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फूलों की खेती

फूलों की खेती भारत में एक लंबे अरसे से होती रही है, लेकिन आर्थिक रूप से लाभदायक एक व्यवसाय के रूप में पुष्पों का उत्पादन पिछले कुछ सालों से ही प्रारंभ हुआ है। समकालिक पुष्प जैसे गुलाब, कमल ग्लैडियोलस, रजनीगंधा, कार्नेशन आदि के बढ़ते उत्पादन के कारण गुलदस्ते और उपहारों के स्वरूप देने में इनका उपयोग काफ़ी बढ़ा है। पुष्प को मनुष्य के द्वारा सजावट और औषधि के लिए उपयोग में लाया जाता है। इसके अलावा घरों और कार्यालयों को सजाने में भी इनका उपयोग बहुतायत से होता है। मध्यम वर्ग के जीवनस्तर में सुधार और आर्थिक संपन्नता के कारण पुष्प बाज़ार के विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया और फूलों की खेती को एक विशाल बाज़ार का स्वरूप प्रदान कर दिया है। भारत ने पुष्प उत्पादन में उल्लेखनीय प्रगति की है।

फूलों की खेती में संभावनाएं

भारत में कई कृषि – जलवायु क्षेत्र है जो नाजुक और कोमल फूलों की खेती के लिए अनुकूल है। उदारीकरण के पश्चात के दशक के दो दौरान पुष्पकृषि ने निर्यात के क्षेत्र में विशाल कदम रखा है। इस युग में सतत उत्पादन के स्थान पर वाणिज्यिक उत्पादन के साथ गतिशील बदलाव देखा गया है। वर्ष 2012-13 के दौरान, राष्ट्रीय  बागवानी बोर्ड द्वारा प्रकाशित राष्ट्रीय  पुष्पकृषि डेटाबेस 2012 के अनुसार भारत में फूलों की खेती के लिए 232.74 हज़ार हेक्टयर क्षेत्र था जिसमें से शिथिल फूलों उत्पाद 1.729 मिलियन टन हुआ तथा खुले फूलों का उत्पाद 76.73 मिलियन टन हुआ।

कई राज्यों में फूलों की खेती व्यावसायिक रूप से की जा रही है और मध्य प्रदेश, गुजरात, पंजाब, हरियाणा, आंध्र प्रदेश, उड़ीसा, झारखंड, उत्तर प्रदेश और छत्तीसगढ़ को पीछे छोड़ते हुए पश्चिम बंगाल (32%), कर्नाटक (12%), महाराष्ट्र(10%), राज्यों में फूलों की खेती की हिस्सेदारी बढ़ गई है।

भारतीय फूल उद्योग में गुलाब, रजनीगंधा, ग्लेड्स, एंथुरियम, कार्नेशन, गेंदा आदि फूल शामिल है। फूलों की खेती अत्याधुनिक पाली और ग्रीनहाउस दोनों में की जाती है।

भारत में वर्ष 2013-14 में फूलों का कुल निर्यात 455.90 करोड़ रुपए का रहा। प्रमुख आयातक देश संयुक्त राज्य अमेरिका, नीदरलैंड, जर्मनी, ब्रिटेन, संयुक्त अरब अमीरात, जापान और कनाडा थे। भारत में 300 से अधिक निर्यातोन्मुख इकाईयाँ है। फूलों की 50% से अधिक इकाईयाँ कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडू में है। विदेशी कम्पनियों से तकनिकी सहयोग के साथ भारतीय पुष्पकृषि उद्योग विश्व व्यापार में अपनी हिस्सेदारी बढ़ाने की और अग्रसर है।

वर्ष 2012-13 के दौरान लगभग 232.74 हजार हेक्टयेर क्षेत्र पुष्पकृषि के तहत किया गया। अनुमानित पुष्प उत्पादन वर्ष 2012-13 के दौरान 1.729 मिलियन टन खुले फूल और 76.73 मिलियन टन कट फ्लावर से हुआ।

पुष्पों की खेती का महत्व

व्यावहारिक विविधीकरण की दृष्टि से पुष्पों की खेती का महत्व दिनों-दिन बढ़ता जा रहा है। यद्यपि पुष्पों को उगाने की कला भारत के लिए नई नहीं है तथापि, बड़े पैमाने पर वाणिज्यिक स्तर पर इनकी खेती तथा पॉली हाउसों में इनकी संरक्षित खेती भारत में अपेक्षाकृत नई है। विपुल आनुवंशिक विविधता, विभिन्न प्रकार की कृषि जलवायु संबंधी परिस्थितियों बहुमुखी प्रतिभा सम्पन्न मानव संसाधन के कारण भारत में इस क्षेत्र में विविधीकरण के नए मार्ग प्रशस्त हैं जिनका अभी तक पर्याप्त रूप से दोहन नहीं हुआ है। विश्व व्यापार संगठन के युग में विश्व बाजार के खुल जाने के कारण पुष्पों तथा पुष्पोत्पादों का विश्व भर में स्वतंत्र रूप से आवागमन संभव है।

इस संदर्भ में प्रत्येक देश को प्रत्येक देश की सीमा में व्यापार करने के पर्याप्त अवसर उपलब्ध हैं। विश्व स्तर पर 140 से अधिक देश पुष्पों की फसलों की खेती में लगे हुए हैं। विभिन्न देशों में संयुक्त राज्य अमेरिका पुष्पों का सबसे बड़ा उपभोक्ता है। जहां प्रति वर्ष 10 बिलयन डॉलर से अधिक के पुष्पों की खपत होती है। इसके बाद उपभोग के मामले में जापान का स्थान है जहां प्रति वर्ष 7 बिलियन डॉलर से अधिक मूल्य के पुष्पों की खपत होती है। भारत का भविष्य में बेहतर स्कोप है क्योंकि उष्णकटिबंधीय पुष्पों की ओर लोगों का रुझान बढ़ रहा है और भारत जैसे देश द्वारा इसका लाभ उठाया जा सकता है क्योंकि हमारे यहां देशी वनस्पति जगत में उच्च स्तर की विविधता उपलब्ध है।

भारत फल और सब्जी के बीजों का भी निर्यात करते है और वर्ष 2013-14 के दौरान 410.53 करोड़ रुपए का निर्यात किया गया। पाकिस्तान, संयुक्त राज्य अमेरिका, बांग्लादेश, नीदरलैंड, इटली, और थाईलैंड देश भारत के फल और सब्जी बीज के मुख्य बाजार रहे।

भारत फूलों के निर्यातक के रूप में

सरकार ने पुष्पकृषि का एक उभरते हुए उद्योग के रूप में अभिनिर्धारण किया है और इसे 100% निर्यातोन्मुख उद्योग का दर्जा दिया है | फूलों की बढ़ती हुई मांग को ध्यान में रखते हुए पुष्पकृषि क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण वाणिज्यिक पुष्पकृषि व्यापार बन गया है | अत: वाणिज्यिक पुष्पकृषि ग्रीनहाउस में नियंत्रित जलवायु स्तिथियों के तहत होने वाला एक उच्च तकनीक के रूप में देखा जा रहा हैं | निर्यात के द्रष्टिकोण से भी वाणिज्यिक पुष्पकृषि महत्वपूर्ण हो रही है |

लचीली उद्योगिक व व्यापार नीतियों से खुले फूलों के निर्यातोन्मुख उत्पादन के विकास के लिए मार्ग प्रशस्त किया है | नयी बीज नीति ने पहले ही अंतर्राष्ट्रीय किस्मों के पौधे सामग्रियों के आयात को सुविधाजनक बना दिया हैं | यह देखा गया है कि व्यापारिक पुष्पकृषि में अन्य फसलों की अपेक्षा प्रति इकाई क्षेत्र में ज्यादा पैदावार देने की क्षमता है इसलिए यह एक बेहतर व्यापार है | निर्यात के प्रयोजनों के लिए भारतीय पुष्पकृषि उद्योग पारम्परिक पुष्पों की अपेक्षा खुले फूलों की ओर अग्रसर हुआ हैं |

2013-14 के दौरान विश्वभर में 22,485.21 मीट्रिक टन पुष्पकृषि उत्पाद का निर्यात किया जिससे 455.90 करोड़ रुपए अर्जित किए।

प्रमुख निर्यात लक्ष्य (2013-14) :सयुंक्त राज्य अमेरिका, नीदरलैंड, जर्मनी, यू के, कनाड़ा और जापान इसी अवधि के दौरान भारतीय फूलों की खेती (पुष्पकृषि) में प्रमुख आयातक देश रहे।

कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (एपीडा), भारत में फूलों की खेती के विकास के निर्यात को बढ़ावा देने के लिए उत्तरदायी है ।

फूलों की किस्में

पुष्पकृषि उत्पादों में मुख्यतया खुले पुष्प, पॉट प्लांट, कट फ़ोइलेज, सीड्स बल्बस, कंद, रुटेड़ कटिंग्स और सूखे फूल व पत्तियां सम्मिलित है। प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय पुष्पकृषि में खुले गुलाब के फूलों का व्यापार, लाली, गुलदाउदी, गारगेरा, ग्लेडियोलस, जाइसोफिला, लायस्ट्रिस, नेरिन, आर्किड, अर्किलिया, अन्थुरियम, ट्यूलिप और लिलि है। गारव्रेरास, गुलनार आदि फूलों की खेती ग्रीन हाउस (हरित गृह) में की जाती है। खुले खेतो में उगाई जाने वाली फसल गुलदाउदी, गुलाब, गेल्लारड़िया, लिलि, मेरीगोल्ड, तारा, कंदाकार प्रमुख है।

फूलों में रैनन क्लाउज, स्वीट, विलियम, डेहलिया, लुपिन, वेरबना, कासमांस आदि के फूल लगा सकते हैं। इसके अलावा गुलाब की प्रजातियों में चाइना मैन, मेट्रोकोनिया फर्स्ट प्राइज, आइसबर्ग और ओक्लाहोमा जैसी नई विविधताएं हैं, जो शर्तिया कमाई देती हैं। इसके साथ-साथ मोगरा, रात की रानी, मोतिया, जूही आदि झाडियों के अलावा साइप्रस चाइना जैसे छोटे-छोटे पेड़ लगा कर अच्छी कमाई की जा सकती है। महाराष्ट्र, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, हरियाणा, तमिलनाडू, राजस्थान, पश्चिम बंगाल आदि प्रमुख पुष्पकृषि केंद्र के रूप में उभरे है।

एक व्यवसाय के रूप में

फ्लोरीकल्चर हॉर्टिकल्चर की एक शाखा है, जिसमें फूलों की पैदावार, मार्केटिंग, कॉस्मेटिक और परफ्यूम इंडस्ट्री के अलावा फार्मास्यूटिकल आदि शामिल हैं। युवा इस व्यवसाय को शुरू करके अच्छी-खासी कमाई कर सकते हैं।

जो युवा इस क्षेत्र में अपना भाग्य आजमाने चाहते हैं, उनके लिए अनुभव बेहद जरूरी है। सर्टिफिकेट, डिप्लोमा और डिग्री जैसे कोर्स के लिए 10+2 में बायोलॉजी, फिजिक्स, कैमिस्ट्री के साथ पास होना जरूरी है, लेकिन मास्टर्स डिग्री के लिए एग्रीकल्चर में बैचलर डिग्री जरूरी है। मास्टर्स डिग्री के लिए इंडियन काउंसिल ऑफ एग्रीकल्चर रिसर्च द्वारा ऑल इंडिया एंट्रेंस टैस्ट परीक्षा ली जाती है। गौरतलब है कि किसी भी यूनिवर्सिटी में फ्लोरीकल्चर (ऑनर्स) की पढ़ाई नहीं करवाई जाती, बल्कि बीएससी (एग्रीकल्चर) में एक विषय के तौर पर फ्लोरीकल्चर पढ़ाया जाता है।

इस काम के लिए सवा बीघा जमीन काफी है, लेकिन जमीन पांच बीघा हो तो वारे-न्यारे हैं। इसे एक नर्सरी के तौर पर खोला जाए।

फूलों की पैदावार के लिए सबसे उपयुक्त समय सितंबर से मार्च तक है, लेकिन अक्तूबर से फरवरी का समय इस व्यवसाय के लिए वरदान है। फूलों की लगभग सभी प्रजातियों की बुवाई सितंबर-अक्तूबर में की जाती है। गुलाब और गेंदा हर प्रकार की मिट्टी में लगाए जा सकते हैं, परंतु दोमट, बलुआर या मटियार भूमि ज्यादा उपयोगी है। गुलाब की खेती कलम लगा कर की जाती है। उन्नत किस्म के बीज पूसा इंस्टीटय़ूट या देश के किसी भी बड़े अनुसंधान केंद्र से प्राप्त किए जा सकते हैं। वैसे तो फूलों का कारोबार और पैदावार साल भर चलती है, पर जाड़ों में यह बढ़ जाती है।

कीट भक्षी पक्षी और छोटे-छोटे कीड़े-मकौड़े फूलों के दुश्मन होते हैं। इनसे बचाव के पूरे इंतजाम होने चाहिए। समय-समय पर दवाओं का छिड़काव भी जरूरी है। सर्दियों में फूलों को बचाने के लिए क्यारियों पर हरे रंग की जाली लगानी चाहिए।

मंडी

दिल्ली में फूलों की सबसे बड़ी मंडी है। इस मंडी में देश-विदेश के फूल व्यापारी खरीद-फरोख्त करते हैं। लगभग सौ कंपनियां फूल उत्पादन व उनके व्यापार में 2500 करोड़ रुपए का पूंजी निवेश कर चुकी हैं। इन कंपनियों के एजेंट हर जगह उपलब्ध हैं। आप अपने खेतों में उत्पन्न फूलों को बेचने के लिए इनसे संपर्क कर सकते हैं। फूल सजावट के काम आते हैं। इससे माला, गजरा, सुगंधित तेल, गुलाब जल, गुलदस्ता, परफ्यूम आदि बनाए जाते हैं। उपरोक्त कार्य के अलावा पुष्प उत्पादक किसानों से आप थोक भाव में फूल खरीद कर मंडी में पहुंचा सकते हैं। विदेशों को निर्यात कर सकते हैं। मंडियों से खरीद कर कस्बों में वितरण कर सकते हैं। लाभ के लिए फूल व्यवसाय उत्तम है।

किसान यदि एक हेक्टेयर गेंदे का फूल लगाते हैं तो वे वार्षिक आमदनी 1 से 2 लाख तक बढ़ा सकते हैं। इतने ही क्षेत्र में गुलाब की खेती करते हैं तो दोगुनी तथा गुलदाउदी की फसल से 7 लाख रुपए आसानी से कमा सकते हैं। भारत में गेंदा, गुलाब, गुलदाउदी आदि फूलों के उत्पादन के लिए जलवायु काफी अनुकूल है। फिर भी मिट्टी, खाद व खरपतवार की सफाई और समय पर बुवाई का ध्यान रखना चाहिए।

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4 COMMENTS

    • जी यदि प्रशिक्षण लेना है तो कृषि विज्ञानं केंद्र या कृषि विश्वविद्यालय से संपर्क करें |

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