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शुक्रवार, अप्रैल 19, 2024
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किसान अधिक पैदावार के लिए लगायें सोयाबीन की यह नई उन्नत विकसित किस्में

सोयाबीन की नई विकसित किस्में

देश में किसानों की आय एवं प्रति हेक्टेयर उत्पदान को बढ़ाने के लिए कृषि वैज्ञानिकों के द्वारा लगातार प्रयास किये जा रहे हैं | इसके लिए भारतीय कृषि अनुसन्धान परिषद् ICAR के विभिन्न संस्थानों की सहायता से फसलों की नई- नई किस्में विकसित की जा रही हैं | जहाँ नई किस्में कीट रोगों की प्रतिरोधक होती है वहीँ इनसे अधिक उत्पादन भी प्राप्त होता है | जिससे खेती की लागत तो कम होती ही है साथ ही किसानों को लाभ भी अधिक होता है | ऐसी ही कुछ सोयाबीन की किस्में भारत के वैज्ञानिकों के द्वारा तैयार की गई हैं जो देश को तिलहन क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने में महत्वपूर्ण योगदान दे सकती हैं |

किसान समाधान किसानों के लिए वर्ष 2021 तक सोयाबीन की सभी विकसित किस्मों की जानकारी पाठकों के लिए लाया है | यह किस्में सोयाबीन की खेती करने वाले किसानों के लिए वरदान साबित हो सकती हैं |

Soybean Variety सोयाबीन की नई विकसित किस्में एवं उनकी विशेषताएं

सोयाबीन की किस्में/प्रजाति (वर्ष) एवं उपयुक्त राज्य

विशेषताएं

VL SOYA 89 (2019)

हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड

सोयाबीन की यह प्रजाति 2019 में विकसित की गई है| यह किस्म 111 से 120 दिन में पककर तैयार हो जाती है | इसका उत्पादन 25 क्विंटल प्रति हैक्टेयर है |

VL SOYA 201 (2016)

उत्तराखंड

यह किस्म 113 से 120 दिन में पककर तैयार हो जाती है | इस प्रजाति के सोयाबीन की उपज 18 क्विंटल प्रति हैक्टेयर है |

VL SOYA 77 (2016)

उत्तराखंड

यह किस्म 113 से 120 दिन में पककर तैयार हो जाती है | इस प्रजाति के सोयाबीन की उपज 23 क्विंटल प्रति हैक्टेयर होता है |

VL SOYA 65 (2010)

उत्तराखंड

यह किस्म 118 से 125 दिन में पककर तैयार हो जाती है | इस प्रजाति की उपज 20 क्विंटल प्रति हैक्टेयर है

VL SOYA 63 (2008)

हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड

यह किस्म 125 से 132 दिन में पककर तैयार हो जाती है | इस प्रजाति के सोयाबीन का उपज 30 क्विंटल प्रति हैक्टेयर है |

NRC 128 (2021)

पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, उत्तर–पूर्वी उत्तर प्रदेश, पश्चिमी बिहार

यह प्रजाति 118 दिनों में पककर तैयार हो जाती है | इस प्रजाति के सोयाबीन का उत्पादन 20 क्विंटल प्रति हैक्टेयर हैं |

PS1477 (2017)

उत्तरप्रदेश, उत्तराखंड

यह प्रजाति 113 से 120 दिनों में पककर तैयार हो जाती है | सोयाबीन की इस प्रजाति का उत्पादन क्षमता 27 क्विंटल प्रति हैक्टेयर है

PS-1521 (2017)

उत्तराखंड, पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, उत्तर – पूर्वी उत्तर प्रदेश, पश्चिमी बिहार

यह प्रजाति 112 से 115 दिनों में पककर तैयार हो जाती है | इसकी उत्पादन क्षमता 32 क्विंटल प्रति हैक्टेयर है |

PS 1480 (2017)

उत्तराखंड

यह प्रजाति 123 से 126 दिनों में पककर तैयार हो जाती है | इस प्रजाति की उत्पादन क्षमता 25 क्विंटल प्रति हैक्टेयर है |

SL 958 (2015 )

पंजाब

यह प्रजाति 135 से 145 दिनों में पककर तैयार हो जाती है | इस प्रजाति की उत्पादन क्षमता 23 क्विंटल प्रति हैक्टेयर है |

PUSA 12 (2015)

पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, उत्तराखंड, बिहार, उत्तरप्रदेश

यह प्रजाति 124 से 131 दिनों में पककर तैयार हो जाती है | इस प्रजाति की उत्पादन क्षमता 25 क्विंटल प्रति क्विंटल है |

PS 1368 (2013)

उत्तराखंड

यह प्रजाति 117 से 125 दिनों में पककर तैयार हो जाती है | सोयाबीन की इस प्रजाति का उत्पादन क्षमता 23 क्विंटल प्रति हैक्टेयर है |

PS 1225 (2009)

पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, उत्तर – पूर्वी उत्तर प्रदेश, पश्चिमी बिहार

यह प्रजाति वर्ष 122 – 127 दिनों में पककर तैयार हो जाती है | इस प्रजाति की उत्पादन क्षमता 30 क्विंटल प्रति हैक्टेयर है |

PS 1347(2008)

पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, उत्तर – पूर्वी उत्तर प्रदेश, पश्चिमी बिहार

सोयाबीन की यह प्रजाति वर्ष 2008 में विकसित किया गया था | यह प्रजाति 120 से 125 दिनों में पककर तैयार हो जाती है | इस प्रजाति की उत्पादन क्षमता 31 क्विंटल प्रति हैक्टेयर है |

MACS 1460 (2021)

कर्णाटक, आंध्रप्रदेश, तमिलनाडु, केरला, दक्षिणी महाराष्ट्रा

यह प्रजाति 96 से 97 दिनों में पककर तैयार हो जाती है | सोयाबीन की इस प्रजाति का उत्पादन क्षमता 28 क्विंटल प्रति हैक्टेयर है |

NRC 132 (2021)

कर्णाटक, आंध्रप्रदेश, तमिलनाडु, केरला, दक्षिणी महाराष्ट्रा

यह प्रजाति 101 से 106 दिनों में पककर तैयार हो जाती है | सोयाबीन की इस प्रजाति की उत्पादन क्षमता 27 क्विंटल प्रति हैक्टेयर है |

NRC 147 (2021)

पूर्वी एवं दक्षिणी राज्य

 

यह प्रजाति 96 से 97 दिनों में पककर तैयार हो जाती है | इस प्रजाति का उत्पादन क्षमता 28 क्विंटल प्रति हैक्टेयर है |

RSC 11–07 (2021)

पूर्वी एवं दक्षिणी राज्य

यह प्रजाति 101 से 106 दिनों में पककर तैयार हो जाती है | सोयाबीन की इस प्रजाति का उत्पादन क्षमता 27 क्विंटल प्रति हैक्टेयर है |

DSB 34 (2018)

कर्णाटक, आंध्रप्रदेश, तमिलनाडु, केरला, दक्षिणी महाराष्ट्रा

यह प्रजाति 101 से 106 दिनों में पककर तैयार हो जाती है | इस प्रजाति की उत्पादन क्षमता 27 क्विंटल प्रति हैक्टेयर है |

MAUS 612 (2018)

महाराष्ट्र, आंध्रप्रदेश और दक्षिण भारतीय राज्य

यह प्रजाति 93 से 98 दिनों में पककर तैयार हो जाती है | इस प्रजाति की उत्पादन क्षमता 28 क्विंटल प्रति हैक्टेयर है |

BASAR (2018)

तेलंगाना

यह प्रजाति 105 से 115 दिनों में पककर तैयार हो जाती है | इस प्रजाति की उत्पादन क्षमता 32 क्विंटल प्रति हैक्टेयर है |

MACS 1281 (2016)

कर्णाटक, आंध्रप्रदेश, तमिलनाडु, केरला, दक्षिणी महाराष्ट्रा

यह प्रजाति 90 से 100 दिनों में पककर तैयार हो जाती है | इस प्रजाति की उत्पादन क्षमता 28 क्विंटल प्रति हैक्टेयर है |

KDS 344 (2021) फुले अग्रणी

महाराष्ट्रा एवं दक्षिणी राज्य

यह प्रजाति 93 से 95 दिनों में पककर तैयार हो जाती है | इस प्रजाति की उत्पादन क्षमता 28 क्विंटल प्रति हैक्टेयर है |

DSB 21 (2015)

महाराष्ट्रा एवं दक्षिणी राज्य

यह प्रजाति 90 से 95 दिनों में पककर तैयार हो जाती है | इस प्रजाति की उत्पादन क्षमता 30 क्विंटल प्रति हैक्टेयर है |

MAUS 162 (2014)

महाराष्ट्रा

यह प्रजाति 100 से 103 दिनों में पककर तैयार हो जाती है | इस प्रजाति की उत्पादन क्षमता 30 क्विंटल प्रति हैक्टेयर है |

MACS 1188 (2013)

महारष्ट्र, कर्नाटका, आँध्रप्रदेश, तमिलनाडु

यह प्रजाति 101 से 103 दिनों में पककर तैयार हो जाती है | इस प्रजाति की उत्पादन क्षमता 25 क्विंटल प्रति हैक्टेयर है |

MAUS 158 (2010)

कर्णाटक, आंध्रप्रदेश, तमिलनाडु, केरला, दक्षिणी महाराष्ट्रा

 

यह प्रजाति 93 से 98 दिनों में पककर तैयार हो जाती है | इस प्रजाति की उत्पादन क्षमता 22 क्विंटल प्रति हैक्टेयर है |

MACS 1407 (2021)

पश्चिमी बंगाल, उड़ीसा, असम, सिक्किम, अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड, त्रिपुरा, मेघालय, झारखण्ड, पूर्वी बिहार

यह प्रजाति 99 से 107 दिनों में पककर तैयार हो जाती है | इस प्रजाति की उत्पादन क्षमता 32 क्विंटल प्रति हैक्टेयर है |

NRC 136 (2021)

पश्चिमी बंगाल, उड़ीसा, असम, सिक्किम, अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड, त्रिपुरा, मेघालय, झारखण्ड, पूर्वी बिहार

यह प्रजाति 107 दिनों में पककर तैयार हो जाती है | इस प्रजाति की उत्पादन क्षमता 31 क्विंटल प्रति हैक्टेयर है |

NRCSL 1 (2021)

पश्चिमी बंगाल, उड़ीसा, असम, सिक्किम, अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड, त्रिपुरा, मेघालय, झारखण्ड, पूर्वी बिहार

यह प्रजाति 107 दिनों में पककर तैयार हो जाती है | इस प्रजाति की उत्पादन क्षमता 25 क्विंटल प्रति हैक्टेयर है |

RSC 10-46 (2021)

पश्चिमी बंगाल, उड़ीसा, असम, सिक्किम, अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड, त्रिपुरा, मेघालय, झारखण्ड, पूर्वी बिहार

यह प्रजाति 98 से 103 दिनों में पककर तैयार हो जाती है | इस प्रजाति की उत्पादन क्षमता 25 क्विंटल प्रति हैक्टेयर है |

AMS 2014-1 (2021)

पश्चिमी बंगाल, उड़ीसा, असम, सिक्किम, अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड, त्रिपुरा, मेघालय, झारखण्ड, पूर्वी बिहार

यह प्रजाति 100 से 105 दिनों में पककर तैयार हो जाती है | इस प्रजाति की उत्पादन क्षमता 24 से 32 क्विंटल प्रति हैक्टेयर है |

JS 20-116 (2019)

पश्चिमी बंगाल, उड़ीसा, असम, सिक्किम, अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड, त्रिपुरा, मेघालय, झारखण्ड, पूर्वी बिहार

यह प्रजाति 95 से 106 दिनों में पककर तैयार हो जाती है | इस प्रजाति की उत्पादन क्षमता 25 क्विंटल प्रति हैक्टेयर है |

RKS 113 (2018)

असम, पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़, उत्तर पूर्वी राज्य

यह प्रजाति 100 से 102 दिनों में पककर तैयार हो जाती है | इस प्रजाति की उत्पादन क्षमता 19 क्विंटल प्रति हैक्टेयर है |

KS 103 (2018)

महाराष्ट्रा, आँध्रप्रदेश, तेलंगाना, तमिलनाडु, कर्नाटका

यह प्रजाति 89 से 94 दिनों में पककर तैयार हो जाती है | इस प्रजाति की उत्पादन क्षमता 30 क्विंटल प्रति हैक्टेयर है |

CGSOYA 1 (2018)

छत्तीसगढ़

 

यह प्रजाति 95 से 100  दिनों में पककर तैयार हो जाती है | इस प्रजाति की उत्पादन क्षमता 28 क्विंटल प्रति हैक्टेयर है |

JS 97-52 (2008)

मध्य एवं उत्तर पूर्वी राज्य

यह प्रजाति 99 से 109 दिनों में पककर तैयार हो जाती है | इस प्रजाति की उत्पादन क्षमता 25 क्विंटल प्रति हैक्टेयर है |

RKS 18 (2007)

यह प्रजाति 95 से 100 दिनों में पककर तैयार हो जाती है | इस प्रजाति की उत्पादन क्षमता 26 क्विंटल प्रति हैक्टेयर है |

RAUS 5 (2007)

छत्तीसगढ़,

यह प्रजाति 96 से 104  दिनों में पककर तैयार हो जाती है | इस प्रजाति की उत्पादन क्षमता 25 क्विंटल प्रति हैक्टेयर है |

MACS 1520 (2021)

मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, गुजरात, बुंदेलखंड, उत्तर-पश्चिमी महाराष्ट्र

यह प्रजाति 98 से 102 दिनों में पककर तैयार हो जाती है | इस प्रजाति की उत्पादन क्षमता 29 क्विंटल प्रति हैक्टेयर है |

NRC 130 (2021)

मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, गुजरात, बुंदेलखंड, उत्तर-पश्चिमी महाराष्ट्र

यह प्रजाति 92 दिनों में पककर तैयार हो जाती है | इस प्रजाति की उत्पादन क्षमता 30 क्विंटल प्रति हैक्टेयर है |

RSC 10-52 (2021)

मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, गुजरात, बुंदेलखंड, उत्तर-पश्चिमी महाराष्ट्र

यह प्रजाति 99 से 103 दिनों में पककर तैयार हो जाती है | इस प्रजाति की उत्पादन क्षमता 26 क्विंटल प्रति हैक्टेयर है |

AMS-MB-5-18 (2021)

मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, गुजरात, बुंदेलखंड, उत्तर-पश्चिमी महाराष्ट्र

यह प्रजाति 98 से 102 दिनों में पककर तैयार हो जाती है | इस प्रजाति की उत्पादन क्षमता 25 क्विंटल प्रति हैक्टेयर है |

JS 20-94 (2019)

मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, गुजरात, बुंदेलखंड, उत्तर-पश्चिमी महाराष्ट्र

यह प्रजाति 98 से 100 दिनों में पककर तैयार हो जाती है | इस प्रजाति की उत्पादन क्षमता 27 क्विंटल प्रति हैक्टेयर है |

JS 20-98 (2018)

यह प्रजाति 96 से 101 दिनों में पककर तैयार हो जाती है | इस प्रजाति की उत्पादन क्षमता 23 क्विंटल प्रति हैक्टेयर है |

NRC 127 (2018)

यह प्रजाति 100 से 104 दिनों में पककर तैयार हो जाती है | इस प्रजाति की उत्पादन क्षमता 22 क्विंटल प्रति हैक्टेयर है |

RVS 2002-4 (2017)

यह प्रजाति 92 से 97 दिनों में पककर तैयार हो जाती है | इस प्रजाति की उत्पादन क्षमता 22 क्विंटल प्रति हैक्टेयर है |

RVS-18 (2007)

मध्य प्रदेश

यह प्रजाति 92 से 97 दिनों में पककर तैयार हो जाती है | इस प्रजाति की उत्पादन क्षमता 24 क्विंटल प्रति हैक्टेयर है |

JS 20-69

मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, गुजरात, बुंदेलखंड, उत्तर-पश्चिमी महाराष्ट्र

यह प्रजाति 91 से 97 दिनों में पककर तैयार हो जाती है | इस प्रजाति की उत्पादन क्षमता 23 क्विंटल प्रति हैक्टेयर है |

NRC-86 (2015)

मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, गुजरात, बुंदेलखंड, उत्तर-पश्चिमी महाराष्ट्र

यह प्रजाति 95 से 100  दिनों में पककर तैयार हो जाती है | इस प्रजाति की उत्पादन क्षमता 24 क्विंटल प्रति हैक्टेयर है |

JS 20-34 (2014)

मध्यप्रदेश, महाराष्ट्रा, राजस्थान, उत्तरप्रदेश

यह प्रजाति 86 से 88 दिनों में पककर तैयार हो जाती है | इस प्रजाति की उत्पादन क्षमता 22 क्विंटल प्रति हैक्टेयर है |

JS 20 – 29 (2014)

मध्यप्रदेश, महाराष्ट्रा, राजस्थान, उत्तरप्रदेश

यह प्रजाति 93 से 96 दिनों में पककर तैयार हो जाती है | इस प्रजाति की उत्पादन क्षमता 24 क्विंटल प्रति हैक्टेयर है |

RVS 2001-4 (2014) (राज विजय सोयाबीन)

मध्यप्रदेश

 

यह प्रजाति 101 से 105 दिनों में पककर तैयार हो जाती है | इस प्रजाति की उत्पादन क्षमता 28 क्विंटल प्रति हैक्टेयर है |

RKS 45 (2013)

राजस्थान

यह प्रजाति 98 से 100 दिनों में पककर तैयार हो जाती है | इस प्रजाति की उत्पादन क्षमता 28 क्विंटल प्रति हैक्टेयर है |

RKS 24 (2011)

राजस्थान

यह प्रजाति 95 से 98 दिनों में पककर तैयार हो जाती है | इस प्रजाति की उत्पादन क्षमता 35 क्विंटल प्रति हैक्टेयर है |

JS 97–52 (2008)

मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, गुजरात, बुंदेलखंड, उत्तर-पश्चिमी महाराष्ट्र

यह प्रजाति 100 से 106 दिनों में पककर तैयार हो जाती है | इस प्रजाति की उत्पादन क्षमता 25 क्विंटल प्रति हैक्टेयर है |

JS 95-60 (2007)

मध्यप्रदेश, गुजरात, बुंदेलखंड, उत्तर-पश्चिमी महाराष्ट्र

यह प्रजाति 85 से 89 दिनों में पककर तैयार हो जाती है | इस प्रजाति की उत्पादन क्षमता 23 क्विंटल प्रति हैक्टेयर है |

JS 93-05 (2021)

मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, गुजरात, बुंदेलखंड, उत्तर-पश्चिमी महाराष्ट्र

यह प्रजाति 90 – 96 दिनों में पककर तैयार हो जाती है | इस प्रजाति की उत्पादन क्षमता 24 क्विंटल प्रति हैक्टेयर है |

NRC 37 (2001) अहिल्या 4

मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान,

यह प्रजाति 99 से 105 दिनों में पककर तैयार हो जाती है | इस प्रजाति की उत्पादन क्षमता 30 क्विंटल प्रति हैक्टेयर है |

JS 335 (1994)

मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान

यह प्रजाति 96 से 102 दिनों में पककर तैयार हो जाती है | इस प्रजाति की उत्पादन क्षमता 30 क्विंटल प्रति हैक्टेयर है |

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किस्मों का चयन कैसे करें

किसान अपने राज्य एवं अपने क्षेत्र की जलवायु के अनुसार ही फसलों की किस्मों का चयन करें | चयन करते समय अपने क्षेत्र के कृषि वैज्ञानिकों एवं कृषि अधिकारीयों से सलाह एवं खेती की पूरी जानकारी अवश्य लें, जिससे किस्म, मिट्टी की गुणवत्ता एवं जलवायु के अनुसार समय पर खाद (उर्वरक) एवं सिंचाई की व्यवस्था कर सकें |

सोयाबीन उत्पादन में स्थिरता लाने एवं प्रतिकूल परिस्थिति के कारण होने वाली हानि को कम करने के लिए किस्मों की विविधता प्रणाली को अपनाना चाहिए अर्थात हमेशा 3-4 किस्मों की खेती करनी चाहिए | इससे फलियों के चटकने से होने वाले नुकसान से बचा जा सकता है | साथ ही कीट-रोगों के नियंत्रण एवं कटाई-गहाई की पर्याप्त सुविधा के साथ-साथ किस्मों का अधिकाधिक उत्पादन प्राप्त होता है |

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