गौ एप का हुआ डेमो गौ मूत्र से बनाया गया हाइड्रोजन
भारतीय संस्कृति में गाय का बहुत महत्व है परंतु आज के समय में गाय को बेसहारा छोड़ दिया जाता है। ऐसे में गोवंश के सरंक्षण के लिए कई पहल की जा रही है। ऐसी ही एक पहल डॉ.एपीजे अब्दुल कलाम प्राविधिक विश्वविद्यालय (एकेटीयू ) में की गई है। एकेटीयू में 9 दिसम्बर के दिन गौ एप और गौमूत्र से हाइड्रोजन और फिर बिजली बनाने का डेमो दिया गया।
इस दौरान वहाँ मौजूद लोगों ने एप को अपने मोबाइल में डाउनलोड भी किया। साथ ही परिसर में मौजूद एक गाय का चेहरा एप में फ़ीड कर खुद डेमो किया। आने वाले दिनों में यह एप गायों को पहचान देगा। एस एप में गायों की पूरी कुंडली रहेगी। वही गो मूत्र का इस्तेमाल हाइड्रोजन बनाने में किया जा सकेगा।
गौ एप से क्या लाभ होगा
एकेटीयू के कुलपति प्रोफ़ेसर प्रदीप कुमार मिश्र ने बताया कि गायों का पूरा ब्योरा इस एप में दर्ज होगा। साथ ही एप के ज़रिए दान दाताओं को जोड़ा जाएगा। जो एनजीओ के ज़रिए गौशालाओं को दान करेंगे। एप के ज़रिए उन्हें पता चलेगा कि उनका पैसा सही जगह लगा है या नहीं। साथ ही गायों की सेहत भी उन्हें पता चलती रहेगी। साथ ही एनजीओ को गोशालाओ से गोबर और गोमूत्र मिलेगा। जिसके ज़रिए वो खाद और अन्य चीजें बना सकेंगे। इस एप से जन साधारण भी जुड़ सकेंगे।
इंडियन बायोगैस एसोसिएशन के सहयोग से टेक मशीनरी लैब के निशांत कृष्णा और उनकी टीम से मिलकर गौ एप बनाया है। फ़ेस बायोमेट्रिक की तरह गोवंश के चेहरे से उनकी पहचान एप के ज़रिए होगी। इस एप में गो वंश की पूरी डीटेल रहेगी साथ ही एप में गायों को दान देने वालों को भी जोड़ा जाएगा।
गायों के लिए एप बनेगा सहारा
इस पहल से न केवल गाय बेसहारा होने से बचेंगी बल्कि उनसे फ़ायदा भी होगा। गोशालाओं से गोबर और मूत्र लेकर बायोगैस, खाद, अगरबत्ती समेत अन्य चीजें बनेगी। इस माडल के प्रयोग से गोशालाओं से निकलने वाले गोबर से खाद बनेगी तो मूत्र से आयुर्वेदिक दवा बनाने के साथ बायो हाइड्रोजन बनाने का भी प्रयास हो रहे हैं। इसका फ़ायदा पर्यावरण को होगा।
पशुओं को नहीं छोड़ पाएँगे बेसहारा
इस एप का एक फ़ायदा ये भी होगा कि लोग अपने पालतू जानवरों को बेसहारा नहीं छोड़ पाएँगे। क्योंकि इस एप में पशुओं का पूरा ब्योरा फोटो के साथ डालने की सुविधा होगी। इसके बाद दोबारा एप पर पशुओं की फोटो डालने पर पता चल जाएगा कि उक्त पशु का मालिक कौन है।
गाय आधारित उन्नति यानी गौ एप को कुलपति प्रो.प्रदीप कुमार मिश्र और आईआईएम अहमदाबाद के प्रो.अमित गर्ग के मार्गदर्शन में इंडियन बायोगैस एसोसिएशन व टेक मशीनरी लैब ने मिलकर बनाया है।