आज के समय में नई उन्नत किस्मों की मांग लगातार बढ़ती जा रही है, ऐसे में अधिक से अधिक किसानों तक इन बीजों को उपलब्ध कराना एक चुनौतीपूर्ण कार्य है। जिसको देखते हुए कृषि विश्वविद्यालयों के द्वारा विकसित उन्नत किस्मों को किसानों तक पहुँचाने के लिए प्राइवेट कंपनियों से समझौता किया जा रहा है। इस कड़ी में चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय द्वारा विकसित की गई मूँग की उन्नत किस्मों की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए चामुंडा एग्रो प्राइवेट लिमिटेड, दिल्ली के साथ समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए हैं।
इस अवसर पर विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो.बी.आर.काम्बोज ने बताया कि विश्वविद्यालय द्वारा विकसित उन्नत किस्में ज्यादा से ज्यादा किसानों तक पहुंचे, इसके लिए चामुंडा एग्रो प्राइवेट लिमिटेड, दिल्ली के साथ समझौता किया गया है। इस समझौते के तहत विश्वविद्यालय द्वारा विकसित मूंग की तीन किस्में एमएच 1142, एमएच 1762 तथा एमएच 1772 का बीज तैयार कर कंपनी किसानों तक पहुंचाएगी ताकि उन्हें इन किस्मों का विश्वसनीय बीज मिल सकें और उनकी पैदावार में इजाफा हो सकें।
कंपनी को दिए गए बीज उत्पादन के लिए लाइसेंस
इस अवसर पर मानव संसाधन प्रबंधन निदेशक डॉ. रमेश यादव ने बताया कि विश्वविद्यालय की ओर से समझौता ज्ञापन पर अनुसंधान निदेशक डॉ. राजबीर गर्ग ने तथा चामुंडा एग्रो प्राइवेट लिमिटेड, दिल्ली की तरफ से विकास तोमर, मार्केटिंग मैनेजर ने हस्ताक्षर किए व उनके साथ प्रवीण कुमार, सहायक उपस्थित रहे। उन्होंने बताया कि समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर होने के बाद अब कंपनी विश्वविद्यालय को लाइसेंस फीस अदा करेगी, जिसके तहत उसे बीज का उत्पादन व विपणन करने का अधिकार प्राप्त होगा। इससे किसानों को भी इस उन्नत किस्म का बीज मिल सकेगा।
मूंग किस्म MH 1142 उन्नत किस्म की विशेषताएं
अनुसंधान निदेशक डॉ. राजबीर गर्ग ने बताया कि खरीफ मौसम में बोई जाने वाली मूंग की MH 1142 किस्म को भारत के उत्तर-पश्चिम व उत्तर पूर्व के मैदानी इलाक़ों में इनकी खेती के लिए अनुमोदित की गई है। इसमें उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान, उत्तराखंड, बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल व असम राज्य शामिल हैं। इस किस्म की फलियाँ काले रंग की होती हैं व बीज मध्यम आकार के हरे व चमकीले होते हैं। इसका पौधा कम फैलावदार, सीधा एवं सीमित बढ़वार वाला है, जिससे इसकी कटाई आसान हो जाती है। यह किस्म विभिन्न राज्यों में 63 से 70 दिनों में पककर तैयार हो जाती है और इसकी औसत पैदावार भौगोलिक परिस्थितियों के अनुसार 12 क्विंटल से 20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक आंकी गई है।
मूंग किस्म MH 1762 और MH 1762 की विशेषताएँ
दलहन अनुभाग के अध्यक्ष डॉ. राजेश यादव ने बताया कि MH 1762 एवं MH 1772 किस्में पीला मौजैक एवं अन्य रोगों की प्रतिरोधी है। एमएच 1762 किस्म बसंत एवं ग्रीष्म काल में भारत के उत्तर पश्चिमी मैदानी क्षेत्रों में बिजाई के लिए व एमएच 1772 खरीफ में भारत के उत्तर पूर्वी मैदानी क्षेत्रों में खेती के लिए अनुमोदित की गई है। एमएच 1762 लगभग 60 दिनों में एवं एमएच 1772 लगभग 67 दिनों में एक साथ पक कर तैयार हो जाती है।
इनके दाने चमकीले हरे रंग के मध्यम आकार के होते हैं। दोनों ही किस्में सभी प्रचलित किस्मों से 10 से 15 प्रतिशत अधिक पैदावार देती है। MH 1762 किस्म की औसत उपज 14.5 क्विंटल प्रति हेक्टेयर एवं MH 1772 किस्म की औसत उपज 13.5 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है। नई किस्में बेहतर प्रबंधन से और भी अच्छे परिणाम देती है व मूँग की अधिकतर बीमारियों के रोगरोधी है।