Home विशेषज्ञ सलाह किसान अधिक पैदावार के लिए इस तरह करें सुगंधित कतरनी धान की...

किसान अधिक पैदावार के लिए इस तरह करें सुगंधित कतरनी धान की खेती

katarni dhan ki kheti

कतरनी धान की खेती

देश में खरीफ सीजन में धान एक प्रमुख फसल है, देश भर में अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग धान की प्रजाति की खेती की जाती है | ऐसे ही कतरनी धान का उत्पादन बिहार तथा उत्तर प्रदेश के विभिन्न जिलों में किया जाता है | यह सुगंध, स्वाद के लिए विश्व में प्रसिद्ध है | इस धान में विशेष सुगंध एवं स्वाद एक विशेष क्षेत्र में उगाने पर ही आती है | सुगंध और स्वाद के कारण बाजार में मांग इसकी ज्यादा है | इस धान की मांग अधिक रहने के कारण किसान को मुनाफा भी अच्छा होता है | किसान समाधान कतरनी धान की वैज्ञानिक खेती की जानकारी लेकर आया है |

कतरनी धान की खेती के लिए जलवायु,बीजदर और बीजोपचार

धान की इस किस्म की बुआई के लिए 15 से 25 जुलाई का समय उपयुक्त होता है | इसके पौधे में फुल आने पर परागण के लिए 16–20 तथा पकने के समय 18 से 32 डिग्री सेल्सियस तापमान के साथ 8–10 घंटे धुप की आवश्यकता होती है | कतरनी धान की बुआई के लिए 15 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर बीज पर्याप्त होता है |

बीजोपचार

बीज का बुआई से पहले कार्बेन्डाजिम 2–3 ग्राम प्रति किलोग्राम और ट्राईकोडर्मा 7.5 ग्राम प्रति किलोग्राम के साथ पी.एस.बी. 6 ग्राम और एजेटोबेक्टर 6 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज दर से बीजोपचार करना चाहिए | इसके बाद बीज को छाया में पक्के फर्श पर जुत के गिले बोर से लगभग 72 घंटे तक ढक दें | उसके बाद अंकुरित बीजों की नर्सरी में बुआई करनी चाहिए |

नर्सरी प्रबन्धन

नर्सरी में जैविक खाद तथा ऊँची क्यारी विधि द्वारा इसे तैयार करना लाभदायक रहता है | एक हैक्टेयर भूमि में रोपनी हेतु 15 किलोग्राम बीज और 1000 वर्ग मीटर क्षेत्र की आवश्यकता होती है | नर्सरी में बीज बुआई का घनत्व 15 – 20 ग्राम बीज प्रति वर्गमीटर की दर से डालना चाहिए |

खेत की तैयारी और रोपाई

रोपाई के लिए अच्छी तरह खेत में कीचड़ बनाकर 20–22 दिनों की आयु के बिचड़ा (पौद) का रोपाई के लिए प्रयोग करना चाहिए | खेत में बिचड़ा की रोपाई पंक्ति से पंक्ति की दुरी 20 से.मी. और पौधों से पौधों की दुरी 15 से.मी. पर 1 या 2 बिचड़ा पंक्ति में रोपना चाहिए |

खाद एवं उर्वरक प्रबंधन

कतरनी धान उत्पादन में कार्बनिक एवं जैविक खाद का प्रयोग आवश्यक होता है | हरी खाद में ढैंचा का प्रयोग मृदा की उर्वराशक्ति बनाए रखने के लिए बहुत फायदेमंद होता है | ढैंचा के बीज की जून में 25 – 30 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर की दर से छिडकाव विधि द्वारा बुआई कर लगभग 50 दिनों की फसल को मृदा में जुताई करके दबा दें | हरी खाद दबाने के 10 दिनों के बाद रोपाई करनी चाहिए |

पोषक तत्वों की अनुशंसित मात्रा नाईट्रोजन 40, फास्फोरस 30 एवं पोटाश 20 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर के अनुपात के साथ ही जिंक सल्फेट 25 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर का प्रयोग करना चाहिए | नाईट्रोजन की एक तिहाई मात्रा तथा फास्फोरस, पोटाश और जिंक की पूरी मात्रा खेत में कीचड़ करते समय तथा शेष मात्रा को दो भागों में बांटकर कला एवं गाभा आने के समय प्रयोग करना चाहिए |

सिंचाई प्रबन्धन

धान के अच्छे विकास और पैदावार के लिए खेत में लगातार पानी के भरे रहने की जरूरत नहीं होती है | बारी–बारी से सिंचाई करना व खेत को हल्का सूखने देने से कल्ले ज्यादा निकलते है |

खरपतवार नियंत्रण

इसके लिए रोपाई के दुसरे तथा छठे सप्ताह में निराई करनी चाहिए | यांत्रिक विधि से निराई के लिए कोनोवीडर का प्रयोग तथा रासायनिक विधि के लिए ब्यूटाक्लोरा 50 ई.सी. या प्रेटीलाक्लोर 50 ई.सी. 2.5 से 3 लीटर के 700 – 800 लीटर पानी में बने घोल का प्रति हैक्टेयर रोपाई के 2 से 4 दिनों के अंदर छिड़काव करना चाहिए | छिडकाव करते समय खेत में 1–2 से.मी. पानी रखना अत्यंत आवश्यक है | इसके बाद रोपाई के 3 से 4 सप्ताह बाद बिस्पाइरिबेक सोडियम 10 प्रतिशत की 20 से 25 ग्राम सक्रिय मात्रा का 500 – 600 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रति हैक्टेयर छिड्काव करने से खरपतवार को कम किया जा सकता है |

कतरनी धान में रोग एवं कीट नियंत्रण

मुख्य रूप से पीला तनाछेदक और गंधीबग कीट का प्रकोप अधिक होता है | पीला तनाछेदक का नियंत्रण करने के लिए कार्टप हाइड्रोक्लोराइड 10 जी. 25 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर रोपनी के 3 सप्ताह के बाद खेत में डालना चाहिए | फिर 20 दिनों बाद क्लोरोपाइरीफाँस 20 ई.सी. 2.5 लीटर प्रति हैक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए | बाली आने के समय में गंधीबग का प्रकोप अधिक होता है | इसका नियंत्रण करने के लिए कार्बोरिल / मेलाथियान 25 से 30 किलोग्राम का प्रति हैक्टेयर की दर से सुभ में छिडकाव करना चाहिए |

कतरनी धान ब्लास्ट, ब्राउन स्पांट, बैक्टीरिया लीफ ब्लाइट एवं फाल्स समत का प्रकोप अधिक होता है | ब्लास्ट रोग से फसल को बचाने के लिए बीजोपचार करना चाहिए | इस रोग का लक्षण नजर आते ही ट्राइसाइकोलाजोल 75 डब्ल्यू. पी. (बीम / सिविक) 0.6 ग्राम प्रति लीटर या कार्बेन्डाजिम 50 डब्ल्यू.पी. (बाविस्टिन) 1 ग्राम प्रति लीटर का घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए |

कटाई एवं गहाई

धान की बालियाँ पक गई हों तथा पौधे का काफी भाग पीला हो गया हो, तब कटाई करनी चाहिए | अत्यधिक पकने पर कटाई करने से बालियों में से दाने खेत में झड जाते हैं | इससे उत्पादन में काफी कमी होती है | कतरनी धान की कटाई 25 नवम्बर से 15 दिसम्बर के बीच कर लेनी चाहिए | धान की गहाई किसी सख्त चीज पर पटककर या शक्तिचालित यंत्र से करनी चाहिए |

Notice: JavaScript is required for this content.

NO COMMENTS

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
यहाँ आपका नाम लिखें

Exit mobile version