Home विशेषज्ञ सलाह सहजन (ड्रमस्टिक) की लाभकारी खेती

सहजन (ड्रमस्टिक) की लाभकारी खेती

सहजन (ड्रमस्टिक) की लाभकारी खेती

परिचय

ड्रमस्टिक को हिंदी में साईजन (कहीं-कहीं सहजन, सोजाना) कहा जाता है और भारत में यह एक लोकप्रिय सब्जी है। ड्रमस्टिक का वैज्ञानिक नाम मोरिंगा ओलीफेरा है। हिंदी में इसे साईजन, मराठी में शेवागा, तमिल में मुरुंगई, मलयालम में मुरिन्गन्गा और तेलुगु में मुनागाक्या कहते है। मोरिंगेसी फैमिली के मोरिंगा जाति के साईजन की खेती बड़े पैमाने पर होती है। वैसे तो साईजन की उत्पत्ति भारत में ही हुई है लेकिन औषधी के तौर पर इस्तेमाल होने की वजह से यह दूसरे देशों में भी पहुंच गया है। सहजन का पेड़ मोरिंगा अपने विविध गुणों, सर्वव्यापी स्वीकार्यता और आसानी से उग आने के लिए जाना जाता है। सहजन का पत्ता, फल और फूल सभी पोषक तत्वों से भरपूर हैं जो मनुष्य और जानवर दोनों के लिए काम आते हैं। सहजन के पौधे का लगभग सारा हिस्सा खाने के योग्य है। पत्तियां हरी सलाद के तौर पर खाई जाती है और करी में भी इस्तेमाल की जाती है। इसके बीज से करीब 38-40 फीसदी नहीं सूखनेवाला तेल पैदा होता है जिसे बेन तेल के नाम से जाना जाता है। इसका इस्तेमाल घड़ियों में भी किया जाता है। इसका तेल साफ, मीठा और गंधहीन होता है और कभी खराब नहीं होता है। इसी गुण के कारण इसका इस्तेमाल इत्र बनाने में किया जाता है।

सहजन की प्रमुख किस्मे

  • रोहित 1 – पौधारोपन के 4 से 6 महीने के बाद ये उत्पादन शुरू कर देता है और 10 साल तक व्यावसायिक उत्पादन होता रहता है। (एक साल में दो फसल)। सहजन की छड़ी गहरे हरे रंग की 45 से 60 इंच की होती है और इसका गुदा मुलायम, स्वादिस्ट होता है और इसकी गुणवत्ता भी बहुत अच्छी है। एक पौधे से 40 से 135 साईजन मिल सकता है जो करीब तीन से दस किलो तक होता है। पौधे की पैदावार और गुणवत्ता मौसम, मिट्टी के प्रकार, सिंचाई सुविधा और पौधों के बीच अंतराल पर निर्भर करता है। इसके बाद इसकी कीमत सहजन की गुणवत्ता और मांग पर निर्भर करती है।
  • कोयम्बटूर 2 – इसकी छड़ी की लंबाई 25 से 35 सेमी होती है। छड़ी का रंग गहरा हरा और स्वादिस्ट होता है। प्रत्येक पौधा करीब 250 से 375 छड़ी पैदा करता है। इसकी प्रत्येक छड़ी भारी और गुदेदार होती है। प्रत्येक पौधा तीन से चार साल तक उपज देता है। अगर पौधे से उपज पहले नहीं लिया गया तो इसका बाजार मूल्य खत्म हो जाता है।
  • पी.के.एम 2 – पौधारोपन के बाद इसमे फूल आने लगते हैं और 8 से 9 महीने के बाद इसकी उपज शुरू हो जाती है। साल में दो बार इसकी फसल होती है। इसके पौधे से करीब 200 से 350 छड़ी पैदा होती है जो लगातार 4 से 5 साल तक उपज देती है। इसकी प्रत्येक छड़ी लंबाई में बड़ी होती है और स्थानीय बाजार के मुकाबले इसकी मांग खासकर बड़े शहरों में होती है।
  • पी.के.एम 2 – इस किस्म की कच्ची छड़ी का रंग हरा होता है और स्वादिस्ट होता है। प्रत्येक छड़ी की लंबाई 45 से 75 सेमी होती है। प्रत्येक पौधा करीब300 से 400 छड़ी पैदा करता है। यह किस्म अच्छी किस्म की फसल पैदा करता है लेकिन इसमे ज्यादा पानी की जरूरत होती है।

 जलवायु एवं मृदा

हजन की खेती की सबसे बड़ी बात ये है कि ये सूखे की स्थिति में कम से कम पानी में भी जिंदा रह सकता है। कम गुणवत्तावाली मिट्टी में भी ये पौधा लग जाता है। इसकी वृद्धि के लिए गर्म और नमीयुक्त जलवायु और फूल खिलने के लिए सूखा मौसम सटीक है। सहजन के फूल खिलने के लिए 25 से 30डिग्री तापमान अनुकूल है। सहजन का पौधा सूखी बलुई या चिकनी बलुई मिट्टी (जिसमे 6.2 से 7.0 न्यूट्रल की मात्रा तक अम्लीय पीएच हो) में अच्छी तरह बढ़ता है। ये पौधा समुद्र तटीय इलाके की मिट्टी और कमजोर गुणवत्ता वाली मिट्टी को भी सहन कर लेती है।

नर्सरी

सहजन की खेती में अगर आप नर्सरी में उगाये पौधे का इस्तेमाल करना चाहते हैं तो 18 सेमी की ऊंचाई और 12 सेमी की चौड़ाई वाले पॉली बैग का इस्तेमाल करें। बैग के लिए मिट्टी का मिश्रण हल्का होना चाहिए, उदाहरण के तौर पर तीन भाग मिट्टी और एक भाग बालू। प्रत्येक बैग में एक से दो सेमी गहराई में दो या तीन बीज लगाएं। मिट्टी में नमी रखें लेकिन ध्यान रखें कि वो ज्यादा भीगा न हो। बीज की उम्र और प्री ट्रीटमेंट मेथड के हिसाब से अंकुरण 5 से 12 दिन के भीतर शुरू हो जाता है। बैग से अतिरिक्त पौधा निकाल दें और एक पौधा प्रत्येक बैग में छोड़ दें। जब पौधे की लंबाई 60 से 90सेमी हो जाए तब उसे बाहर लगा सकते हैं। पौधे को बाहर लगाने से पहले बैग की तलहटी में इतना बड़ा छेद बना दें ताकि उसकी जड़ें बाहर निकल सके। इस बात का ध्यान रखें कि पौधे के जड़ के आसपास मिट्टी अच्छी तरह लगा दें।

  • पौधारोपन से पहले बीज को पानी में रात भर भीगने के लिए डाल दें
  • पौधारोपन से पहले छिलके को उतार लें
  • छिलके को हटाकर सिर्फ गुठली को लगाएं

मिट्टी की तैयारी

गर बड़े प्लॉट में पौधे को लगाना है तो जमीन की पहले अच्छे से जुताई कर लें। बीजारोपन से पहले 50 सेमी गहरा और चौड़ा गड्ढा खोद लें। इस गड्ढे से मिट्टी को ढीली होने में और जड़ को नमी ग्रहण करने में मदद मिलता है। इससे पौधे की जड़ तेजी से फैलती है। कम्पोस्ट या खाद की मात्रा पांच किलो प्रति गड्ढा ऊपरी मिट्टी के साथ मिलाकर गड्ढे के अंदर और चारो तरफ डाल दें। यहां उस मिट्टी को गड्ढे में डालने से बचें जो खुदाई के दौरान निकाली गई थी। साफ ऊपरी मिट्टी में लाभकारी जीवाणु होते हैं जो जड़ की वृद्धि को तेजी से बढ़ावा दे सकते हैं। नर्सरी से पौधे को निकालने से पहले गड्ढे को पानी से भर दें या फिर अच्छी बारिश का इंतजार करें और उसके बाद बैग से पौधा निकाल कर लगा दें। जिस इलाके में भारी बारिश होती है वहां मिट्टी को ढेर की शक्ल में खड़ा कर सकते हैं ताकि पानी वहां से निकल जाए। शुरुआत के कुछ दिनों तक ज्यादा पानी नहीं दें। अगर पौधा गिरता है तो उसे एक 40सेमी छड़ी के सहारे बांध दें।

सीधा पौधारोपन

अगर सिंचाई के लिए पानी उपलब्ध हो तो (मकान के पिछले हिस्से में) पूरे साल पेड़ को सीधे लगाया और बढ़ाया जा सकता है। सबसे पहले पौधारोपन के लिए एक गड्ढा तैयार करें, पानी डालें और पौधारोपन से पहले कम्पोस्ट या खाद से मिश्रित उपरी मिट्टी को गड्ढे में डाल दें। नमी वाले मौसम में बड़े खेत में पेड़ को सीधे लगाया जा सकता है।

कलम(कटिंग) 

कलम लगाने के लिए हरी लकड़ी को छोड़कर कठोर लकड़ी लें। कलम की लंबाई 45सेमी से 1.5एम लंबा और 10 सेमी मोटा होना चाहिए। कलम को सीधे लगाया जा सकता है या फिर नर्सरी में थैले में लगाया जा सकता है। कलम का सीधा पौधारोपन रोशनी और बलुई मिट्टी में करें। पौधे का एक तिहाई हिस्सा जमीन में लगाएं(जैसे कि अगर कलम की लंबाई 1.5 मी है तो 50 सेमी मिट्टी में लगाएं)। ज्यादा पानी भी नहीं डालें क्योंकि मिट्टी अगर ज्यादा भारी और भीगा रहा तो जड़ सड़ सकता है। जब कलम को नर्सरी में लगाया जाता है तो जड़ का विकास धीरे-धीरे होता है। अगर संभव हो तो जड़ के विकास को बढ़ावा देने के लिए मिट्टी में फॉस्फोरस मिलाएं। नर्सरी में लगाए गए कलम को दो या तीन महीने बाद बाहर लगाया जा सकता है।

पौधों के बीच दूरियां

सहजन या मोरिंगा के सघन उत्पादन के लिए एक पेड़ से दूसरे पेड़ के बीच की दूरी तीन मीटर हो और लाइन के बीच की दूरी भी तीन मीटर होनी चाहिए। सूर्य की पर्याप्त रोशनी और हवा को सुनिश्चित करने के लिए पेड़ को पूर्व से पश्चिम दिशा की ओर लगाएं। अगर पेड़ वीथि सस्यन प्रणाली (अले क्रॉपिंग सिंस्टम) का हिस्सा है तो दो लाइन के बीच 10 मीटर की दूरी होनी चाहिए। पेड़ के बीच का हिस्सा खर-पतवार से मुक्त होना चाहिए।

खाद और ऊर्वरक

आमतौर पर मोरिंगा का पेड़ बिना ज्यादा ऊर्वरक के ही अच्छी तरह से तैयार हो जाता है। पौधारोपन से 8 से 10 दिन पहले प्रति पौधा 8 से 10 किलो फार्म खाद डाला जाना चाहिए और पौधारोपन के दौरान प्रति हेक्टेयर 50 किलो नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटास (सभी 50-50 किलो) डाला जाना चाहिए। प्रत्येक छह महीने के अंतराल पर तीनों की इतनी ही मात्रा पौधे में डाली जानी चाहिए।

सिंचाई

मोरिंगा और सहजन के पौधे को ज्यादा पानी नहीं चाहिए। पूरी तरह से सूखे मौसम में शुरुआत के पहले दो महीने नियमित पानी चाहिए और उसके बाद तभी पानी डालना चाहिए जब इसे जरूरत हो। मोरिंगा पेड़ तभी फूल और फल देता है जब पर्याप्त पानी उपलब्ध होता है। अगर साल भर बरसात होती रहे तो मोरिंगा पेड़ भी साल भर उत्पादन कर सकता है। सूखे की स्थिति में फूल खिलने की प्रक्रिया को सिंचाई के माध्यम से तेज किया जा सकता है। इसका पौधा काफी दमदार होता है और सूखे मौसम में प्रत्येक दो सप्ताह में एक बार सिंचाई की जरूरत होती है। वहीं, व्यावसायिक खेती में सिंचाई की ड्रिप तकनीक का सहारा लिया जा सकता है जिसके तहत गर्मी के मौसम में प्रति पेड़, प्रतिदिन 12 से 16 लीटर पानी दिया जा सकता और अन्य मौसम में ये मात्रा घटकर सीधे आधी रह जाती है। जहां पानी की समस्या है वहां जिंदगी बचाने वाली सिंचाई या घड़े से प्रति दो सप्ताह पर एक बार सिंचाई की जाती है। सूखे मौसम में ऐसा करने से फसल की रक्षा हो जाएगी।

फसल की कंटाई-छटाई

पेड़ की कटाई-छटाई का काम पौधारोपन के एक या डेढ़ साल बाद (ठंडे मौसम में तरजीह दे सकते हैं) की जा सकती है। दो फीट की ऊंचाई पर प्रत्येक पेड़ में3 से 4 शाखाएं छांट सकते हैं।

इंसानों के खाने के लिए जब कटाई की जाती है तो फली को तभी तोड़ लिया जाना चाहिए जब वो कच्चा (करीब एक सेमी मोटा) हो और आसानी से टूट जाता हो। पुरानी फली (जब तक पकना शुरू ना हो जाए) का बाहरी भाग कड़ा हो जाता है लेकिन सफेद बीज और उसका गुदा खाने लायक रहता है। पौधारोपन के लिए बीज या तेल निकालने के मकसद से फली को पूरी तरह तब तक सूखने देना चाहिए जब तक कि वो भूरा ना हो जाए। कुछ मामलों में ऐसा जरूरी हो जाता है कि जब एक ही शाखा में कई सारी फलियां लगी होती है तो उसे टूटने से बचाने के लिए सहारा देना पड़ता है। फलियों के फटने और उनके पेड़ से गिरने से पहले उन्हें तोड़ लेना चाहिए। बीज का संग्रहण छायादार जगह में साफ-सुथरे सूखे बैग में किया जाना चाहिए।

पत्तियों की चटनी बनाने के लिए पौधे के बढ़ते अग्रभाग और ताजी पत्तियों को तोड़ लें। पुरानी पत्तियों को कठोर तना से तोड़ लेना चाहिए क्योंकि इससे सूखी पत्तियों वाली पाउडर बनाने में ज्यादा मदद मिलती है।

पैदावार

फसल की पैदावार मुख्य तौर पर बीज के प्रकार और किस्म पर निर्भर करता है। सहजन की पैदावार प्रति हेक्टेयर 50 से 55 टन हो सकती है (200फली प्रति पेड़ एक साल में)।

 

Notice: JavaScript is required for this content.

8 COMMENTS

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
यहाँ आपका नाम लिखें

Exit mobile version