ज्वार की उत्पादन तकनीक

ज्वार की खेती

भूमि का चुनाव:

मटियार, दोमट या मध्यम गहरी भूमि, पर्याप्त जीवाष्म तथा भूमि का 6.0 से 8.0 पी.एच. सर्वाधिक उपयुक्त पाया गया है ।

भूमि की तैयारी:

गर्मी के समय खेत की गहरी जुताई भूमि उर्वरकता,खरपतवार एवं कीट नियंत्रण की दृष्टि से आवश्यक है। खेत को ट्रेक्टर से चलने वाले कल्टीवेटर या बैलजोडी से चलने वाले बखर से जुताई कर जमीन को अच्छी तरह भूरभूरी कर पाटा चलाकर बोनी हेतु तैयार करना चाहिये।

बोनी का समय:

उत्पादन की दृष्टि से ज्वार में बोनी का समय बहुत महत्वपूर्ण है । ज्वार की फसल को मानसून आने के एक सत्पाह पहले सूखे  में बोनी करने से उपज में 22.7 प्रतिशत वृघ्दि पायी गयी है । साथ ही साथ जल्दी बोने से फसल में इसका मुख्य कीट तना मक्खी का प्रकोप कम पाया जाता है । सूखे में बोनी के लिये कीट नाशक दवा जैसे क्लोरोपायरीफास 2 प्रतिशत चूर्ण का 20 से 25 किलोग्राम प्रति हेक्टर की दर से भुरकाव करना आवश्यक है।\

बीज की मात्रा:

एक हेक्टेयर क्षे़त्र के लिये 8 से 10 किलो ग्राम स्वस्थ एवं 70 से:75 प्रतिशत अंकूरण क्षमता वाला बीज पर्याप्त होता है।

बीजोपचार एवं कल्चर का उपयोग:

फफूंद नाशक दवा थायामिथोक्सेम 70 डब्ल्यू. एस. की 3 ग्राम दवा प्रति किलो बीज के हिसाब से उपचारित करें। फफुंद नाशक दवा से उपचार के उपरान्त एवं बोअनी के पूर्व 10 ग्राम एजोस्प्रिलियम एवं पी.एस.एम. कल्चर का उपयोग प्रति किलो बीज के हिसाब से अच्छी तरह मिलाकर करें । कल्चर के उपयोग से ज्वार की उपज में 17.6 प्रतिशत वृघ्दि पाई गई है।

अधिक उत्पादन प्राप्त करने हेतु सही पौध संख्या: 

ज्वार की विपुल उत्पादन देने वाली जातियों तथा संकर जातियों में पौध संख्या 180,000 (एक लाख अस्सी हजार) प्रति हेक्टर रखने की अनुसंशा की जाती है । जिसे बीज को 45 से.मी. दूरी पर कतारों में 12 से.मी. दूरी पर पौधे रखने पर प्राप्त की जा सकती है । व्दिउद्दशीय ( दाना एवं कडबी) वाली नई किस्मों जैसे जवाहर ज्वार 1022, जवाहर ज्वार 1041 एवं सी.एच.एस.18 की पौध संख्या 2,10,000 (दो लाख दस हजार) प्रति हेक्टेयर रखना चाहिये । यह पौध संख्या फसल को कतारों से कतारों की दूरी 45 से.मी. एव पौधे से पौधे की दूरी 10 से.मी. पर रखकर प्राप्त की जा सकती है ।

खाद एवं उर्वरक:

अच्छी उपज के लिये 80 किलो ग्राम नत्रजन, 40 किलो स्फुर, तथा 40 किलो ग्राम पोटाश प्रति हेक्टर देना चाहिये । बोनी के समय नत्रजन की आधी मात्रा तथा स्फुर और पोटाष की पूरी मात्रा बोनी के समय बीज के नीचे देवें । नत्रजन की शेष मात्रा जब फसल 30-35 दिनों की हो जाये, यानि पौधे जब घूटनों की ऊंचाई के हो तब पौधों से लगभग 10-12 से.मी. की दूरी पर साईड ड्रेसिंग के रूप में देकर डोरा चलाकर भूमि में मिला दें । जहां गोबर की खाद अथवा कम्पोस्ट खाद उपलब्ध हो वहां 5 टन प्रति हेक्टर देना लाभदायक होता है तथा इससे ज्वार का अधिक से अधिक उत्पादन प्राप्त होता है ।

खरपतवार नियंत्रण:

ज्वार फसल पर खरपतवार नियंत्रण हेतु कतारों के बीच व्हील हो या डोरा बोअनी के 15 से 20 दिन बाद एवं 30 से 35 दिन बाद चलावें । इसके तत्पश्चात कतारों के अंदर हाथों व्दारा निंदाई करें । संभव हो तो कुल्पे के दाते में रस्सी बांधकर पौधों पर मिट्टी चढावें । रासायनिक नियंत्रण में एट्राजीन 0.5-1.0 किलो प्रति हेक्टर सक्रिय तत्व को 500 लीटर पानी में मिलाकर बोनी के पश्चात एवं अंकूरण के पूर्व छिडकाव करें ।

ज्वार आधारित अन्र्तवर्तीय फसल में प्रभावी खरपतवार नियंत्रण हेतु एलाक्लोर खरपतवार नाशी की 1.5 किलोग्राम सक्रिय तत्व की 75 प्रतिशत मात्रा को 500 लिटर पानी में मिलाकर अंकुरण के पूर्व छिडकाव करने से अधिक उपज एवं आय मिली है ।

अंगिया ग्रस्त खेत में ज्वार के अनुकूल मौसम होने पर भी भुटटे में दाने नही भरते है। खरपतवार या निंदानाशक दवाओं के छिडकाव में भी अंगिया की रोकथाम की जा सकती है। 2-4 डी का सोडियम साल्ट, 2 किलो सक्रिय तत्व प्रति हेक्टर का छिडकाव करने से ज्वार में अंगिया की रोकथाम होती है । जब अंगिया की संख्या सीमित होती है तब अगिया को उखाडकर नष्ट किया जा सकता है।

ज्वार के साथ अंतरवर्तीय फसले:

इस पघ्दति का उद्देश्य है जो किसान मुख्यतः ज्वार की खेती करते है वे प्रति इकाई क्षेत्र में एक ही समय में अधिक से अधिक उपज लें । 30 से.मी. की दूरी पर ज्वार की दो कतारे और 30 से.मी. पर सोयाबीन की दो कतारे इस तरह एकान्तर प्रणाली में बोनी करने से ज्वार की पूरी उपज और सोयाबीन की कलगभग 6 से 8 क्विंटल प्रति हेक्टर उपज मिलती है ।
45 से.मी. की दूरी पर ज्वार की 4 कतारे और 45 से.मी. की दूरी पर तुवर की दो कतारें अथवा ज्वार की दो कतार एवं तुवर की एक कतार इस तरह एकान्तर प्रणाली महत्वपूर्ण खेत की बोवनी करें । ज्वार की पैदावार में आंशिक कमी आयेगी परंतु तुवर की उपज 6-8 क्विंटल प्रति हेक्टर प्राप्त होगी ।

नमी संरक्षण:

मेड़ एवं कुण्ड तकनीकी से ज्वार की बुआई करने से अधिकतम उत्पादन प्राप्त होता है। साथ ही भूमि की नमी का भरपूर उपयोग हो पाता है। 6 टन प्रति हेक्टेर की दर से हरे खरपतवार आच्छादन करने से अधिक उत्पादन एवं आय प्राप्त होती है।

पौध संरक्षण:

ज्वार की फसल में अनेक प्रकार के कीट पाए जाते है इनमें प्रमुख है तना छेदक मक्खी यानि शूट फलाय, तना छेदक इल्ली यानी स्टेम बोरर और भुट्टो के कीट इनमें मुख्यतः मिज मक्खी अधिक हानि पहुँचाती है ।

तना छेदक मक्खी:

यह कीट वयस्क घरेलू मक्खी की तुलना में आकार में छोटी होती है । इसकी मादा पत्तों के नीचे सफेद अंडे देती हैं । इन अंडे से 2 से 3 दिनों में इल्लियां निकलकर पत्तों के भोगंलों से होते हुवे तनो के अंदर प्रवेष करती है । और तनों के बढने वाले भाग को खा कर खत्म करती है यानी नाड़ा बनाती है । ऐसे पौधों में भुट्टे नही बन पाते ।

नियंत्रण के उपाय:

जैसे पूर्व में बताया गया है, की ज्वार की फसल को मानसून आने के एक सत्पाह पहले सूखे में बोनी कर ली जावे तो इस कीट से हानि कम होती है । बोनी के समय बीज के नीचे फोरेट 10 प्रतिषत दानेदार कीट नाषक 12 से 15 किलोग्राम प्रति हेक्टर के मान से देवें । देरी से बोनी होने पर सवाया बीज बोये ।

तना छेदक इल्ली:

इस कीट की वयस्क मादा मक्खी पत्तों की निचली सतह पर 10 से लेकर 80 के गुच्छों में अंडे देती है जिनसे 4 से 5 दिनों में इल्लियां निकलकर पत्तों के भोगंलों में प्रवेष करती है । तनों के अंदर वे सुरंग बनाती है और अतंतः नाडा बनाती है इस कीट की पहचान पत्तों में बने छेदों से की जा सकती है । जो इल्लियां भोगंलों में प्रवेष के समय बनाती है ।

नियंत्रण के उपाय:

पौधे जब 25 से 35 दिनों की अवस्था के हो तब पत्तों के भोंगलो  में कार्बोफयुरान 3 प्रतिषत दानेदार कीट नाषक के 5 से 6 दाने प्रति पौधे की मात्रा में डालें । लगभग 8 से 10 किलोग्राम कीटनाषक एक हेक्टर के लिये लगता है

भुट्टो के कीट:

इनमें मीज मक्खी प्रमुख है । सामान्यतः तापमान जब गिरने लगता है तब कीट दिखाई देता है । इस कीट की वयस्क मादा मक्खी नारंगी-लाल रंग की होती है । जो फूलों के अंदर अंडे देती है, अंडो से 2 से 3 दिन में इल्लियां निकलकर फूलों के अंडकोपो को खाकर नष्ट करती है। परिणामस्वरूप भुट्टो में कई जगह दाने नही बन पाते।

नियंत्रण के उपाय:

खेत में जब 90 प्रतिषत पौधों में भुट्टे पोटो से बाहर निकल आवें तब भुट्टों पर मेलाथियान 50 ई.सी. (1 लीटर प्रति हेक्टर) तरल कीट नाषक को 500-600 लीटर पानी में मिलाकर छिडकाव करें । आवष्यकता हो तो 10-15 दिनों बाद छिडकाव दोहरा दे । यदि तरल कीटनाशक उपलब्ध न हो तो मेलाथियान 5 प्रतिशत चूर्ण का भूरकाव 12 से 15 किलोग्राम प्रति हेक्टर की दर से करें ।

पौध रोग:

संकर किस्मों और नई किस्मों के पत्तों पर पर्ण चित्ती रोग कम दिखाई देते है क्योकि उनमें इन रोगों के लिए प्रतिरोधिकता का आनुवांशिक गुण है । कंडवा रोग भी नई किस्मों में नही दिखाई देता । पौध सड़न अथवा कंडवा का नियंत्रण बीज को कवकनाषी दवा से उपचारित करने से संभव है चूँकि ज्वार की नई किस्में लगभग 95 से 110 दिनों में पकती है, दाने पकने की अवस्था में वर्षा होने से दानों पर काली अथवा गुलाबी रंग की फफूंद की बढवार दिखाई देती है । दाने पोचे हो जाते है, उनकी अंकूरण क्षमता कम हो जाती है और मानव आहार के लिये ऐसे दाने उपयुक्त नही है ।

नियंत्रण के उपाय:

इस रोग के सफल नियंत्रण के लिये यदि ज्वार फूलने के समय वर्षा होने से वातावरण में अधिक नमी हो तो डाईथेन -एम.45 (0.3 प्रतिशत) के मिश्रण के घोल का छिडकाव तीन बार भुट्टो पर करना चाहिये ।
1. फुलने के समय
2. दाने दूध की अवस्था में हो तब, और
3. दाने पक रहें हो तब

फसल की कटाई:

फसल की कटाई कार्यकीय परिपक्वता पर करना चाहिये । ज्वार के पौधों की कटाई कर के ढेर लगा देते है । बाद में पौध से भुट्टो को अलग कर लेते है तथा कडबी को सुखाकर अलग ढेर लगा देते है यह बाद में जानवरों को खिलाने में काम आती है दानों को सुखाकर जब नमी 10 से 12 प्रतिशत हो तब भंडारण करना चाहिये ।

भारत में उपजाई जानें वाली अन्य फसलें 

Source :किसान कल्याण तथा किसान विकास विभाग मध्यप्रदेश