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किसान डीएपी जगह करें इस खाद का उपयोग; बीजों के वजन, चमक और गुणवत्ता में होगी वृद्धि

रबी फसलों की बुआई का समय नजदीक आ गया है, जिसके चलते खाद और उर्वरकों की माँग बहुत अधिक बढ़ गई है। कई जगहों पर किसानों को डीएपी एवं अन्य खाद मिलने में समस्या भी हो रही है। ऐसे में किसान डीएपी खाद की जगह पर वैकल्पिक खाद-उर्वरक का उपयोग कर अच्छी पैदावार प्राप्त कर सकते हैं। इसके लिए कृषि विभाग द्वारा किसानों को लगातार सलाह भी दी जा रही है।

इस कड़ी में किसान कल्याण एवं कृषि विकास विभाग जबलपुर द्वारा किसानों को रबी फसलों का अच्छा उत्पादन प्राप्त करने के लिए डीएपी के स्थान पर एन.पी.के उर्वरक का इस्तेमाल करने की सलाह दी है। कृषि विभाग द्वारा किसानों को एनपीके उर्वरक का उपयोग करने के सम्बन्ध में जरूरी जानकारी भी प्रदान की गई है। किसानों को बताया गया है कि एनपीके ग्रेड के उर्वरक अपेक्षाकृत डीएपी से सस्ते और अच्छे उर्वरक होते हैं। इनमें नाइट्रोजन, फॉस्फोरस एवं पोटाश जैसे मुख्य पोषक तत्वों का समावेश होता है। यह उर्वरक डबल लॉक केन्द्रों, समितियों एवं पंजीकृत कृषि आदान विक्रेताओं के पास पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हैं।

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किसान करें एनपीके खाद का उपयोग

उपसंचालक किसान कल्याण एवं कृषि विकास डॉ. एस के निगम ने किसानों से फसलों में एक ही तरह के उर्वरकों का उपयोग न करने की सलाह दी है। उन्होंने कहा है कि किसानों को समन्वित प्रबंधन में गोबर एवं केंचुए की खाद के साथ अनुशंसित मात्रा में फसलों के अनुरूप एनपीके उर्वरकों उपयोग करना चाहिए। संतुलित उर्वरकों के उपयोग से उत्पादन की लागत में कमी होती है, उत्पादकता में वृद्धि होती है और भूमि, जल एवं पर्यावरण भी सुरक्षित रहते हैं।

उपसंचालक कृषि ने बताया कि किसानों को एनपीके उर्वरक का उपयोग फसलों की बोनी के समय नाइट्रोजन की एक चौथाई मात्रा तथा फॉस्फोरस एवं पोटाश की संपूर्ण मात्रा के साथ आधार उर्वरक के रूप में करना चाहिए। आवश्यकता से अधिक उर्वरक का प्रयोग किसी भी हालत में नहीं करना चाहिए। यह फसल की लागत बढ़ाने के साथ-साथ मिट्टी एवं पानी की दशा भी खराब करते हैं तथा फसलों में कीड़ों और बीमारियों को बढ़ावा देते हैं। जिसे नियंत्रित करने के लिए किसानों पर आर्थिक बोझ बढ़ता है।

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एनपीके खाद से बीजों के वजन, चमक और गुणवत्ता में होगी वृद्धि

कृषि विभाग के उपसंचालक के मुताबिक एनपीके के प्रयोग से फसलों में पोटाश की मात्रा बिना अतिरिक्त पैसे खर्च किये प्राप्त होती है। साथ ही बीजों में चमक एवं वजन और उत्पादन की गुणवत्ता में भी वृद्धि होती है और उत्पादन का बाजार में अधिक मूल्य प्राप्त होता हैं। एनपीके खाद के उपयोग से न केवल फसलों की लागत में कमी आती है बल्कि उपज की गुणवत्ता में भी वृद्धि होती है।

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2 टिप्पणी

    • राई/सरसों बोने का उपयुक्त समय बुन्देलखंड एवं आगरा मंडल में सितम्बर का अंतिम सप्ताह तथा शेष क्षेत्रों में अक्टूबर का प्रथम पखवारा है। बुआई देशी हल के पीछे उथले (4-5 सेन्टीमीटर गहरे) कूंड़ों में 45 सेन्टीमीटर की दूरी पर करना चाहिए। बुआई के बाद बीज ढ़कने के लिए हल्का पाटा लगा देना चाहिए। असिंचित दशा में बुआई का उपयुक्त समय सितम्बर का द्वितीय पखवारा है। विलम्ब से बुआई करने पर माहूँ का प्रकोप एवं अन्य कीटों एवं बीमारियों की सम्भावना अधिक रहती है।

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