इस मौसम में धान की फसल में कई तरह के कीट एवं रोग लगने की संभावना रहती है, इसमें झुलसा (Blast) रोग प्रमुख है। कृषि विज्ञान केंद्र सुकमा द्वारा धान मे लगने वाला झुलसा रोग के बारे में किसानों को जानकारी दी गई है। उन्होंने बताया कि यह कवक जनित रोग है जो धान में पौध अवस्था से लेकर बाली बनने तक की अवस्था तक कभी भी हो सकता है। इसके लक्षण पत्तियों, तने की गाठें और धान की बाली पर प्रमुख रूप से दिखाई देते हैं।
रोग की प्रारंभिक अवस्था में निचली पत्तियों पर हल्के बैंगनी रंग के छोटे-छोटे धब्बे बनते है, जो धीरे-धीरे बढ़कर आंख के समान बीच मे चौडे़ व किनारों पर संकरे हो जाते हैं जो बढ़कर नाव के आकार का हो जाता है जिसे पत्ति ब्लास्ट कहते है आगे चलकर यह रोग का आक्रमण तने की गाठों पर होता है जिससे गाठों पर काले घाव दिखाई देते हैं रोग से ग्रसित गठान टूट जाती है जिसे नोड ब्लास्ट कहते है धान मे जब बालियां निकलती है उस समय प्रकोप होने पर धान की बाली पर सड़न पैदा हो जाती है और हवा चलने से बालियां टूट कर गिर जाती है। जिसे पेनिकल झुलसा रोग कहते है इसके नियंत्रण के लिए किसानों को निम्न उपाय अपनाना चाहिए।
झुलसा रोग प्रबंधन के उपाय
खेतों को खरपतवार मुक्त रखें व पुराने फसल के अवशेष को नष्ट कर दे। प्रमाणित बीजों का चयन करें। समय पर बुवाई करें व रोग प्रतिरोधी किस्म का चयन करें। जुलाई के प्रथम सप्ताह मे रोपाई पूरी कर लें, देर से रोपाई करने पर झुलसा रोग लगने का प्रकोप बढ़ जाता है।
बीज उपचार करने के लिए जैविक कवकनाशी ट्राइकोडर्मा विरीडी 4 ग्राम प्रति कि.ग्रा.बीज या स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस 10 ग्राम प्रति कि.ग्रा. बीज दर से उपचारित करें या रासायनिक फफूँद नाशक कार्बेन्डाजिम 2 ग्राम प्रति कि.ग्रा.बीज की दर से उपचारित करें। संतुलित मात्रा में पोषक तत्वों का उपयोग करें। झुलसा रोग के प्रकोप की स्थिति मे यूरिया का प्रयोग नहीं करना चाहिए। कल्ले व बाली निकलते समय खेत मे नमी बनाए रखें।
झुलसा रोग का रासायनिक नियंत्रण
रोग के प्रारम्भिक लक्षण दिखने पर ट्राईफ्लॉक्सी स्ट्रोबिन 25 प्रतिशत, टेबूकोनाजोल 50 प्रतिशत डब्ल्यूजी 80-100 ग्राम प्रति एकड़ या ट्राईसाइक्लाजोल 75 प्रतिशत डबल्यूपी 100-120 ग्राम प्रति एकड़ या आइसोप्रोथियोलेन 40 प्रतिशत ईसी. 250-300 मिली प्रति एकड़ की दर से आवश्यकतानुसार प्रभावित फसलों पर छिड़काव करें।