उपज की गुणवत्ता, मिट्टी की उपजाऊ क्षमता के साथ ही फसलों की लागत कम कर किसानों की आमदनी बढ़ाने के लिए सरकार जैविक और प्राकृतिक खेती पर जोर दे रही है। जैविक खेती में हरी खाद का महत्वपूर्ण योगदान है। जिसको देखते हुए सरकार द्वारा ढैंचा के बीज किसानों को अनुदान पर भी उपलब्ध कराये जा रहे हैं। इस कड़ी में अजमेर के तबीजी फार्म की ओर से किसानों को ढैंचा की फसल को मिट्टी में दबाकर हरी खाद बनाने के लिए सलाह दी गई है।
तबीजी फार्म अजमेर स्थित ग्राहृय परीक्षण केन्द्र के उप निदेशक कृषि (शस्य) मनोज कुमार शर्मा ने बताया कि बिना सड़े-गले हरे दलहनी पौधे को जब मृदा में नत्रजन या जीवांश की मात्रा बढ़ाने के लिए दबा दिया जाता हैं। इस क्रिया को हरी खाद देना कहते हैं।
हरी खाद से क्या लाभ मिलता है?
तबीजी फार्म के उप निदेशक ने जानकारी देते हुए बताया कि मृदा में रासायनिक उर्वरकों के उपयोग करने से आवश्यक पोषक तत्वों की पूर्ति तो हो जाती हैं परन्तु मृदा संरचना, जल धारण क्षमता एवं सूक्ष्मजीवों की क्रियाशीलता बढ़ाने में इनका कोई योगदान नहीं होता हैं। इन सबकी पूर्ति हरी खाद के द्वारा की जा सकती हैं। मिट्टी की उर्वरा शक्ति जीवाणुओं की क्रियाशीलता पर निर्भर करती हैं। जीवाणुओं का भोजन प्रायः कार्बनिक पदार्थ ही होते हैं।
कार्यालय के कृषि अनुसंधान अधिकारी (शस्य) राम करण जाट ने बताया कि हरी खाद के फसली पौधे के वानस्पतिक भाग तेजी से बढ़ने वाले व मुलायम होने चाहिए। हरी खाद फसल की जड़े गहरी हो ताकि मिट्टी को भुरभुरी बना सकें एवं नीचे की मिट्टी के पोषक तत्व ऊपरी सतह पर इकठ्ठा हो जाये। हरी खाद फसल की जड़ों में अधिक ग्रंथियां हो ताकि वायु के नाइट्रोजन का अधिक मात्रा में स्थिरिकरण कर सकें।
हरी खाद के लिए ढैंचा है उपयुक्त फसल
कृषि अनुसंधान अधिकारी (शस्य) ने जानकारी देते हुए बताया कि हरी खाद के लिए ढैंचा सबसे उत्तम फसल हैं। इसकी बुवाई 60 किलो प्रति हेक्टेयर की दर से अप्रेल से जुलाई माह में करनी चाहिए। ढैंचे को उगााने के लिए सिंचित अवस्था में मानसून आने से 15 से 20 दिन पहले या असिंचित अवस्था में मानसून आने के तुरन्त बाद खेत को तैयार कर बुवाई कर देनी चाहिए। हरी खाद की फसल से अधिकतम कार्बनिक पदार्थ प्राप्त करने के लिए पौधों की अच्छी बढ़वार होने पर नरम अवस्था में 50 प्रतिशत फूल आने पर अर्थात बुवाई के 30-45 दिन बाद डिस्क हैरो द्वारा पलट कर पाटा चला देना चाहिए।
हरी खाद से नाइट्रोजन व कार्बनिक पदार्थ के अतिरिक्त अन्य पोषक तत्व जैसे पोटाश, गंधक, जस्ता व लौह तत्व आदि भी प्राप्त होते हैं। इससे रासायनिक उर्वरकों के उपयोग में कमी आती हैं। हरी खाद से मृदा भुरभुरी हो जाती हैं एवं वायु संचार व जल धारण क्षमता में वृद्धि होने के साथ ही अम्लीयता व क्षारीयता में भी सुधार होता हैं। मृदा में सूक्ष्मजीवों की संख्या एवं क्रियाशीलता बढ़ने से उर्वरा शक्ति एवं उत्पादन क्षमता में बढ़ोतरी होती हैं।