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मंगलवार, दिसम्बर 3, 2024
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सूअर पालन व्यवसाय से हो सकती है लाखों की कमाई

सूअर पालन की पूरी जानकारी

हमारे देश में सूअर पालन एक विशेष वर्ग द्वारा किया जाता है जबकि विदेशों में यह यक बड़ा व्यवसाय बन गया है | हाल के वर्षों में सूअर पालन में अनेक नवयुकों ने रूचि दिखाई है तथा ग्रामीण क्षेत्रों में लाभ की प्रत्याशा में जगह – जगह पर सूअर फार्म भी खुल रहे हैं | हमारे देश में सूअर की संख्या एवं मांस उत्पादन विश्व की तुलना में बहुत कम है | इसका मुख्य कारण सामाजिक प्रतिबंध, उचित नस्ल एवं समुचित पालन पोषण का अभाव तथा कुछ खास बीमारियाँ है  इसलिए आवश्यक हो जाता है कि समाज के कमजोर वर्ग के आर्थिक उत्थान हेतु सूअर पालन को घरेलू व्यवसाय का रूप दिया जाये |

सूअर पालन की विशेषताएँ

  1. पालन कम पूंजी एवं कम स्थान से शुरू किया जा सकता है | सूअर पालन में लागत धन की वापसी शीघ्र (9 – 12 माह) होती है |
  2. वंश वृद्धि शीघ्र एवं अधिकतम (8 – 12 माह) होती है |
  3. शारीरिक वृद्धि 500 – 800 ग्रा. / दिन होता है |
  4. आहार उपयोग दक्षता (3.5 : 1) अधिक होती है |
  5. उत्पादन में मजदूरी पर कम व्यय (10 प्रतिशत) होता है |
  6. बेकार खाध पदार्थ को कीमती उत्पादन में परिवर्तित करने की अद्भुत क्षमता होती है |
  7. सूअर पालन में नस्ल सुधार की संभावना शीघ्र होती है |
  8. पालन कम क्षेत्रफल में किया जा सकता है |

सूअर पालन की विधि

भारत में सूअर की नस्ल :-

देशी सूअरों का शरीरिक भार विदेशी सूअरों की अपेक्षा आधा होता है | इनकी प्रजनन क्षमता जैसे – लैंगिक परिपक्वता , बच्चे का  जन्म दर भी विदेशी नस्लों की अपेक्षा बहुत कम होता है | इसलिए सूअर पालक को चाहिए कि वे लार्ज हवाइट यार्क शायर या लैंड्रेस नस्ल के सूअर पाले | यह नस्लें यहाँ के वातावरण के लिए उपयुक्त है | इस प्रजाति की मादा 8 माह में व्यस्क हो जाती है तथा वर्ष के अन्दर प्रथम ब्यात, प्रति ब्यात 8 – 12 बच्चे , प्रतिवर्ष दो ब्यात तथा सभी प्रकार के खाद पदार्थों को पौष्टिक मांस में परिवर्तन की अधिकतम क्षमता (3.50 : 1) रखती है | इसके बच्चे एक वर्ष में 70 से 90 किलोग्राम तक शारीरिक वजन प्राप्त कर लेते हैं |

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नस्ल सुधार :-

 विदेशी नस्ल के सूअर पालन से अधिक लाभ है अत: ऐसे  सूअर पालक जो देशी नस्ल पाल रखे हैं किसी सरकारी या व्यवस्थित फार्म से इस प्रजाति के बच्चे लेकर  प्रजनन द्वारा देशी नस्ल का सुधार करें | इस प्रकार प्राप्त संकर नस्ल के सूअर ऊष्मा एवं रोग प्रतिरोधी होते हैं तथा ग्रामीण परिवेश में भली – भांति पाले जा सकते हैं |

सूअर आवास (बाड़ा) :-

आवस के लिए पर्याप्त स्थान एवं पानी की समुचित व्यवस्था होनी चाहिए | आवसा में हवा, प्रकाश एवं जल निकास की अच्छी व्यवस्था हो | मौसम के अनुसार आवास थोडा खुली छत वाला भी हो | फर्श पक्का तथा छत घास – फूस या खपरैल से बना सकते हैं | दीवार की ऊँचाई 4 – 5 फूट रखें |

सूअर आहार :-

छोटे सूअर पालक प्राय: सूअरों को घर में रखकर नहीं खिलते है उन्हें खुले खेतों मैदानों में घुमाकर पलते हैं | सस्ते आहार हेतु घरों , होटलों का बच्चा भोजन एवं जूठन खिला सकते हैं | बेकार सब्जियां फल, फलों के अवशेष, गेहूं का आकार का चोकर, धान की भूसी, बेकार अनाज इत्यादि | सूअर चाव से खाते हैं | सूअर को थोड़ी मात्रा में हरे मुलायम पत्तीदार सब्जियां एवं चारा भी दे सकते हैं | सूअर पालन बड़े पैमाने पर करने हेतु हर वर्ग के लिए अलग – अलग सन्तुलित आहार देना चाहिए जिसे सूअर – पालक स्वयं बना सकते हैं |

विभिन्न श्रेणी में सूअर – आहार संरचना (प्रतिशत)

खाध्य अवयव
शावकों (बच्चों) का आहार
बढ़ते सूअरों का आहार
व्यस्क सूअरों का आहार

दरा मक्का

55 – 58

48  – 52

32 – 36

गेंहू का चोकर / चावल पालिस

18 – 22

20 – 24

40 – 45

मूंगफली की खली

14 – 16

18 – 20

14 – 16

मछली का चुरा

4 – 6

4 – 6

4 – 5

खनिज मिश्रण

2

2

2

साधारण नमक

1

1

1

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सूअर को होने वाले रोग (बीमारी) :-

सूअर पलकों को चाहिए कि सूअर ज्वर तथा खुरपका – मुंहपका से बचाव के लिए ढाई से तीन  माह की आयु में टीकाकरण करें | अत: परजीवियों के नियंत्रण के लिए पिपराजीन दवा 4 ग्राम / 10 किलोग्राम आहार की दर से , आधा दाने में सुबह तथा आधा डेन में शाम को दें | दुसरे दिन 4 ग्राम थायोवेंडालाज / किलोग्राम आहार में मिलाकर देने से लार्वा व बड़े कृमि दोनों मर जाते हैं | दवा देने से पूर्व सूअरों को थोडा भूखा रखते हैं ताकि दवा मिश्रित आहार पुर्न रूप से खा सकें |

सूअर के उपयोग एवं फायदे

  1. इसके वध से 80 प्रतिशत खाने योग्य मांस प्राप्त होता है जिसमें 15 – 20 प्रतिशत प्रोटीन होता है | इसके अलावा ऊर्जा, खनिज (फास्फोरस, लोहा) एवं विटामिन (थायमिन, रिबोफ्लेविन, नाईसिन, बी – 12) प्रचुर मात्रा में पाये जाते हैं |
  2. लगभग 200 – 300 ग्राम बाल प्रति सूअर प्राप्त होता है जिससे शेविंग, धुलाई, चित्रकारी के ब्रश, चटाइयां एवं पैराशूट के सीट बनाये जाते हैं |
  3. चर्म उधोग में सूअर चर्म की अत्यधिक मांग है |
  4. चर्बी पशु आहार, मोमबत्ती, उर्वरक, शेविंग, क्रीम, मलहम तथा रसायन बनाने के काम आता है |
  5. सूअर रक्त , चीनी शुद्ध करने , बटन, जूतों की पालिश, दवाईयाँ, ससेज, पशु आहार, खाद, वस्त्रों की रंगाई – छपाई हेतु प्रयोग किया जाता है |
  6. अन्त:स्रावी ग्रंथियाँ जैसे एड्रिनल, पैराथायरायड, थायमस, पियूश ग्रंथि, अग्नाशय, थायरायड, पिनियल, इत्यादि से मनुष्यों के लिए दवाइयां एवं इंजेक्शन बनाये जाते हैं |
  7. सूअर से प्राप्त कोलेजन से औधोगिक सरेस एवं जिलेटिन बनाया जाता है |
  8. हड्डियाँ, खुर व आतों का प्रयोग कई तरह के औधोगिक उत्पाद बनाने में किया जाता है |
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48 टिप्पणी

    • सर आप इसके लिए सबसे पहले प्रोजेक्ट बनाएं | प्रोजेक्ट में आप कहाँ एवं किस स्तर का फार्म खोलना चाहते हैं एवं उसमें कितनी लागत आएगी एवं कितनी आय होने की सम्भावना है इसकी विस्तृत जानकारी दें | इसके बाद आप सब्सिडी के लिए अपने यहाँ के सरकारी पशु चिकित्सालय या जिला पशु पालन विभाग में सम्पर्क कर सब्सिडी के लिए आवेदन करें | प्रोजेक्ट अप्रूव हो जाने पर आप बैंक से लोन हेतु आवेदन कर सकते हैं |

    • सर प्रोजेक्ट बनायें | जिलेवार योजना के लिए लक्ष्य जारी होते हैं | आपका प्रोजेक्ट अप्रूव यदि विभाग से अप्र्रोव हो जाता है तो लोन के लिए आवेदन करें |

    • ग्रोअर सूअर (वजन 12 से 25 किलो तक) : प्रतिदिन शरीर वजन का 6 प्रतिशत अथवा 1 से 1.5 किलो ग्राम दाना मिश्रण।
      ग्रोअर सूअर (26 से 45 किलो तक) : प्रतिदिन शरीर वजन का 4 प्रतिशत अथवा 1.5 से 2.0 किलो दाना मिश्रण।
      फिनसर पिगः 2.5 किलो दाना मिश्रण।
      प्रजनन हेतु नर सूकरः 3.0 किलो।
      गाभिन सूकरीः 3.0 किलो।
      दुधारू सूकरी 3.0 किलो और दूध पीने वाले प्रति बच्चे 200 ग्राम की दर से अतिरिक्त दाना मिश्रण। अधिकतम 5.0 किलो।
      दाना मिश्रण को सुबह और अपराहन में दो बराबर हिस्से में बाँट कर खिलायें।

      सूकरों का आहार जन्म के एक पखवारे बाद शुरू हो जाता है। मां के दूध के साथ-साथ छौनों (पिगलेट) को सूखा ठोस आहार दिया जाता है, जिसे क्रिप राशन कहते हैं। दो महीने के बाद बढ़ते हुए सूकरों को ग्रोवर राशन और वयस्क सूकरों को फिनिशर राशन दिया जाता है और गर्भवती एवं दूध देती सूकरियों को भी फिनिशर राशन ही दिया जाता है। अलग-अलग किस्म के राशन को तैयार करने के लिए इन दाना मिश्रण का इस्तेमाल करना चाहिए।

    • जी प्रोजेक्ट बनायें, अपने यहाँ के पशु चिकत्सालय या जिले के पशु पालन विभाग में आवेदन करें,प्रोजेक्ट अप्रूव होने पर बैंक से लोन हेतु आवेदन करें |http://www.animalhusb.upsdc.gov.in/en/schemes

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