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शुक्रवार, सितम्बर 13, 2024
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किसान इस तरह करें मूँगफली की फसल में टिक्का या पर्ण चित्ती रोग का नियंत्रण

मूँगफली में टिक्का या पर्ण चित्ती रोग का नियंत्रण

मूँगफली एक प्रमुख तिलहन फसल है, देश में मुख्यतः गुजरात, राजस्थान, आंध्रप्रदेश, तमिलनाडु, कर्नाटक, मध्यप्रदेश, तेलंगाना तथा महाराष्ट्र राज्यों में मूँगफली की खेती की जाती है। मूँगफली की फसल में कई तरह की फफूँद, जीवाणु और विषाणुजनित रोगों से प्रभावित होती है। ये फसल को अत्याधिक नुकसान पहुँचाते हैं। मूँगफली की फसल में मुख्यतः जल गलन रोग, टिक्का या पर्ण चित्ती रोग, विषाणु गुच्छा रोग एवं काली ऊतकक्षय विषाणु रोग या बड नेक्रोसिस रोग लगते हैं।

किसान मूँगफली में लगने वाले इन रोगों की पहचान कर समय पर इनका नियंत्रण कर फसल को होने वाले नुकसान से बचा सकते हैं। किसान समाधान टिक्का या पर्ण चित्ती रोग की पहचान एवं उसका नियंत्रण कैसे करें इसकी जानकारी लेकर आया है। 

टिक्का या पर्ण चित्ती रोग का की पहचान

यह मूँगफली की फसल में लगने वाला एक मुख्य रोग है और यह सभी क्षेत्रों में आमतौर पर देखने को मिलता है। यह रोग एक कवक ( सर्कोस्पोरा) द्वारा होता है। इसका प्रकोप फसल उगने के 40 दिनों बाद दिखाई देना शुरू होता है। इस रोग में पत्तियों की ऊपरी सतह पर हल्के मटमैले भूरे रंग के धब्बे पड़ जाते हैं। पत्ती की निचली बाह्य त्वचा की कोशिकाएँ समाप्त होने लगती हैं। यह धब्बे रूपरेखा में गोलाकार से अनियमित आकार के होते हैं एवं इनके चारों ओर पीला परिवेश होता है। इन धब्बों की ऊपरी सतह वाले उत्तकक्षयी क्षेत्र लाल भूरे से काले, जबकि निचली सतह के क्षेत्र हल्के भूरे रंग के होते हैं।

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इस तरह करें टिक्का रोग का नियंत्रण

रोगी पौधों के अवशेषों को एकत्र करके नष्ट कर देना चाहिए। किसानों को मूँगफली की फसल के साथ ग्वार या बाजरा की अंतरवर्ती फसलें लगाना चाहिए। बुआई से पहले बीजों को 2-3 ग्राम थीरम या कैप्टान प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करके बोना चाहिए। प्रारम्भिक लक्षण दिखने पर खड़ी फसल 0.1 प्रतिशत कार्बेनडाजिम (आधा कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर) या 0.3 प्रतिशत मैंकोजेब (1.5 कि.ग्रा.) का 500 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें तथा इसे 10-15 दिनों के अंतराल पर दोबारा दोहराएँ, यह इस रोग के नियंत्रण में अत्याधिक प्रभावी होता है।  

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