किसानों की आमदनी बढ़ाने के लिए सरकार कृषि क्षेत्र की सहायक गतिविधियों को बढ़ावा दे रही है, इसमें मधुमक्खी पालन भी शामिल है। मधुमक्खी पालन शुरू करने के लिए किसानों को प्रशिक्षण के साथ ही अनुदान भी दिया जाता है। बीते कुछ वर्षों में शहद की डिमांड भी देश और विदेशों में बढ़ी है, इसका मुख्य कारण है इसके औषधीय गुण। मांग बढ़ने से किसानों को इसके भाव भी अच्छे मिल रहे हैं जिससे किसानों की रुचि भी मधुमक्खी पालन की ओर बढ़ी है।
जिसको देखते हुए छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा शहद उत्पादन को बढ़ावा देने और किसानों को अतिरिक्त आमदनी का माध्यम मुहैया कराने के लिए कृषि महाविद्यालय में किसानों को मधुमक्खी पालन का प्रशिक्षण दिया जा रहा है। जिससे किसान खेती-बाड़ी के साथ-साथ शहद बेच कर अतिरिक्त मुनाफा कमा सकते हैं, अम्बिकापुर कृषि महाविद्यालय में मधुमक्खी पालन का प्रशिक्षण करने आए किसानों में काफी उत्साह देखने को मिल रहा है।
3 नस्लों की मधुमक्खियों का किया जा सकता है पालन
कृषि महाविद्यालय के मधुमक्खी पालन कार्यक्रम के मुख्य अन्वेषक डॉ. पी. के. भगत ने बताया कि ज्यादातर 3 नस्लों की मधुमक्खियों का पालन किया जाता है, जिसमें पहला है इटालियन जोकि 15 से 20 दिनों में एक पेटी में 6 से 7 किलो तक शहद का उत्पादन करती है जिसका शहद बाजार में 500 से 600 रुपये किलो के हिसाब से बिकता है। दूसरी नस्ल है देशी ऐशियाई प्रजाति जिसे आम बोलचाल में सतघरवा मधुमक्खी कहते हैं इसका उत्पादन कम है और ये 2 से 3 किलो शहद ही देती है। तीसरी नस्ल है डंक हीन मधुमक्खी, इस मधुमक्खी के शहद का उत्पादन एक पेटी में 20 दिन में मात्र 1 पाव ही होता है लेकिन इसमें औषधीय गुण भरपूर मात्रा में पाए जाते है। जिसकी वजह से बाजार में मूल्य भी काफी अधिक मिलता है।
मधुमक्खी पालन के लिए किसान लगाएं फूलों वाली फसलें
कृषि महाविद्यालय में तकनीकी सहायक डॉ. सचिन ने बताया कि मधुमक्खी पालन में सबसे जरूरी है उनका भोजन जिसको हम बी-फ्लोरा कहते हैं, उन्होंने बताया कि भोजन में इनको पोलन और नेक्टर दोनों ही मिलना आवश्यक है। तभी शहद का निर्माण करेगी, यदि इनको भोजन नहीं मिला तो माइग्रेट हो जायेगी। मधुमक्खी पालन करने वाले किसान भाई हमेशा खेतों में फूल वाली फसलों को जरूर लगायें, तिलहन फसलों में भी पेटी लगा सकते हैं।
साधारण शहद 500 से 600 रुपये किलो बिकता है, लेकिन अगर इसका वेल्यू एडिशन किया जाये तो 2 हजार से 2200 तक में बेचा जा सकता है, जैसे आप अलग-अलग तरह की फसल से फ्लोरा देकर अगर शहद इकट्ठा करते हैं तो उस फसल का स्वाद उस शहद में देखने को मिलता है, उन्होंने बताया कि जैसे सिर्फ लीची, या मुनगे या फिर टाऊ की फसल का शहद अगर अलग बाजार में बेचा जाए तो इन सबका स्वाद बिल्कुल अलग होता है।
कृषि महाविद्यालय के लैब में शहद की टेस्टिंग कर शहद किस फसल का है यह प्रमाणित किया जाता है। उन्होंने बताया कि कृषि महाविद्यालय में 25 किसानों का एक बैच तैयार कर प्रशिक्षण दिया जाता है। जो भी किसान मधुमक्खी पालन का प्रशिक्षण लेना चाहते हैं, वो कृषि विज्ञान केन्द्र में संपर्क कर पंजीयन करा सकते हैं।
Hamare yaha kheti ki sichai ki bahot pareshani hai.
सर अपने यहाँ के सिंचाई विभाग में संपर्क कर बोरिंग योजना के लिए आवेदन करें।