चारा चुकंदर Fodder Beet की खेती
Fodder Beet (फोडर बीट) जिसे सामन्य भाषा में चारा चुकन्दर भी कहा जाता है | यह एक अत्यधिक उपज देने वाली जमीकन्दीय फसल है | अन्य चारा फसलों की तुलना में यह कम क्षेत्रफल व समय में अधिक चारा देती है | इसका पौधा सलाद के काम में आने वाले चुकंदर जैसा ही होता है किन्तु आकार में बड़ा होता है व इसका शर्करा की मात्रा कम होती है | पौधे में ऊपर की तरफ 6 – 7 पत्तियों का गुच्छा होता है | इसका कन्द थोडा जमीन के बाहर भी निकला होता है | विश्व के उन सभी देशों में जहाँ पशुपालन व्यवसायिक तौर पर किया जाता है वहां यह फसल बहुत लोकप्रिय है | इसलिए किसान समाधान इस फसल की पूरी जानकारी लेकर आया है |
भूमि का चयन व खेत की तैयारी :-
फोडर बीट हेतु दोमट व बलुई दोमट मिट्टी सर्वोतम है किन्तु इसे किसी भी प्रकार की भूमि में लगाया जा सकता है | भूमि व पानी के खारेपन का भी इस फसल पर कोई विपरित प्रभाव नहीं पड़ता बल्कि इसके लगाने से भूमि में क्षार की मात्रा कम होती है | खेत की तैयारी हेतु पहले मिट्टी पलटने वाले हल या डिस्क हैरो से होती है | खेत की तैयारी हेतु पहले मिट्टी पलटने वाले हल या डिस्क हैरो से एक गहरी जुताई करें फिर क्रोस हैरो कर कल्टीवेटर के साथ पाता लगा दें | इसके बाद पीजिय या अन्य साधन द्वारा 50 – 70 से.मी. की दुरी पर 15 से.मी. ऊँची डोलियाँ बनाएँ |
उन्नत किस्में :-
बाजार में उपलब्ध संकर किस्में – जे.के. कुबेर मोनरो, जोना, जामोन, स्प्लेंडिड |
बुवाई :-
चारा चुकंदर की अच्छी फसल हेतु एक लाख पौधे प्रति हैक्टयर होने चाहिए | इसके लिए 20 – 25 किलो प्रति हैक्टयर बीज की आवश्यकता होती है | बीज को डोलियों पर 20 से.मी. की दुरी से 2 – 4 से.मी. गहराई में लगायें | फोडर बीट की डोलियों पर बुवाई करने पर समतल बुवाई से अधिक उपज प्राप्त होती है | साथ जी इससे बनने वाली नालियों को सिंचाई करने के काम में लिया जाता है जिससे 20 – 25 प्रतिशत पानी की भी बचत हो जाती है |
वैसे तो बाजार में उपलब्ध बीज उपचारित आता है किन्तु अगर न हो तो बीज को मैन्कोजेब व थिराम 2 – 2 ग्राम प्रति किलो बीज की दर से उपचारित करके ही बुवाई करें | बुवाई करने के तुरंत बाद सिंचाई करें किन्तु ध्यान रहे कि पानी डोली के ऊपर तक न आने पाए और सिर्फ नालियों में ही रहें अन्यथा पपड़ी आ जायेगी व अंकुर बहार नहीं निकल पायेगा | राजस्थान में इसकी बुवाई अक्तूबर से दिसम्बर तक कभी भी की जा सकती है |
खाद एवं उर्वरक :-
फोडर बीट की अधिक उत्पादन क्षमता होने के कारण भूमि से अधिक मात्रा में पोषक तत्वों का अवशोषण होता है | इसलिए फोडर बीट के खेत में हर तीसरे वर्ष खेत की तैयारी के समय 15 – 20 टन प्रति हैक्टयर अच्छी साड़ी हुई गोबर की खाद डालें | इसके अलावा नत्रजन 150 किलो, फास्फोरस 75 किलो व पोटाश 150 किलो प्रति हैक्टयर की दर से उर्वरक दें | नत्रजन की आधी मात्रा, फास्फोरस व पोटाश की पूरी मात्रा बुवाई के समय ऊर कर दें | नत्रजन की बची हुई आधी मात्रा दो बराबर हिस्सों में बुवाई के 30 व 50 दिन पर निराई के पश्चात् दें |
अन्त: शष्य क्रियांएँ :-
फोडर बीट की अधिकतर किस्में मल्टीजर्म है यानि बीज से एक से अधिक पौधे भी निकल सकते हैं इसलिए अंकुरण के बीस दिन बाद पौधे से पौधे के बीच की दुरी 20 से.मी. रखें व फालतू पौधों को उखाड़ दें | चूँकि इस फसल की आरंभिक बढवार बहुत धीमी होती है, इसलिए बुवाई के 30-50 दिनों के बाद निराई अत्यंत आवश्यक है बुवाई के पचास दिन बाद डोलियों पर मिट्टी अवश्य चढ़ा दें |
सिंचाई :-
प्रथम सिंचाई बुवाई के तुरंत बाद व मार्च तक 15 दिन के अंतराल पर सिंचाई करें , तत्पश्चात जरुरत अनुसार 8 – 10 दिन के अंतराल पर सिंचाई करें |
रोग एवं कीट नियंत्रण :- वैसे तो इस फसल में रोग व कीड़ों कम लगते है किन्तु जड़ (स्क्लरोटियम सेल्फ्सी) व पत्तों को नुकसान पहुँचाने वाले कीड़ों का कुछ प्रकोप हो सकता है | जड़ गलन की रोकथाम हेतु ट्राईकोडर्मा विरडी 1.25 ग्राम या मैन्कोजेब 2 ग्राम प्रति किलो बीज की दर से बीजोपचार करें | पत्ते खाने वाले कीड़ों का आर्थिक स्तर तक नुकसान पहुँचने पर 5 प्रतिशत नीम के बीजों की खली के घोल का छिड़काव करें |
कटाई व खुदाई :-
चारा चुकंदर के कंदों की खुदाई से 40 – 50 दिन पहले पत्तियों को 2 – 3 इंच ऊपर से काट लें व पशुओं को चारे के रूप में खिलाएं | इसके पश्चात् फसल को सिंचाई के वक्त 25 किलो प्रति हैक्टेयर नत्रजन दें जिससे फसल तेजी से बढ़ेगी | जब नीचे की पत्तियां सूखने लग जाएँ व अन्य पिली पड़ने लग जाएँ तब इसके कंदों को खोद लें |
आम तौर पर यह फसल 120 दिन में तैयार हो जाती है किन्तु इसकी जड़ें जमीं में खराब नहीं होती इसलिए खुदाई में जल्दीबाजी न करें व मार्च से ही रोजाना आवश्यकतानुसार कंदों को निकलकर पशुओं को खिलाते रहें | खुदाई के वक्त ध्यान रहे कि कंदों की बाहरी परत को नुकसान न पहुंचे |
फोडर बीट खिलाने की विधि :-
पत्तों व कन्दों को धो कर साफ कर लें और छोटे – छोटे टुकड़ों (3 – 5 से.मी.) में काटकर पशुओं को सीधे खिलाएं | एक पूर्ण व्यस्क डेरी वाले पशु को धीरे – धीरे मात्रा बढ़ाते हुए 10 – 15 किलोग्राम (कन्द व हरे पत्ते) प्रतिदिन के हिसाब से खिलाएं | अधिक मात्रा में खिलने से पशु में आफरा आ सकता है | भेड़ – बकड़ी के लिए 4 – 7 किलोग्राम प्रति पशु उपयुक्त है | जिन दिनों पशुओं को फीडर बीट खिला रहे हैं उन दिनों इन्हें दिए जाने वाले बांटे की मात्र आधी तक कम की जा सकती है | फोडर बीट को काटकर धूप में सुखाकर भंडारित भी किया जा सकता है | बाद में इसे दाना (चोकट, चूरी, खली आदि) के साथ मिलाकर खिलाएं |
फसल चक्र :-
इस फसल को हर साल एक ही स्थान पर न बोयें इसे चंवला, ग्वार, बाजार आदि खरीफ फसलों के बाद बोया जा सकता है |
उपज :-
उपरोक्त वर्णित कृषि क्रियाओं को अपनाकर काजरी (Central Arid Zone Research Institute) द्वारा विभिन्न स्थानों पर किये गए परीक्षणों में 65 – 100 टन प्रति हैक्टयर ताजा चारे का उत्पादन लिया गया है | प्रति कन्द का वजन डेढ़ से साढ़े तीन किलो होता है किन्तु इससे भी अधिक मोटे कन्द प्राप्त हो सकते है | इस फसल से हमें 40 – 50 पैसे प्रति किलो लागत पर अत्यंत पौष्टिक चारा उपलब्ध हो जाता है |
किसानों के लिए बहुत सुन्दर न्युज है
किसानों के लिए बहुत सुन्दर न्युज है