दवा उत्पादन हेतु अमलतास-फल की कृषि वानिकी

दवा उत्पादन हेतु अमलतास-फल की कृषि वानिकी

परिचय 

अमलतास- फल को  रिसिनस कम्युनिस वैज्ञानिक नाम से जाना जाता है, जबकि अमलतास,गोल्डन शोवेर त्री, इंडियन लबुर्नुम, लैंटर्न ट्री इसके स्थानीय नाम है जो फैवेशी / फैबासीई परिवार से आता है | इसका मूल स्थान भारत एंव मलेशिया है लेकिन पुरे उष्णकंटिबन्धीय क्षेत्रों मे फैला हुआ है। यह एक सदाबहार वृक्ष है जिसकी ऊँचाई 12.14 मी. सामान्य वृद्धि दर, पत्ते एंव 35-40 मी. लंबाई के होते हैं।

फूल

चमकीले पीले रंग के गुच्छे मे लटके हुए होते हैं, जिनकी लंबाई 30-50 सेमी. होती है, छोटी चमकीले पत्तियों का समूह एंव गाडा भूरा बेलनाकार फल्ली जिसकी लंबाई 70 सेमी. होती है

मिट्टी 

इसके लिए सभी प्रकार के मिट्टी अनुकूल है।

प्रचारण विधि   

बीज के द्वारा प्रचारित किया जाता है, बीजो मे कठोर बाहरी आवरण होता है, इसलिए बीजो का अंकुरण तभी संभव है जब ये बाहरी आवरण पतला या मिटा दिया जाए। नर्सरी मे बीजो को अप्रैल-मई मे बोया जाता है और ये रोपने के लिए सितम्बर महीने तक तैयार हो जाते हैं।

उपज  

एक परिपक्व पेड से 300 से 500 फल्ली तोडे/प्राप्त किया जा सकता है।

वर्षा   

इसकी अच्छी उपज के लिए औसत वार्षिक वर्षा दर  600 से 1300 मिमी. उपयुक्त है |

तापमान औसत वार्षिक तापमान :

10-38 डिग्री. से. परिपक्वता आयु  यह 7 वें वर्ष के पश्चात परिपक्व होता है।

संग्रहण समय  

  • पत्ते मई के महीने मे गिर जाते हैं इसके बाद नये पत्ते बसंत के बाद जुन के महीने मे आते हैं। –
  • फल्ली नवम्बर-दिसम्बर के महीने मे परिपक्व होती है।

प्राथमिक प्रसंस्करण एंव मूल्यसंवर्धन

फल व फल्ली मे सक्रिय तत्व हैं जिनका उपयोग दवाई के रुप मे होता है। जिसे पीसकर मधुर गुदा निकाला जाता है।

उपयोग 

इनका उपयोग विभिन्न रुपों एंव कार्यो मे होता है, जैसे- शोधक के रुप मे, कसैला, मृदुरेचक, वायुविकार, पेट दर्द मे उपयोग करते हैं। -बैक्टीरिया के विपरित कार्य करता है (घाव भरता है) – कफ को कम करता है एंव कृमि इत्यादि की स्ंख्या को मिट्टी मे न्युनतम स्तर पर रखता है। – यह वायु प्रदुषण को चिन्हित करने के लिए सक्षम है। – अमलतास का वृक्ष भारी धातुओं को हटाता है। खाने मे पोटेशियम का श्रोत है।

प्रबन्ध तकनीक 

नाजूक भागो को पाला से बचाना पडता है, ये सुखाड के प्रति कठोर होते हैं, तापमान गिरने पर पत्ते पूरी तरह से झड जाते हैं,गर्मी मे हल्की सिंचाई के आवश्यकता पडती है, टहनियों का शिरे से मरण से देखा गया है।

 परागता

मधुमक्खियों के द्वारा किया जाता है, – प्रति वर्ष 2 मीटर वृद्धि करता है। जर्मप्लाज्म प्रबन्धन-कमरे के तापमान मे अर्थात 25 डिग्री से.मी. बीजों के अंकुरित होने की क्षमता 1 वर्ष से अधिक रहती है।

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