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मंगलवार, दिसम्बर 3, 2024
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पशुओं के लिए उत्तम चारा- अर्जुन

पशुओं के लिए उत्तम चारा- अर्जुन

परिचय

अर्जुन चारे को वानस्पतिक रूप से टर्मिनलिया अर्जुना नाम से जाना जाता है एवं इसका स्थानीय नाम अर्जुन ही है यह कौमब्रीटेसी परिवार से आता है यह मुख्यतः नदियों जल धाराओं, वीहडों और सूखे जलमार्गो के किनारे होता है। य्ह नम, उर्वर, जलोढ दोमट मिट्टी में विशाल आकार प्राप्त करता है। यह बिहार, उडिसा, मध्यप्रदेश आदि क्षेत्रों मेँ पाये जाते है।

जलवायु

अधिकतम तापमान 38 से 48°Cउपयुक्त होता है एवं न्युनतम तापमान 1 से 15°C  तक इसके लिए सामन्यतः  वर्षा 750 से 1750 मी.मी. अधिक उपयुक्त है, यह नमी तथा ठण्डे क्षेत्रों में पाये जाते है।

मिट्टी 

यह नम, उर्वर , जलोढ दुमट मिट्टी मेँ अच्छी वृद्धि प्राप्त करती है। क्षारीय मिट्टी में अच्छी वृद्धि होती है।

स्थलाकृति

1500 मी. उचाई पर पाये जाते है।

आकारिकी

अर्जुन प्राय: पुश्तेदार तने, बडे छ्त्र और झूलती शाखाओं वाले एक विशाल सुन्दर वृक्ष है जो कि सदाहरित रहता है। इसका उँचाई 29 मी. तथा मोटाई 3मी. होती है। इसकी छाल चिकनी होती है जो पतली विषमाकृति परतो में झडती है। छोटे- छोटे सफेद फूलो के गुच्छे होते है।

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ऋतु जैविकी

सदारहित वृक्ष होता है। गर्मी ऋतु में नयी पत्तियाँ आती हैं। फुल अपैल से जुलाई तक खिलते है। एक साल बाद फरवरी से मार्च तक फल पकते है। वनोयोग्य लक्षण  मध्यम छायापेक्षी वृक्ष है। पाला, सुखा तथा उपर से घनी छाया सहन नहीं करते। इसमे स्कंधप्ररोहण एंव स्थूणप्ररोहण अच्छा होता है तथा मूलरोह उत्पन्न होते है।

पौधशाला प्रबन्धन

ठण्डे या गर्म पानी से बीजोपचार करने से बुआई के 8-10 दिन तक अंकुरन हो जाता है। पौधाशाला में पौध को तीन महिने तक रखा जाता है।

मिट्टी पलटना  

3मी.×3मी. दुरी पर 30 सेमी3 या 45 सेमी.°3 गड्ढा किया जाता है।

रोपण तकनीक

2-3 महिने के पौध को रोपा जाता है। सीधी बुआई या कलम किया जाता है। 15 महिने के पौध को कलम किया जाता है। एक साल के बीजांकुर को रास्ते किनारे लगाया जाता है।

निकौनी

जरूरत के अनुसार खरपतवार निकाला जाता है।

खाद एवं उर्वरक 

गड्ढा में 1.5 से 2 किलो सडी गोबर का खाद् तथा 7-10 ग्राम एलड्रिन 5% धुल मिलाया जाता है।

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कीट, रोग तथा जानवर

पौधाशाला एंव युवा वृक्ष के नये पत्ते को वेबील ( एपोडेरस ट्रंसकुवेरिकस) द्धारा नष्ट होते हैं।

उपयोग 

कृषि यंत्र, मकान, चाय की पेटी आदि बनाने के काम आता है। यह अच्छे जलावन लकडी तथा चारा के रूप में उपयोग होता है। रेशम के कीट इसमे पलते है। छाल का उपयोग औषधि बनाने में इस्तेमाल होता है। यह सडकों के किनारे छाया या शोभा के लिए लगाया जाता है।

वृद्धि तथा उपज

16 साल में लम्बाई  11 से 12 मी. तथा मोटाई  59 से 89 सेमी. होता है।

सिंचाई 

जरूरत के अनुसार सिचाईं किया जाता है।

खेती-किसानी की जानकारी विडियो के माध्यम से जानने के लिए क्लिक करें

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