आज के समय में गर्मी के सीजन में ग्रीष्मकालीन मूंग की खेती किसानों के लिए मुनाफे का सौदा बनती जा रही है, क्योंकि एक तो यह कम समय में तैयार हो जाती है दूसरा इस समय प्राकृतिक आपदाओं जैसे बाढ़, सूखा, बैमौसम बारिश और ओला वृष्टि आदि की संभावना भी कम रहती है। जिससे इसकी खेती में जोखिम कम रहता है। ग्रीष्मकालीन मूंग की खेती उत्तर भारत की बलुई-दोमट मिट्टी से लेकर मध्य भारत की लाल एवं काली मिट्टी में भी आसानी से की जा सकती है।
गर्मी में मूँग की अच्छी पैदावार के लिए किसानों को उन्नत किस्मों का चयन करना चाहिए ताकि कीट-रोगों का प्रकोप कम हो और उत्पादन अच्छा मिले। ग्रीष्मकालीन मूंग की बुआई के लिए उपयुक्त समय 10 मार्च से लेकर 10 अप्रैल तक होता है। जो किसान इस दौरान मूंग की बुआई करते हैं वे 70 से 80 दिनों में तैयार होने वाली किस्मों का चयन कर सकते हैं वहीं जहाँ किसान बुआई में लेट हो जाते हैं वहाँ किसान 60 से 65 दिनों में तैयार होने वाली किस्मों का चयन करें।
गर्मी में मूंग की खेती के लिए उन्नत किस्में
मूंग की अच्छी पैदावार तथा उत्तम गुणवत्ता युक्त उत्पादन लेने के लिए अच्छी किस्मों का चयन अत्यंत महत्वपूर्ण है। इसलिए पानी के साधन, फसल चक्र व बाजार की मांग को ध्यान में रखकर किसानों को उन्नत प्रजातियों का चयन करना चाहिए। किसान गर्मी के सीजन में मूंग की उन्नत किस्में जैसे पूसा 1431, पूसा 9531, पूसा रत्ना, पूसा 672, पूसा विशाल, KPM 409-4 (हीरा), वसुधा (आई.पी.एम. 312-20), सूर्या (आई.पी.एम. 512-1), कनिका (आई.पी.एम. 302-2), वर्षा (आई.पी.एम. 14-9) आदि किस्मों का चयन कर सकते हैं।
किसान मूंग का अधिक उत्पादन लेने के लिए प्रमाणित बीजों का इस्तेमाल करें। साथ ही अधिक उत्पादन के लिए बुवाई से पूर्व बीजों को फसल विशेष राईजोबीयम तथा फास्फोरस सोलूबलाईजिंग बेक्टीरिया से अवश्य उपचारित करें। किसान कवकनाशी से बीजोपचार के लिए प्रति किलोग्राम बीज को 2.5 ग्राम थीरम तथा 1 ग्राम कार्बेंडाजिम से उपचार करने के बाद राइजोबियम कल्चर से बीजोपचार करें। बुआई के समय बीज डालने से पहले सल्फर धूल का प्रयोग करें। इसी प्रकार फॉस्फेट घुलनशील बैक्टीरिया (पीएसबी) से बीज शोधन करना भी लाभदायक रहता है।