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शनिवार, जनवरी 25, 2025
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किसान कपास की फसल में डीएपी की जगह करें एनपीके खाद का इस्तेमाल, कम लागत में मिलेगी अच्छी पैदावार

कृषि विभाग द्वारा किसानों को डी.ए.पी. खाद के स्थान पर एन.पी.के. खाद के उपयोग पर जोर दिया जा रहा है ताकि किसान फसलों में बेहतर तरीके से पोषक तत्वों का प्रबंधन कर सकें। कृषि विभाग के अनुसार डीएपी में पोटाश नहीं होता है, इसलिए पोटाश की कमी से कीट-बीमारियों का प्रकोप अधिक होता है और कपास के उत्पादन में कमी आती है। अनुसंधान की रिपोर्ट के अनुसार कपास फसल में एनपीके मिश्रित उर्वरकों के प्रयोग से कपास का गुणवत्तायुक्त अधिक उत्पादन लिया जा सकता हैं।

एमपी के खरगोन जिले के उपसंचालक कृषि ने जानकारी देते हुए बताया कि कपास फसल में बुवाई के समय आधार खाद के रूप में सिंगल सुपर फास्फेट की आधी मात्रा 2500 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर के साथ यूरिया 35 किलोग्राम तथा पोटाश 33.5 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से उपयोग करने से कपास फसल का अधिक उत्पादन लिया जा सकता है।

कपास में कितना यूरिया और एनपीके खाद डालें किसान

खरगोन के कृषि उपसंचालक ने बताया कि कपास फसल में बुवाई के समय 12:32:16 एनपीके 250 किलोग्राम एवं यूरिया 280 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से उपयोग करने से पोटाश खाद अलग से नहीं देना पड़ेगा। कपास फसल को 12:32:16 एनपीके खाद से पोटाश की आवश्यक मात्रा मिल जायेगी। कपास में पोटाश के उपयोग से कीट-बीमारियों का प्रकोप भी कम होगा। मिट्टी परीक्षण के आधार पर खरगोन जिले की मिट्टी में पोटाश की अनुशंसा की गई है। कपास फसल में अन्य एनपीके उर्वरक जैसे 20:20:00:13 एनपीके 4 बैग प्रति हेक्टेयर 16:16:16 एनपीके 10 बैग प्रति हेक्टेयर तथा 15:15:15 एनपीके 10.5 बैग प्रति हेक्टेयर बुवाई के समय आधी मात्रा एवं बुवाई के 2 माह बाद फिर से आधी मात्रा का प्रयोग करे।

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एनपीके खाद से मिलता है अच्छा उत्पादन

डीएपी में पोटाश नहीं होता है, इसलिए पोटाश की कमी से कीट-बीमारियों का प्रकोप अधिक होता है और कपास के उत्पादन में कमी आती है। अनुसंधान की रिपोर्ट के अनुसार कपास फसल में एनपीके मिश्रित उर्वरकों के प्रयोग से कपास का गुणवत्तायुक्त अधिक उत्पादन लिया जा सकता हैं। जिले की अन्य फसलें जैसे मक्का, सोयाबीन, ज्वार, मिर्च आदि फसलों में भी सिंगल सुपर फॉस्फेट के साथ एनपीके मिश्रित उर्वरकों के उपरोक्त खादों का उपयोग करना लाभप्रद पाया गया है।

मिट्टी परीक्षण प्रयोगशाला द्वारा परीक्षण किये जा रहे नमूनों के आधार पर जिले की मृदा में जिंक की कमी है। कृषकों को सलाह दी गई है कि समन्वित उर्वरकों में जिंक सल्फेट का 20 से 25 किग्रा प्रति हेक्टेयर हर 3 साल में एक बार अनिवार्य रूप से उपयोग करे। जिससे उत्पादन बढ़ाते हुए अधिक मुनाफा कमाया जा सकता है।

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