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शुक्रवार, अप्रैल 19, 2024
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किसान अधिक पैदावार के लिए इस तरह करें हल्दी की खेती

हल्दी की खेती Turmeric Farming

हमारे दैनिक जीवन में हल्दी का महत्वपूर्ण स्थान है। हल्दी मसाले वाली फसल है, इसका उपयोग हमारे देश में अनेक रूपों में किया जाता है। औषधीय गुण होने के कारण इसका उपयोग आयुर्वेदिक दवाओं में, पेट दर्द व ऐंटिसेप्टिक व चर्म रोगों के उपचार में किया जाता है। यह रक्त शोधक होती है। कच्ची हल्दी चोट सूजन को ठीक करने का काम भी करती है। जीवाणु नाशक गुण होने के कारण इसके रस का उपयोग सौंदर्य प्रसाधन में किया जाता है। प्राकृतिक एवं खाद्य रंग बनाने में भी हल्दी का उपयोग होता है।

हल्दी का इतना अधिक उपयोग होने के कारण इसकी बाजार माँग भी अधिक है जिससे किसानों को इसके अच्छे भाव मिलने की सम्भावना अधिक होती है। भारत में हल्दी की खेती प्राचीन काल से ही की जा रही है। किसान इसकी खेती कम खर्च में करके अधिक आय प्राप्त कर सकते हैं। विश्व में हल्दी के उत्पादन में भारत का मुख्य स्थान है जिसके कारण इसका निर्यात भी किया जाता है। पूरे विश्व में हल्दी उत्पादन का 60 प्रतिशत हिस्सा भारत में पैदा होता है। देश के सभी राज्यों में इसकी खेती होती है, दक्षिण भारत और उड़ीसा में इसका उत्पादन मुख्य रूप से होता है। आइए जानते हैं किसान किस प्रकार कम लागत में हल्दी की अधिक पैदावार प्राप्त कर सकते हैं।

उपयुक्त भूमि एवं तैयारी 

हल्दी की खेती के लिए रेतीली और दोमट भूमि अधिक उपयुक्त होती है। इसे बगीचे में व अर्ध छायादार स्थानों में भी लगाया जा सकता है। भूमि अच्छी जल निकासी वाली होना चाहिए, भारी भूमि में पानी का निकास ठीक ढंग से न होने पर हल्दी की गाँठों का फैलाव ठीक प्रकार से नहीं हो पाता है। इसके कारण गाठें या तो चपटी हो जाती है या फिर सड़ जाती हैं।

इसकी खेती मुख्यतः गर्म तथा नम जलवायु युक्त उष्ण स्थानों में होती है। खेत की तैयारी हेतु रबी की फसल लेने के बाद मिट्टी पलटने वाले हल से दो जुताई करके फिर देसी हल से तीन-चार जुताई करें व भूमि को समतल करें।

हल्दी की उन्नत विकसित क़िस्में

देश में स्थित विभिन्न अनुसंधान केंद्रों के द्वारा कई अधिक उपज देने वाली रोग-रोधी क़िस्में विकसित की गई है, जिनमें रोमा, सुरमा, रंगा, रश्मि, पीतांबरा, कोयम्बटूर, सुवर्णा, सुगना, शिलांग, कृष्णा, गुन्टूर एवं मेघा आदि क़िस्में प्रमुख हैं।

बुआई के लिए उपयुक्त समय व बीज की मात्रा

हल्दी की बुआई 15 मई से जुलाई के प्रथम सप्ताह तक की जा सकती है। यदि सिंचाई की समुचित व्यवस्था ना हो तो मानसून प्रारम्भ होने पर बुआई करें। सिंचाई की पर्याप्त सुविधा उपलब्ध होने पर हल्दी की बुआई अप्रैल, मई माह में करना लाभ दायक होता है। प्रति हेक्टेयर बुआई के लिए कम से कम 2500 किलोग्राम प्रकंदो की आवश्यकता होती है। किसान बुआई से पहले हल्दी के कंदो को बोरे में लपेट कर रखें जिससे अंकुरण आसानी से होता है।

हल्दी की खेती के लिए कंद का चयन

बीज की बुआई के लिए मात्र कंद एवं बाजू कंद दोनों प्रकार के प्रकंद का उपयोग किया जा सकता है। जिसमें मात्र कंद लागने से अधिक पैदावार प्राप्त होती है। यह ध्यान रहे की प्रत्येक प्रकंद पर दो या तीन आँखे अवश्य होनी चाहिए। बोने से पहले कंदो को 0.25 प्रतिशत एगालाल घोल में 30 मिनट तक उपचारित करें। हल्दी की बुआई समतल चार बाई तीन मीटर आकार की क्यारियों में मेड़ों पर करना चाहिए। लाइन से लाइन की दूरी 45 से.मी. व पौधों से पौधों की दूरी 25 से.मी. रखें। रेतीली भूमि में बुआई 7 से 10 से.मी. ऊँची मेड़ों पर करें। 

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हल्दी फसल में खाद एवं उर्वरक की आवश्यकता

लम्बे समय की फसल होने के कारण इसको अन्य फसलों की अपेक्षा अधिक खाद एवं उर्वरक की आवश्यकता होती है। 20 या 25 टन गोबर खाद 100 किलो नाइट्रोजन, 50 किलो फ़ासफ़ोरस एवं 50 किलो पोटाश खाद प्रति हेक्टेयर की दर से देना चाहिए। गोबर की खाद किसान भूमि की तैयारी के समय मिला दें। फ़ास्फोरस की पूरी मात्रा नाइट्रोजन एवं पोटाश की एक तिहाई मात्रा को बुआई के समय देना चाहिए। शेष नाइट्रोजन एवं पोटाश को दो बराबर हिस्सों में बाँटकर अंकुरण के 30 एवं 60 दिनों बाद देना चाहिए।

फसल अवधि 

हल्दी की फसल 7 से 9 माह में तैयार हो जाती है। अतः इसे समय अनुसार समुचित सिंचाई की आवश्यकता पड़ती है। अगेती फसल एवं मानसून की अनिश्चितता के समय सिंचाई का विशेष ध्यान रखना चाहिए। खेतों में दरारें पड़ने के पूर्व सिंचाई शाम के समय करना चाहिए, वर्षा ख़त्म होने पर 15 दिन के अंतराल पर सिंचाई करना चाहिए। खुदाई करने के एक सप्ताह पूर्व सिंचाई बंद कर देना चाहिए। वर्षा प्रारंभ होने के पूर्व 6-7 दिनों के अंतर से सिंचाई करना चाहिए। यह ध्यान रखें कि प्रकंद निर्माण के समय भूमि में नमी की कमी नहीं होना चाहिए।

निंदाई-गुड़ाई

हल्दी में निंदाई-गुड़ाई का विशेष महत्व है, बुआई के बाद 3 से 4 माह तक प्रायः हर माह निंदाई-गुड़ाई करना तथा मिट्टी चढ़ाना आवश्यक है। पौधे पर प्रथम बार 45-50 दिन बाद दूसरी बार 75 से 80 दिन बाद मिट्टी चढ़ाना चाहिए। बुआई के बाद 40 से 45 दिन तक का समय फसल की क्रांतिक अवस्था माना गया है अर्थात् इस अवधि में खेत में खरपतवार नहीं रहना चाहिए, जिससे पौधों की वानस्पतिक वृद्धि हो सके।

फसल चक्र

हल्दी की सफल खेती के लिए फसल चक्र अपनाना आवश्यक है, एक ही खेत में लगातार हल्दी फसल न लें क्योंकि यह फसल भूमि से अपेक्षाकृत अधिक पोषक तत्वों का शोषण करती है। आलू मिर्च आदि फसलों के साथ फसल चक्र अपनाएँ भूमि का सही उपयोग करने के लिए इसे आम, अमरूद एवं नींबू आदि के बगीचों में लगाकर अच्छा उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं। 

हल्दी में कीट एवं रोग

हल्दी में कीट व्यधियों एवं रोगों का प्रकोप कम होता है। थ्रिप्स कीट पत्तियों से रस चूसकर एवं छेदक कीट तने एवं कंद में छेद कर नुकसान पहुँचाते हैं इन कीटों के नियंत्रण के लिए फ़ास्फोमिडान 0.05 प्रतिशत का छिड़काव करें। कंद मक्खी का प्रकोप अक्टूबर से कंद खुदाई तक पाया जाता है। इसके नियंत्रण के लिए फ़्यूराडॉन या फ़ोरेट 25 से 30 किलो प्रति हेक्टेयर को पौधों के 10 से 15 से.मी. दूर भूमि में 5 से 6 से.मी. गहराई में डाले। 

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पत्ती धब्बा रोग फफूँदी जनित रोग है, यह रोग अगस्त-सितम्बर माह में जब लगातार नमी का वातावरण रहता है तब फैलता है। इस रोग के कारण पत्तियों पर 4-5 सेमी लम्बे और 2-3 सेमी चौड़े भूरे सफ़ेद धब्बे पड़ जाते हैं। रोग की अधिकता से पत्तियाँ सूख जाती है और पौधों की वृद्धि पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, इस रोग की रोकथाम के लिए बोर्डों मिश्रण एक प्रतिशत का छिड़काव करें, या कसी भी तांबा युक्त फफूँद नाशक दावा का (2.5 ग्राम/ लीटर पानी) का छिड़काव करें। 

किस्मों से प्राप्त उपज

अनुसंधान के बाद यह देखा गया है की मेड़ों पर उगाने से हल्दी की पैदावार अधिक होती है। बगीचों में फलों के वृक्षों के बीच में हल्दी की बुआई की जा सकती है। बुआई करने के तुरंत बाद फसल के पत्तों से क्यारियों एवं मेड़ों को ढक देना चाहिए, जिससे गर्मी में नमी का संरक्षण बना रहे एवं खेत में दरारें न पड़ सके। अखिल भारतीय मसाला अनुसंधान परियोजना पोटांगी (उड़ीसा) द्वारा विसकित जातियाँ रोमा, सुरमा, रंगा एवं रश्मि अधिक उत्पादन देने वाली जातियाँ हैं, ये क़िस्में 240-255 दिनों में पककर तैयार हो जाती है, जिनसे औसतन 20-30 टन प्रति हेक्टेयर तक पैदावार प्राप्त होती है। इसके अलावा पीतांबरा, कोयम्बटूर, सुवर्णा, सुगना, शिलांग आदि जातियों का भी चुनाव किया जा सकता है।

हल्दी फसल बुआई के लगभग 7 से 9 माह में पककर तैयार हो जाती है। जब पौधों की पत्तियाँ पीली पड़ कर सूखने लगे तब फसल खुदाई योग्य समझना चाहिए। इसकी उन्नत जातियों से 37 से 44 टन प्रति हेक्टेयर तक उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है। 

हल्दी का संसाधन करने के लिए अच्छी तरह प्रकंदो को साफ कर रात भर पानी में भिगोने के बाद पानी से साफ कर लें। इसके बाद ब्लीचिंग करने हेतु मिट्टी या धातु के बर्तन में साफ़ पानी भरकर हल्दी को तब तक उबालें जब तक सफ़ेद झाग जैसा पदार्थ तथा विशेष गंध युक्त धुआँ ना निकलने लगें। इस प्रकार ब्लीचिंग करने से हल्दी मुलायम हो जाती है, उबले हुए प्रकंदों को 10 से 12 दिन भली भाँति सूखा लें। सुखाने के बाद प्रकंद को खुदरी सतह पर रगड़ें, यह कार्य पैरों में बोरे या कपड़े का टुकड़ा लपेट कर या पालिशर का उपयोग कर किया जा सकता है। पॉलिशिंग करते समय बीच-बीच में पानी का छिड़काव करने से हल्दी का रंग अच्छा होता जाता है।

हल्दी की अधिक जानकारी के लिए यहाँ सम्पर्क करें 

इच्छुक किसान भाई जो हल्दी की खेती करना चाहते हैं वह किसान अधिक जानकारी एवं मार्गदर्शन के लिए श्री राजेश कुमार मिश्रा (सेवानिवृत उद्यानिकी विभाग अधिकारी) से उनके मोबाइल नम्बर 8305534592 पर या ई-मेल [email protected] पर मेल कर सकते हैं।

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