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सोमवार, मार्च 17, 2025
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किसानों को अब कम दामों पर नहीं बेचना पड़ेगा टमाटर, आलू और प्याज; सरकार ने उठाया यह कदम

सरकार ने किसानों के हित में बड़ा फैसला लेते हुए बाजार हस्तक्षेप योजना यानि की एमआईएस योजना में संशोधन किया है। बाजार हस्तक्षेप योजना, पीएम-आशा योजना का एक घटक है जिसके तहत राज्य सरकार के अनुरोध पर विभिन्न जल्दी खराब होने वाली फसलों जैसे आलू, प्याज और टमाटर आदि फसलों की खरीद के लिए लागू किया गया है। इन फसलों पर न्यूनतम समर्थन मूल्य यानि की एमएसपी लागू नहीं होता है। यह योजना तब लागू की जाएगी जब इन फसलों के दाम पिछले वर्ष की तुलना में 10 प्रतिशत से कम हो ताकि किसानों को अपनी उपज को मजबूरी में बेचने के लिए बाध्य न होना पड़े।

बाजार हस्तक्षेप योजन के क्रियान्वयन के लिए अधिक राज्यों को प्रोत्साहित करने के लिए सरकार ने एमआईएस के दिशानिर्दशों को निम्नलिखित प्रावधानों में संशोधित किया है।

  • एमआईएस योजना को अब पीएम-आशा की व्यापक योजना का एक घटक बनाया गया है।
  • पिछले सामान्य वर्ष की तुलना में प्रचलित बाजार मूल्य में न्यूनतम 10 प्रतिशत की कमी होने पर ही एमआईएस लागू की जाएगी।
  • फसलों की उत्पादन मात्रा की खरीद/कवरेज सीमा को मौजूदा 20 प्रतिशत से बढ़ाकर 25 प्रतिशत कर दिया गया है।
  • योजना में अब राज्य के पास भौतिक खरीद के स्थान पर सीधे किसानों के बैंक खाते में बाजार हस्तक्षेप मूल्य (एमआईपी) और बिक्री मूल्य के बीच अंतर भुगतान करने का विकल्प भी दिया गया है।
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फसलों के परिवहन में आने वाले खर्च का वहन करेगी सरकार

इसके अलावा जहां उत्पादन और उपभोक्ता के बीच टॉप फसलों जैसे टमाटर, आलू और प्याज की कीमत में अंतर होगा वहां किसानों के हित में NAFED और NCCF जैसी केंद्रीय नोडल एजेंसियों (CNA) द्वारा उत्पादक राज्य से अन्य उपभोक्ता राज्यों तक फसलों के भंडारण और परिवहन में होने वाली परिचालन लागत की प्रतिपूर्ति की जाएगी। इसमें मध्य प्रदेश से दिल्ली तक 1000 मीट्रिक टन तक खरीफ टमाटर के परिवहन के लिए लागत की प्रतिपूर्ति के लिए एनसीसीएफ को मंजूरी दे दी गई है।

एमआईएस के तहत शीर्ष फसलों की ख़रीद करने और कार्यान्वयन करने वाले राज्य के साथ समन्वय में, उत्पादक राज्य और उपभोक्ता राज्य के बीच मूल्य अंतर की स्थिति में उत्पादक राज्य से उपभोक्ता राज्य तक भंडारण और परिवहन की व्यवस्था करने के लिए NAFED और एनसीसीएफ के अलावा, किसानों उत्पादक संगठनों (FPO), किसान उत्पादक कंपनियों (FPC), राज्य द्वारा नामित एजेंसियों और अन्य केंद्रीय नोडल एजेंसियों को शामिल करने का प्रस्ताव किया जा रहा है।

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