ग्रीष्म कालीन जुताई से लाभ
देश के कई राज्यों में मानसून पहुँच गया है, इसके साथ ही कई अन्य राज्यों में प्री-मानसून बारिश का सिलसिला शुरू हो गया है। मानसूनी बारिश शुरू होते ही किसान अपने खेतों में खरीफ फसलों की बुआई शुरू कर देंगे। ऐसे में कृषि वैज्ञानिकों ने किसानों को ग्रीष्मकालीन जुताई करने की सलाह दी है। जारी सलाह में कहा गया है कि अभी कई स्थानों पर आँधी-तुफान के साथ वर्षा हो रही है, जिन खेतों की मिट्टी में हल चलाने लायक नमी है, वे सभी नमी का लाभ उठाते हुए ग्रीष्म कालीन जुताई करें तथा जिन किसानों के खेत की मिट्टी में नमी हल चलाने लायक नहीं है, वे इन्तजार करें तथा जैसे हल चलाने हेतु पर्याप्त वर्षा होती है, खेतों की ग्रीष्म कालीन जुताई करें।
कृषि विभाग के द्वारा जारी सलाह में कहा गया है कि किसान ग्रीष्म कालीन जुताई दो प्रकार से कर सकते हैं, पहला मिट्टी पलटने वाले हल से तथा दूसरा देशी हल अथवा कल्टीवेटर से। मिट्टी पलटने वाले हल से खेत की जुताई 3 साल में एक बार अवश्य करना चाहिए। ग्रीष्म कालीन जुताई से मिट्टी के जैविक एवं रासायनिक दशा में सुधार होता है जिससे किसान अच्छी पैदावार प्राप्त कर सकते हैं।
ग्रीष्म कालीन जुताई से फसलों में लगने वाले कीटों में आती है कमी
खेत की एक ही गहराई पर बार-बार जुताई करने अथवा धान की रोपाई हेतु मिट्टी की मचाई से कठोर परत बन जाती है, जिसे ग्रीष्म कालीन जुताई से तोड़ा जा सकता है। फसलों में लगने वाली कीड़े, जैसे धान का तना छेदक, कटुआ, सैनिक कीट, उड़द-मूंग की फल भेदक, अरहर की फली भेदक, चना की इल्ली, बिहार रोमल इल्ली इत्यादि कीट गर्मी के मौसम के दौरान जीवन चक्र की शंखी अवस्था में फसल अवशेष, ठुठ एवं जड़ों के पास अथवा मिट्टी में छुपे रहते हैं। गर्मी के मौसम में जुताई करने से कीट की संखी अवस्था अथवा कीट के अण्डे धूप के सीधे सम्पर्क में आने से गर्मी के कारण मर जाते हैं अथवा चिडिय़ों द्वारा चुग लिये जाते हैं, जिससे कीटनाशियों के प्रयोग करना नहीं पड़ता है अथवा कम होता है।
ग्रीष्म कालीन जुताई से फसलों में लगने वाले रोगों में आती है कमी
फसलों में रोग फैलाने वाले रोगाणु जैसे बैक्टीरिया, फफूंद आदि फसल अवशेष अथवा मिट्टी में जीवित बने रहते हैं और अनुकुल मौसम मिलने पर फिर से प्रकोप शुरू कर देते है। ग्रीष्म कालीन जुताई करने से ये रोगाणु सूर्य की रोशनी के सीधे संपर्क में आने से अधिक ताप के कारण नष्ट हो जाते हैं। जिससे फसलों में यह रोग लगने की संभावना कम हो जाती है।
ग्रीष्म कालीन जुताई से बढ़ती है मिट्टी कि जल अवशोषण क्षमता
गर्मी में जुताई से मिट्टी वर्षा जल को ज्यादा सोखती है और प्रतिकुल परिस्थिति अथवा अवर्षा की स्थिति में मिट्टी में संग्रहित वर्षा जल का उपयोग पौधे द्वारा किया जाता है। मिट्टी का कटाव एवं वर्षा जल के बहाव की तीव्रता मिट्टी के भौतिक एवं रसायनिक दशा पर निर्भर करती है। ग्रीष्मकालीन जुताई करने से मिट्टी की जल अवशोषण क्षमता बढ़ जाती है एवं जल बहाव की अवस्था निर्मित नहीं होती, परिणामस्वरूप मिट्टी का कटाव नहीं हो पाता है एवं खेत का पानी खेत के मिट्टी में ही संग्रहित हो जाता है।
ग्रीष्म कालीन जुताई से अन्य लाभ
- फसलों की जड़ को अच्छा बढऩे के लिए भुरभुरा एवं हवा युक्त मिट्टी की जरूरत होती है, ताकि जड़ ज्यादा से ज्यादा मिट्टी में फैल सके। ग्रीष्म कालीन जुताई के परिणाम स्वरूप मिट्टी भुरभुरी एवं पोली हो जाती है, जिससे पौधे के जड़ की वृद्धि अच्छी होती है।
- मिट्टी में जैविक/कार्बनिक पदार्थ के अपघटन के लिए सुक्ष्म जीव आवश्यक होते हैं। अकरस जुताई से मिट्टी में हवा का संचार अच्छा होता है, जिससे सुक्ष्म जीवों की बढ़वार एवं गुणन तीव्रगति से होता है, फलस्वरूप पोषक तत्व की उपलब्धता बढ़ जाती है।