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शुक्रवार, अप्रैल 19, 2024
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हल्दी की उन्नत खेती इस तरह से करें

हल्दी turmeric की आधुनिक खेती

हल्दी को धर्मिक कार्यों के अतरिक्त मसाला, रंग, सामग्री, औषधी तथा उप्त्न के रूप में उपयोग किया जाता है | भारत विश्व में हल्दी का सबसे बड़ा उत्पादक एवं उपभोक्ता देश है | आंध्र प्रदेश, केरल, तमिलनाडु, उड़ीसा, कर्नाटक, पश्चिम बंगाल, गुजरात, मेघालय, महाराष्ट्र, असम आदि हल्दी उत्पादित करने वाले प्रमुख्य राज्य है | इनमें से आंध्रप्रदेश प्रमुख्य राज्य हैं | यहाँ कुल क्षेत्रफल का 38 से 58.5% उत्पादन होता है |

खेती हेतु जलवायु एवं मिट्टी

खेती समुद्र टल से 1500 मीटर तक ऊँचाई वाले विभिन्न ट्रोपिकल क्षेत्रों में की जाती है | सिंचाई आधारित खेती करते समय वहाँ का तापमान 20 – 35 डिग्री सेन्टीग्रेट और वार्षिक वर्षा 1500 मीटर मीटर या अधिक होनी चाहिए | इसकी खेती विभिन्न प्रकार की मिटटी जैसे रेतीली, मटियार, दुमट मिटटी में की जाती है | जिसकी पी.एच. मन 4.5 से 7.5 होनाचाहिए |

हल्दी की किस्में 

देश के विभिन्न भागों में हल्दी की खेती करने वाले क्षेत्रों में स्थानीय कल्टीवर्स होते है जो स्थानीय नामों से जाने जाते हैं उनमें से कुछ लोकप्रिय कल्टीवर्स जैसे दुग्गिरल, तेक्कुरपेट, सुगन्धम , अमलापुरम, स्थानीय ईरोड, आल्प्पी, मुवाट्टुपूषा, लाकडांग आदि है | हल्दी की उन्नत प्रजातियाँ तथा उनके विशिष्ट गन तालिका में दिए गए है |

हल्दी के लिए खेती योग्य भूमि

मानसून की पहली वर्षा होते ही भूमि को तैयार किया जाता है | खेत को फसल योग्य बनाने के लिए भूमि को चार बार गहराई से जोतना चाहिए | दुमट मिटटी में 500 किलोग्राम / हेक्टेयर की दर से चुने के पानी का घोल डालकर अच्छी तरह जुताई करना चाहिए | मानसून के पूर्व वर्षा होते ही तुरन्त लगभग एक मीटर चौड़ी , 15 से.मीटर ऊँचाई तथा सुविधानुसार लम्बी बीएड को तैयार कर लेते हैं | इन बड़ों के आसपास में एक दुसरे से बीच की दुरी 50 से.मीटर होनी चाहिए |

हल्दी की बुवाई इस तरह करें 

केरल और अन्य पश्चिम तट वाले क्षेत्रों में जहाँ वर्षा मानसून से पहले होती है उन क्षेत्रों में अप्रैल और मई में मानसून के पूर्व वर्षा होते ही इस फसल की बुवाई की जाती है | कुछ क्षेत्रों में इस की बुवाई क्यारियों तथा मेढ़ बना कर भी करते हैं |

हल्दी के बीज  

अच्छी तरह विकसित और रोग रहित सम्पूर्ण या प्रकन्द के टुकड़े को बुवाई के लिए उपयोग करते हैं | बड़ों में 25 से.मीटर × 30 से.मीटर के अंतराल पर हाथ से खोदकर छोटे गड्ढे बनाए जाते हैं | इन गड्ढों में अच्छी तरह अपघटित गोबर की खाद या कम्पोस्ट भरकर उसमें बीज प्रकन्द को रखकर ऊपर से मिटटी डाल देते हैं | जबकि बड़ों में बुवाई पंक्तियों में करना चाहिए | इन पंक्तियों में एक दुसरे से बीच की दुरी 45 – 60 से.मीटर तथा पौधों के बीच की दुरी 25 से.मीटर रखना चाहिए | हल्दी की बुवाई करने के लिए 2,500 किलोग्राम / हेक्टेयर प्रकन्द बीज की आवश्यकता होती है |

हल्दी में खाद एवं उर्वरक

खेती के लिए भूमि को तैयार करते समय उसमें खाद (एफ. वाई. एम.) या क्म्पोष्ट 30 से 40 टन प्रति हेक्टेयर की दर से बेड़ों पर बिखेर कर तथा छोटे गढ्डे करके उस में भर देते हैं | उर्वरक जैसे नाईट्रोजन (60 किलोग्राम), फास्फोरस (50 किलोग्राम) तथा पोटाश 120 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से अपघटित मात्रा में डालना चाहिए | जबकि बुवाई के समय 2 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से जिंक और जैविक खाद जैसे ओएल केक 2 टन प्रति हेक्टेयर की दर से डालना चाहिए | अगर जिंक और ओरगानिक खाद का उपयोग कर रहे हैं तो खाद (एफ. वाई. एम.) की मात्रा कम कर देना चाहिए | कोयर क्म्पोष्ट 2.5 टन प्रति हेक्टेयर की दर से खाद जैव उर्वरक तथा एन.पी. के संस्तुत मात्रा की आधी मात्रा के साथ मिलाकर भी दल सकते हैं |

झपनी

पौधों को तेज धूप से बचाने के लिए तथा मिटटी में नमी बनाये रखने के लिए बुवाई के तुरन्त बाद 12 – 15 टन प्रति हेक्टेयर की दर से बड़ों को हरे पत्तों से ढकना चाहिए | बुवाई के 40 और 90 दिन बाद घास – पात निकालने और उर्वरक डालने के बाद 7.5 टन  पति हेक्टेयर की दर से दोबारा हियर पत्तों में छपनी करनी चाहिए |

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घास – पात एवं सिंचाई

घासपात के घनत्व के अनुसार बुवाई के 60 , 90 और 120 दिनों के बाद तिन बार घास – पात निकलना चाहिए | फसल की सिंचाई उस क्षेत्र की जलवायु और मिटटी के अनुसार होती है | फसल काल में लगभग 15 – 23 बार चिकनी मिटटी तथा 40 बार बालुई दुमट मिटटी में सिंचाई करना चाहिए |

मिश्रित एवं अंत: फसल

हल्दी की नारियल और सुपारी के साथ अन्त: फसल के रूप में खेती की जा सकती है | इसकी मिर्च , कोलोकैसिया, प्याज , बैंगन और अनाज जैसे मक्का तथा रागी आदि के साथ भी मिश्रति फसल के रूप में खेती की जा सकती है |

फसल संरक्षण

हल्दी में रोग

पर्ण दाग (लीफ बलोच)

पर्ण दाग रोग टापहीना मेकुलान्स के द्वारा होता है | इस रोग के होने पर छोटे , अंडाकार आयताकार या अनियमित भूरे रंग के दाग पत्तियों पर पद जाते हैं जो हल्दी ही गहरे पीले या भूरे रंग के हो जाते हैं जिससे पौधे की पत्तियां पिली पद जाती हैं | इस रोग की आत्यधिक से पौधों में सूखापन आ जाता है जिसके फलस्वरूप फसल की उपज में कमी आती है | इस रोग का नियंत्रण करने के लिए 0.2% मैंकोजेब का छिड़काव करते हैं |

पर्ण चित्ती (लीफ स्पोट)

यह रोग कोलीटोट्राइकम केप्सीसी के द्वारा होता है | नई पत्तियों के उपरी भाग में विभिन्न आकार की भूरे रंग की चित्ती पडती है | यह चित्ती बाद में एक दुसरे से मिलकर पूरी पत्ती पर फैल जाती हैं | रोग ग्रसित पौधे प्राय: सुख जाते हैं | इस कारण प्रकन्द अच्छी तरह विकसित नहीं हो पाता | इस रोग का नियंत्रण करने के लिए 0.3% जिनेब या 1% बोरडीआक्स मिश्रण का छिड़काव करते हैं |

प्रकन्द गलन

यह रोग पाइथीयम ग्रेमिनिकोलम या पी. अफानिडेरमाटम के द्वारा होता है | रोग ग्रसित पौधे के आभासी तने का निचला भाग मुलायम या नर्म पड़ जाता है एवं पानी सोख लेता है | जिसके कारण प्रकन्द साद जाता है और पौधा मर जाता है | इस रोग का नियंत्रण करने के लिए भंडारण करने से पहले तथा बुआई के समय प्रकन्द को 0.3% मैनकोजेब का छिड़काव करना चाहिए |

हल्दी में कीट

तना भेदक

तना भेदक (कोनोगीथस पंक्तिफैरिलिस) हल्दी की फसल को हानि पहुंचाने वाला प्रमुख कीट हैं | इसका आर्वा आभासी तने को भेद कर उसकी आन्तरिक कोशों को खा लेता है | इसके द्वारा भेदित तने के छिद्र से फ्रास निकलता है तथा पौधे की उपरी भाग की पत्तियों पिली पद जाती है | इसका व्यस्क मध्यम आकार का होता है | जिसमें 20 मि. मीटर शल्क युक्त नारंगी पीले रंग के पंख होते हैं | जिस सूक्ष्म काले रंग की चित्ती के निशान होते हैं | इसके लार्वे हल्के भूरे रंग के होते हैं | इस कीट का नियंत्रण करने के लिए मेलिथियोन (0.1%) को 21 दिनों के अंतराल पर जुलाई से अक्तूबर के बीच छिड़काव करना चाहिए | जब कीट ग्रसित पौधे पर प्रथम लक्षण दिखाई दे तब छिड़काव करना अधिक प्रभावित होता है |

राइजोम शल्क

राइजोम शल्क (अस्पिडियल्ला हारतीया) खेत के अन्दर तथा भंडारण में प्रकन्द को हानि पहुँचाते हैं | इसकी व्यस्क मादा गोलाकार (लगभग 1 मि.मीटर) हल्के भूरे रंग की होती हैं | यह प्रकन्द का सार चूस लेता है, जिससे वह सुख कर मुरझा जाता है | परिणामस्वरूप इसके अंकुरण में समस्या आती हैं | इसकी रोकथाम के लिए प्रकन्द को भंडारण के समय और बुवाई से पहले 0.075% किवनालफोस से 20 – 30 मिंट तक उपचारित करते हैं | कीट ग्रसित प्रकन्द का भंडारण न करके उसे नष्ट क्र देना चाहिए |

लघु कीट

लीफ फीडिंग बीटल (लीमा स्पीसिस) के व्यस्क और लार्वे पत्तों को खाते हैं | विशेषकर मानसून काल और उसके समकक्ष यह फसल को ज्यादा हानि पहुंचाते हैं | तना भेदक के प्रबंधन के लिए मेलिथियों (0.1%) का छिड़काव इस कीट के नियंत्रण के लिए भी पर्याप्त हैं |

लेसविंग वर्ग (स्टीफानिट्स टिपिक्स) पत्तियों को हानि पहुंचाते हैं | जिसके कारण पत्तियाँ सुख जाती है | देश के शुष्क क्षेत्रों में विशेषकर मानसून के बाद यह कीट ज्यादा हानि पहुंचाते है | इन कीटों का नियंत्रण करने के लिए डायमेंथोयट (0.05%) का छिड़काव करना चाहिए |

हल्दी थ्रिप्स (पानकेटोथ्रिप्स इंडिक्स) पत्तियों को हानि पहुंचाती हैं जिसके कारण पत्तियां मुड़ने लगती है तथा हल्की पद कर धीरे – धीरे सुख जाती है | देश के शुष्क क्षेत्रों में विशेषकर मानसून के बाद यह कीट ज्यादा हानि पहुंचाता है | इन कीटों का नियंत्रण करने के लिए डायमेंथोयट (0.05%) का छिड़काव करना चाहिए |

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हल्दी की खुदाई

प्रजातियों के अनुसार बुवाई के 7.9 महीने बाद जनवरी और मार्च के बीच में फसल खुदाई के लिए तैयार हो जाती है | अल्प अवधि प्रजातियाँ 7 – 8 महीने में मध्य अवधि प्रजातियों 8 – 9 महीने में और दीर्घकालीन प्रजातियों 9 महीने के बाद परिपक्व होती है | खेत को जोतकर प्रकंदों को हाथ से इकट्ठा कर बड़ी सावधानी पूर्वक मिटटी से अलग करते हैं |

प्रक्रिया

प्रकंदों का परीरक्षण

सुखी हल्दी करने के लिए ताज़ी हल्दी को परिरक्षित करते हैं | हल्दी के मादा प्रकंदों को अन्य से अलग क्र लेते हैं | मादा प्रकंदों को मुख्यत: बीज सामग्री के रूप में उपयोग करते हैं | ताजे प्रकंदों को पानी में उबाल कर सूर्य के प्रकाश में सुखा लेते हैं |

परम्परागत विधि द्वारा हल्दी परिरक्षित करने के लिए ताजे प्रकंद का पानी में 45 – 60 मिंट तक उबलते है या जब तक उसमें से सफेद धुंआ और विशेष प्रकार की गंध बाहर न आने लगे | प्रकंदों को उबलते समय सावधानी बरतनी चाहिए क्योंकि अधिक देर उबलने से हल्दी का रंग फीका पद जाता है और कम उबलने से हल्दी कच्ची रह जाती है |

हल्दी प्रकंदों को सुखाना

पके हुये प्रकंदों को बांस की चटाई या फर्श पर 5 – 7 से. मीटर मोती पत्तों की परत में बिछा कर सूर्य के प्रकाश में सुखाते हैं | शुष्क प्रकंदों के रंग पर प्रति कुल प्रभाव से बचाने के लिए हल्की परत में सुखाना जरुरी नहीं है | राट के समय प्रकंदों को इकट्ठा करके किसी एसी चीज से दहकते हैं कि प्रकंदों को हवा लगती रहे | यह प्रकन्द 10 – 15 दिन तक पूरी तरह सुख जाते हैं | कृत्रिम रूप से प्रकन्द को क्रोस – फिसो गर्म वायु द्वारा 60 डिग्री से.टी ग्रेट तापमान पर भी सुखा सकते हैं | हल्दी के चिप्स बनाने के लिए कृत्रिम रूप से सुखाना सूर्य केव प्रकाश में सुखाने से ज्यादा लाभकारी होता है | इस में सुखाने से प्रकंदों में ज्यादा चमक आती है | प्रजातियाँ तथा खेती के क्षेत्रों के आधार पर हल्दी की शुष्क उपज में 10 – 30 प्रतिशत तक का अंतर होता है |

हल्दी प्रक्न्दों को चमकाना

सुखी हुई हल्दी की उपरी स्थ पर धब्बे और जड के तुंत लगे रह जाते हैं | हल्दी की उपरी स्थ को हाथ से रगड कर साफ करके इसके ऊपर पोलिश करते हैं |

हल्दी को स्वच्छ एवं चमकाने के लिए उन्नत विधि का भी उपयोग करते हैं | हस्त चालित बेरल या ड्रम के मध्य में धुरी वाली एक कील में लगाते है जिसके दोनों ओर लोहे का जाल लगा होता है | इस ड्रम के अन्दर उपरी भाग आपस में घ्रिषण करके साफ हो जाता है | हल्दी को विशेष प्रकार के ड्रम में भी पोलिश कर सकते हैं | हल्दी की पोलिश में 15 से 25 प्रतिशत तक अंतर होता है |

प्रकंदों का रंग

हल्दी के रंग का प्रभाव उस के मूल्य पर भी पड़ता है | हल्दी को आकर्षक बनाने के लिए हल्दी चूर्ण को थोड़े पानी में मिला कर पोलिश के बाद प्रकंदों पर छिड़क देते हैं |

हल्दी के बीज प्रकंदों का भंडारण

वह प्रकन्द जो बीज के रूप में उपयोग होते हैं उन का भंडारण हवादार कमरे में पत्तों से ढक कर करते हैं | बीज प्रकंदों को गड्ढों में लकड़ी का बुरादा, बालू और स्ट्राइकनोस नक्सबोमिका (कंजिरम) के पत्ते रख कर भी भंडारण किया जा सकता है | इन गड्ढों को लकड़ी के तख्ते से ढक देते हैं | इन तख्तों को हवादार बनाने के लिए इन में एक या दो छेद कर देते हैं | शल्क ग्रसित प्रक्न्दों को 15 मिंट तक किवनालफोस (0.075%) तथा कवक ग्रसित प्रकंदों को 0.3 % मैंकोजेब से उपचारित करते हैं |

काली हल्दी की खेती

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