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मंगलवार, दिसम्बर 3, 2024
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कृषि विज्ञान केंद्र द्वारा किया गया पशु स्वास्थ्य शिविर का आयोजन, पशुओं का किया गया इलाज

पशुपालन से किसान अधिक से अधिक मुनाफा कमा सके इसके लिए कृषि विज्ञान केंद्र द्वारा पशुपालकों को समय-समय पर प्रशिक्षण दिया जाता है। इस कड़ी में एमपी के टीकमगढ़ जिले के कृषि विज्ञान केंद्र द्वारा निकरा परियोजना जलवायु समुत्थानुशील कृषि पर राष्ट्रीय नवाचार के अंतर्गत कोड़िया ब्लॉक के जतारा में पशु स्वास्थ्य शिविर का आयोजन किया गया। पशु स्वास्थ्य शिविर के आयोजन का मुख्य उद्देश्य किसानों को पशुओं के रोग, कीट, पोषण एवं रखरखाव के प्रति जागरुक करना है।

पशु स्वास्थ्य शिविर में गाय-भैंस एवं बकरी आदि की बीमारियां जैसे खुरपका, मुंहपका, गलघोटू, लंगड़ा बुखार, ब्रुसेलोसिस, रेबीज, एंथ्रेक्स थाइलेरियोसिस, थनैला एवं कीट जैसे चिचड़, मक्खी, पेट के कीड़े इत्यादि का इलाज, टीकाकरण एवं बचाव हेतु जानकारी दी गई। वर्तमान में बकरियों में चिचड़ कीट की समस्या अधिक देखी गई है, इसके नियंत्रण एवं बचाव हेतु दवाई एवं सुझाव दिए गए।

पशुओं को बीमारियों से बचाने के लिए सावधानियाँ

शिविर में पशुपालक कृषकों को बताया गया की सावधानियां रखना इलाज कराने से बेहतर होता है अर्थात किसान पशुओं को संतुलित आहार, समय-समय पर टीकाकरण एवं साफ-स्वच्छ पानी के प्रबंधन करते हैं तो अधिकतर बीमारियों से छुटकारा मिल जाता है। संतुलित आहार में खली, अनाज, अनाज के उत्पाद (जैसे चुनी, दलिया), हरा चारा एवं सूखा चारा पशुओं की उम्र एवं कार्य क्षमता के अनुसार दिया जाता है। संतुलित आहार न मिलने पर पशुओं के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है जैसे दुधारु पशुओं में दुग्ध उत्पादन क्षमता कम होना एवं बकरियों के पूर्ण विकास ना होना जिससे किसानों की आय प्रभावित होती है। संतुलित आहार की विस्तृत एवं पूर्ण जानकारी के लिए राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड द्वारा विकसित एवं संचालित पशु पोषण एप्लीकेशन मोबाईल में डाउनलोड करने के बारे में सिखाया गया।

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शिविर में पशुओं का किया गया इलाज

पशु स्वास्थ्य शिविर में पशुपालन विभाग द्वारा संचालित योजनाओं के बारे में भी जानकारी दी गई। शिविर में कृषि विज्ञान केंद्र के डॉ. बी.एस. किरार प्रधान वैज्ञानिक एवं प्रमुख डॉ.आर.के. प्रजापति, डॉ. यू.एस. धाकड़ एवं जयपाल छिगारहा एवं पशुपालन विभाग से ए.वी.एफ.ओ. डॉ. मनीष प्रजापति सहित 45 कृषक उपस्थित रहे। शिविर में 25 गाय, 47 भैंस एवं 71 बकरियों का इलाज किया गया।

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