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किसान खरीफ सीजन में अधिक पैदावार के लिए लगाए मक्का की यह नई उन्नत किस्में

maize crop varieties

मक्का की नई उन्नत किस्में

मक्का की खेती का नम्बर देश में धान तथा गेहूं के बाद तीसरे नंबर पर आता है | इसकी खेती वर्ष में दो बार होने के कारण उत्पादन काफी अधिक होता है | मक्के के अधिक उत्पादन के लिए यह जरुरी रहता है की मक्के का बीज तथा बुआई का सही समय होना चाहिए | खरीफ मक्के की बुआई के लिए जून का पहला पखवाडा उचित माना जाता है | इसके बाद की गई मक्के की बुआई में कीटों का प्रकोप बढ़ जाता है | रबी मक्का अक्टूबर के अंतिम सप्ताह से 15 नवंबर तक एवं जायद मक्का के लिए मार्च के प्रथम पखवाडा में बोने के लिए उपयुक्त है |

किसानों को अधिक उत्पादन एवं आय के लिए मक्का की उन्नत किस्मों की खेती करना चाहिए | उन्नत किस्मों की खेती से न केवल अधिक उत्पादन होता है बल्कि कीट-रोग प्रतिरोधी होने के कारण लागत में भी कमी आती है | भारतीय वैज्ञानिकों के द्वारा अलग-अलग जलवायु क्षेत्रों के अनुसार मक्का की कई किस्में विकसित की गई है जिनकी जानकारी किसान समाधान आपके लिए लेकर आया है |

खरीफ सीजन हेतु मक्का की उन्नत किस्में एवं पैदावार

यह वर्ष में दो बार किये जाने वाली फसल है | दोनों मौसम में बीज की प्रजातियाँ अलग – अलग होती है इसके साथ ही उत्पादन भी | नीचे दिये हुई सभी प्रजाति खरीफ मौसम के लिए है |

एचक्यूपीएम – 1 :-

मक्के की यह किस्म 88 से 90 दिन में तैयार हो जाता है | इसका उत्पादन 60 से 65 क्विंटल प्रति हैक्टेयर हैं | इस प्रजाति के मक्के के बीज का रंग हल्का होता है |

एचक्यूपीएम – 5 :-

मक्के की यह प्रजाति उच्च उत्पादन के लिए जाना जाता है | 90 दिनों में तैयार होने वाली मक्के का उत्पादन 60 क्विंटल प्रति हैक्टेयर है | इस प्रजाति के मक्के के बीज का रंग हल्का पीला होता है |

एचएम – 5 :-

मक्के की इस प्रजाति के बीज का रंग सफेद होता है | यह 90 से 100 दिनों में पककर तैयार हो जाती है | इसका उत्पादन क्षमता 60 से 65 क्विंटल प्रति हैक्टेयर है |

केएमएच – 3426 :-

मक्के की यह प्रजाति 90 से 100 दिनों में पककर तैयार हो जाता है | इसका उत्पादन क्षमता 65 क्विंटल प्रति हैक्टेयर है | इस प्रजाति के मक्के के बीज का रंग हल्का पीला होता है |

विवेकक्यूपीएम – 9 :-

मक्का की यह किस्म सबसे कम दिनों में पककर तैयार हो जाती है | इसका उत्पादन 50 क्विंटल प्रति हैक्टेयर है | इस प्रजाति के मक्के के बीज का रंग पीला होता है |

डीएचएम – 117 :-

मक्के की यह प्रजाति सबसे ज्यादा दिनों में तैयार होने वाली है | यह किस्म 95 से 100 दिनों में पककर तैयार हो जाती है | इसका उत्पादन 60 क्विंटल प्रति हैक्टेयर है | इस प्रजाति के मक्के का बीज हल्का पीला होता है |

मक्का बुआई के लिए बीज दर

मक्के की बुआई सीडड्रिल से करना चाहिए जिससे मक्का एक कतार में रहता है | इससे मक्के की निराई तथा खरपतवार निकासी करने में आसानी होती है | 8–10 किलोग्राम प्रति एकड़ बीज के लिए उपयुक्त होता है | बुआई में पौधे से पौधे की दूरी 20 से.मी. तथा पंक्ति से पंक्ति की दुरी 60–70 से.मी. रखनी चाहिए |

मक्का की खेती के लिए खाद (उर्वरक) की आवश्यकता

खरीफ मक्का की 50 से 60 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर पैदावार लेने के लिए 150 किलोग्राम नाईट्रोजन, 60 किलोग्राम फास्फोरस तथा 40 किलोग्राम पोटाश प्रति हैक्टेयर की जरूरत होती है | स्फुर तथा पोटाश की पूरी मात्रा तथा नाईट्रोजन का 10–15 प्रतिशत बुआई के समय दें तथा बची हुई नाईट्रोजन का 25, 45 तथा 60 दिनों के बाद उपयुक्त मात्रा का छिडकाव करें |

खरपतवार प्रबंधन

खरीफ मक्का की कम पैदावार का सबसे प्रमुख कारण खरपतवार हैं तथा मक्का के लिए रासायनिक खरपतवार नाशक भारत में बहुत कम उपलब्ध हैं | इस मौसम में मुख्य खरपतवार मोथ तथा कुछ चौड़ी व संकरी पत्ती के खरपतवार हैं | खरपतवार नियंत्रण के लिए निम्न विधियां अपनायी जा सकती हैं |

स्टेल सीड बड़े तकनीक

इस विधि में फसल बोने से पहले खरपतवारों को उगाया जाता है तथा बाद में ग्लाइफोसेट 15 मि.ली. / लीटर पानी तथा 2–4 डी. 2 मि.ली. / लीटर पानी में घोलकर छिड़काव किया जाता है | स्टेल सीड bed तकनीक में सामन्य तौर पर मई में खेत में मेड बनाकर छोड़ दी जाती है, जिससे कि पूर्व मानसून वर्षा से खरपतवार उग जाएं | इसके बाद खेत को बिना जोते ही मक्का की बुआई कर दी जाए | इस विधि का प्रयोग करने से खरपतवारों की संख्या काफी हद तक कम हो जाती है |

मेड के ऊपर मक्का की बुआई करने के दो–तीन दिन के अंदर पेंडीमेथिलिन + एट्राजीन (1 लीटर + 600 ग्राम) प्रति एकड़ की दर से छिडकाव करने पर खरपतवारों का जमाव कम होता है | बुआई के 20 से 30 दिनों बाद एट्राजीन + 2, 4 डी. (600 + 400 ग्राम/एकड़) का छिडकाव करने से खरपतवारों का काफी हद तक नियंत्रण हो जाता है |

रोग तथा कीटों का प्रबंधन

खरीफ मक्का की शुरूआती अवस्था में पत्तीछेदक कीट आते हैं | इनको क्लोरोपायरिफास और सायपरेंथेलिन 2 मि.ली./ लीटर पानी में मिलाकर छिडकने से कीटों के आक्रमण को रोका जा सकता है | तनाछेदक कीट के नियंत्रण के लिए फ्यूराडान 30 से 50 दिनों के मक्का में एक – एक चुटकी गाभा में डालने से इसका प्रकोप कम होता है | तनाछेदक कीट का प्रकोप अधिक होने पर फ्लूबेंडीअमाइड (फेम) 75 मि.ली./हैक्टेयर या कलोरएंट्राएनिलप्रोल (कोरजेब) 75 मि.ली./हैक्टेयर या एमिना मेक्टिनबेन्जोयेड (प्रोक्लेम) 12.5 मि.ली./हैक्टेयर का प्रयोग करें |

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