शिमला मिर्च उत्पादन विधी

शिमला मिर्च की खेती

हमारे देश मे उगाई जाने वाली विभिन्न प्रकार की सब्जियों मे टमाटर एवं शिमला मिर्च (कैपसीकम एनम) का एक महत्वपूर्ण स्थान है। शिमला मिर्च को सामान्यता बेल पेपर भी कहा जाता है। इसमे विटामिन-सी एवं विटामिन -ए तथा खनिज लवण जैसे आयरन, पोटेशियम, ज़िंक, कैल्शियम इत्यादी पोषक तत्व प्रचुर मात्रा मे पाये जाते है। जिसके कारण अधिकतर बीमारियो से बचा जा सकता है।बदलती खाद्य शैली के कारण शिमला मिर्च की मांग दिन प्रतिदिन बढती जा रही है।

जलवायु और मृदा

दिन का तापमान 22 से 28 डिग्री सेंटीग्रेड एवं रात्रीकालीन तापमान सामान्यतः 16 से 18 डिग्री सेंटीग्रेड उत्तम रहता है।अधिक तापमान की वजह से फूल झडने लगते है एवं कम तापमान की वजह से परागकणो की जीवन उपयोगिता कम हो जाती है। सामान्यतः शिमला मिर्च की संरक्षित खेती पॉली हाउस  मे कीटरोधी एवं शेड नेट लगाकर सफलतापूर्वक कर सकते है। शिमला मिर्च की खेती के लिए सामान्यतः बलुई दोमट मृदा उपयुक्त रहती है जिसमे अधिक मात्रा मे कार्बनिक पदार्थ मौजूद हो एवं जल निकासी अच्छी हो।

पॉलीहाउस परिचय :-

पॉलीहाउस पारदर्शी आवरण से ढके हुए ऐसे ढांचे होते है जिनमे कम से कम आंशिक या पूर्णरूप से नियंत्रित वातावरण मे फसले पैदा की जाती है। पॉलीहाउस तकनीक का बे-मौसमी सब्जियाँ पैदा करने मे महत्वपूर्ण स्थान है। पॉलीहाउस की खेती के लिए सामान्यतः ऐसी फसलो का चयन किया जाता है। जिनका आयतन कम हो एवं अधिक मूल्यवान हो जैसे खीरा, टमाटर, शिमला मिर्च इत्यादि।

भूमि की तैयारी

पौध रोपण के लिए मुख्य खेत को अच्छी तरह से 5-6 बार जुताई कर तैयार किया जाता है । गोबर की खाद या कम्पोस्ट अंतिम जुताई के पूर्व खेत मे अच्छी तरह से खेत मे मिला दिया जाना चाहिए। तत्पश्चात उठी हुई 90 सेमी चौडी क्यारियाँ बनाई जाती है । पौधों की रोपाई ड्रिप लाईन बिछाने के बाद 45 सेमी की दूरी पर करनी चाहिए। एक क्यारी पर पौधो की सामान्यतः दो कतार लगाते है।

किस्मों का चयन  :-

प्रमुख किस्मेः कैलिफोर्निया वंडर, रायल वंडर, येलो वंडर, ग्रीन गोल्ड, भारत , अरका बसन्त, अरका गौरव , अरका मोहिनी, सिंजेटा इंडिया की इन्द्रा, बॉम्बी, लारियो एवं ओरोबेल, क्लॉज़ इंटरनेशनल सीडस की आशा, सेमिनीश की 1865, हीरा आदि किस्मे प्रचलित है।

बीज दर –

सामान्य किस्म – 750-800 ग्राम एवं संकर शिमला – 200 से 250 ग्राम प्रति हैक्टयर रहती है

पौध तैयार करना

बीज मंहगे होने के कारण इसकी पौध प्रो-ट्रेज मे तैयार करनी चाहिए। इसके लिए अच्छे से उपचारित ट्रेज का उपयोग किया जाना चाहिए। ट्रेज मे मीडिया का मिश्रण जैसे वर्मीकुलाइट, परलाइट एवं कॉकोपीट 1:1:2 की दर से तैयार करना चाहिए एवं मीडिया को भली भांति ट्रेज मे भरकर प्रति सेल एक बीज डालकर उसके उपर हल्का मिश्रण डालकर झारे से हल्की सिंचाई कर देनी चाहिए। यदि आवश्यक हो तो मल्च का उपयोग भी किया जा सकता है। एक हेक्टयर क्षेत्रफल मे 200-250 ग्राम संकर एवं 750-800 ग्राम सामान्य किस्म के बीज की आवश्यकता होती है।

रोपाई –

30 से 35 दिन मे शिमला मिर्च के पौध रोपाई योग्य हो जाते है। रोपाई के समय रोप की लम्बाई तकरीबन 16 से 20 सेमी एवं 4-6 पत्तियां होनी चाहिए। रोपाई के पूर्व रोप को 0.2 प्रतिशत कार्बेन्डाजिम मे डुबो कर पूर्व मे बनाए गए छेद मे लगाना चाहिए। पौधो की रोपाई अच्छी तरह से उठी हुई तैयार क्यारियाँ मे करनी चाहिए। क्यारियो की चौड़ाई सामान्यतः 90 सेमी रखनी चाहिए। पौधो की रोपाई ड्रिप लाईन बिछाने के बाद 45 सेमी की दूरी पर करनी चाहिए। एक क्यारी पर पौधों की सामान्यतः दो कतार लगाते है।

उर्वरक –

25 टन /है. गोबर खाद एवं रासायनिक उर्वरक मे एनः पीः के: 250:150: एवं 150 किग्रा. / है.

सिंचाई – गर्म मौसम मे 7 दिन तथा ठण्डे मौसम मे 10-15 दिन के अन्तराल पर। ड्रिप इरीगेशन की सुविधा उपलब्ध होने पर उर्वरक एवं सिंचाई (फर्टीगेशन) ड्रिप द्वारा ही करना चाहिए।

खरपतवार नियंत्रण

2 से 3 बार गुडाई करना आवश्यक है। अच्छी उपज के लिए 30 एवं 60 दिनो के बाद गुडाई करनी चाहिए। शिमला मिर्च मे अच्छी उपज के लिए मिट्टी चढाना आवश्यक है यह कार्य 30-40 दिन की अवस्था पर करना चाहिए। रासायनिक दवा के रूप मे खेत तैयार करते समय 2.22 लीटर की दर से फ्लूक्लोरेलिन (बासालिन ) का छिडकाव कर खेत मे मिला देना चाहिए। या पेन्डीमिथेलिन 3.25 लीटर प्रति हैक्टयर की दर से रोपाई के 7 दिन के अंदर छिडकाव कर देना चाहिए।

वृद्धि नियंत्रक –

उपज बढाने के लिए ट्राइकोन्टानाॅल 1.25 पी.पी.एम (1.25 मिलीग्राम/लीटर पानी ) रोपाई के बाद 20 दिन की अवस्था से 20 दिन के अन्तराल पर 3से 4 बार करना चाहिए। इसी प्रकार एन.ए.ए. 10 पी.पी.एम (10 मिलीग्राम/लीटर पानी ) का 60 वे एवं 80 वे दिन छिडकाव करना चाहिए।

पौधों को सहारा देना –

पौधो को प्लास्टिक या जूट की सूतली रोप से बांधकर उपर की और बढने दिया जाना चाहिए जिससे फल गिरे भी नही एवं फलो का आकार भी अच्छा हो। पौधो को सहारा देने से फल मिट्टी एवं पानी के सम्पर्क मे नही आ पाते जिससे फल सडने की समस्या नही होती है।

कीट प्रकोप एवं प्रबंधन

  1. सफेद मक्खी (व्हाइट फ्लाई)

इस कीट के शिशु व वयस्क दोनों पत्तों से रस चूसकर पौधों को हानि पहुँचाते हैं। कीड़ों के मधु बिन्दु पर काली फंफूद (माल्ड) आने से पौधों का प्रकाश संशलेषक कम हो जाता है। यह कीट मिर्च का वायरस जनित ‘पत्ती  मरोड़क’ रोग भी फैलाता है।

प्रबंधन      

  1. रोपाई से पहले पौधों की जड़ों को आधे घंटे के लिए इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एस.एल. 1 मि. लिटर/3 लिटर के घोल में डुबोएँ।
  2. नर्सरी को 40 मैश की नाइलोन जाली (नेट) से ढंक कर रखें।
  3. 3. नीम बीज अर्क (6 प्रतिशत) या नीम तेल 5 मि.लि./लिटर या डाइमेथोएट 30 ई.सी. 2 मि.लि./लिटर  या मिथइल डेमिटोन 30 ई.सी. 2 मि.लि./लिटर छिड़कें।
  1. मिर्चथ्रिप्स

इस कीट के भी शिशु वयस्क दोनों ही पौधों के कोमल हिस्सों से रस चूसते हैं जिससे पत्ते सिकुड़ जाते हैं। यह कीट वायरस जनित पत्ती मरोड़क रोग भी फैलाता है।

इस कीट की रोकथाम के लिए इन्डोसल्फान 35 ई.सी. 2 मि.लि./लिटर या कार्बेरिल 50 डब्ल्यू.पी. 2 ग्राम/लिटर या डायमेथेएट 30 ई.सी. 2 मि.लि./लि. का छिड़काव करें।

  1. फल छेदक (टोमैटो फ्रूट बोरर)

फल छेदक की इल्लियाँ फलों को छेदकर नुकसान पहुँचाती है।

प्रबंधन

  1. इस कीड़े की निगरानी के लिए 5 फीरोमोन टै्रप प्रति हेक्टेयर इस्तेमाल करें।
  2. एच.ए.एन.पी.बी. 250 एल.ई./हैक्टेया या बी.टी. 2 ग्राम/लिटर या नीम बीज अर्क (5 प्रतिशत) या एमामेक्टिन बैन्जोएट 5 एस.जी. 1 ग्राम/2 लिटर या स्पिनोसेड 45 एस.सी. 1 मि.लि./4 लिटर का छिड़काव करें।
  1. तम्बाकू की इल्ली (टोबैको कैटरपिल्लर)

इस कीट की इल्लियाँ पौधों की पत्तियों व अन्य कोमल भागों को नुकसान पहुँचाती हैं।

समन्वित नाशीजीव प्रबंधन क्रियाएँ –

नर्सरी के समय


1. पौधशाला की क्यारियों भूमि धरातल से लगभग 10 सेमी ऊची होनी चाहिए।
2. क्यारियों को मार्च अप्रेल माह मे 0.45 मि.मी. मोटी पॉलीथिन शीट से ढकना चाहिए। भू-तपन के लिए मृदा मे पर्याप्त नमी होनी चाहिए।
3. 3 किग्रा गोबर की खाद मे 150 ग्राम  फफूंद नाशक ट्राइकोडर्मा मिलाकर 7 दिन तक रखकर 3 वर्गमीटर की क्यारी मे मिट्टी मे अच्छी तरह से मिला देना चाहिए।
4. पौधशाला की मिट्टी को कॉपर ऑक्सीक्लोराइड के 3 ग्राम प्रति लीटर पानी के घोल से बुवाई के 2-3 सप्ताह बाद छिडकाव करे।

मुख्य फसल

पौध रोपण के समय पौध की जडो को 0.2 प्रतिशत कार्बेन्डाजिम या 5 ग्राम ट्राइकोडर्मा प्रति लीटर पानी के घोल मे 10 मिनट तक डुबो कर रखे। पौध रोपण के 15-20 दिन के अंतराल पर चेपा, सफेद मक्खी एवं थ्रिप्स के लिए 2 से 3 छिडकाव इमीडाक्लोप्रिड या एसीफेट के करे  माइट की उपस्थिती होने पर ओमाइट का छिडकाव करे।
फल भेदक इल्ली एवं तम्बाकू की इल्ली के लिए इन्डोक्साकार्ब या प्रोफेनोफॉस का छिडकाव ब्याधि के उपचार के लिए बीजोपचार, कार्बेन्डाजिम या मेन्कोज़ेब से करना चाहिए। खडी फसल मे रोग के लक्षण पाये जाने पर मेटालेक्सिल + मैन्कोजेब या ब्लाईटॉक्स का धोल बनाकर छिडकाव करे। चूर्णी फफूंद होने सल्फर घोल का छिडकाव करे।

फलों की तुड़ाई एवं उपज

फलो की तुडाई हमेशा पूरा रंग व आकार होने के बाद ही करनी चाहिए तथा तुडाई करते समय 2-3 से.मी. लम्बा डण्ठल फल के साथ छोडकर फल को पौधो से काटा जाना चाहिए। वैज्ञानिक तरीके से खेती करने पर संकर शिमला मिर्च की औसतन पैदावार 700-800 क्विंटल प्रति हेक्टयर होती है ।

शिमला मिर्च की प्रति हेक्टेयर कृषि लागत व्यय (रुपये में )

विवरण
मात्रा एवं दर प्रति इकाई
खर्चा (रु.)
भूमि की तैयारी
जुताई की संख्या 02, दर 500/- प्रति घंटा 1000
मजदूरों की संख्या 06, दर 150/- 900
खाद एवं उर्वरक
गोबर की खाद 20 टन, 2 वर्ष में एक बार 1000/-प्रति टन, 20000
नत्रजन 250 किलोग्राम दर 12.40/- 3100
फास्फोरस 150 किलोग्राम दर 32.70/- 905
पोटाश (मृदा परीक्षण के अनुसार ) 150 किलोग्राम दर 19.88/- 2982
मजदूरों की संख्या 20, दर 150/- 3000
पौधों को सहारा देना (स्टेकिंग)
बॉस एवं वायर 31000
मजदूरों की संख्या 40, दर 150/- 6000
बीज की मात्रा 200 ग्राम दर 800/10 ग्राम 16000
बुवाई पर मजदूरों की संख्या 15, दर 150/- 2250
सिंचाई संख्या 10 5000
मजदूर 10 दर 150/- 1500
निदाई मजदूरों की संख्या 40 दर 150/- 6000
फसल सुरक्षा
ट्राइजोफॉस
इमीडाक्लोप्रिड
एसीफेट
प्रोफेनोफॉस
मजदूरों की संख्या
2 बार, दर 450/-
दो बार ,दर 200/-
2 बार, दर 160/-
दो  बार, दर 500/-
16 दर 150/-
900/-
400/-
320/-
1000/-
2400/-
तुडाई (मजदूरों की संख्या ) 40 दर 150/- 6000
कुल लागत
114657
कुल आय (औसतन पैदावार 700 क्विंटल प्रति हेक्टेयर) 700000
शुद्ध लाभ
585343
Source :किसान कल्याण तथा किसान विकास विभाग मध्यप्रदेश