ग्वार की खेती
उपज
ग्वार शुष्क क्षेत्रों में उगाई जाने वाली दलहनी फसल है जिसे भारत में अफ्रीका से लाया गया था। ग्वार की फसल आज विभिन्न देशों में उगाई जाती है तथा वर्तमान समय में भारत ग्वार उत्पादन में अग्रणी है। सम्पूर्ण विश्व के कुल ग्वार उत्पादन का 80 प्रतिशत अकेले भारत में पैदा होता है। भारत में 2.95 मिलियन हैक्टर क्षेत्र में ग्वार की फसल उगाई जाती है जिससे 130 से 530 किलोग्राम प्रति हैक्टर ग्वार का उत्पादन होता है, जोकि 65 देशों में नियत किया जाता है। भारत से ग्वार गोंद (गम) का निर्यात 1995–1996 में 83000 टन से बढकर 2006–2007 में 205000 टन और वर्तमान वर्ष में 201000 टन ग्वार गम भारत से दूसरे देशों में निर्यात होने की उम्मीद की जा रही है।
ग्वार का उपयोग
ग्वार की फसल मुख्यतः भारत के उत्तर-पश्चिमी राज्यों (राजस्थान, हरियाणा, गुजरात एवं पंजाब) में उगाई जाती है। ग्वार एक बहुउद्देशीय फसल है जोकि बढ़ते जलवायु परिवर्तन एवं घटते संसाधनों में अहम भूमिका निभाती है। इससे प्राप्त होने वाली फलियों को सब्जी के रूप में एवं दानों को पशु आहार एवं गोंद उद्योग में प्रयोग किया जाता है। इससे प्राप्त होने वाले पौष्टिक चारे को हरे एवं शुष्क चारे के रूप में पशुओं को खिलाया जाता है।
गोंद निचोड़ने के बाद विभिन्न प्रकार के उत्पाद जैसे-ग्वार आटा, ग्वार खली, ग्वार चूरी एवं ग्वार कोरमा (अधिक प्रोटीन युक्त) पशुओं एवं सूअरों को दाने के रूप में खिलाया जाता है और ग्वार गम का प्रयोग पेपर उद्योग, कपड़ा उद्योग एवं इमारती लकड़ी फिनीशिंग के रूप में किया जाता है। ग्वार की बढ़ती मांग और उत्पादन लागत में कमी को देखते हुए किसानों में ग्वार की खेती की लोकप्रियता बढ़ी है। वर्तमान समय में वैश्विक स्तर पर ग्वार के बीज की मांग दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। क्योंकि ग्वार बीज का उपयोग गोंद उद्योग के साथ-साथ पेट्रोलियम उद्योग में भी किया जा रहा है।
ग्वार की फसल के लिए उपयुक्त जलवायु
ग्वार शुष्क जलवायु की कम पानी की आवश्यकता वाली फसल है। ग्वार को ग्रीष्म और वर्षा ऋतु दोनों में ही उगाया जा सकता है। इसे भारी काली मृदाओं को छोड़कर सभी प्रकार की मृदाओं में उगाया जा सकता है। अधिक ग्वार उत्पादन के लिए उचित जलनिकास वाली बलुई दोमट से दोमट मृदाएं सर्वोत्तम होती है।
ग्वार की फसल के लिए भूमि की तैयारी
रबी फसल की कटाई के बाद खाली पड़े खेतों में पहली जुताई मिट्टी पलट हल (हैरो) से करने के बाद दो जुताई कल्टीवेटर से करनी चाहिए और बाद में पाटा लगाकर खेत को समतल कर लेना चाहिए। पाटा लगाने से भूमि में नमी बनी रहती है।
ग्वार की बुआई का समय एवं बीज की मात्रा
ग्वार की बुआई दो समय पर की जा सकती है।
1.सब्जी के लिए ग्वार को फरवरी-मार्च में आलू, सरसों, गन्ना आदि के खाली पड़े खेतों में बोया जाता है।
2. जून-जुलाई में ग्वार मुख्य रूप से चारे और दाने के लिए पैदा की जाती है। इस फसल की बुआई प्रथम मानसून के बाद जून या जुलाई में की जानी चाहिए। कुछ क्षेत्रों में ग्वार की बुआई सितम्बर से अक्तूबर में भी की जाती है। ग्वार की फसल के लिए 5-8 कि.ग्रा. प्रति हैक्टर बीज की आवश्यकता पडती है। ग्वार के बीज को राईजोबियम व फॉस्फोरस सोलूबलाइजिंग बैक्टीरिया (पी.एस.बी.) कल्चर से उपचारित करना चाहिए।
खाद एवं उर्वरक की मात्रा एवं प्रयोग विधि
बुआई से पहले खेत की जुताई के समय 10-12 टन प्रति हैक्टर सड़ी हुई गोबर की खाद मिलानी चाहिए। ग्वार फसल में सामान्यतः 25 कि.ग्रा. नाइट्रोजन 50 कि.ग्रा. फॉस्फोरस और 50 कि.ग्रा. पोटाश का प्रयोग करना चाहिए। जिसमें नाइट्रोजन की आधी मात्रा व फॉस्फोरस और पोटाश की पूरी मात्रा का प्रयोग बुआई के समय करना चहिए तथा शेष नाइट्रोजन बुआई से एक माह बाद छिटकवॉ विधि से प्रयोग करना चाहिए।
खरपतवार एवं सिंचाई प्रबंधन
खरपतवारों को रोकने के लिए बुआई के एक माह बाद एक निराई-गुडाई करनी चाहिए तथा बुआई के तुरन्त बाद बासालीन 800 मि.ली. प्रति एकड़ 250 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करना चाहिए। सामान्यतः जुलाई में बोई गई फसलों में सिंचाई की आवश्यकता नहीं पड़ती है। परन्तु वर्षा न होने की दशा में एक सिंचाई फलियाँ बनते समय अवश्य करनी चाहिए।
कीट एवं रोग नियंत्रण
ग्वार की फसल में कीटों की समस्या कम रहती है। ग्वार में लगने वाले कीटों में एफिड़ (माहू), पत्ती छेदक, सफेद मक्खी, लीफ हापर या जैसिड़ व केटरपिलर प्रमुख हैं। भरपूर उत्पादन हेतु इन कीटों को नियंत्रित करना बहुत जरूरी है। एफिड, जैसिड़ व केटरपिलर की रोकथाम हेतु एंडोसल्फान 4 प्रतिशत पाउडर का 25 किग्रा प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए या इंडोसल्फान 35 ईसी की 0.07 प्रतिशत की दर से फसल पर 10 दिनों के अंतराल पर दो छिड़काव उपयोगी पाए गए हैं। सफेद मक्खी के नियंत्रण हेतु इमिडाक्लोरपिड़ 0.03 प्रतिशत का छिड़काव करना चाहिए। इसके अलावा जहां पानी की सुविधा हो, मिथाइल पैराथियान 50 प्रतिशत 750 मिली प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए। शुष्क और अर्ध-शुष्क क्षेत्रों की मृदाओं में भूमिगत कीटों विशेषकर दीमक का अधिक प्रकोप होता है। इसकी रोकथाम हेतु क्लोरपायरीफास या एंडोसल्फान 4 प्रतिशत या क्यूनालफास 1.5 प्रतिशत पूर्ण 25 किग्रा प्रति हेक्टेयर की दर से बुवाई पूर्व मिट्टी में अच्छी तरह से मिला दें।
ग्वार की फसल के प्रमुख रोगों में जीवाणुज अंगमारी, ऑल्टरनेरिया पर्ण अंगमारी, जड़ गलन, चूर्णिल आसिता व ऐन्थ्रेक्नोज है। इनमें जीवाणुज अंगमारी ग्वार में लगने वाली भयंकर बीमारी है। बीमारी के लक्षण सर्वप्रथम पत्तियों की ऊपरी सतह पर बड़े-बड़े धब्बे के रूप में प्रकट होते हैं। ये धब्बे शीघ्र ही संपूर्ण पत्तियों को ढ़क लेते हैं। अतः पत्तियां गिर जाती हैं। इससे बचाव हेतु रोगरोधी किस्में बोएं। बुवाई से पूर्व बीज उपचार अवश्य करें। इसके लिए स्ट्रेप्टोसाइक्लिन 100-250 पीपीएम (100-250 मिलीग्राम प्रति लीटर) घोल का प्रयोग करना चाहिए।
ऑल्टरनेरिया पर्ण अंगमारी वर्षा होने के समय फसल को नुकसान पहुंचाती है। यह एक फफूंदजनित बीमारी है। इसमें पत्तियों के किनारों पर गहरे भूरे, गोलाकार व अनियमित आकार के धब्बे बन जाते हैं। परिणामस्वरूप पत्तियां पीली पड़ जाती हैं और अन्त्ततः झड़ जाती हैं। इससे बचाव हेतु डाइथेन जेड-78 का 0.20 प्रतिशत का छिड़काव रोग के लक्षण प्रकट होने पर 15 दिन के अंतराल पर दो या तीन बार करें। ऐन्थ्रेक्नोज भी एक फफूंदीजनित रोग है।
इसमें पौधों के तनों, पर्णवृन्तों और पत्तियों पर काले धब्बे बन जाते हैं। इससे बचाव हेतु डायथेन जेड-78 का 0.20 प्रतिशत का छिड़काव करना चाहिए। जड़ गलन रोग से बचाव हेतु वीटावैक्स या बाविस्टीन की दो ग्राम प्रति किग्रा बीज की दर से उपचारित करने के बाद बुवाई करनी चाहिए। चूर्णिल आसिता बीमारी की रोकथाम के लिए घुलनशील गंधक (0.3 प्रतिशत) का एक किग्रा प्रति हेक्टेयर की दर से 15 दिनों के अंतराल पर खड़ी फसल में छिड़काव करना चाहिए।
हरे चारे के रूप में ग्वार की कटाई का समय
ग्वार के हरे चारे वाली फसल की कटाई बुआई के 50-60 दिन के बाद फूल आने की अवस्था में की जानी चाहिए। फली बनने की अवस्था में ग्वार के हरे चारे को खिलाना दुधारू पशुओं के लिए उपयोगी होता है।
ग्वार की कटाई और उपज
ग्वार की कटाई उस समय करनी चाहिए जब उसकी पतियाँ पीली पड कर झड़ जायें तथा फलियों का रंग भूसे जैसा दिखने लगे, अन्यथा कटाई में देरी करने पर फलियों के छिटकने से बीज जमीन पर गिर जाएंगे | ग्वार फसल से हरे चारे की औसत उपज 150–225 कुण्टल प्रति हैक्टर एवं हरी फलियों की उपज 40–60 कुण्टल प्रति हैक्टर और दाने की उपज 17-19 कुण्टल प्रति हैक्टर प्राप्त होती है।
उन्नतशील प्रजातियाँ
विश्वविद्यालय हिसार से निकाली गई है। दाने की उपज के लिए उत्तम प्रजातियाँ है ।
1. पूसा मौसमी–ग्वार की यह प्रजाति वर्षा ऋतु में यह खून में कोलेस्टरोल को कम करता है। उगाई जाने वाली फसल के लिए सर्वोत्तम है।
2. पूसा सदाबहार एवं पूसा ग्रीष्म ऋतु में कारण हड्डियों को मजबूत करता है।
3. एच.जी. 563,एच.जी. 870 – ये हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय हिसार से निकाली गई हैं।दाने की उपज के लिए उत्तम प्रजातियाँ हैं।
4. एच.एफ.जी 156–यह एक लम्बी, शाखादार, खुरदरी पत्तियों वाली चारे की प्रजाति है, इसके हरे चारे की औसत उपज 130–140 कुण्टल प्रति एकड़ है।
मृदा स्वास्थ्य
ग्वार दलहनी फसल होने के कारण इसकी जडों में जड़ ग्रन्थियां पाई जाती है, जो वातावरणीय नाईट्रोजन का स्थिरीकरण करती है और मृदा की भौतिक दशा को सुधारने के साथ-साथ अन्य फसलों की उपज में वृद्धि करती है। ग्वार अनुपजाऊ लवणीय एवं क्षारीय मृदाओं को सुधारने का भी कार्य करती है। इसका प्रयोग हरी खाद के रूप में भी किया जाता है।
औषधीय महत्व
- सेवन करने से बीमारियों से लड़ने की क्षमता में विकास होता है।
- इसका प्रयोग एनीमिया एवं हानिकारक जीवाणुओं को कम करने में भी किया जाता है।
- आयुर्वेद के अनुसार मानव शरीर में बीमारी मूलतः कफ, वात एवं पित्त के संतुलन बिगड़ने से उत्पन्न होती है। ग्वार फली के सेवन से पित्त में कमी आती है वहीं कफ व वात को बढ़ा देती है।
- ग्लाइको पोषक तत्व पाये जाने के कारण डाइबिटीज के मरीज में ग्लूकोज स्तर नियमित करता है।
- भोजन को पचाने के साथ-साथ पाचन तंत्र को भी सही करता है और ऑतों में होने वाली बीमारियों को कम करता है।
- सेवन करने से दिल मजबूत होता है क्योंकि ग्वार फॉस्फोरस और केल्शियम की उपस्थिति के
- लौहे की उपस्थिति के कारण रक्त प्रवाह उगाई जाने वाली सर्वोत्तम प्रजातियाँ है। अच्छा होता है अतः उच्च वाले व्यक्तियों के कृषि लिए लाभदायक होता है।
- ग्हइपोग्लाइशिमिक तत्व की उपस्थिति के कारण बौद्धिक क्षमता को बढ़ाने में भी सहायक है। जो लोग चिड़चिड़े एवं चिन्तित रहते हैं उनके लिए भी लाभदायक है।
- विटामिन की प्रचुरता के कारण गर्भस्थ शिशु और उसे अनेक बीमारियों से लड़ने की क्षमता प्रदान करता है और साथ-साथ भी लाभदायक होता है। हड्डियों को सुदृढ बनाने एवं प्रौढ़ता से लड़ने में भी सहायक होता है।
1: 100 ग्राम ग्वार के दानों में पोषक तत्वों की मात्रा पोषक
पोषक तत्व | मात्रा | पोषक तत्व | मात्रा |
कैल्शियम | 130 मि.ग्रा. | लोहा | 1 ग्राम |
कार्बोहाईड्रेट | 11 मि.ग्रा. | खनिज लवण | 1 ग्राम |
ऊर्जा | 16 कैलोरी | नमी | 81 ग्राम |
वसा | 0 ग्राम | फॉस्फोरस | 57 मि.ग्रा. |
रेशे | 3 ग्राम | प्रोटीन | 3 ग्राम |
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