किसानों की आमदनी बढ़ाने के साथ ही फसलों की उत्पादकता बढ़ाने के लिए सरकार द्वारा कई प्रयास किए जा रहे हैं। इसके लिए कृषि वैज्ञानिकों के द्वारा खेती की नई-नई तकनीकों का विकास किया जा रहा है। इस कड़ी में चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी महाविद्यालय कानपुर (CSA) के वैज्ञानिकों द्वारा गोभी की खेती की नई तकनीक विकसित की गई है। जिसमें किसान गोभी की खेती में 1 रुपये की लागत लगाकर 4 रुपये से ज्यादा का कमा सकेंगे। इसमें जैविक खाद के प्रयोग का समय एवं मात्रा पर शोध किया गया है। शोध को भारतीय अनुसंधान संस्थान द्वारा मान्यता दे दी गई है।
चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी महाविद्यालय के सब्जी विज्ञान विभाग की ओर से फूलगोभी की टिकाऊ पैदावार के लिए विकसित इस तकनीक का अनुमोदन किया जा चुका है। यह अनुमोदन भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद की ओर से अखिल भारतीय सब्जी समन्वित अनुसंधान परियोजना की पंजाब कृषि विश्वविद्यालय, लुधियाना में आयोजित वार्षिक समूह बैठक में किया गया। तकनीक विकसित करने वाले वैज्ञानिक डॉ राजीव ने बताया कि शोध 2021 से फूलगोभी की जैविक खेती के विभिन्न मॉड्यूल पर किया जा रहा था।
इस तकनीक से की गई गोभी की खेती
शोधकर्ता डॉ. राजीव ने बताया कि लगातार चार वर्षों के शोध के परिणामों के आधार पर यह पाया गया कि फूलगोभी की जैविक खेती के लिए 100 प्रतिशत नाइट्रोजन के समतुल्य गोबर की खाद को रोपाई के 10 दिन पहले अथवा 75 प्रतिशत नाइट्रोजन के समतुल्य गोबर की खाद को रोपाई के 10 दिन पहले एवं 25 प्रतिशत नाइट्रोजन के समतुल्य वर्मी कम्पोस्ट को रोपाई के एक दिन पहले प्रयोग करने से 249 से 253 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की पैदावार प्राप्त की गई। इस पैदावार के आर्थिक विश्लेषण से यह पाया गया कि इस तरह खेती करने पर 1 रुपये लगाकर 4.68 से 4.93 रुपये तक प्राप्त किए जा सकते हैं यानि की इस तरह गोभी की खेती करने से किसानों को लगभग 4 गुना का मुनाफा मिल सकता है।
खेती में समय प्रबंधन बहुत जरूरी
शोधकर्ता डॉ राजीव ने बताया कि फूलगोभी की जैविक खेती से अच्छी पैदावार प्राप्त करने के लिए सही समय एवं उचित मात्रा में पोषक तत्वों की आपूर्ति बेहद जरूरी है जिससे पौधों का विकास बाधित ना हो। उन्होंने कहा कि विकसित तकनीक का प्रयोग कर किसान फूलगोभी की जैविक खेती कर सकेंगे तथा सब्जियों में रासायनिक उर्वरकों के अंधाधुंध प्रयोग से बचा जा सकेगा।
उन्होंने कहा कि फूल गोभी की जैविक खेती के लिए अभी तक कोई तकनीकी मानक नहीं था। किसान अपने अनुभव के आधार पर खेती करते थे। अब शोध के बाद एक तय मानक सामने आ गए हैं। इस मानक के तहत मिलने वाले परिणाम एकदम सटीक होंगे।