सुखा प्रभावित क्षेत्रों में पशुओं की देखभाल
देश में अलग – अलग राज्यों तथा राज्यों के अन्दर अलग – अलग जिलों मे मौसम एक सामान नहीं रहता है | कभी कहीं अधिक वर्ष तो कहीं अधिक सुखाड़ पड़ता है जिससे दिनचर्या की जीवन के साथ – साथ पशुओं के लिए चारा तथा पानी की संकट बन जाती है | कभी – कभी तो इंसान के साथ पशुओं को भी अपने क्षेत्र से पलायन करने पर मजबूर होना पड़ता है | अगर आप के क्षेत्र में सुखा पड़ा है तो इससे पशुओं को पचाने के लिए यह सभी उपाय करें |
- पशुओं को छायादार स्थानों पर रखा जाये |
- पर्याप्त मात्रा में पेय जल की व्यवस्था रखी जाये |
- पशुओं को आवश्यक मात्रा में चारा – दाना उपलब्ध कराया जाय |
- विषम परिस्थिति में सू – बबूल, शीशम, सहजन, पीपल, गुलद आदि के पत्ते का उपयोग सिमित मात्रा में किया जा सकता है |
- सुखाड़ में कम पानी की खपत वाले पशु चारा बाजरा, ज्वार, मक्का आदि की उपयुक्त किस्में पशु चहरे के लिए उगायी जा सकती है |
- अपरिपक्व ज्वार – बाजरा के पौधे पशुओं को नहीं खिलाना चाहिए | इससे उनके जान को खतरा हो सकता है | बाली लग जाने के बाद ही खिलाना उचित है |
- पशुओं को कभी भी लावारिस नहीं छोड़ा जाये | एसी स्थति में पशु भूख के कारण अवांछित वस्तुएँ खा लेते हैं , जो उनके लिए जानलेवा भी हो सकता है |
- किसी तरह की परेशानी होने पर प्रखंड पशुपालन पदाधिकारी या निकटतम पशु चिकित्सालय में सम्पर्क कर उचित सलाह / चिकित्सा प्राप्त किया जा सकता है |
- शरीर में जल लवन की कमी को ध्यान में रखकर दिन में कम से कम चार बार स्वच्छ जल उपलब्ध करना चाहिए | साथ ही संतुलित आहार के साथ – साथ उचित मात्रा में खनिज मिश्रण देना चाहिए |
- कम पानी तथा कम स्थान घेरने वाले पौष्टिक चारा “अजोला” की खेती की जा सकती है |
- हाईड्रोपोनिक विधि से हर चारा का उत्पादन कराया जा सकता है |
- पशुओं के पेयजल हेतु सरकार द्वारा तैयार कराये गए “कैटल ट्रफ़” का उपयोग करना चाहिए |