सही जानकारी को अपनाकर मसूर पैदावार बढ़ावें |
किसान भाई खेती में अक्सर यह होता है की गलत जानकारी या समय सही नहीं चूज करने पर फसल की उत्पादन कम होता है कभी – कभी यह भी होता है गलत समय पर बुवाई से फसल में अनेक तरह का रोग लग जाता है | इस लिए किसान भाई आज रबी फसल का समय चल रहा है इस बात को ध्यान में रखते हुए किसान समाधान ने सभी फसल का सही जानकारी ले कर आया है इस लिए आप लोग से अपील है की आज से किसान समाधान को प्रत्तेक दिन देखें |
आज मसूर की खेती की जानकारी दिया जा रहा है | इसमें बुवाई, बीज, खेत की तैयारी , उत्पादन, इत्यादि की जानकारी दिया जा रहा है |
मसूर की खेती प्रमुख रूप से दाल के लिए की जाती है | इनकी दाल अन्य दलों के अपेक्षा पौष्टिक होता है | यह रबी का प्रमुख फसल है |
भूमि :-
मसूर की खेती के लिए बलुई दोमट तथा मध्यम दोमट मिटटी सर्वोत्तम रहती है |
खेत की तैयारी :-
खरीफ फसल काटने के बाद 2 – 3 आड़ी खड़ी जुताइयां देसी हल या कल्टीवेटर से की जाती है |प्रत्तेक जुताई के बाद पाटा चलाकर मिटटी बारीक़ और समतल कर लेते हैं | बोने के समय खेत में पर्याप्त नमी रहनी चाहिए |
नूरी (आई.पी.एल.):-
यह अर्द्ध फैलने वाली एवं शीघ्र पकने (110 – 120 दिन) वाली किस्म है | इसकी औसत उपज 12 – 15 किवंटल प्रति हें. है | 100 दानों का वजन 2.7 ग्राम है |
मलिक के – 75 :-
यह 120 – `125 दिनों में पकने वाली उकठा निरोधी किस्म है | बीज गुलाबी रंग के एवं बड़े आकार (100 बीजों का भार 2.6 ग्राम) के होते हैं , औसतन 12 – 15 किवंटल / हे. तक पैदावार देती है |
लेन्स 4076 :-
यह देरी (135 – 140 दिनों) में पककर तैयार होती है | 100 बीजों का भार 2.8 ग्राम होता है | इसकी औसत उपज 15 – 18 किवंटल/ हे. है |
आर.वी. एल. 31:-
यह 107 से 110 दिनों में पककर तैयार होने वाली किस्म है जो 14 – 15 किवंटल/ हे. है | यह बड़े दानों वाली (3.0 ग्राम/ 100 बीज) जाती है |
बीज दर :-
अधिक उपज के लिए खेत में पर्याप्त पौध संख्या होना आवश्यक है | इसके लिए प्रमाणित किस्म का स्वस्थ बीज संस्तृत मात्रा में प्रयोग करना अनिवार्य है | समय पर बुवाई हेतु उन्नत किस्मों का 30 – 35 किलोग्राम बीज प्रति एकड़ की आवश्यकता होती है | विलम्ब से बुवाई करने की दशा में 40 किलोग्राम बीज प्रति एकड़ बोना चाहिए |
बुवाई का समय :-
मसूर की बुवाई अक्टूबर से दिसम्बर तक होती है | परन्तु अधिक ऊपज के लिए मध्य अक्टूबर से मध्य नवम्बर का समय उपयुक्त है | ज्यादा विलम्ब से बुवाई करने पर कीट व्याधि का प्रकोप ज्यादा होता है | देर से बोने पर यदि भूमि में नमी कम हो तो सिंचाई करने के पशचात बोना चाहिए |
बुवाई की विधि :-
खेत में पर्याप्त नमी होने पर विशेषकर धान वाले खेतों में मसूर की बुवाई छिटकवां विधि से की जाती है | परन्तु अच्छी उपज के लिए कतार बोनी उत्तम है | इसके लिए नारी हल या सीड ड्रील का उपयोग करना चाहिए | अगेती फसल की बुवाई पंक्तियों में 30 से.मी. की दूरी पर करना चाहिए | पिछेती फसल की बुवाई हेतु पंक्तियों की दूरी 20 – 25 से.मी. रखते हैं | बीज को उथला (3 से 4 से.मी.) बोना लाभप्रद रहता है |
जल प्रबंधन :-
मसूर से सुखा शान करने की क्षमता होती है | सामान्यतौर पर सिंचाई नहीं की जाती है | फिर भी सिंचाई क्षेत्रों में 1- 2 सिंचाई करने से उपज में वृद्धि होती है | पहली सिंचाई शाखा निकलते समय अर्थात बुवाई के 30 – 35 दिन बाद तथा दूसरी सिंचाई फलियों में दाना भरते समय बुवाई के 70 से 75 दिन बाद करना चाहिए | मसूर की सिंचाई स्प्रिंकलर से ही करें |
फसल पद्धति :-
मसूर की खेती खरीफ की फसलें (धान, ज्वार, बाजरा, मक्का, कपास आदि) लेने के बाद की जाती है | मसूर की मिश्रित खेती जैसे सरसों + मसूर , जौ + मसूर का भी प्रचलन है | शरदकालीन गन्ने की दो कतारों के बीच मसूर की दो कतारें (1:2) बोई जाती है | इसमें मसूर को 30 से.मी. की दूरी पर बोया जाता है |