देश में गेहूँ की बुआई (जिसमें देरी से बिजाई वाला क्षेत्र भी शामिल है) अब लगभग पूरी हो चुकी है। अनुकूल मौसम की स्थिति के चलते गेहूँ की वानस्पतिक वृद्धि और टिलरिंग काफी अच्छी है। जिसको देखते हुए भारतीय गेहूं एवं जौ अनुसंधान संस्थान, करनाल द्वारा गेहूं किसानों के लिए विशेष सलाह जारी की गई है। जिनका पालन कर किसान लागत में कटौती कर गेहूं की फसल से अच्छा उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं।
गेहूं अनुसंधान संस्थान द्वारा दिए गए सुझाव
- उत्तर भारत में हाल ही में हुई वर्षा को ध्यान में रखते हुए अच्छी वृद्धि सुनिश्चित करने के लिए यूरिया का 40 किलोग्राम प्रति एकड़ की दर से एक खुराक देने की सलाह दी गई है।
- जिन क्षेत्रों में वर्षा नहीं हुई है, उन क्षेत्रों में खेतों की सिंचाई करने का सुझाव दिया गया है। ताकि तापमान बहुत कम होने के कारण होने वाले नुकसान से फसल को बचाया जा सके।
- लागत में कटौती और पानी बचाने के लिए किसानों को विवेकपूर्ण तरीके से सिंचाई करना चाहिए।
- इस स्तर पर उचित खरपतवार प्रबंधन का पालन करने की आवश्यकता है।
- सिंचाई से पहले खराब मौसम पर नजर रखें और बारिश के पूर्वानुमान की स्थिति में सिंचाई से बचें ताकि खेतों में अत्याधिक पानी की स्थिति से उत्पन्न जलजमाव से बचा जा सके।
- फसल में पीलापन होने पर नाइट्रोजन (यूरिया) का अधिक प्रयोग न करें। इसके अलावा कोहरे या बादल की स्थिति में नाइट्रोजन के उपयोग से बचें।
- पीला रतुआ संक्रमण के लिए फसल का नियमित रूप से निरीक्षण करें और रोग के लक्षण मिलने पर निकटवर्ती संस्थान, कृषि विश्वविद्यालय अथवा कृषि विज्ञान केंद्रों से संपर्क करें।
- सरंक्षण कृषि में यूरिया का छिड़काव सिंचाई से ठीक पहले किया जाना चाहिए।