Home विशेषज्ञ सलाह आलू की फसल में लगने वाले रोग एवं उपचार

आलू की फसल में लगने वाले रोग एवं उपचार

आलू की फसल में लगने वाले रोग एवं उपचार

आलू की फसल में लगने वाले रोग

आलू की फसल देश की एक प्रमुख्य फसल है | आलू की खेती तथा उपयोग लगभग पुरे देश में होता है | आलू की फसल रबी की फसल है | इसकी बुवाई अक्टूबर माह में की जाती है तथा कम भूमि में भी उत्पादन बहुत अधिक होता है | लेकिन अधिक ठंड के कारण खेत में पाला भी लग जाता हैं | इसके अलावा रोग और कीट से भी अधिक नुकसान होता है | इसीलिए किसानों के एक महत्वपूर्ण फसल को ध्यान में रखते हुये आलू के रोग तथा कीट से बचाव की जानकारी लेकर आया है |

झुलसा रोग :-

आलू की फसल में दो तरह के झुलसा रोग होता है | पहला अगेता झुलसा रोग तथा दूसरा पिछेती झुलसा रोग |

अगेती झुलसा रोग :-

इस रोग के लक्षण पछेता अंगमारी से पहले यानी फसल बोने के 3-4 हफ्ते बाद पौधों की निचली पत्तियों पर छोटे-छोटे, दूर दूर बिखरे हुए कोणीय आकार के चकत्तों या धब्बों के रूप में दिखाई देते हैं, जो बाद में कवक की गहरी हरीनली वृद्धि से ढक जाते हैं| ये धब्बे तेजी से बढ़ते हैं और ऊपरी पत्तियों पर भी बन जाते हैं| शुरू में बिन्दु के आकार के ये धब्बे तेजी से बढ़ते हैं और शीघ्र ही तिकोने, गोल या अंडाकार हो जाते हैं|

आकार में बढ़ने के साथ साथ इन धब्बों का रंग भी बदल जाता है और बाद में ये भूरे व काले रंग के हो जाते हैं| सूखे मौसम में धब्बे कड़े हो जाते हैं और नम मौसम में फ़ैल कर आपस में मिल जाते हैं, जिस से बड़े क्षेत्र बन जाते हैं| रोग का जबरदस्त प्रकोप होने पर पत्तियाँ सिकुड़ कर जमीन पर गिर जाती हैं और पौधों के तनों पर भूरे काले निशान बन जाते हैं| रोग का असर आलू के कंदों पर भी पड़ता है| नतीजतन कंद आकार में छोटे रह जाते हैं|

उपचार 

  • आलू की खुदाई के बाद खेत में छूटे रोगी पौधों के कचरे को इकट्ठा कर के जला देना चाहिए|
  • यह एक भूमि जनित रोग है| इस रोग को पैदा करने वाले कवक के कोनिडीमम 1 साल से 15 महीने तक मिट्टी में पड़े रहते हैं, लिहाजा 2 साल का फसल चक्र अपनाना चाहिए|
  • फसल में बीमारी का प्रकोप दिखाई देने पर यूरिया 1 फीसदी व मैंकोजेब (75 फीसदी) 0.2 फीसदी का छिड़काव प्रति हेक्टेयर की दर से करना चाहिए|

पिछेती झुलसा रोग :-

यह रोग मैदानी तथा पहाड़ी दोनों इलाकों में आलू की पत्तियों, शाखाओं व कंदों पर हमला करता है | जब वातावरण में नमी व रोशनी कम होती है और कई दिनों तक बरसात होती है, तब इस का प्रकोप पौधे तक बरसात पत्तियों से शुरू होता है|

यह रोग 5 दिनों के अंदर पौधों की हरी पत्तियों को नष्ट कर देता है| पत्तियों की निचली सतहों पर सफेद रंग के गोले बन जाते हैं, जो बाद में भूरे व काले हो जाते हैं| पत्तियों के बीमार होने से आलू के कंदों का आकार छोटा हो जाता है और उत्पादन में कमी आ जाती है| इस के लिए 20-21 डिग्री सेंटीग्रेट तापमान मुनासिब  होता है| आर्द्रता इसे बढ़ाने में मदद करती है|

उपचार 

  • आलू की पत्तियों पर कवक का प्रकोप रोकने के लिए बोड्रेक्स मिश्रण या फ्लोटन का छिड़काव करना चाहिए|
  • मेटालोक्सिल नामक फफूंदीनाशक की 10 ग्राम मात्रा को 10 लीटर पानी में घोल कर उस में बीजों को आधे घंटे डूबा कर उपचारित कने के बाद छाया में सूखा कर बोआई करनी चाहिए|
  • आलू की फसल में कवकनाशी जैसे मैंकोजेब (75 फीसदी) का 0.2 फीसदी या क्लोरोथलोनील 0.2 फीसदी या मेटालेक्सिल 0.25 फिसदी या प्रपोनेब 70 फीसदी या डाइथेन जेड 78, डाइथेन एम् 45 0.2 फीसदी या बलिटोक्स 0.25 फीसदी क्या डिफोलटान और केप्टन 0.2 फीसदी के 4 से 5 छिड़काव प्रति हेक्टेयर की दर से करने चाहिए |

आलू की पत्ती मुड़ने वाला रोग (पोटेटो लीफ रोल ) -:

यह एक वायरल बीमारी है जो (पी.एल.आर.वी.) वायरस के द्वारा फैलती है। इस बीमारी की रोकथाम के लिए रोग रहित बीज बोना चाहिए तथा इस वायरस के वाहक एफिड की रोकथाम दैहिक कीटनाशक यथा फास्फोमिडान का 0.04 प्रतिशत घोल मिथाइलऑक्सीडिमीटान अथवा डाइमिथोएट का 0.1 प्रतिशत घोल बनाकर 1-2 छिड़काव दिसम्बर, जनवरी में करना चाहिए।

किसान समाधान के Youtube चेनल को सब्सक्राइब करने के लिए नीचे दिए गए बटन को दबाएँ

Notice: JavaScript is required for this content.

3 COMMENTS

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
यहाँ आपका नाम लिखें

Exit mobile version