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गुरूवार, मार्च 28, 2024
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बकरी पालन करने वाले किसान इन बातों का जरुर रखें ध्यान

बकरी पालन के लिए टिप्स

देश में बकरी पालन ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के साथ ही दैनिक आय का भी एक अच्छा जरिया है, बकरी पालन जहां कम लागत में शुरू किया जा सकता है वहीं इससे कम समय में अच्छी आमदनी भी प्राप्त की जा सकती है। ऐसे में जो व्यक्ति बकरी पालन कर रहे हैं उन्हें कुछ बातों का ध्यान रखना चाहिए, जिससे कि उन्हें बकरी पालन से अधिक से अधिक लाभ मिल सके।

बकरी की प्रजाति का चुनाव स्थानीय वातावरण को ध्यान में रख कर करना चाहिए। कम बच्चे देने वाली या अधिक बच्चे देने वाली बकरियों से कमाई एक-सी ही होती है। उन्नत नस्ल की प्राप्ति के लिए बाहर से बकरा लाकर स्थानीय बकरियों के संपर्क में लाना चाहिए। आमतौर पर इसके लिए अप्रैल-मई और अक्टूबर-नवम्बर माह अनुकूल रहता है।

बकरी पालन के लिए उपयुक्त नस्लें

देश में बकरियों को अलग-अलग उत्पाद प्राप्त के लिए पाला जाता है, इसमें दूध उत्पादन, मांसोत्पादन एवं ऊन उत्पादन शामिल है। अलग-अलग उत्पादन के अनुसार बकरी की मुख्य क़िस्में इस प्रकार है:-

  1. दूध उत्पादन के लिए उपयुक्त नस्लें:- सुरती, जमुनापारी, जखराना, बरबरी एवं बीटल आदि
  2. मांसोत्पादन के लिए उपयुक्त नस्लें:- ब्लैक बंगाल, सिरोही, मारवाड़ी, मेहसाना, संगमनेरी, कच्छी तथा उस्मानाबादी, आदि।
  3. ऊन उत्पादन के लिए नस्लें :- कश्मीरी, चांगथाँग, गद्दी, चेगू आदि जिनसे पश्मीना ऊन की प्राप्ति होती है। 
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बकरी पालन के लिए आवास कैसा हो?

संभव हो तो बकरी का बाड़ा पूर्व से पश्चिम दिशा में ज्यादा फैला होना चाहिए। बाड़े की लंबाई की दीवार की ऊँचाई एक मीटर और उसके ऊपर 40X60 वर्ग फीट की जाली होना चाहिए। बाड़े का फर्श कच्चा और रेतीला होना चाहिए। रोग मुक्त रखने के लिए समय-समय पर चूने का छिड़काव करना चाहिए। जन्म के एक सप्ताह के बाद मेमने और बकरी को अलग-अलग रखना चाहिए।

बकरी को क्या-क्या खिलाना चाहिए

एक वयस्क बकरी को उसके वजन के अनुसार रोजाना एक से तीन किलोग्राम हरा चारा, आधा से एक किलोग्राम भूसा और डेढ़ से चार सौ ग्राम दाना रोजाना खिलाना चाहिए। बकरियों को साबुत अनाज और सरसों की खली नहीं खिलाना चाहिए। दाने में 60 प्रतिशत दला हुआ अनाज, 15 प्रतिशत चोकर, 15 प्रतिशत खली, 2 प्रतिशत खनिज तत्व और एक प्रतिशत नमक होना चाहिए।

  • बकरियों को अगर चारागाह में नहीं भेजा जाता है तो उन्हें तीन बार सुबह, दोपहर एवं शाम को चारा देना चाहिए। उन्हें इतना आहार अवश्य देना चाहिए जितना वे एक बार में समाप्त कर सकें।
  • एक औसत दुधारू बकरी को दिन में लगभग 3.5 से 5 किलोग्राम चारा मिलना चाहिए। इस चारे में कम से कम एक किलोग्राम सूखा चारा तथा 2 से 2.5 किलोग्राम हरा चारा (दलहनी घास) मिलना चाहिए।
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इस तरह बकरियों को बीमारी से बचाएँ 

  • बकरियों को पीपीआर, ई.टी. खुरपका, गलघोंटू और चेचक के टीके ज़रूर लगवायें। यह टीके मेमनों को 3-4 माह की उम्र के बाद लगते हैं। 
  • बकरियों को अंत:परजीवी नाशक दवाइयाँ साल में दो बार ज़रूर पिलायें। 
  • अधिक सर्दी, गर्मी और बरसात से बचाने के इंतजाम करें। 
  • नवजात मेमने को आधे घंटे के भीतर बकरी का पहला दूध पिलाने से उसकी रोग-प्रतिरोधक क्षमता बहुत बढ़ जाती है।
  • बाड़े के अंदर व बाहर नियमित रूप से सप्ताह में एक या दो बार बिना बुझे चूने का छिड़काव करें।
  • खरीदे गए पशुओं को पहले से पल रहे झुंड में नहीं मिलाना चाहिए तथा उन्हें 21 दिनों तक अलग रखना चाहिए।
  • तीन से चार महीने के अंतराल पर बाड़ों की जमीन की मिट्टी कम से कम 6 इंच खोदकर निकाल देना चाहिए एवं नई मिट्टी भर देने से संक्रमण की आशंका कम हो जाती है।

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