखा क्षतिग्रस्त न हो | जून अत्यधिक गर्म रहता है | वृक्षों में जब तक फुटाव न हो, तब तक सिंचाई नहीं करनी चाहिए | जिन वृक्षों में छंटाई का कार्य रह गया हो, उनमें जून के प्रथम सप्ताह तक यह कार्य पूरा कर लें चाहिए |

छंटाई के पश्चात् कटी हुई लकड़ियों और शाखाओं को हटाकर साफ़ करना चाहिए | गर्मी में एक–दो बार वृक्षों के नीचे जुताई कर देने पर हानिकारक कीट–मकड़ों के अंडे तथा प्यूपा नष्ट हो जाते हैं | पौधों के मुख्य तनों के चारों ओर 60 से.मी. तक की दुरी का घेरा छोड़कर पेड़ का बाहरी घेरा बनाया जा सकता है तथा इसको पानी में नाली से जोड़ देना चाहिए | बेर में एक साल के पौधे के लिए 5 किलोग्राम गोबर/ कम्पोस्ट खाद, 50 ग्राम नाइट्रोजन, 50  ग्राम फास्फेट व 25 ग्राम पोटाश तथा यही मात्रा क्रमश: बढ़कर 8 या उससे अधिक आयु के पौधे के लिए 40 किलोग्राम गोबर की खाद, 400 ग्राम नाइट्रोजन, 400 ग्राम फास्फेट व 200 ग्राम पोटाश प्रति वृक्ष की दर से प्रयोग करें |

चीकू

मई में जब कड़ी धुप हो तो बगीचे की गहरी जुताई करें | लगभग 15 दिनों तक खाली जगह में धुप आने दें | ऐसा करने से कीटों के अंडे नष्ट हो जायेंगे तथा बाग़ में ज्यादा कीटनाशियों के छिडकाव से बचा जा सकता सकेगा | इस समय बाग़ में सिंचाई बिलकुल न करें | नए बाग़ लगाते समय मानकीकृत किस्में लगाएं | बाग़ में मैग्नीशियम, सल्फर, बोरान, आयरन, जिंक की पूर्ति के लिए क्रमश: 1 प्रतिशत मैग्नीशियम नाईट्रोजन, 1 प्रतिशत कैल्शियम सल्फेट, बोराक्स (5 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर), आयरन सल्फेट (0.5 प्रतिशत), जिंक सल्फेट (0.5 प्रतिशत) डालें | बाग़ में नाईट्रोजन, पोटेशियम और फास्फोरस के साथ – साथ सूक्ष्म पोषक तत्वों की मृदा में कमी के प्रति सजग रहें | किसी भी खाद को डालने से अवश्य करवाएं और जरूरत के अनुसार ही उर्वरक प्रयोग करें |

अनार

उत्तर–पश्चिम भारत के शुष्क क्षेत्रों में जहाँ सिंचाई के सीमित संसाधन उपलब्ध हैं, उन क्षेत्रों में अनार मृग भार किस्म पसंद की जाती है | जबकि महाराष्ट्र के सिंचित क्षेत्रों में आंबे भार को पसंद किया जाता है | मृग भार वाले क्षेत्रों में अप्रैल–मई से ही खेतों में सिंचाई रोक दी जाती है | सिंचाई रोकने के 45 दिनों के बाद पौधों की हल्की छटाई करनी चाहिए | छटाई के तुरंत पश्चात, उर्वरक की खुराक और सिंचाई शुरू कर देनी चाहिए | सामान्यत: अनार के पौधों में 10–15 किलोग्राम गोबर की सड़ी खाद, 250 ग्राम नाईट्रोजन, 125 ग्राम फास्फोरस एवं 125 ग्राम पोटेशियम प्रति वर्ष प्रति वृक्ष देना चाहिए | खाद एवं उर्वरकों का उपयोग पौधों के छत्रक के नीचे चरों ओर 8–10 से.मी. गहरी खाई बनाकर देना चाहिए | यह पुष्पण और फलन की अभिवृद्धि करता है | वैकल्पिक रूप से सिंचाई रोकन के 45 दिनों बाद, पत्तियों को गिराने के लिए, एथ्रेल 1000 पीपीएम, प्रोफेनोफास 2 मि.ली. प्रति लीटर, मेटासिड 2 मि.ली. प्रति लीटर, थयोयुरिया 3 ग्राम प्रति लीटर या यूरिया फास्फेट 5 ग्राम प्रति लीटर का छिडकाव करें | तेलिया रोग से संक्रमित क्षेत्रों में मृग बाहर नहीं ली जानी चाहिए | मई के तीसरे सप्ताह से जून के आखरी सप्ताह एवं इसके बाद भी रासायनिक जैवनाशियों का प्रति सप्ताह प्रयोग करें |

मानसून के दौरान अनार के नए बाग़ लगाने हेतु, रेखांकन एवं गड्ढे खोदने का कार्य भी मई – जून में ही पूर्ण कर लेना चाहिए | सामान्यत: 4 – 5 मीटर की दुरी पर अनार का रोपण किया जाता है | पौध रोपण के एक माह पूर्व 60 × 60 × 60 से.मी. आकर के गड्ढे की उपरी मृदा में 10 – 15 किलोग्राम गोबर की सदी खाद, 1 किलोग्राम सिंगल सुपर फास्फेट, 50 ग्राम क्लोरोपायरिफास चूर्ण मिलाकर गड्ढों को स्थ से 15 से.मी. ऊँचाई तक भर दें | गड्ढे भरने के बाद सिंचाई करें ताकि मृदा भली–भांति बैठ जाए |

आलूबुखारा

ग्रीष्म ऋतू आते ही आलूबुखारे में खरपतवारों का प्रकोप बढ़ जाता है अत: समय–समय पर इन्हें निकाल देना चाहिए | वृक्षों के समुचित विकास के लिए मई–जून में एक सप्ताह के अंतराल पर नियमित रूप से सिंचाई करनी चाहिए | जिन जगहों पर सिंचाई की उचित व्यवस्था न हो वहां वृक्षों के नीचे पलवार (मल्च) बिछा देनी चाहिए | इसके अन्य लाभ भी हैं, जैसे इसके प्रयोग से खरपतवार का उगना कम हो जाता है | यह मृदा के तापमान को भी ठीक रखता है | इसके साथ ही अच्छी गुणवत्ता के फल भी प्राप्त होते हैं |

गर्मी के दिनों में वृक्षों को तेज धुप के हानिकारक प्रभाव से बचाने के लिए मुख्य तने पर नीले थोथे के घोल का लेप कर देना चाहिए | अलुचे की किस्मों ब्यूटी, सांता रोजा और मैथिली में अधिक फल लगते हैं एवं वृक्षों की शखाएं फलों का भार न सह सकने के करण टूट भी जाती हैं | इसके लिए बांस या मजबूत लकड़ी का सहारा देना चाहिए |

जापानी आकुबुखारा की लगभग सारी किस्मों में बहुत फल लगते हैं | यदि सभी फलों को वृक्षों पर छोड़ दिया जाए तो फल छोटे आकर के होते है | फलों की छंटाई कर देनी चाहिए | फलों की छंटाई हाथ से अथवा नेपथलीन एसिटिक एसिड अम्ल 50 पी.पी.एम. (50 ग्राम प्रति 100 लीटर पानी में) का छिडकाव करने से पौधों की वृद्धि के लिए नाईट्रोजन की सबसे अधिक आवश्यकता होती है | अत: 0.5 प्रतिशत यूरिया के घोल का पर्णीय छिडकाव फूलों की पंखुड़ियों के झड़ने से लेकर फलों के पकने के 2 सप्ताह पहले तक किया जा सकता है | जिंक और लौह तत्व की कमी की पूर्ति के लिए 0.5 प्रतिशत जिंक सल्फेट और फेरस सल्फेट के घोल का पर्णीय छिडकाव किया जा सकता है | चिड़ियों से फलों की रक्षा करनी चाहिए तथा यदि पत्ती खाने वाले कीट का प्रकोप हो तो सेविन (कार्बारिल) के 0.05 प्रतिशत घोल का छिडकाव करें |

सेब

तनों की छाल को गर्मी से बचाने के लिए घास से बाँध देना चाहिए | इस मौसम में अपस्थानिक शाखाएं भी बहुत निकलती हैं | ये पौधों से अधिकाधिक पोषक तत्व लेती हैं | इनको जल्द से जल्द हटा देना चाहिए | इस मौसम में फलों का गिरना भी प्रमुख समस्या है | इसे छिडकाव फलों के लगने के चार से पांच सप्ताह बाद करना चाहिए |

चूर्णिल फफूंद का प्रकोप होने पर केराथेन 0.03 प्रतिशत (300 ग्राम प्रति 100 लीटर पानी में) या चुना और गंधक का 1:40 के अनुपात में मिलाकर छिडकाव करें | गंधक–चुने के उपयोग से रोगों और कीटों दोनों को नियंत्रित कर सकते हैं | यदि पौधों में जिंक की कमी हो तो 0.1 प्रतिशत (1 किलोग्राम प्रति 100 लीटर पानी में) जिंक सल्फेट के घोल का छिडकाव करना चाहिए | बोरान की कमी होने पर 0.5 प्रतिशत सुहाग (5 किलोग्राम प्रति 100 लीटर पानी में) के घूल का छिडकाव करें |

पपीता

मई में बाग़ का रेखांकन करने के बाद गड्ढे भरने का कार्य समाप्त कर लेना चाहिए | पछेती किस्मों के तैयार फलों को बाजार भेजने की उचित व्यवस्था करनी चाहिए | नर्सरी में लगे छोटे – छोटे पौधों को गर्मी से सुरक्षा की समुचित व्यवस्था करनी चाहिए | नर्सरी पर छप्पर डाल दिया जाए तो अच्छा रहता है | नर्सरी के पौधों की साप्ताहिक अंतर पर सिंचाई की नियमित व्यवस्था आवश्यक है | बाग़ में लगे पौधे को तीन तरफ से घास या पुआल से ढक दिया जाए तो अच्छा रहता है | जून में नर्सरी पौधों को निकालकर बाग़ में रोप देना चाहिए एवं उसके बाद सिंचाई करनी अति आवश्यक है | पुराने बागों की बजाय नये बागों में पानी की अधिक आवश्यकता होती है |

केला

मई में भी एक सप्ताह के अंतराल पर सिंचाई अवश्य करनी चाहिए | आवांछित पत्तियों को निकाल देना चाहिए | फलों के गुच्छों को धुप से बचाने के लिए पत्तियों से ढक देना चाहिए | नए बाग़ लगाने के लिए रेखांकन के पश्चात् गड्ढे खोद लेने चाहिए | जून के अंतिम सप्ताह में खोदे गए गड्ढों को गोबर की खाद, उर्वरक व मिट्टी बराबर मात्रा में मिलाकर ऊपर तक भरें | गड्ढों में मिट्टी भरने के तुरंत बाद पानी अवश्य देना चाहिए, ताकि मिट्टी बैठ जाए | पुराने बागों में जिन पत्तियों पर धब्बे वाला रोग दिखे उन्हें काटकर मिट्टी में गहरा दबा दें या जला दें तथा कवकनाशी ब्लीटाक्स-50 का 0.3 प्रतिशत (300 ग्राम प्रति 100 लीटर पानी में) घोलकर करें | उकठा रोग की रोकथाम के लिए कंदों एग्नाल से उपचारित करें |

यह समय केले की रोपाई के लिए उपयुक्त होता है | रोपण हेतु तीन पुरानी, तलवारनुमा, स्वस्थ व रोगमुक्त पत्ती वाले कंदों का ही प्रयोग करें | पत्तियों को उपरी तने के कंद से 25–30 से.मी. पर काट दें | रोपाई से पूर्व सभी पत्तियों को (एक ग्राम बाविस्टीन प्रति लीटर पानी के घोल में) उपचारित कर लें | रोपाई के समय केवल कंद भाग को ही मिट्टी में दबाएं तथा रोपाई के बाद सिंचाई कर दें |

अंगूर

बेलों में सिंचाई 10–15 दिनों के अंतराल पर करते रहना चाहिए | मई के अंत तक परलेट और ब्यूटी सीडलैस किस्मों के तैयार गुच्छों बाजार भेजने की व्यवस्था करनी चहिए | किस्में पकनी आरंभ हो गई हों तो उनमें सिंचाई बंद कर देना चाहिए | अन्यथा फलों में ठोस घुलनशील पदार्थों की अत्यधिक कमी आती है एवं फल फटने लगते हैं | ऐसे फलों को बाजार में बेचना कठिन होता है | यदि एथ्राक्नोज (श्याम व्रण) का प्रकोप हो तो बाविस्टिन (0.2 प्रतिशत) के घोल का छिडकाव एक सप्ताह के अन्तराल पर दो बार करना चाहिए | चूर्णिल फफूंद की रोकथाम के लिए केराथेन (0.1 प्रतिशत) के घोल का छिडकाव अथवा सल्फर की धुल का प्रयोग करना चाहिए | इन महीनों में थ्रिप्स का भी प्रकोप कहीं–कहीं रहता है | इसकी रोकथाम के लिए मैलाथियान के 500 मि.ली. प्रति 500 लीटर पानी में घोल का छिडकाव करना चाहिए |

लीची

मई में पौधों की 15 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करते रहना चाहिए ताकि फलों में नियमित वृद्धि होती रहे | अन्य फलों की भाँती लीची बाग़ का रेखांकन भी मई में ही कर लेना चाहिए | रेखांकन उपरांत 3 × 3 फीट आकर के गड्ढे खोद लें व उन्हें एक महीने बाद गोबर की खाद, रासायनिक खाद व मिट्टी की बराबर मात्रा से भर लेना चाहिए | कुछ कस्मों के फल मई में पकना शुरू हो जाते हैं, उन्हें बर्रों से बचाना चाहिए |

तैयार फलों को सुबह या शाम को तोड़कर भेजने की समुचित व्यवस्था आवश्यक है | फलों के पकने के समय उनके फटने की समस्या लीची में अत्यधिक है | पौधे में नियमित सिंचाई करते रहना चाहिए अन्यथा मई व जून में अचानक वर्षा होने या सिंचाई करने से फलों के फटने की अत्यधिक समस्या आएगी | यदि फिर भी फल फटें तो पौधों पर समयानुसार जिब्रेलिक अम्ल (4 ग्राम प्रति 100 लीटर पानी में) घोल का छिडकाव काफी लाभदायक रहता है | जिंक सल्फेट के 1.5 प्रतिशत घोल का छिड़का 15 दिनों के अंतराल पर फल की निंबोली अवस्था से फलों की तुडाई तक करने पर भी फलों के फटने (चटकने) की समस्या काफी कम हो जाती है | माइट के प्रकोप को कम करने हेतु डाइमिथोएट (100 ग्राम प्रति 100 लीटर पानी में) का छिड़काव लाभकारी रहता है लीची में गति बांधने का कार्य जून के दुसरे पखवाड़े में करें | इसमें मिलीबग की रोकथाम के लिए थालों में 2 प्रतिशत कीटनाशी धूलि डालकर गुडाई कर दें |

नीम्बू वर्गीय पौधे

नए बाग़ लगाने हेतु मई में बाग़ का रेखांकन करके गड्ढे खोद लेने चाहिए | पौधशाला के पौधों की नियमित सिंचाई, निंदाई – गुडाई करते रहना चाहिए | बाग़ में 15 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करनी चाहिए | मौसम में अधिक तापमान व बढती गर्मी के कारण फलों की बढवार रुक सकती है एवं फलों का गिरना एक प्रमुख समस्या है | अत: 2,4 डी (10 ग्राम प्रति 100 लीटर पानी में) का छिडकाव करना काफी लाभदायक रहता है |

जून के अंत में खोदे गए गड्ढों को गोबर की खाद, उर्वरक और मिटटी की बराबर मात्रा मिलाकर भर देना चाहिए तथा भरने के बाद सिंचाई अवश्य करनी चाहिए, ताकि मिट्टी बैठ जाए | जल निकास नालियों को साफ़ कर देना चाहिए | फलदार पौधों में नाईट्रोजन एवं पोटाश की दूसरी मात्रा को इसी माह देना लाभदायक रहता है |

भारतीय मौसम विभाग ने जारी किया मानसून 2021 के लिए पूर्वानुमान, जानिए कैसी रहेगी इस वर्ष बारिश

कैसा रहेगा मानसून 2021

स्काइमेट के बाद अब भारतीय मौसम विभाग ने मानसून 2021 का पहला पूर्वानुमान जारी कर दिया है। जहाँ भारतीय मौसम विज्ञान विभाग ने इस वर्ष देश में 98 फीसदी (5 प्रतिशत कम या ज्यादा) का अनुमान जताया है जो सामान्य बारिश है वहीँ स्काइमेट ने भी इस वर्ष देश में सामान्य बारिश की बात कही है | स्काइमेट ने 103 फीसदी (5 प्रतिशत कम या ज्यादा) का अनुमान लगाया है | कुल मिलाकर कहा जाये तो इस वर्ष अभी तक देश में सामान्य मानसून की सम्भावना व्यक्त की गई है, जो किसानों के लिए अच्छी खबर है |

वर्ष 2003 से भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) समूचे देश के लिए दक्षिण–पश्चिम मानसून ऋतू (जून से सितम्बर) का दो चरणों में प्रचालनात्मक पूर्वानुमान जारी करता आ रहा है | प्रथम चरण का पूर्वानुमान अप्रैल में और दुसरे चरण का पूर्वानुमान मई के अंत में जारी किया जाता है | दुसरे चरण में अप्रैल पूर्वानुमान के अलावा, जुलाई और अगस्त माह की वर्षा के लिए अतिरिक्त पूर्वानुमान समूचे देश के लिए और भारत के चार बहुत भौगोलिक क्षेत्रों में ऋतूनिष्ठ (जून से सितम्बर) वर्षा के लिए पूर्वानुमान भी जारी किए जाते हैं | इस वर्ष मौसम विभाग खेती के लिए अलग से पूर्वानुमान जारी करेगा |

इस वर्ष देश में सामान्य रहेगा मानसून

भारतीय मौसम विज्ञान के पूर्वानुमान के अनुसार जून से सितम्बर के बीच मानसून दीर्घावधि औसत के 98% रहने की संभावना है | इसमें 5% की ज्यादा या कम होने की संभावना रहती है | इसके पहले वर्ष 1961 से 2010 तक की अवधि के लिए समूचे भारत में ऋतू की वर्षा का दीर्घावधि औसत 88 से.मी. है |

इस अवधि में सामान्य वर्षा होने की उम्मीद 40 जताई गई है | सामान्य वर्षा 96 से 104 प्रतिशत के बीच होने की उम्मीद है | जबकि समान्य से कम तथा 90 से 96 प्रतिशत वर्षा होने की उम्मीद 25 प्रतिशत की है | इस मानसून सत्र (जून से सितम्बर) के बीच सामान्य से अधिक (104 से 110) प्रतिशत की संभावना 16 प्रतिशत बताई जा रही है |

चित्र से समझिये कहाँ होगी कैसी बारिश

rainfall forecast for monsoon 2021

देश के अधिकांश क्षेत्रों में सामान्य या सामान्य से अधिक वर्षा होने की संभावना है जैसा की ऊपर दिए गए चित्र में देखा जा सकता है, चित्र में जो नीला रंग है वह सामान्य से अधिक मानसून को दर्शाता है | वहीँ पीला रंग सामान्य से कम बारिश को दर्शाता है जिसके अनुसार इस वर्ष चित्र में देश के पूर्व और उत्तर-पूर्वी हिस्सों में है वहां इस साल बारिश में कमी देखी जा सकती है | मौसम विभाग के पूर्वानुमान के मुताबिक ओडिशा, झारखंड, बिहार, असम और मेघालय में इस वर्ष सामान्य से कम बारिश हो सकती है जो पीले रंग से दर्शाई गई है |

भारतीय मौसम विभाग मई महीने के अंतिम सप्ताह में जून महीने का पूर्वानुमान जारी करेगा। इस बार जून से लेकर जुलाई तक चार महीने का अलग-अलग पूर्वानुमान जारी किया जाएगा। मई महीने का पूर्वानुमान अप्रैल महीने में, जून का मई, जुलाई का जून में, अगस्त का जुलाई में और सितम्बर महीने का पूर्वानुमान जुलाई महीने में जारी किया जाएगा।

सामान्य वर्षा या अत्यधिक वर्षा की मापदंड क्या है ?

भारतीय मानसून विज्ञान ने वर्षा को 5 खंडों में विभाजित किया है | जिसके आधार पर यह सुनिश्चित किया जाता है कि वर्षा सामान्य है, अधिक या न्यून है| सामान्य वर्षा 96 से 104 प्रतिशत के बीच को मानी जाती है |

क्रमांक
श्रेणी
वर्षा अवधि प्रतिशत में

1.

न्यून

90 से कम

2.

सामान्य से कम

90 – 96

3.

सामान्य

96 – 104

4.

सामान्य से अधिक

104 – 110 

5.

अत्यधिक

110 से अधिक

कृषि वैज्ञानिकों ने जारी की सलाह, अभी के मौसम में किसान करें यह काम

मौसम आधारित कृषि सलाह

उत्तरी भारत के कई राज्यों में रबी फसल की कटाई चल रही है जबकि दलहन एवं तिलहन फसलों की कटाई का कार्य लगभग पूर्ण हो चूका है परन्तु अभी उनकी थ्रेशिंग का कार्य चल रहा है | वही कई किसान रबी फसलों के बाद अब जायद की बुआई के कार्य में लगे हुए हैं, कई जगह जायदा की बुआई का कार्य पूर्ण भी हो चूका है | इस बीच देश के कई स्थानों पर मौसम में परिवर्तन हुआ है मौसम विभाग ने कई स्थानों पर तेज आंधी एवं गरज चमक के साथ बौछारें गिरने की सम्भावना व्यक्त की है | ऐसे में कृषि वैज्ञानिकों ने किसानों के लिए मौसम को लेकर किसानों के लिए समसामयिक सलाह जारी की है |

गेहूं एवं चना की फसलों में क्या करें किसान

आने वाले दिनों में हल्के से मध्यम बादल छाए रहने एवं हल्की वर्षा होने की संभावना को ध्यान में रखते हुए गेहूं फसल की कटाई का कार्य 1–2 दिनों तक न करें, कटाई से पूर्व अपने जिले के मौसम के पूर्वानुमान की जानकारी लेते रहें | किसान कटी हुई फसलों को बाँधकर रखे अन्यथा तेज हवा या आंधी से फसल एक खेत से दूसरे खेत में जा सकती है। गहाई के उपरांत भंडारण से पूर्व दानों को अच्छी तरह से सुखा दें। किसान कटाई के बाद फसल अवशेषों को खेत में न जलाएं |

मक्का फसल में क्या करें किसान 

मक्का की फसल दो अवस्था में है | एक नरमंजरी अवस्था तथा दूसरा घुटने की ऊँचाई | इस अवस्था में किसान मक्का फसल की नरमंजरी अवस्था में होने पर नत्रजन की तीसरी मात्रा का छिडकाव करे | जबकि मक्के की ऊँचाई घुटने की अवस्था तक आ गई हो उन खेतों में निंदाई–गुडाई करने के उपरांत नत्रजन की शेष मात्रा का आधा हिस्सा डाल कर मिट्टी चढाने के बाद सिंचाई करें | किसान भाईयों को सलाह दी जाती है कि आने वाले दिनों में हल्के से मध्यम बादल छाए रहने एवं हल्की वर्षा होने की संभावना को ध्यान में रखते हुए मक्का की फसल में तना छेदक का प्रकोप बढ़ सकता है | अत: इसकी सतत निगरानी करते रहे |

जायद मूंग एवं उड़द में क्या करें किसान 

ग्रीष्म कालीन फसल जैसे मूंग एवं उड़द नहीं लगाई गई है तो खेत की जुताई कर बुवाई करें | इस समय मूंग के उन्नत बीजों (पूसा विशाल, पूसा 672, पूसा 9351, पंजाब 668)की बुवाई करें। बुवाई के समय खेत में पर्याप्त नमी का होना आवश्यक है। बुवाई से पूर्व बीजों को फसल विशेष राईजोबीयम तथा फाँस्फोरस सोलूबलाईजिंग बेक्टीरिया से अवश्य उपचार करें। समय पर बोई गई मूंग एवं उड़द फसल वानस्पतिक अवस्था में होने पर बदली वाले मौसम आने पर थिर्प्स कीट की उपस्थित की जाँच करें व प्रकोप होने पर कीट की उपस्थिति की जाँच करें व प्रकोप होने पर इमिडाक्लोप्रिड 0.3 मि.ली. प्रति लीटर पानी में घोलकर दिन में छिडकाव करें |

ग्रीष्म कालीन धान

ग्रीष्मकालीन धान में अभी कांसे निकलने की अवस्था है | जिन खेतों में ग्रीष्मकालीन धान कन्से निकलने की अवस्था में आ गई हो वहन नत्रजन के छिडकाव की सलाह दी जाती है | किसान भाईयों को सलाह है कि ग्रीष्म कालीन धान की फसल को बचाने हेतु प्रारम्भिक नियंत्रण के लिए प्रकाश प्रपंच अथवा फिरोमेन ट्रेप का उपयोग करें | रासायनिक नियंत्रण के लिए फरटेरा (रायनेक्सीपार) 10 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर या करटाप, 20 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की डर से छिडकाव करें |

भंडारण

अनाज को भंडारण में रखने से पहले भंडारघर की सफाई करें तथा अनाज को सुखा लें। दानों में नमी 12 प्रतिशत से ज्यादा नही होनी चाहिए। भंडारघर को अच्छे से साफ कर लें। छत या दीवारों पर यदि दरारें है तो इन्हे भरकर ठीक कर लें। बोरियों को 5 प्रतिशत नीम तेल के घोल से उपचारित करें। बोरियों को धूप में सुखाकर रखें। जिससे कीटों के अंडे तथा लार्वा तथा अन्य बीमारियाँ आदि नष्ट हो जाएँ। किसानो को सलाह है की कटी हुई फसलों तथा अनाजों को सुरक्षित स्थान पर रखे।

रबी फसल की कटाई के बाद खाली खेतो की गहरी जुताई कर जमीन को खुला छोड़ दे ताकि सूर्य की तेज धूप से गर्म होने के कारण इसमें छिपे कीडो के अण्डे तथा घास के बीज नष्ट हो जायेंगे।

सब्जियों / फल फसलों में अभी क्या करें किसान 

वर्तमान तापमान फ्रेंच बीन, सब्जी लोबिया, चौलई, भिंण्डी, लौकी, खीरा, तुरई आदि तथा गर्मी के मौसम वाली मूली की सीधी बुवाई हेतु अनुकूल है क्योंकि, बीजों के अंकुरण के लिए यह तापमान उपयुक्त हैं। बुवाई के समय खेत में पर्याप्त नमी का होना आवश्यक है। उन्नत किस्म के बीजों को किसी प्रमाणित स्रोत से लेकर बुवाई करें।

  • बेल वाली फसलों की मचान / सहारे को ठीक करें तथा कुंदरू एवं परवल में उर्वरक देवें | इस मौसम में बेलवाली सब्जियों और पछेती मटर में चूर्णिल आसिता रोग के प्रकोप की संभावना रहती है। यदि रोग के लक्षण अधिक दिखाई दे तो कार्बंन्डिज्म @ 1 ग्राम/लीटर पानी दर से छिड़काव मौसम साफ होने पर करें।
  • फरवरी में बुवाई की गई फसलें जैसे भिन्डी, बरबटी, ग्वारफली इत्यादि में गुडाई कर सिंचाई करें |
  • केला एवं पपीता के पौधा में सप्ताह में एक बार पानी अवश्य देवें तथा टपक सिंचाई में सिंचाई समय बढाये |
  • इस मौसम में भिंडी की फसल में माईट कीट की निरंतर निगरानी करते रहें। अधिक कीट पाये जाने पर इथेयाँन @ 5-2 मि.ली./लीटर पानी की दर से छिड़काव मौसम साफ होने पर करें।
  • प्याज की फसल में इस अवस्था में उर्वरक न दे अन्यथा फसल की वनस्पति भाग की अधिक वृद्धि होगी और प्याज की गांठ की कम वृद्धि होगी।
  • बैंगन तथा टमाटर की फसल को प्ररोह एवं फल छेदक कीट से बचाव हेतु ग्रसित फलों तथा प्रोरहों को इकट्ठा कर नष्ट कर दें। साथ ही कीट की निगरानी हेतु फिरोमोन प्रपंश @ 2-3 प्रपंश प्रति एकड़ की दर से लगाएं।

पशुपालन में अभी क्या करें पशुपालक 

  • रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए गर्भवती गाय एवं भैंस को 50 – 60 ग्राम मिनरल मिक्सचर अवश्य खिलायें |
  • दुधारू पशुओं को ग्रीष्म काल में चारा उपलब्ध करने हेतु ज्वार (चारा) की बुआई करें | रबी फसल यदि कट चुकी है तो उसमें हरी खाद के लिए खेत में पलेवा करें। हरी खाद के लिए ढ़ेचा, सनई अथवा लोबिया की बुवाई की जा सकती है। बुवाई के समय खेत में पर्याप्त नमी का होना आवश्यक है।
  • ग्वार, मक्का, बाजरा, लोबिया आदि चारा फसलों की बुवाई इस सप्ताह कर सकते है। बुवाई के समय खेत में पर्याप्त नमी होनी आवश्यक है। बीजों को 3-4 से.मी. गहराई पर डाले और पंक्ति से पंक्ति की दूरी 25-30 से.मी. रखें।
  • मुर्गियों को रानी खेत बीमारी का टिका लगवाएं |

मधुमक्खी के काटने पर अपनाएं यह देसी घरेलु उपचार

मधुमक्खी के काटने पर घरेलू उपचार

देश में मधुमक्खी के काटने की घटना भी आम है, ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्रों में आप कहीं भी रहते हों मधुमक्खी के छत्ते सभी जगह पाए जाते हैं | जिससे मधुमक्खी के काटने की सम्भावना बनी रहती है | मधुमक्खी के काटने पर असहनीय दर्द होता है इसके अलावा कुछ लोगों को इससे एलर्जिक रिएक्शन भी होने की सम्भावना रहती है | इसके अलावा जो किसान मधुमक्खी पालन कर रहे हैं उनके लिए यह खतरा ओर भी बढ़ जाता है | मधुमक्खियों का विष एक बहुत ही सक्रिय जैविक पदार्थ है जो श्रमिक मधुमक्खी की विष थैली में एकत्रित होती है और डंक से जुड़ा रहता है | यह डंक श्रमिक मधुमक्खी के उदर के अंतिम भाग में होता है |

इसका प्रयोग श्रमिक मधुमक्खियाँ अपने या वंश के शत्रुओं अथवा अन्य किसी खतरे से बचाव के लिए करती है | इस डंक के द्वारा मधुमक्खियाँ मौन विष छोडती हैं | चिकित्सा–विज्ञान में मधुमक्खी के विष को सदियों से चमत्कारी एवं रहस्यपूर्ण माना गया है तथा औषधियों के रूप में इसकी शक्ति विलक्षण समझी जाती है | यह विभिन्न प्रकार के आँख एवं त्वचा संबंधी रोगों तथा मलेरिया के उपचार के लिए एक महत्वपूर्ण दवा मानी गयी है | किसान समाधान आपके लिए मधुमक्खी के काटने पर होने वाले दर्द से कैसे घर पर ही राहत पायें इसकी जानकारी लेकर आया है | 

मधुमक्खी के काटने पर अपनाएं यह घरेलू उपचार

मधुमक्खी या कोई जहरीला कीड़ा जब जाने – अनजाने में किसी को डंक मार देता है तो उस समय जो असहनीय दर्द और तकलीफ उस व्यक्ति को होती है उसका अंदाजा लगाना काफी मुश्किल है | लेकिन यदि समय पर इसके डंक को निकाल दिया जाए और कुछ घरेलू उपाय किए जाएं तो इस तकलीफ से निजात पाई जा सकती है |

  • सबसे पहले जितनी जल्दी हो मक्खी का डंक निकाल दें क्योकि जितनी जल्दी डंक निकलेगा, जहर का असर उतना ही कम होगा | डंक निकालने के बाद उस जगह को किसी एंटीसेप्टिक लोशन से साफ़ कर कोई एंटीसेप्टिक क्रीम लगा दें |
  • डंक वाली जगह पर बर्फ लगाने से दर्द में राहत मिलती है | बर्फ ठंडी होने की वजह से जहर ज्यादा फैलता नहीं है |
  • सिरके के इस्तेमाल से दर्द, सूजन और खुजली में राहत मिलती है और जहर का असर कम हो जाता है |
  • बेकिंग सोडा में अल्कलाइन पाया जाता है जो जहर के असर को कम करने में मदद करता है | इसे पानी में मिलाकर लगाने से दर्द, खुजली और सूजन से राहत मिलती है |
  • जहर को फैलने से रोकने के लिए शहद को भी उस जगह पर लगाया जा सकता है | मधुमक्खी काट लेने पर शहद का इस्तेमाल करना बहुत ही फायदेमंद होता है क्योंकि इसका एंटी – बैक्टीरियल गुण इंफैक्शन को बढने नहीं देता |
  • जब व्यक्ति को डंक लग जाए तो तुरंत उसे 2 से 3 गिलास पानी पीला दें | इससे भी कभी आराम मिलता है |
  • गेंदे के फूल के रस में एंटीफंगल तत्व पाए जाते हैं | इसके फूल के रस को मधुमक्खी के डंक वाली जगह पर सीधा लगाने से जलन और सूजन में आराम मिलता है |
  • एलोवेरा में औषधीय गुण होते हैं, जो सूजन और दर्द को कम करते हैं। मधुमक्खी के काटे हुए स्थान पर एलोवेरा लगाने से घाव नहीं बनेगा और दर्द खत्म हो जाएगा। एलोवेरा लगाने पर उस स्थान को ठंडक मिलेगी जिससे सूजन जैसी समस्या नहीं होगी।

क्या आप मशरूम की खेती करना चाहते हैं ? यदि हाँ तो यह जानकारी आपके बहुत काम आएगी

मशरूम की खेती हेतु महत्वपूर्ण जानकारी

मशरूम के प्रोटीन और औषधीय गुणों से भरपूर होने के कारण इसकी मांग बढती जा रही है | जिसे लेकर देश भर में मशरूम की खेती का क्षेत्रफल तथा उत्पादन बढ़ाने पर जोर दिया जा रहा है | कम समय तथा कम स्थान में अधिक उपज के साथ मुनाफा देने के कारण मशरूम की खेती किसानों के लिए लाभाकरी साबित हो रही है लेकिन मशरूम से जुड़े कई प्रकार की जानकारियों के नहीं होने के कारण या जानकारी के आभाव में किसान मशरूम उत्पादन कर नहीं पा रहे हैं | किसान समाधान मशरूम से जुड़े सभी सवालों का जवाब लेकर आया है जो अक्सर मशरूम उत्पादन के लिए यह सवाल पूछे जाते हैं |

मशरूम की कितनी प्रजातियाँ होती हैं ?

विश्वभर में मशरूम की लगभग 14,000 से अधिक प्रजातियां पायी जाती है, जिनमें से 3,000 खाने योग्य तथा 300 के लगभग औषधीय गुणों से युक्त हैं | पोषण एवं औषधीय मूल्यों के साथ–साथ आय का बेहतरीन स्रोत होने के कारण, मशरूम की 100 से अधिक देशों में खेती की जा रही है | भारत में भी कई प्रजाति के मशरूम की खेती की जा रही है, इनमें से कुछ मशरूम की प्रजाति प्रमुख है | जो इस प्रकार है :-

  • बटन मशरूम
  • ढिंगरी मशरूम
  • पुआल मशरूम
  • दुधिया मशरूम
  • शिटाके मशरूम

मशरूम का देश तथा विश्व में कुल कितना उत्पादन कितना होता है ?

मशरूम की खेती विश्व के 100 से अधिक देशों में की जाती है | इसका उत्पादन विश्व में 40 मिलियन मीट्रिक टन का है | चीन मशरूम उत्पादक देश में 33 मिलियन मीट्रिक टन उत्पादन के साथ अग्रिम स्थान रखता है , जो विश्व के कुल उत्पादन के 80 प्रतिशत से भी अधिक है | भारत में मशरूम का उत्पादन 2.10 लाख मीट्रिक टन है | विश्वभर में मशरूम की उपलब्धता प्रति व्यक्ति प्रति वर्ष 2–3 किलोग्राम जबकि चीन में 20–22 किलोग्राम है | भारत में मशरूम का सेवन प्रति व्यक्ति प्रति वर्ष 80–90 ग्राम है जो दुनियाभर के देशों की तुलना में बहुत कम है | जिससे यह कहा जा सकता है की अभी भारत में मशरूम के बाजार की काफी उपलब्धता है | 

मशरूम की उन्नत किस्में कौन–कौन सी है ?

अलग–अलग प्रजाति के मशरूम के लिए अलग–अलग किस्में होती हैं | यह सभी किस्मों में जलवायु के आधार पर तथा उत्पादन में अन्तर पाया जाता हैं | मशरूम की खेती के लिए यह जरुरी ही की मशरूम की किस्मों की जानकारी होना चाहिए | मौसम के अनुसे मशरूम की खेती वर्ष भर की जा सकती है | मौसम के अनुसार मशरूम की खेती के लिए क्लिक करें

  1. सफेद मशरूम की किस्में

डीएमआर – बटन – 03, यू3 – 54

  1. ब्राउन बटन मशरूम की किस्में

डीएमआर–बटन – 06

  1. सफेद बटन मशरूम की किस्में

एनबीएस–1 और एनबीएस – 5

  1. धान के पुआल मशरूम की किस्में

डीएमआरओ–247 और डीएमआरओ–484

  1. शिटाके मशरूम की किस्में

डीएमआरओ–38 और डीएमआरओ–388

  1. दुधिया मशरूम की किस्में

डीएमआरओ – 334

  1. मैक्रोसाइबी मशरूम की किस्में

डीएमआरओ – मैक्रोसाइब – 01

भारत में कौन सी विशेष प्रजाति के मशरूम पाए जाते हैं ?

ये ऐसे मशरूम होते हैं, जो किसी विशेष क्षेत्र या देश में कम प्रचलित होते हैं | इनमें कुछ न कुछ अलग विशेषताएं होती है | दुनिया भर में कई विशेष मशरूम प्रजातियाँ पाई जाती है, लेकिन निम्नलिखित मशरूम की किस्मों को इसके तहत समूहीकृत किया जा सकता है | इसकी प्रजातियाँ इस प्रकार है :-

  1. प्लूरोटस एरंगी :- इस मशरूम की पोषाहार लकड़ी का बुरादा या गेहूं की भूसा होता है |
  2. फ्लेमुलिना वेलुटिप्स :- लकड़ी का बुरादा या गेहूं का भूसा इस मशरूम की पोषाहार होता है |
  3. एग्रोसीबे एगरिटा :- इस मशरूम की पोषाहार लकड़ी का बुरादा होता है |
  4. गनोडर्मा :- इस मशरूम की पोषाहार लकड़ी का बुरादा होता है |
  5. कार्डिसेप्स मिलिट्रिस :- लैब मिडिया में इसका उत्पादन किया जाता है |

मशरूम की खेती कितने प्रकार से की जाती है ?

मशरूम की खेत भारत में मुख्यत: तीन प्रकार से की जाती है | यह तीनों प्रणालियों में अलग – अलग प्रकार के मशरूम की खेती किया जाता है | यह तीनों प्रणाली इस प्रकार है :-

  • शैल्फ प्रणाली
  • पत्तियों की प्रणाली
  • पाँलीथिन बैग प्रणाली

इन तीनों प्रणाली में शैल्फ सबसे पुरानी समझी जाती है तथा ट्रे-प्रणाली बाहर के देशों में अब अधिक प्रचलित हो गई है |

मशरूम में कितने प्रतिशत प्रोटीन या अन्य तत्व रहते हैं ?

मशरूम कई प्रकार के तत्व से बना है जिसमें प्रोटीन के साथ–साथ कार्बोहाइड्रेट, वसा तथा पानी के अलावा अन्य पदार्थ रहते हैं जो शरीर के लिए काफी लाभदायक रहता है |

मशरूम की संरचना
  • पानी – 85 – 90 प्रतिशत
  • शुष्क पदार्थ – 10 प्रतिशत
  • वसा – 0.6 प्रतिशत
  • प्रोटीन – 2.5–3.0 प्रतिशत
  • कार्बोहाइड्रेट – 4 – 6 प्रतिशत
  • रेशा – 1.0 प्रतिशत
  • राख – 1.0 प्रतिशत

मशरूम की प्रशिक्षण (Training) कहाँ से प्राप्त कर सकते हैं ?

मशरूम का प्रशिक्षण देश के अलग–अलग राज्यों के केन्द्रीय विश्वविध्यालय के साथ ही राज्य विद्यालय में भी दिया जाता है इसके अतिरिक्त जिला स्टार पर इच्छुक व्यक्ति अपने जिले में स्थित कृषि विज्ञान केंद्र से भी प्रशिक्षण प्राप्त कर सकते हैं | किसान समाधान मशरूम पर दिये जाने वाले प्रशिक्षण केन्द्रों की जानकारी लेकर आया है |

भारतीय कृषि अनुसंधान आधारित प्रशिक्षण केंद्र
  1. भारतीय कृषि अनुसंधान प्रशिक्षण अनुसंधान प्रसार के उत्तर पूर्वी पर्वतीय क्षेत्र के लिए, उमराओ सडक, वारापानी, मेघालय – 791013
  2. खुम्ब उत्पादन तकनीकी प्रषिक्षण खुम्ब अनुसंधान निदेषालय, चम्बाघाट, सोलन (हिमाचल प्रदेश)-173213
  3. बागवानी व कृषि वानिकी अनुसंधान कार्यक्रम (हार्प), प्लांडु, टाटा सडक, पी.यु. राजुलाटु, वाया नामकुम, रांची – 834010, झारखण्ड |
राज्य कृषि विश्वविध्यालय आधारित केंद्र
  1. पंजाब कृषि विश्वविध्यालय, लुधियाना – 141004 (पंजाब)
  2. तमिलनाडु कृषि विश्वविध्यालय, कोम्युटूर – 641003 (तमिलनाडु)
  3. मध्य प्रदेश कृषि विश्वविध्यालय, राहरी, पुणे – 4137१२ (महाराष्ट्र)
  4. गोबिंद वल्लभ पन्त कृषि व तकनीकी विश्वविध्यालय, पंतनगर – 263145
  5. इंदिरा गाँधी कृषि विश्वविध्यालय, कृषिक नगर, रायपुर
  6. नारायण देव कृषि व तकनीकी विश्वविध्यालय, फेजाबाद – 29 (उत्तर प्रदेश)
  7. केरल कृषि विश्वविध्यालय, वलयानी, त्रिचुर, केरल
  8. महाराणा प्रताप कृषि व तकनीकी विश्वविध्यालय, उदयपुर – 313001
  9. चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविध्यालय, हिसार – 125004 (हरियाण)
  10. उड़ीसा कृषि विश्वविध्यालय, भुवनेश्वर – 751003 (उड़ीसा)
  11. राजेन्द्र कृषि विश्वविध्यालय, पूसा, समस्तीपुर, बिहार
  12. केन्द्रीय कृषि विश्वविध्यालय, पासीघाट – 79112, (अरुणाचल प्रदेश)
सहकारिता केंद्र
  1. डॉ. यशवंत सिंह परमार बागवानी एवं वानिकी विश्वविध्यालय, नौणी, (सोलन)
  2. हरियाणा एग्रो – इंडस्ट्रीयल कारपोरेशन अनुसन्धान एवं विकास केंद्र, मुरथल, सोनीपत, (हरियाणा)

Weather Update: जानिए कैसा रहेगा 16 से 19 अप्रैल तक का मौसम

16 से 19 अप्रैल के लिए मौसम पूर्वानुमान

जहाँ देश में कई स्थानों पर अभी तेज गर्मी पड़ रही है वहीँ अनेक स्थानों पर मौसम में बदलाब देखने को मिल रहा है | भारतीय मौसम विज्ञान विभाग की माने तो देश में कई स्थानों पर आने वाले दिनों में तेज हवा-आंधी के साथ गरज चमक के साथ बारिश हो सकती है | इसके अलावा कुछ स्थानों पर ओलावृष्टि की सम्भावना से भी इनकार नहीं किया जा सकता है | जिन किसानों की फसल की कटाई हो चुकी है वह किसान अपनी फसलों को सुरक्षित स्थानों पर रखें  एवं सतर्क रहें | आने वाले दिनों में देश के अधिकांश हिस्सों में गरज-चमक के साथ बौछारें पड़ने की सम्भावना है | 

16 अप्रैल को इन स्थानों पर हो सकती है बारिश

मौसम विभाग की माने तो 16 अप्रैल को जम्‍मू-कश्‍मीर, लद्दाख, गिलगिट-बालटिस्‍तान और मुजफ्फराबाद के कुछ स्‍थानों पर आंधी चलने, बिजली कड़कने, ओलावृष्टि के साथ 30-40 किलोमीटर प्रतिघंटे की रफ्तार से तेज हवाएं चलने की संभावना की सम्भावना है | इसके अलावा हिमाचल प्रदेश, पंजाब, राजस्‍थान, छत्‍तीसगढ़, झारखंड, गांगेय पश्चिम बंगाल, नगालैड, मणिपुर, मिजोरम और त्रिपुरा, तेलंगाना, तमिलनाडु, पुडुचेरी और कराईकल और केरल तथा माहे के कुछ स्‍थानों पर बिजली कड़कने तथा 30-40 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से तेज हवाएं चलने की संभावना जताई गई है |

वहीँ पूर्वी मध्‍य प्रदेश, विदर्भ, उप-हिमालय पश्चिम बंगाल, तथा सिक्किम, मध्‍य महाराष्‍ट्र, मराठवाड़ा, ओडिशा, तटीय आंध्रप्रदेश तथा यनम, रॉयलसीमा, अरुणाचल प्रदेश, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह, कर्नाटक तथा लक्षद्वीप के कुछ स्‍थानों पर बिजली कड़कने की संभावना व्यक्त की गई है | इसके अलावा पश्चिम राजस्‍थान के कुछ स्‍थानों पर 30-40 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से धूलभरी आंधी चलने की संभावना है |

17 अप्रैल को कैसा रहेगा मौसम

मौसम विभाग की माने तो 17 अप्रैल को उप-हिमालय पश्चिम बंगाल तथा सिक्किम के कुछ स्‍थानों पर आंधी चलने, बिजली कड़कने और ओलावृष्टि के साथ 40-50 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से तेज हवाएं चलने का अनुमान है | जम्‍मू, कश्‍मीर, लद्दाख,गिलगिट-बालटिस्तान तथा मुजफ्फराबाद, हिमाचल प्रदेश, उत्‍तराखंड, हरियाणा, चंडीगढ़ तथा दिल्‍ली और पंजाब के कुछ स्‍थानों पर बिजली कड़कने, ओलावृष्टि होने और 30-40 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से तेज हवाएं चल सकती है।

राजस्‍थान, असम तथा मेघालय तथा नगालैंड, मणिपुर, मिजोरमतथा त्रिपुरा के कुछ स्‍थानों पर बिजली चमकने तथा 40-50 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से तेज हवाएं चलने की संभावना है | पश्चिम उत्‍तर प्रदेश, छत्‍तीसगढ़, झारखंड, गांगेय पश्चिम बंगाल और केरल तथा माहे के कुछ स्‍थानों पर बिजली कड़कने और 30-40 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से तेज हवाएं चल सकती है |  विदर्भ, बिहार, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह, अरुणाचल प्रदेश, तटीय तथा दक्षिण कर्नाटक के भीतरी भागों, तमिलनाडु, पुडुचेरी और कराईकल और लक्षद्वीप के कुछ स्‍थानों पर बिजली कड़कने का अनुमान है | इसके अलावा जम्‍मू-कश्‍मीर, लद्दाख, गिलगिट-बालटिस्तान और मुजफ्फराबाद, हिमाचल प्रदेश, केरल तथा माहे और तमिलनाडु, पुडुचेरी और कराईकल के कुछ स्‍थानों पर भारी वर्षा हो सकती है।

18 अप्रैल को कैसा रहेगा देश का मौसम

मौसम विभाग की माने तो 18 अप्रैल को उत्‍तराखंड के कुछ स्‍थानों पर बिजली कड़कने, ओलावृष्टि और 30-40 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से तेज हवा के साथ आंधी चलने की सम्भावना व्यक्त की गई है | जम्‍मू और कश्‍मीर, लद्दाख, गिलगिट-बालटिस्तान और मुजफ्फराबाद, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, चंडीगढ़ और दिल्‍ली, पंजाब, पूर्वी उत्‍तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, गांगेय पश्चिम बंगाल और केरल तथा माहे के कुछ स्‍थानों पर बिजली कड़केगी और 30-40 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से तेज हवाएं चलने का पूर्वानुमान व्यक्त किया गया है |

19 अप्रैल के दिन कैसा रहेगा मौसम

मौसम विभाग की माने तो 18 अप्रैल को उप-हिमालय,पश्चिम बंगाल तथा सिक्किम, असम और मेघालय तथा नगालैंड, मणिपुर, मिजोरम और त्रिपुरा के कुछ स्‍थानों पर बिजली कड़कने और 40-50 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से आंधी चलने की संभावना व्यक्त की गई है | गांगेय पश्चिम बंगाल तथा झारखंड के कुछ स्‍थानों पर बिजली कड़कने और 30-40 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार तेज हवाएं चलने की संभावना है |

किसानों की ऑनलाइन मंडी ई-नाम के 5 वर्ष पूर्ण होने पर सरकार ने किसानों को दी तीन और सौगातें

ई-नाम पोर्टल पर जोड़ी गई नई सुविधाएँ

14 अप्रैल 2016 में प्रधानमंत्री ने “राष्ट्रीय कृषि बाजार (e-NAM)” योजना की शुरुआत की,योजना का उद्देश्य किसानों को घर बैठे अपनी उपज बेचने की सुविधा उपलब्ध करवाना है | योजना के तहत देश की अलग-अलग मंडियों को ऑनलाइन जोड़ा जा रहा है | साथ ही पिछले वर्ष कोरोना काल में सरकार ने किसानों को ट्रांसपोर्टेशन के साधन उपलब्ध करवाने के लिए किसान रथ ऐप की शुरुआत की है जिससे किसानों को घर बैठे उपज बेचने में किसी तरह की समस्या का सामना न करना पड़े | ई-नाम योजना के पुरे 5 वर्ष हो गयें हैं |

5 वर्ष पुरे होने पर केन्द्रीय कृषि एवं कलयाण मंत्री श्री नरेंद्र सिंह तोमर ने किसानों के लिए  ई-नाम पोर्टल पर तीन और नई सौगातें दी हैं | जिससे किसानों को ई – नाम योजना से और लाभ प्राप्त हो सकेगा | कृषि मंत्री ने बताया की इन पांच वर्षों में देश के 21 राज्यों के 1000 कृषि उपज मंडी जुड़ें हैं तथा 1000 और कृषि उपज मंडी को जोड़ने का लक्ष्य रखा गया है | इन पांच वर्षों में 1.7 लाख किसान योजना से लाभ उठा रहे हैं तथा 1.3 लाख करोड़ रूपये का व्यापार हुआ है |

राष्ट्रीय कृषि बाजार (ई-नाम) मंडी पर जोड़े गई तीन नई सुविधाएँ

  • मौसम की जानकारी
  • सहकारी माड्यूल
  • ई-नाम निर्देशिका

अब किसान ई-नाम पोर्टल पर देख सकेंगे मौसम की जानकारी

ई–नाम मंडी से किसान मौसम की जानकारी प्राप्त कर सकते हैं | यह सुविधा योजना के 5 वर्ष पुरे होने पर शुरू की गई है | इस पोर्टल पर अभी देश के 13 राज्यों की मौसम की जानकारी दी जा रही है | किसान को मौसम की जानकारी के लिए ई–नाम मंडी की वेबसाईट पर जाकर Weather Forecast पर क्लिक करना होगा जिससे एक पेज खुलेगा उस में अपने राज्य का चयन करके मौसम की जानकारी प्राप्त कर सकते हैं |

ई – नाम से कौन–कौन जुड़ सकता हैं ?

ई – नाम मंडी योजना के तहत कृषि उपज का ऑनलाइन व्यापर किया जाता है | इसके तहत किसान तथा व्यापारी दोनों जुड़ सकते हैं |

  • किसान
  • व्यापारी
  • एपीएमसी
  • किसान उत्पादक संगठन
  • मंडी

किसान पंजीयन कैसे करें ?

ई–नाम मंडी पर पंजीयन ऑनलाइन किया जाता है | पंजीयन के लिए किसी भी प्रकार का शुल्क नहीं लिया जाता है | किसान को ई–नाम पर पंजीयन के लिए बैंक पास बुक, आधार कार्ड, मोबाईल नंबर तथा ई – मेल आईडी की जरूरत पड़ता है | किसान ई–नाम पर पंजीयन यहाँ से करा सकते हैं-

https://enam.gov.in/NAMV2/home_hindi/other_register.html

ई-नाम मंडी से कितने कृषि उत्पादों का व्यापर किया जाता है ?

14 अप्रैल 2016 में शुरू की गई ई – मंडी योजना के आज 5 वर्ष पुरे हो चुके हैं | इन पांच वर्षों में ई–मंडी से 175 कृषि उत्पादों का व्यापर किया जाता है | यह सभी कृषि उत्पाद अलग–अलग श्रेणी में आते हैं जो इस प्रकार है :-

क्रं.
जिंसों का प्रकार
जिंसों की संख्या

1.

अनाज / दलहन

26

2.

तिलहन

14

3.

फल

31

4.

साग / सब्जी

50

5.

मसाला

16

6.

अन्य प्रकार के जींस

38

ई – नाम पोर्टल से जुड़े राज्य 

भोपाल की करोंद मंडी से 14 अप्रैल 2016 से शुरू हुई ई–नाम मंडी आज देश के 21 राज्यों तक पहुँच गई है | इन 21 राज्यों के 1,000 कृषि उपज मंडी से जोड़ी जा चुकी है | यह राज्य इस प्रकार हैं :- आंध्र प्रदेश, चंडीगढ़, छत्तीसगढ़, गुजरात, हरयाणा, हिमाचल प्रदेश, जम्मू कश्मीर, झारखंड, कर्नाटक , केरल, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, ओड़िसा, पंदुचेरी, पंजाब, राजस्थान, तमिलनाडु, तेलंगाना, उत्तरप्रदेश, उतराखंड तथा वेस्ट बंगाल |

ई–नाम से कितने किसान तथा व्यापारी जुड़े हुयें हैं 

राष्ट्रीय कृषि बाजार से 21 राज्यों एक 1,000 कृषि उपज मंडी जुडी हुई हैं | इन 1000 मंडी से 1 लाख 63 हजार 391 व्यापारी तथा 90 हजार 980 कमिशन एजेंट जुड़े हुयें हैं | इसके अलावा एफपीओ (किसान उत्पादक संगठन) की संख्या 1 हजार 841 है जो ई – नाम मंडी से जुड़ें हुए हैं | व्यक्तिगत किसानों जो ई – मंडी में पंजीकृत है उनकी संख्या 1 करोड़ 70 लाख 25 हजार 393 किसान है | व्यापारी, किसान एजेंट तथा किसान उत्पक संगठन को मिलाकर 1 करोड़ 72 लाख 81 हजार 605 लोग जुड़ें हैं |

किसान यहाँ से प्रति दिन का मंडी भाव देख सकते हैं

ई मंडी पर 21 राज्यों एक 1000 कृषि उपज मंडी का मूल्य ऑनलाइन देख सकते हैं | इसके लिए किसान को ई–नाम मंडी के वेबसाईट पर जाना होगा | वेबसाईट खुलने पर ऊपर के लाइन में डेशबोर्ड लिखा होगा | उसमें जाने पर व्यापार का सीधा प्रसारण के आप्शन पर क्लिक करें | उसके बाद आप को देश भर के मंडी का अपडेट मिल जायेगा | आप अपनी सुविधा के अनुसार राज्य, जिला तथा कमोडिटी (फसल) का चयन करें |

जानिए इस वर्ष कैसी रहेगी मानसून में बारिश, स्काइमेट ने जारी किया 2021 के लिए मानसून का पूर्वानुमान

मानसून का पूर्वानुमान 2021

किसानों के लिए इस वर्ष की अच्छी खबर निकलकर आई है | मौसम तथा कृषि के क्षेत्र में काम करने वाली कंपनी स्काइमेट (skymet weather) ने वर्ष 2021 का मौसम पूर्वानुमान जारी किया है | इस पूर्वानुमान में सामान्य से अधिक वर्षा होने की उम्मीद जताई गई है | स्काइमेट ने जून, जुलाई, अगस्त और सितम्बर माह का पूर्वानुमान जारी किया है | इन चार माह में औसतन वर्षा 880.6 मि.मी. मानी जाती है परन्तु सामान्य वर्षा की तुलना में 103 प्रतिशत वर्षा होने की संभावना है | इसमें 5 प्रतिशत ज्यादा या कम हो सकती है इसलिए यह कहा जा सकता है की इस वर्ष मानसून में सामान्य वर्षा होगी |

स्काइमेट ने अभी देश में मानसून को लेकर पहला पूर्वानुमान जारी किया है, इसके बाद भारतीय मौसम विज्ञान विभाग के द्वारा भी दो पूर्वानुमान जारी किये जाएंगे | स्काइमेट के अनुसार वर्ष 2021 के मानसून सत्र में उत्तर भारत तथा पूर्वोतर के राज्यों में सामान्य से कम वर्षा होने की संभावना है | इसके साथ ही कर्नाटक राज्य में भी जुलाई और अगस्त माह में वर्षा कमजोर रहने की उम्मीद है |

जून माह में जताई गई सामान्य वर्षा उम्मीद

जून 2021 में मौसम मेहरबान रहेगा तथा वर्षा समान्य से अधिक रहने की उम्मीद जताई गई है | जून माह में सामान्य वर्षा 166.9 मि.मी. होती है |  जून माह में सामान्य से 6 प्रतिशत अधिक वर्षा होने का अनुमान है | स्काइमेट के अनुसार जून माह में 70 प्रतिशत सामान्य वर्षा होने की अनुमान है तो वहीं 20 प्रतिशत सामान्य से अधिक वर्षा होने की संभावना व्यक्त की है | जबकि 10 प्रतिशत संभावना यह भी है की जून माह में सामान्य से कम वर्षा हो सकती है |

जुलाई सामान्य से कम बारिश होने की अनुमान

भारत में जुलाई माह में सामान्य से कम वर्षा होने की अनुमान लगाया गया है | जुलाई माह में 289 मि.मी. वर्षा सामान्य वर्षा कहलाती है | जबकि संभावना 97 प्रतिशत वर्षा की सम्भावना जताई गई है जो समान्य से 3 प्रतिशत कम है | स्काइमेट के अनुसार जुलाई माह में 75 प्रतिशत संभावना यह है कि वर्षा सामान्य रहेगी, जबकि 15 प्रतिशत संभावना व्यक्त की गई है कि सामान्य से कम वर्षा होगी, इसके साथ 10 प्रतिशत संभावना सामान्य से अधिक होने की उम्मीद है |

अगस्त माह में सामान्य बारिश होने की उम्मीद 

अगस्त माह में वर्ष 289 मि.मी. होने पर सामान्य वर्षा कहलाती है | स्काइमेट के अनुसार अगस्त माह में 99 प्रतिशत वर्षा होने की उम्मीद है, जो सामान्य से 1 प्रतिशत कम है | स्काइमेट के अनुसार 80 प्रतिशत संभावना यह है की अगस्त माह में सामान्य वर्षा होने की उम्मीद है | जबकि 10 प्रतिशत संभावना सामान्य से अधिक और 10 प्रतिशत संभावना सामान्य से कम वर्षा की उम्मीद जताया गया है |

सितम्बर माह में होगी सामान्य से अधिक वर्षा

सितम्बर माह में 170.2 मि.मी. वर्षा सामान्य वर्षा कहलाती है | स्काइमेट ने ऐसी संभावना व्यक्ति की है की सितम्बर माह में समान्य से 16 प्रतिशत अधिक वर्षा होगी, जो सामान्य वर्षा का 116 प्रतिशत है | स्काइमेट के अनुसार 60 प्रतिशत यह उम्मीद है कि अगस्त माह में सामान्य से अधिक वर्षा होगी, जबकि 30 प्रतिशत सामान्य वर्षा की भी है | 10 प्रतिशत ऐसी भी संभावना है की सामान्य से कम वर्षा हो सकती है |

नोट :- वर्षा के पूर्वानुमान में 5 प्रतिशत कम या ज्यादा हो सकती है |

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किसान अब ऑनलाइन नर्सरियों से खरीदे सभी प्रकार के पौधे

प्‍लांटिंग मटेरियल ऑनलाइन खरीद बिक्री के लिए राष्ट्रीय नर्सरी पोर्टल

कृषि के क्षेत्र में बागवानी एक अहम योगदान देता है क्योंकि इससे कम भूमि में अधिक उपज देने के साथ ही अच्छी आमदनी होती है | इसके लिए यह जरुरी है की पौधे या बीज (उन्नत किस्मों के) किसानों को आसानी से उपलब्ध हो जिनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता अच्छी हो | सभी लोगों को नर्सरी से पौधा या बीज नहीं मिल पाते हैं या फिर कहें तो जिनके पास नर्सरी है परन्तु उनकों ग्राहक नहीं मिल पाते हैं | इसको ध्यान में रखते हुए राष्ट्रीय बागवानी बोर्ड ने एक पोर्टल तैयार किया है जिसकी शुरुआत कल केन्द्रीय कृषि और कल्याण मंत्री श्री नरेंद्र सिंह तोमर ने की है | जहाँ से पौधे या बीज खरीदे या बेचे जा सकते हैं |

इस मौके पर श्री तोमर ने कहा कि कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय ने नर्सरियों के लिए ऑनलाइन डिजिटल प्लेटफार्म स्थापित किया है, ताकि किसान/उत्पादक और अन्य हितधारक अपने आसपास के क्षेत्रों में उपलब्ध क्‍वॉलिटी प्‍लांटिंग मटेरियल की उपलब्धता की जानकारी आसानी से प्राप्त कर सकते हैं | प्‍लांटिंग मटेरियल के खरीदार भी सीधे ऑनलाइन पूछताछ कर सकेंगे और अपनी जरूरत से मिलते-जुलते बिक्री ऑफर देख पाएंगे। किसान समाधान इस वेबसाईट से जुडी सभी प्रकार की जानकारी लेकर आया है |

नेशनल नर्सरी पोर्टल पर किसान नर्सरी को पंजीयन करा सकते हैं और नर्सरी से पौधे खरीद भी सकते हैं | इसके तहत पौधे के अलवा बीज की भी खरीद और बिक्री कर सकते हैं | इस पोर्टल पर बागवानी, मसाला, सब्जी फूल के अलावा अन्य फसलों और पौधों को बीज तथा पौधे खरीद या बिक्री कर सकते हैं |   

नर्सरी को कैसे कराएँ पंजीयन

भारत सरकार ने नर्सरी से पौधे बेचने तथा खरीदने के लिए एक पोर्टल बनाया है जिस पर पंजीयन करना जरुरी है | किसान को सबसे पहले http://nnp.nhb.gov.in/Home/Index इस वेबसाईट पर जाना होगा | किसान अपने सुविधा के लिए हिंदी या अंग्रेजी का चयन कर सकते हैं लेकिन फार्म अंग्रेजी में ही भरना होगा | इसके बाद ऊपर की लाइन में “नर्सरी के लिए” लिखा होगा उस पर क्लिक करना होगा, क्लिक करने पर नर्सरी पंजीयन का आप्शन दिखेगा जिस पर क्लिक करें | इसके बाद बाद पंजीकृत नर्सरी या बिना पंजीकृत नर्सरी का आप्शन है | आप नर्सरी के अनुसार उसे चयन करें | तब एक फ़ार्म खुलेगा जिसे नर्सरी के मालिक भरें |

इसके अलावा नर्सरी के मालिक के लिए और भी आप्सन है | जो इस प्रकार है :-

  • पोर्टल में रजिस्टर करें,
  • उनकी नर्सरी प्रोफ़ाइल बनाएं रखें,
  • अपडेट रियल टाइम स्टॉक,
  • पोस्ट सेल आफर,
  • खरीदारों के द्वारा पूछे गए सवाल,
  • खरीदारों के साथ संदेशों का आदान–प्रदान करें |

ग्राहक नर्सरी से पौधे या सीड कैसे खरीदे

किसी भी व्यक्ति को नर्सरी से पौधा या सीड खरीदने के लिए आनलाइन नर्सरी पोर्टल पर पंजीयन करना जरुरी है | इसके लिए इस वेबसाईट के ऊपर के लाइन में खरीदारों के लिए आप्शन है | इस पर जाने पर पंजीकरण का कालम है जिसे क्लिक करें | इसके बाद एक फार्म खुलेगा जिसे भरना जरुरी है | यह फार्म हिंदी तथा अंग्रेजी दोनों में उपलब्ध है | फार्म भरने के लिए किसी भी प्रकार की शुल्क या दस्तावेज नहीं चाहिए |

खरीदार के लिए रजिस्टेशन के अलावा और भी आप्सन है-

  • पोर्टल में रजिस्टेशन करें |
  • पूछताछ करना
  • खोज नर्सरी निर्देशिका
  • नर्सरी की बिक्री के प्रस्ताव देखें
  • नर्सरी के साथ संदेशों का आदान-प्रदान
  • नर्सरी द्वारा प्रदान की जाने वाली सेवाओं पर प्रतिक्रिया दें |

अपनी तहसील या जिला स्तर पर नर्सरी को कैसे खोजें ?

नर्सरी से पौधे या बीज खरीदने के लिए ग्राहक अपने आस–पास के नर्सरी का चयन कर सकते हैं | इसके लिए पोर्टल पर आप्शन दिया हुआ है | पोर्टल के ऊपर के लाइन में खोज निर्देशिका दिया हुआ है | जिस पर जाने पर तीन आप्शन मिलते हैं | फसल द्वारा नर्सरी खोजें, स्थान द्वारा नर्सरी खोजें और खरीदार खोजें | किसान या कोई और ग्राहंक यहाँ से नर्सरी का चयन करके पौधे या बीज खरीद सकते हैं |

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