काली हल्दी (Black Turmeric) की खेती
देश में किसानों की आय बढ़ाने के लिए परम्परागत फसलों के अलावा उद्यानिकी एवं औषधीय फसलों की खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है। देश में अभी औषधीय फसलों की पैदावार कम होने एवं माँग अधिक होने के चलते किसानों को औषधीय फसलों के भाव अच्छे मिल जाते हैं, जिससे किसानों की आय में वृद्धि की जा सकती है। आज हम आपको एक ऐसी ही औषधीय फसल काली हल्दी Black Turmeric के बारे में जानकारी देंगे जो देश विदेश में अपने चमत्कारिक गुणों के चलते काफी मशहूर है।
काली हल्दी के उपयोग
मुख्यतः काली हल्दी का उपयोग सौन्दर्य प्रसाधन व रोग नाशक दोनों ही रूपों में किया जाता है। काली हल्दी मजबूत एंटीबायोटिक गुणों के साथ चिकित्सा में जड़ी-बूटी के रूप में प्रयोग की जाती है। तंत्रशास्त्र में काली हल्दी का प्रयोग वशीकरण, धन प्राप्ति और अन्य कार्यों के लिए किया जाता है। काली हल्दी का प्रयोग घाव, मोच, त्वचा रोग, पाचन तथा लीवर की समस्याओं के निराकरण के लिए किया जाता है। यह कोलेस्ट्रॉल को कम करने में मदद करती है। काली हल्दी वानस्पतिक भाषा में करक्यूमा केसिया और अंग्रेजी में ब्लैक जेडोरी के नाम से जानी जाती है |
कन्द और पौधों की पहचान
काली हल्दी के कंद या राईजोम बेलनाकार गहरे रंग के सूखने पर कठोर क्रिस्टल बनाते हैं। राइजोम का रंग कालिमायुक्त होता है। इसका पौधा तना रहित शाकीय व 30 से 60 से.मी. ऊँचा होता है। पत्तियां चौड़ी भालाकार ऊपर सतह पर नीले बैंगनी रंग की मध्य शिरायुक्त होती है। पुष्प गुलाबी किनारे की ओर सहपत्र लिये होते हैं |
खेती के लिए आवश्यक जलवायु एवं भूमि
काली हल्दी की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु उष्ण होती है एवं तापमान 15 से 40 डिग्री सेन्टीग्रेट उचित माना गया है। उसके पौधे पाले को भी सहन कर लेते हैं और विपरीत मौसम में भी अपना अनुकूलन बनाये रखते हैं | यह बलुई, दोमट, मटियार, मध्यम पानी पकड़ने वाली जमीन में अच्छे से उगाई जा सकती है। चिकनी काली, मरूम मिश्रित मिट्टी में कंद बढ़ते नहीं है। मिट्टी में भरपूर जीवाश्म होना चाहिए। जल भराव या कम उपजाऊ भूमि में इसकी खेती नहीं की जा सकती है। इसकी खेती के लिए भूमि का पी.एच. 5 से 7 के बीच होना चाहिए।
काली हल्दी के लिए खेती की तैयारी
खेती की मिट्टी पलटने वाले हल से गहरी जुताई करें, उसके बाद खेत को सूर्य की धुप लगने के लिए कुछ दिनों तक खुला छोड़ दें। उसके बाद खेत में उचित मात्रा में पुरानी गोबर की खाद डालकर उसे अच्छे से मिट्टी में मिला लें। खाद को मिट्टी में मिलाने के लिए खेत की दो से तीन बाद तिरछी जुताई कर दें। जुताई के बाद खेत में पानी चलाकर उसका पलेवा कर दें। पलेवा करने के बाद जब खेत की मिट्टी ऊपर से सुखी दिखाई देने लगे तब खेत की फिर से जुताई कर उसमें रोटावेटर चलाकर मिट्टी को भुरभुरी बना लेना चाहिए। इसके बाद खेत को समतल कर दें |
बुआई के लिए उचित समय
वर्षा ऋतु में इसकी बुआई जून–जुलाई माह में की जा सकती है। सिंचाई का साधन होने पर इसे मई माह में भी लगाया जा सकता है |
बीज की मात्रा एवं बीजोपचार
इसकी खेती के लिए लगभग 20 क्विंटल कंद मात्रा प्रति हेक्टेयर लगती है। इसके कन्दों को रोपाई से पहले बाविस्टिन की उचित मात्रा से उपचारित कर लेना चाहिए। बाविस्टिन के 2 प्रतिशत घोल में कंद 15 से 20 मिनट तक डुबोकर रखना चाहिए क्योंकि इसकी खेती में बीज पर ही अधिक व्यय होता है।
रोपाई
इसके कन्दों की रोपाई कतारों में की जाती है। प्रत्येक कतार की बीच डेढ़ से दो फीट की दुरी होना चाहिए। कतारों में लगाये जाने वाले कन्दों के बीच की दुरी 20 से 25 से.मी. के आस–पास होनी चाहिए। कन्दों की रोपाई जमीन में 7 से.मी. गहराई में करना चाहिए। पौध के रूप में इसकी रोपाई मेढ़ के बीच एक से सबा फीट की दुरी होनी चाहिए| मेढ़ पर पौधों के बीच की दुरी 25 से 30 से.मी. होनी चाहिए। प्रत्येक मेढ़ की चौडाई आधा फीट के आस–पास रखनी चाहिए।
पौध तैयार करना
काली हल्दी की रोपाई इसकी पौध तैयार करके भी की जा सकती है। इसके पौध तैयार करने के लिए इसके कन्दों की रोपाई ट्रे या पाँलीथिन में मिट्टी भरकर की जाती है। इसके कन्दों की रोपाई से पहले बाविस्टिन की उचित मात्रा से उपचारित कर लेना चाहिए। खेत में रोपाई बारिश के मौसम में शुरुआत में की जाती है |
सिंचाई
काली जल्दी के पौधों को ज्यादा सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है | इसके कन्दों की रोपाई नमी युक्त भूमि में की जाती है| इसके कंद या पौध रोपाई के तुरंत बाद उनकी सिंचाई कर देनी चाहिए। हल्के गर्म मौसम में इसके पौधों को 10 से 12 दिन के अंतराल में पानी देना चाहिए। जबकि सर्दी के मौसम में 15 से 20 दिन के अंतर पर सिंचाई करना चाहिए।
खाद उर्वरक
खेत की तैयारी के समय आवश्यकतानुसार पुरानी गोबर की खाद मिट्टी में मिलाकर पौधों को देना चाहिए। प्रति एकड़ 10 से 12 टन सड़ी हुई गोबर खाद मिलाना चाहिए। घर पर तैयार किये गये जीवामृत को पौधों की सिंचाई के साथ देना चाहिए।
खरपतवार नियंत्रण
पौधों की रोपाई के 25 से 30 दिन बाद हल्की निंदाई गुडाई करें। खरपतवार नियंत्रण के लिए 3 गुड़ाई काफी है। प्रत्येक गुडाई 20 दिन के अंतराल पर करें। रोपाई के 50 दिन बाद गुडाई बंद कर देना चाहिए नहीं तो कन्दों को नुकसान होता है।
मिट्टी चढ़ाना
रोपाई के 2 माह बाद पौधों की जड़ों में मिट्टी चढ़ा देना चाहिए | हर एक से 2 माह बाद मिट्टी चढ़ाना चाहिए |
कीट नियंत्रण
कीटों की रोकथाम के लिए जैविक कीटनाशक का छिड़काव कर सकते हैं |
कन्दों की खुदाई इसकी फसल रोपाई का ढाई सौ दिन बाद कटाई के लिए तैयार हो जाती है | कन्दों की खुदाई जनवरी मार्च तक की जाती है |
पैदावार
इसकी पैदावार दो से ढाई किलो प्रति पौधा होना अनुमानित है। एक हेक्टेयर में 1100 पौधे लगते हैं। जिनसे 48 टन पैदावार होती है | प्रति एकड़ लगभग 12 से 15 टन पैदावार होती है जो सूखकर 1 से 1.5 रह जाती है।
नोट: भारत सरकार द्वारा काली हल्दी को विलुप्त प्राय औषधियों की सूची में रखा गया है। अतः इसकी खेती करने के पूर्व वन विभाग को किसान भाई सूचित करें।
काली हल्दी की अधिक जानकारी के लिए यहाँ सम्पर्क करें
इच्छुक किसान भाई जो काली हल्दी की खेती करना चाहते हैं वह किसान अधिक जानकारी एवं मार्गदर्शन के लिए श्री राजेश कुमार मिश्रा (सेवानिवृत उद्यानिकी विभाग अधिकारी) से उनके मोबाइल नम्बर 8305534592 पर या ई-मेल [email protected] पर मेल करें।