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गुरूवार, मार्च 28, 2024
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जीएम सरसों को लेकर उठ रहे सवालों को लेकर विशेषज्ञों ने कही ये बातें

GM Mustard: सरसों की पैदावार बढ़ाने के लिए दी गई जीएम सरसों को अनुमति

देश अनाज के क्षेत्र में आत्मनिर्भर होने के बावजूद भी दलहन तथा तिलहन के क्षेत्र में काफी पीछे है। देश में तिलहन का कुल क्षेत्रफल 28.8 मिलियन हेक्टेयर हैं जिससे वर्ष 2020–21 में 35.9 मिलियन टन का उत्पादन प्राप्त किया गया था। जिसकी औसत उत्पादकता 1,254 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर है, जो वैश्विक औसत से बहुत कम है। भारत में उत्पादित 35.9 मिलियन टन तिलहन से 8 मिलियन टन खाद्य तेल प्राप्त होता है जबकि देश में खाद्य तेल की कुल आवश्यकता 21 मिलियन टन की है जो भारत में उत्पादित खाद्य तेल जरूरत के 40 प्रतिशत को ही पूरा कर पाता है।

भारत में 9.17 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र में सरसों की खेती होती है। इससे वर्ष 2021–22 में 11.75 मिलियन टन सरसों का उत्पादन प्राप्त किया गया था। भारत में सरसों की उत्पादकता 1,281 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर हैं जबकि वैश्विक स्तर पर 2,000 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर है। इसलिए सरकार देश में सरसों की उत्पादन क्षमता को बढ़ाने के लिए जीएम सरसों बीज की अनुमति प्रदान की गई है।

जीएम सरसों पर उठ रहे सवालों पर दिया विस्तृत जबाब 

सरकार का मानना है की देश में खाद्य जरूरतों को पूरा करने के लिए जीएम सरसों की खेती जरुरी है। लेकिन कृषि विशेषज्ञ तथा किसान संगठन इसका बड़े स्तर पर विरोध कर रहे हैं। विरोधी पक्ष का यह मानना है की इससे भारतीय बीज बाजार में बहुराष्ट्रीय कंपनियों का एकाधिकार हो जाएगा। इसके साथ ही जीएम सरसों स्वास्थ्य, मिट्टी तथा पर्यावरण के लिए नुकसान देय हैं। शहद उत्पादन करने वाले किसानों के तरफ से भी आपत्ति दर्ज की जा रही है उनका कहना है की इससे मधुमक्खियाँ सरसों के पास नही आएँगी, जो उनके लिए नुकसान देय है।

इन सभी मुद्दों पर भारत सरकार के कृषि अनुसंधान और शिक्षा विभाग-डीएआरई के सचिव और भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद- आईसीएआर के महानिदेशक डॉ. हिमांशु पाठक ने जीएम सरसों के विभिन्न मुद्दों पर एक विस्तृत बयान जारी किया है।

खाद्य तेल में आत्मनिर्भरता के लिए आवश्यक है जीएम सरसों

देश में खाद्य तेल की जरूरतों को पूरा करने के लिए इनका बड़ी मात्रा में आयात करना पड़ता है। वर्ष 2021–22 के दौरान 14.1 मिलियन टन खाद्य तेलों के आयात पर 1,56,800 करोड़ रूपये खर्च किए। इनमें मुख्य रूप से ताड़ सोयाबीन, सूरजमुखी और कनोला तेल शामिल हैं, जो भारत के 21 मिलियन टन के कुल खाद्य तेल खपत के दो-तिहाई हिस्से के बराबर है। इसलिए कृषि–आयात पर विदेशी मुद्रा व्यय को कम करने के लिए खाद्य तेल के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता अनिवार्य रूप से आवश्यक है।

हाइब्रिड की आवश्यकता क्यों है ?

अपने जबाब में उन्होंने बताया कि आनुवंशिक रूप से विविध मातृ-पितृ के क्रांसिंग से बढ़ी हुई उपज और अनुकूलन के साथ संकर प्रजाति उत्पन्न होती है। इस प्रक्रिया को हाईब्रिड विगोरोथेरोसिस के रूप में जाना जाता है जिसका चावल, मक्का, बाजरा, सूरजमुखी और कई सब्जियों जैसी फसलों में व्यापक रूप से शोषण किया गया है। सामान्य रूप से संकर फसलों में पारंपरिक किस्मों की तुलना में 20 से 25 प्रतिशत अधिक उपज मिलती हैं । देश में रेपसीड सरसों की उत्पादकता बढाने में हाईब्रिड तकनीक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।

बार्नेज़/बारस्टार प्रणाली क्यों:

संकर बीज उत्पादन के लिए कुशल नर बंध्यता और उर्वरता बहाली प्रणाली की आवश्यकता होती है। सरसों में वर्तमान में उपलब्ध पारंपरिक साइटोप्लाज्मिक– जेनेटिक पुरुष बांझपन प्रणाली में कुछ पर्यावरणीय परिस्थितियों में बांझपन के टूटने की सीमाएं हैं, जिससे बीज की शुद्धता कम हो जाती है। परिणामस्वरूप, कृषि मंत्रालय ने कार्यालय ज्ञापन के माध्यम से वर्ष 2014 में बीज अधिनियम 1966 की धारा 6(9) के अंतर्गत रेपसीड और सरसों के संकर बीजों की सामान्य शुद्धता के मानक को 95 प्रतिशत से घटाकर 85 प्रतिशत कर दिया।

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आनुवांशिक रूप से तैयार की गई बार्नेज/बारस्टार प्रणाली सरसों में संकर बीज उत्पादन के लिए एक कुशल और मजबूत वैकल्पिक विधि है और इसे कई दशकों से कनाडा, आस्ट्रेलिया और अमेरिका जैसे देशों में सफलतापुर्वक लागू किया गया है। भारत में नई दिल्ली में दिल्ली विश्वविध्यालय साउथ कैंपस के फसलीय पौधों के अनुवांशिक परिवर्तन के लिए केंद्र (सीजीएमसीपी) ने बार्नेज/बारस्टार प्रणाली में कुछ बदलावों के साथ एक सफल प्रयास किया है। इसके परिणामस्वरूप जीएम सरसों हाईब्रिड एमएच11 का विकास संभव हो सका, जिसमें वर्ष 2008 से 2016 के दौरान आवश्यक विनियामक परीक्षण प्रक्रियाएं शामिल हैं।

क्या है जीएम सरसों की डीएमएच-11 किस्म 

डीएमएच-11 का भारत में कई स्थानों पर सिमित क्षेत्र परीक्षणों में राष्ट्रीय चेक वरुण के खिलाफ तीन साल तक परीक्षण किया गया है। निर्धारित दिशा–निर्देशों और लागू नियमों के अनुसार मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण पर प्रभाव का आकलन करने के लिए फ़ील्ड परीक्षण किए गए थे। डीएमएच-11 से राष्ट्रीय जांच की तुलना में लगभग 28 प्रतिशत अधिक उपज प्रदान की है।

जनन विज्ञान अभियांत्रिकी मूल्यांकन समिति की 147 वीं बैठक के दौरान विशेषज्ञों की राय, बायोसेफ्टी डेटा जांच और लंबे वैज्ञानिक विचार–विमर्श के बाद डीएमएच 11 और इसकी पैरेंटल लाइन को पर्यावरण स्वीकृति प्रदान की गई है। लेकिन, एक दशक से अधिक समय हो गया है जब इस संकर का मूल्यांकन किया गया था, यह वर्तमान में विकसित संकरों और किस्मों के खिलाफ इसके प्रदर्शन का परीक्षण करने के लिए प्रासंगिक है क्योंकि आईसीएआर के दिशानिर्देशों के अनुसार रेपसीड और सरसों पर अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना के अंतर्गत राष्ट्रीय परीक्षणों में जांच की गई थी और अगर डीएमएच-11 काफी बेहतर पाया जाता है, तो इसे व्यवाहरिक खेती के लिए जारी किया जाएगा। 

यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि, डीएमएच 11 की पैतृक वंशावलियों का पर्यावरणीय स्वीकृत, सरसों के प्रजनकों को मजबूत और बहुमुखी आनुवंशिक रूप से इंजीनियर बार्नेज/बारस्टार प्रणाली को तैनात करने, अधिक उपज लाभ के साथ सरसों की नई पीढ़ी के संकर बीज विकसित करने के लिए संकर बीज के उत्पादन में मदद करेगा। यह सरसों की कम उत्पादकता और भविष्य में खाद्य तेल के आयात की समस्या को दूर करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम होगा।

जैव सुरक्षा चिंता के विषय पर क्या कहा गया

हाईब्रिड जीएम सरसों बीज के खिलाफ कृषि विशेषज्ञ तथा किसान संगठन कई बिन्दुओं पर चिंता व्यक्त कर रहे हैं तथा विरोध भी कर रहे हैं। इसको लेकर सरकार के तरफ से स्पष्टीकरण दिया गया है। कृषि विशेषज्ञ जीएम सरसों को लेकर पर्यावरण, क्षेत्र परीक्षण, एलर्जीनिटी, संरचनागत विश्लेषण, विषाक्तता होने पर चिंता व्यक्त किया है । इसके साथ ही विरोधी जीएम सरसों पर मधुमक्खियाँ नहीं आएगी के दावा कर रही है।

इस मुद्दे पर सरकार ने अपने तरफ से स्पष्टीकरण जारी किया है। सरकार का दावा है की मधुमक्खियाँ पहले की तरह ही सरसों की फसलों पर आएगी। मधुमक्खी को लेकर जीएम सरसों पर तीन स्तर का परीक्षण किया गया है। इसके अलावा अंतराष्ट्रीय स्थिति के आधार पर दी गई है, विशेष रूप से कनाडा में, जिसमें बार्नेज/बारस्टार आधारित संकरों के अंतर्गत रेपसीड क्षेत्र का 95 प्रतिशत है। इसके अलावा एहतियाती सिद्धांत के रूप में, जीईएसी ने विकासकर्ताओं को रिलीज के पहले दो वर्षों के दौरान मधुमक्खी और परागणकों पर जीएम सरसों के प्रभाव पर डेटा उत्पन्न करने का निर्देश दिया गया है।

क्या डीएमएच 11 बहुराष्ट्रीय कंपनियों के पक्ष में शाकनाशी के उपयोग को बढ़ावा देगा

जीएम सरसों के विरोध में एक यह बात भी सामने आई है कि यह बीज शाकनाशी के उपयोग को बढ़ावा देगा, इस प्रकार बहुराष्ट्रीय कंपनियों को शाकनाशी के निर्माण में मदद करेगा। इस पर सरकार ने स्पष्टीकरण जारी किया है।हर्बीसाइड ग्लुफोसिनेट को प्रतिरोध प्रदान करने वाले बार जीन का उपयोग जीएम सरसों में दो कारणों से किया गया है, पहला विकास प्रक्रिया के दौरान टिश्यू कल्चर में एक चयन योग्य मार्कर के रूप में और दूसरा, बार्नेज मादा और बारस्टार नर वंश की वनस्पति नाशक सहिष्णुता विशेषता है। केवल संकर बीज उत्पादन कार्यक्रम में उपयोग किया जाना चाहिए न कि संकर की व्यावसायिक खेती में, क्योंकि आवेदक द्वारा प्रपत्रों में इस विशेषता का दावा नहीं किया गया है।

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इसके अनुसार जीईएसी ने केवल संकर बीज उत्पादन के लिए वनस्पति नाशक के उपयोग की स्वीकृति प्रदान की है, और यह भी वर्तमान नियमों के अनुसार लेबल दावे का विस्तार प्राप्त करने के बाद स्वीकृति प्रदान की गई है | इसमें विशेष रूप से अनुमोदन का उल्लेख किया गया है। यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि वनस्पति नाशक सहिष्णुता के बिना भी लगभग 15,000 टन तकनीकी ग्रेड वनस्पति नाशकों का मूल्य 7,000 करोड़ रूपये हैं और यह भारतीय कृषि में चावल, गेहूं और सोयाबीन जैसी फसलों में उपयोग किए जा रहे हैं, और ये सभी घटक विदेशी कंपनियों का पक्ष लिया जा रहा है।

राष्ट्रीय और वैश्विक परिप्रेक्ष्य में ट्रांसजेनिक फसलें:

विश्व स्तर पर, जीएम फसलें 30 से अधिक देशों में 195 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र में उगाई जाती हैं। कई देशों में जीएम लक्षणों को अपनाने की दर बहुत अधिक रही है। कुछ मामलों में 95 प्रतिशत से भी अधिक है। विश्व स्तर पर जीएम फसलों के उपयोग से होनी वाले प्रतिकूल प्रभावों का कोई प्रमाण नहीं है। मक्का, सोयाबीन आदि जैसी जीएम फसलों से होनी वाली उपज का निर्यात संयुक्त राज्य अमेरिका, अर्जेंटीना और ब्राजील से किया जाता है। प्रमुख जीएम फसलें उगाने वाले देश यूरोपीय संघ सहित कई देशों में पशु के चारे के रूप में निर्यात किए जाते हैं और ये देश जीएम फसलों के निर्यात से पर्याप्त विदेशी मुद्रा अर्जित कर रहे हैं। जहाँ तक यूरोपीय संघ को भारत के निर्यात का संबंध है, बासमती चावल प्रमुख वस्तु है और भारत सरकार ने निर्यात बाजार को ध्यान में रखते हुए बासमती पर कोई ट्रांसजेनिक विकास कार्य नहीं करने का निर्णय पहले ही ले लिया है।

वर्तमान सन्दर्भ में, मुद्दा जीएम सरसों से संबंधित हैं, जहाँ भारत पहले से ही अपनी घरेलू जरूरतों के लिए जीएम कैनोला तेल का आयात कर रहा है। यह बार्नेज/बारस्टार आधारित संकरों का उपयोग करने वाली वर्तमान तकनीक रेपसीड सरसों के उत्पादन को बढाने में मदद करेगी और इस प्रकार खाद्य तेलों के आयात को कम करेगी।

इन फसलों की भी तैयार की जाएँगी जीएम क़िस्में

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद संस्थान और विश्वविद्यालय 13 फसलों जैसे कपास, पपीता, बैंगन, केला, चना, अरहर, आलू, ज्वार, ब्रासिका, चावल में जैविक और अजैविक तनाव सहिष्णुता, उपज और गुणवत्ता सुधार जैसे विभिन्न लक्षणों के लिए वर्ष 2006 से “फंक्शनल जीनोमिक्स एंड जीनोम मॉडिफिकेशन पर नेटवर्क प्रोजेक्ट” के माध्यम से 11 संस्थानों को शामिल करते हुए फ्लैक्स, गेहूं और गन्ना जैसी जीएम फसलों के विकास के कार्य किए जा रहे हैं।

वर्तमान में चार फसलों में, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद का केंद्रीय आलू अनुसंधान संस्थान, शिमला द्वारा विकसित पछेती झुलसा प्रतिरोधी आलू; आईसीएआर-नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर प्लांट बायोटेक्नोलॉजी, नई दिल्ली द्वारा विकसित अरहर में फली छेदक प्रतिरोध; आईसीएआर भारतीय दलहन अनुसंधान संस्थान, कानपुर द्वारा विकसित कीट प्रतिरोधी चना, और आईसीएआर-नेशनल रिसर्च सेंटर ऑन बनाना, तिरचुरापल्ली द्वारा विकसित प्रो-विटामिन और आयरन से भरपूर केला, विभिन्न गुणों वाले जीएम उत्पाद घटक चयन से लेकर जैव सुरक्षा तक सभी जैव सुरक्षा दिशानिर्देशों का पालन करते हुए अनुसंधान स्तर के परीक्षण विभिन्न चरणों में हैं।

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