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गुरूवार, अप्रैल 25, 2024
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गेंदा उत्पादन की उन्नत तकनीक

गेंदा उत्पादन की उन्नत तकनीक

परिचय

गेंदा बहुत ही उपयोगी एवं आसानी से उगाया जाने वाला फूलों का पौधा है। यह मुख्य रूप से सजावटी फसल है। यह क्यारियों एवं हरबेसियस बॉर्डर के लिए अति उपयुक्त पौधा है। इस पौधे का अलंकृत मूल्य अति उच्च है क्योंकि इसकी खेती वर्ष भर की जा सकती है। तथा इसके फूलों का धार्मिक एवं सामाजिक उत्सवों में बड़ा महत्व है। हमारे देश में मुख्य रूप से अफ्रीकन गेंदा और फ्रेंच गेंदा की खेती की जाती है। गेंदा पीले रंग का फूल है। वास्तव में गेंदा एक फूल न होकर फूलों का गुच्छा होता है, लगभग उसकी हर पत्ती एक फूल है। गेंदा का वैज्ञानिक नाम टैजेटस स्पीसीज है।

भारत के विभिन्न भागों में, विशेषकर मैदानों में व्यापक स्तर पर उगाया जा रहा है। गेंदा मैक्सिको तथा दक्षिण अमेरिका मूल का पुष्प है। हमारे देश में गेंदे के लोकप्रिया होने का कारण है इसका विभिन्न भौगोलिक जलवायु में सुगमतापूर्वक उगाया जा सकता है। भारत में 1,10,000 हैक्टेयर क्षेत्रफल में इसकी खेती की जाती है। इसकी खेती करने वाले मुख्य राज्य कर्नाटक, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र है। पारम्परिक फूल जिनके गेंदा का लालबाग़ तीन चौथाई भाग है। मैदानी क्षेत्रों में गेंदे की तीन फ़सलें उगायी जाती है, जिससे लगभग पूरे वर्ष उसके फूल उपलब्ध रहते हैं।

जलवायु एवं मृदा

उचित वानस्पतिक बढ़वार और फूलों के समुचित विकास के लिए धूप वाला वातावरण सर्वोत्तम माना गया है। उचित जल निकास वाली बलूवार दोमट भूमि इसकी खेती के लिए उचित मानी गई है।जिस भूमि का पी.एच.मान 7 से 7.5 के बीच हो, वह भूमि गेंदें की खेती के लिए अच्छी रहती है। क्षारीय व अम्लीय मृदाए इसकी खेती के लिए बाधक पायी गई है|

गेंदे की खेती संपूर्ण भारतवर्ष में सभी प्रकार की जलवायु में की जाती है। विशेषतौर से शीतोषण और सम-शीतोष्ण जलवायु उपयुक्त होती है। नमीयुक्त खुले आसमान वाली जलवायु इसकी वृध्दि एवं पुष्पन के लिए बहुत उपयोगी है लेकिन पाला इसके लिए नुकसानदायक होता है।

इसकी खेती सर्दी, गर्मी एवं वर्षा तीनों मौसमों में की जाती है। इसकी खेती के लिए 14.5-28.6 डिग्री सैं. तापमान फूलों की संख्या एवं गुणवत्ता के लिए उपयुक्त है जबकि उच्च तापमान 26.2 डिग्री सैं. से 36.4 डिग्री सैं. पुष्पोत्पादन पर विपरीत प्रभाव डालता है।

गेंदे के बीज की मात्रा

संकर किस्मों में 700-800 ग्राम बीज प्रति हेक्टर तथा अन्य किस्मों में लगभग 1.25 कि.ग्रा. बीज प्रति हैक्टर पर्याप्त होता है। उत्तर प्रदेश में बीज मार्च से जून, अगस्त-सितंबर में बुवाई की जाती है |

गेंदे की किस्मों का चुनाव

अफ्रीकन गेंदे की कि‍स्‍में

पूसा नारंगी गेंदा, पूसा बसंती गेंदा, अलास्का, एप्रिकॉट, बरपीस मिराक्ल, बरपीस ह्नाईट, क्रेकर जैक, क्राऊन ऑफ गोल्ड, कूपिड़, डबलून, फ्लूसी रफल्स, फायर ग्लो, जियाण्ट सनसेट, गोल्डन एज, गोल्डन क्लाइमेक्स जियान्ट, गोल्डन जुबली, गोल्डन मेमोयमम, गोल्डन येलो, गोल्डस्मिथ, हैपिनेस, हवाई, हनी कॉम्ब, मि.मूनलाइट, ओरेन्ज जूबली, प्रिमरोज, सोबेरेन, रिवरसाइड, सन जियान्ट्स, सुपर चीफ, डबल, टेक्सास, येलो क्लाइमेक्स, येलो फ्लफी, येलोस्टोन, जियान्ट डबल अफ्रीकन ओरेन्ज, जियान्ट डबल अफ्रीकन येलो इत्यादि।

अफ्रीकन गेंदे के हाइब्रिड्स : अपोलो, क्लाइमेक्स, फर्स्ट लेडी, गोल्ड लेडी, ग्रे लेडी, मून सोट, ओरेन्ज लेडी, शोबोट, टोरियडोर, इन्का येलो, इन्का गोल्ड, इन्का ओरेज्न इत्यादि।

फ्रेन्च गेंदे की कि‍स्‍में

  • सिंगल : डायण्टी मेरियटा, नॉटी मेरियटा, सन्नी, टेट्रा रफल्ड रेड इत्यादि।
  • डबल : बोलेरो, बोनिटा, बा्रउनी स्कॉट, बरसीप गोल्ड नगेट, बरसीप रेड एण्ड गोल्ड, बटर स्कॉच, कारमेन, कूपिड़ येलो, एल्डोराडो, फोस्टा, गोल्डी, जिप्सी डवार्फ डबल्, हारमनी, लेमन ड्राप, मेलोडी, मिडगेट हारमनी, ओरेन्ज फ्लेम, पेटाइट गोल्ड, पेटाइट हारमनी, प्रिमरोज क्लाइमेक्स, रेड ब्रोकेड, रस्टी रेड, स्पेनिश ब्रोकेड, स्पनगोल्ड, स्प्री, टेन्जेरीन, येलो पिग्मी इत्यादि|
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खाद्य एवं उर्वरक

  • सड़ी हुई गोबर की खाद           : 15-20 टन प्रति हैक्टेयर
  • यूरिया                                  : 600 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर
  • सिंगल सुपर फास्फेट             : 1000 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर
  • म्यूरेट ऑफ पोटाश               : 200 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर

सारी सड़ी हुई गोबर की खाद, फास्फोरस, पोटाश व एक तिहाई भाग यूरिया को मृदा तैयार करते समय अच्छी तरह मिला लें तथा यूरिया की बची हुई मात्रा का एक हिस्सा पौधे खेत में लगाने के 30 दिन बाद व शेष मात्रा उसके 15 दिन बाद छिड़काव करके प्रयोग करें।

गेंदे की बीज शैया नर्सरी तैयार करना:

गेंदे की पौध तैयार करने के लिए बीज शैया तैयार करें, जो कि भूमि की सतह से 15 सैं.मी. ऊॅंची होनी चाहिए ताकि जल का निकास ठीक ढंग से हो सके। बीज शैया की चौड़ाई 1 मीटर तथा लंबाई आवश्यकतानुसार रखें। बीज बुवाई से पूर्व बीज शैया का 0.2 प्रतिशत बाविस्टीन या कैप्टान से उपचारित करें ताकि पौधे में बीमारी न लग सके और पौध स्वस्थ रहे।

बीजों की बुवाई :

अच्छी किस्मों का चयन कर बीज शइया पर सावधानीपूर्वक बुवाई करें। ऊपर उर्वर मृदा की हल्की परत चढ़ाकर, फव्वारे से धीरे-धीरे पानी का छिड़काव कर दें।

गेंदे की बीज दर :

800 ग्राम से 1 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर बीजों का अंकुरण 18 से 30 डिग्री सैं. तापमान पर बुवाई के 5-10 दिन में हो जाता है।

गेंदे की बुवाई का समय

पुष्पन ऋतु बीज बुवाई का समय पौध रोपण का समय
वर्षा मध्य – जून मध्य – जुलाई
सर्दी मध्य – सितम्बर मध्य – अक्तूबर
गर्मी जनवरी – फरवरी फरवरी – मार्च

 

पौध रोपण :

अच्छी तरह तैयार क्यारियों में गेंदे के स्वस्थ पौधों को जिनकी 3-4 पत्तियां हों पौध रोपण हेतु प्रयोग करें। जहां तक संभव हो पौध रोपाई शाम के समय ही करेुं तथा रोपाई के पश्चात् चारों तरफ मिट्टी को दबा दें ताकि जड़ों में हवा न रहं एवं हल्की सिंचाई करें।

पौधे से पौधे की दूरी

  • अफ्रीकन गेंदा : 45 X 45 सैं.मी. या 45 X 30 सैं.मी.
  • फ्रेन्च गेंदा : 20 X 20 सैं.मी. या 20 X 10 सैं.मी.

सिंचाई

गेंदा एक शाकीय पौधा है। अत: इसकी वानस्पतिक वृध्दि बहुत तेज होती है। सामान्य तौर पर यह 55-60 दिन में अपनी वानस्पतिक वृध्दि पूरी कर लेता है तथा प्रजनन अवस्था में प्रवेश कर लेता है। सर्दियों में सिंचाई 10-15 दिन के अंतराल पर तथा गर्मियों में 5-7 दिन के अंतराल पर करें।

वृध्दि नियामकों का प्रयोग

पौधों की रोपाई के चार सप्ताह बाद एस ए डी एच का 250-2000 पी.पी.एम. पर्णीय छिड़काव करने से पौधों में समान वृध्दि पौधे में शाखाओं के बढ़ने के साथ ही फूलों की उपज व गुणवत्ता भी बढ़ती है।

गेंदे की पिंचिंग (शीर्ष कर्तन)

पौधे के शीर्ष प्रभाव को खत्म करने के लिए पौध रोपाई के 35-40 दिन बाद पौधों को ऊपर से चुटक देना चाहिए जिससे पौधों की बढ़वार रूक जाती है। तने से अधिक से अधिक संख्या में शाखाएं प्राप्त होती है तथा प्रति इर्का क्षेत्र में अधिक से अधिक मात्रा में फूल प्राप्त होते हैं।

गेंदे मे खरपतावार नियंत्रण

  • खरपतवार पौधों की उपज व गुणवत्ता पर विपरीत प्रभाव डालते हैं। क्योंकि खरपतवार मृदा से नमी व पोषण दोनों चुराते हैं तथा कीड़ो एवं बीमारियों को भी शरण देते हैं। अत: 3-4 बार हाथ द्वारा मजदूरों से खरपतवार निकलवा दें तथा अच्छी गुढ़ाई कराएं।
  • खरपतवारों का रासायनिक नियंत्रण भी किया जा सकता है। इसके लिए एनिबेन 10 पौण्ड, प्रोपेक्लोर और डिफेंनमिड़ 10 पौंड प्रति हैक्टेयर सुरक्षित एवं संतोषजनक है।
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फूलों की तुड़ाई :

पूरी तरह खिले फूलों को दिन के ठण्डे मौसम में यानि कि सुबह जल्दी या शाम के समय सिंचाई के बाद तोड़े ताकि फूल चुस्त एवं दूरुस्त रहें।

गेंदे की पैकिंग :

ताजा तोड़े हुए फूलों को पॉलीथीन के लिफाफों, बांस की टोकरियों या थैलों में अच्छी तरह से पैक करके तुरंत मण्डी भेजें।

गैंदे की उपज :

अफ्रीकन गेंदें से 20 – 22 टन ताजा फूल तथा फेंच गेंदे से 10 – 12 टन ताजा फल प्रति हैक्टेयर औसत उपज प्राप्त होती है।

गेंदे मे कीट एवं नियंत्रण 

रेड स्पाइडर माइट :

यह बहुत ही व्यापक कीड़ा है। यह गेंदे की पत्तियों एवंत ने के कोमल भाग से रस चूसता है। इसके नियंत्रण के लिए 0.2 प्रतिशत मैलाथियान या 0.2 प्रतिशत मेटासिस्टॉक्स का छिड़काव करें।

चेपा :

ये कीड़े हरे रंग के, जूं की तरह होते हैं और पत्तओं  की निचली सतह से रस चूसकर काफी हानि पहँचाते हैं। चेपा विषाणु रोग भी फैलाता है। इसकी रोकथाम के लिए 300 मि.ली. डाईमैथोएट (रोगोर) 30 ई.सी. या मैटासिस्टॉक्स 25 ई.सी. को 200-300 लीटर पानी में घोलकर प्रति हैक्टेयर छिड़काव करें। यदि आवश्यकता हो तो अगला छिड़काव 10 दिन के अंतराल पर करें।

गेंदे मे रोग व रोकथाम

गेंदे का आर्द्र गलन :

यह बीमारी नर्सरी में पौध तैयार करते समय आती है। इसमें पौधे का तना गलने लगता है। इसकी रोकथाम के लिए 0.2 प्रतिशत कैप्टान या बाविस्टिन के घोल की डे्रचिंग करें।

गेंदे मे पत्तों  का धब्बा व झुलसा रोग :

इस रोग से ग्रस्त पौधों की पत्तिायों के निचले भाग भूरे रंग के धब्बे हो जाते हैं जिसकी वजह से पौधों की बढ़ावर प्रभावित होती है। इसकी रोकथाम के लिए डायथेन एम. के 0.2 प्रतिशत घोल का 15-20 दिन के अंतराल पर छिड़काव करें।

गेंदें का पाऊडरी मिल्डयू :

पत्तियों के दोनों तरफ व तने पर सफेद चूर्ण तथा चकते दिखाई देते हैं। जिसकी वजह से पौधा मरने लगता है। इसकी रोकथाम के लिए घुलनशील सल्फर (सल्फैक्स) एक लीटर या कैराथेन 40 इ.सी. 150 मि.ली. प्रति हैक्टेयर के हिसाब से 500 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।

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गेंदे के फ़ायदे

  • गेंदे की पत्तियों का पेस्ट फोड़े के उपचार में भी प्रयोग होता है। कान दर्द के उपचार में भी गेंदे की पत्तियों का सत्व उपयोग होता है।
  • पुष्प सत्व को रक्त स्वच्छक, बवासीर के उपचार तथा अल्सर और नेत्र संबंधी रोगों में उपयोगी माना जाता है।
  • टैजेटस की विभिन्न प्रजातियों में उपलब्ध तेल, इत्र उद्योग में प्रयोग किया जाता है।
  • जलन को नष्ट करने वाला, मरोड़ को कम करने वाला, कवक को नष्ट करने वाला, पसीना लाने वाला, आर्तवजनकात्मक होता है। इसे टॉनिक के रूप में भी इस्तेमाल किया जाता है।
  • इसके उपयोग से दर्द युक्त मासिक स्त्राव, एक्जिमा, त्वचा के रोग, गठिया, मुँहासे, कमज़ोर त्वचा और टूटी हुई कोशिकाओं में लाभ होता है।
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