जई उत्पादन की उन्नत तकनीक

जई उत्पादन की उन्नत तकनीक

 रबी मौसम में उगाई जाने वाली फसलों में जई का एक महत्वपूर्ण स्थान है । मध्यप्रदेश में इसकी खेती अधिकतर सिंचित दशा में की जाती है, किंतु मध्य अक्टूबर तक भूमि पर्याप्त नमीं होने पर इसे असिंचित दशा में भी पैदा किया जा सकता है । ऐसे सभी जलवायु क्षेत्रों में जहां गेहूं और जौ की खेती होती हो वहां इसकी खेती की जा सकती है । यह पाले एवं अधिक ठंड को सहन कर सकती है ।

भूमि का चुनाव –

इसकी खेती सभी प्रकार की जमीनों में की जा सकती है, किन्तु दोमट मिट्टी इसकी खेती के लिये सर्वोत्तम होती है । हल्की जमीनों में इस फसल को अपेक्षाकृत जमीनों से अधिक जल की आवश्यकता होती है ।

खेत की तैयारी –

फसल का अच्छा अंकुरण प्राप्त करने के लिये खेती की अच्छे से तैयारी करना जरूरी है, इसके लिये खेत में देशी हल से दो-तीन जुताईयां या बक्षर से 2-3 बखरनी करना चाहिये । ट्रेक्टर चलित यंत्रों में एक बार कल्टीवेटर चलाने के बाद दो बार हैरो चलाये । तत्पश्चात् पाटा चलाकर खेत को समतल करना चाहिये ।

उन्नत प्रजातियां

उन्नत प्रजातियां जैसे वाहर जई-1, जई-2, जई-03-91, कैंट, ओ.एस.-6, जे.एच.ओ., 822 या जे.एच.ओ. 851 का शुद्ध प्रमाणित और अच्छे अंकुरण वाला बीज विश्वसनीय स्थान से बोनी के पूर्व सुरक्षित करें ।

बुआई का समय, विधि एवं बीज दर-

अधिक उत्पादन प्राप्त करने के लिये इसकी बोनी के लिये नवम्बर का समय सबसे उपयुक्त है, किंतु परिस्थितियों एवं चारे की आपूर्ति के अनुसार इसकी बुआई दिसम्बर प्रथम सप्ताह तक की जा सकती है । बुआई मे देरी करने से तापमान में कमी के कारण अंकुरण देरी से होता है । इसकी बोनी नारी हल या सीडड्रिल से 25 सेंटीमीटर की दूरी पर कतारों में करना चाहिये । बीज की बोनी 4 से 5 सेंटीमीटर गहराई में करना चाहिये । कतारों में बोयी गई फसल मे खरपतवारों का नियंत्रण आसानी से किया जा सकता है, जिससे पौधों की बाढ़ अच्छी रहती है । बोनी के पहले बीज को 2 से 3 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से कार्बाक्सिन या कार्बनडाजिम नाम दवा से उपचारित करने से अंकुरण अच्छा होता है और फसल बीज जनित रोगों से मुक्त रहती है । चारे के लिये बोई गई फसल के लिये 100 किलोग्राम बीज प्रति हे. बोना चाहिये । किंतु दाने के लिये केवल 80 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर की आवश्यकता होती है ।

खाद एवं उर्वरक की मात्रा-

जई की अच्छी पैदावार के लिये 10 टन प्रति हे. गोबर की खाद अंतिम जुताई के पूर्व खेत में बिक्षेर कर मिट्टी में मिला देना चाहिये । इस फसल को 80 किलोग्राम नत्रजन, 40 किलोग्राम स्फुर व 20 किलोग्राम पोटाश प्रति हे. देना चाहिये । कुल नत्रजन की एक तिहाई मात्रा तथा स्फुर एवं पोटाश की मात्रा बोनी के समय देना चाहिये। शेष नत्रजन को दो बराबर भागों में क्रमशः पहली और दूसरी सिंचाई के बाद देना चाहिये । बुआई के समय 2 किलोग्राम एजेटोबेक्टर का उपयोग करने से 20 किलोग्राम नत्रजन प्रति हे. कम की जा सकती है साथ ही आधा किलोग्राम पी.एस.बी. जीवाणु कल्चर का उपयोग करने से स्फुर की उपयोगिता बढ़ जाती है । इन दोनों जीवाणु कल्चर का उपयोग करने के लिये उन्हें 500 किलोग्राम गोबर खाद में मिला कर कतारों में बोनी के समय देना लाभप्रद होता है।

खरपतवार नियंत्रण-

चारे के लिये बाई गई फसल में निंदाई की आवश्यकता कम होती है । क्योंकि पौधों की संख्या अधिक होने के कारण खरपतवार पनप नहीं पाते हैं, किन्तु बीज उत्पादन के लिये ली जाने वाली फसल खरपतवार नियंत्रण लाभप्रद होता है । चैड़ी पत्ती वाले खरपतवारों के नियंत्रण के लिये 500 ग्राम 2, 4-डी का उपयोग 600 लीटर पानी में प्रति हेक्टेयर घोल कर छिड़काव करें ।

सिंचाई-

इस फसल में पहली सिंचाई बोनी के 20 से 25 दिन पर करना चाहिये । पानी निकासी का उचित प्रबंध करना चाहिये, जिन स्थानों पर पानी रूकता है, वहां के पौधे पीले पड़ने लगते हैं । सिंचाई की संख्या व मात्रा भूमि की किस्म व तापमान पर निर्भर करती है । फिर भी अच्छे उत्पादन के लिये 3 से 4 सिंचाई देना आवश्यक है । स्वस्थ एवं पुष्ट बीजों के उत्पादन के लिये पुष्पावस्था के प्रारंभ से लेकर बीजों की दुग्धावस्था तक खेतों में नमी रहनी चाहिये । नमी की कमी होने से बीजोत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है तथा उत्पादन में कमी आती है ।

कटाई एवं उत्पादन-

एक कटाई के लिये बोई गयी फसल को 50 प्रतिशत फूल आने की अवस्था में (75 से 85 दिन) कटाई करना उपयुक्त रहता है । इससे लगभग 400 क्विंटल  हरा चारा प्राप्त होता है । दो कटाई के लिये ली जाने वाली फसल पहली कटाई 55 से 60 दिन में तथा दूसरी कटाई 50 प्रतिशत फूल आने पर करनी चाहिये । इससे लगभग 500 क्विंटल  प्रति हे. हरा चारा प्राप्त होता है । दो कटाई वाली फसल को काटते समय इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिये कि पौधों की पहली कटाई 4 से 5 सेंटीमीटर ऊंचाई पर करें जिससे उसकी पुर्नवृद्धि अच्छी प्रारंभ हो ।

बीज उत्पादन-

बीज के लिये उगाई गई फसल 50 से 55 दिन में एक बार हरा चारा के लिये कटाई करने के बाद बीज उत्पादन के लिये छोड़ देना चाहिये, ऐसा करने से लगभग 250 क्वि.प्रति हे. हरा चारा के साथ 10 से 12 क्विंटल प्रति हे. बीज प्राप्त होता है । बीज उत्पादन के लिये ली गई फसल में चारे के लिये कटाई करने से पुर्नवृद्धि के बाद पौधे गिरते नहीं है । इससे बीज की गुणवत्ता तथा उत्पादन अच्छा प्राप्त होता है । फसल की कटाई न करने पर फसल के गिरने के कारण बीज उत्पादन पर विपरीत असर पड़ता है।

जई

  • बुआई के पूर्व जई के बीजों का उपचार कार्बेन्डाजिम 2.5 ग्राम प्रति किलोग्राम की दर से करें ।
  • अधिक उत्पादन हेतु जई की प्रमुख प्रजातियां जे ओ-1, जे ओ-2, जे ओ-03-91 एवं केन्ट हैं।
  • बीज की मात्रा 80 किलो प्रति हेक्टेयर ली जानी चाहिये।
  • इसमें 80 किलो नत्रजन, 40 किलो स्फुर एवं 20 किलो पोटाश का प्रयोग करें।
  • बीज के लिये उगाई गई फसल 50 से 55 दिन में एक बार हरा चारा काटने के बाद बीज उत्पादन के लिये छोड़ देना चाहिये, ऐसा करने से लगभग 250 क्वि.प्रति हे. हरा चारा के साथ 10 से 12 क्विंटल प्रति हे. बीज प्राप्त होता है ।

Source :किसान कल्याण तथा किसान विकास विभाग मध्यप्रदेश