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शनिवार, अप्रैल 20, 2024
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किसान इस तरह बनाएं गोमूत्र से कीटनाशक दवा

गोमूत्र से कीटनाशक दवा बनाने की विधि

देश में किसानों की आय बढ़ाने के लिए सरकार द्वारा जैविक एवं प्राकृतिक खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है। जैविक खेती से जहां फसल उत्पादन की लागत में कमी आती है वहीं गुणवत्ता युक्त उपज भी प्राप्त होती है। किसान अपने घरों पर ही आसानी से जैविक खाद एवं कीटनाशक बना सकते हैं जिससे इनमें लगने वाली लागत को कम किया जा सकता है। गौ-मूत्र से बना कीटनाशक बाजार में मिलने वाले रासायनिक पेस्टीसाइड का बेहतर और सस्ता विकल्प है। इसकी रोग प्रतिरोधक क्षमता, रासायनिक कीटनाशक से कई गुना अधिक होती है।

खेतों में इसके छिड़काव से सभी प्रकार की कीटों पर नियंत्रण में मदद मिलती है। पत्ती खाने वाले, फल छेदन तथा तना छेदक जैसे अधिक हानि पहुंचाने वाले कीटों के प्रति इसका उपयोग अधिक लाभकारी है। गोमूत्र कीटनाशक, खाद्य पदार्थ की गुणवत्ता और उसके स्वाद को बनाए रखने, खेती की उर्वरा शक्ति के साथ-साथ कृषि पर्यावरण एवं स्वास्थ्य के लिए बेहतर है।

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किसान इस तरह बनाए गोमूत्र से कीटनाशक दवा

फसलों में विभिन्न प्रकार के कीटों को नियंत्रित करने के लिए किसान आसानी से घर पर ही कीटनाशक बना सकते हैं। इसको बनाने के लिए 10 लीटर गोमूत्र में 2-3 किलो नीम की पत्ती के साथ सीताफल, पपीता, अमरूद एवं करंज की 2-2 किलो पत्तियां मिलाकर उबालना होता है। जब इसकी मात्रा 5 लीटर तक हो जाए तब इसे छान कर ठंडा कर बोतल में पैकिंग की जाती है। इस तरह 5 लीटर गोमूत्र कीटनाशक तैयार हो जाता है।

फसलों में इस तरह करें गोमूत्र से बनाए गए कीटनाशक का छिड़काव

दो से ढाई लीटर गोमूत्र कीटनाशक को 100 लीटर पानी में मिलाकर सुबह-शाम खड़ी फसल पर 10 से 15 दिनों के अंतराल में छिड़काव करने से फसलों का बीमारियों एवं तना छेदक कीटों से बचाव होता है। गौमूत्र कीटनाशक का उपयोग कीट का प्रकोप होने के पूर्व करने पर अधिक प्रभावशाली होता है। यह रोग नियंत्रक बायो डिग्रेबल है, जो वातावरण के लिए पूर्णतः सुरक्षित है। इसके उपयोग से कीटों में इसके प्रति प्रतिरोधक क्षमता उत्पन्न नहीं होती है, क्योंकि यह मल्टीपल एक्शन से कीट नियंत्रण करता है। गोमूत्र कीटनाशक से मित्र कीटों को हानि नहीं होती है।

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कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार गौमूत्र कीटनाशक बनाने पर प्रति लीटर 39 रूपए की लागत आती है, जिसमें इसके एक लीटर पैकेजिंग का खर्च 15 रूपए शामिल है। यदि केन में पैकेंजिंग की जाए तो इसकी लागत और कम हो जाती है। 

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