एमपी के जबलपुर जिले के कृषि अधिकारियों ने गुरूवार को विकासखंड पाटन के अंतर्गत ग्राम कुकरभूका के किसान अर्जुन पटेल द्वारा खेत में रेज्ड बेड पद्धति से लगाए गए गेहूँ के DBW-377 फाउंडेशन बीज का निरीक्षण किया। इस अवसर पर अनुविभागीय कृषि अधिकारी डॉ. इंदिरा त्रिपाठी एवं वरिष्ठ कृषि विकास अधिकारी जेपी त्रिपाठी के सहित बड़ी संख्या में क्षेत्रीय किसान मौजूद रहे।
किसान अर्जुन पटेल ने बताया कि गेहूं का DBW-377 फाउंडेशन बीज भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् करनाल से लाया गया है। जिसे उनके द्वारा 30 किलो ग्राम प्रति एकड़ की मात्रा के साथ अपने खेत में बोया गया है। किसान अर्जुन पटेल द्वारा ब्रीडर बीज प्रमाणीकरण संस्था में पंजीयन भी कराया गया है। इस बीज को फाउंडेशन सीड के रूप में कृषको को वितरित किया जायेगा।
रेज्ड बेड पद्धति क्या है?
किसान कल्याण एवं कृषि विकास विभाग से प्राप्त जानकारी के अनुसार किसानों द्वारा यथा स्थिति नमी संरक्षण के लिए फसल बुवाई की इस रेज्ड बेड विधि का उपयोग किया जाता है। इसमें बुवाई संरचना, फैरो इरीगेटेड रेज्ड बेड प्लांटर से बनाई जाती है, जिसमें सामान्यत: प्रत्येक दो कतारों के बाद लगभग 25 से 30 से.मी. चौड़ी व 15 से 20 से.मी. गहरी नाली या कूंड बनते है। जिससे फसल की कतारें रेज्ड बेड पर आ जाती है। रबी के मौसम में यही कूड़ सिंचाई के काम में लिए जा सकते है। चूंकि इस मौसम में अधिक नमी संरक्षण की आवश्यकता होती है। जिससे बेड में अधिक समय तक नमी बनी रहती है। साथ ही मेढ़ से मेढ़ की दूरी पर्याप्त होने से पौधों की केनोपी को सूर्य की किरणें अधिक से अधिक मिलती है। जिससे उत्पादन बढ़ता है।
पारंपरिक और रेज्ड बेड पद्धति में अंतर
- फसल बुवाई की रेज्ड बेड पद्धति में 30 किलो प्रति एकड़ बीज की आवश्यकता होती है जबकि परंपरागत विधि से 80 से 100 किलो बीज लगता है।
- रेज्ड बेड पद्धति में एक पौधे में 15 से 16 कल्ले आते हैं जबकि परंपरागत विधि से गेहूं में तीन से चार कल्ले आते हैं।
- वहीं रेज्ड बेड पद्धति में उत्पादन कम से कम 25 से 30 क्विंटल प्रति एकड़ आता है, जबकि परंपरागत विधि उत्पादन 18-20 क्विंटल प्रति एकड़ आता है।
- रेज्ड बेड पद्धति में फसल में कल्लों की संख्या ज्यादा आती है जिस कारण फसल गिरती नहीं है जबकि परंपरागत पद्धति में फसल गिर जाने की सम्भावना होती है।