भैंसों से दुग्ध उत्पादन किस प्रकार बढ़ाएं एवं कम करें ब्याने की उम्र
भारतीय ग्रामीण अर्थव्यवस्था में भैंस की मुख्य भूमिका है। इसका प्रयोग दुग्ध व मांस उत्पादन एंव खेती के कार्यों में होता है। आमतौर पर भैंस विष्व के ऐसे क्षेत्रों में पायी जाती है जहां खेती से प्राप्त चारे एवं चरागाह सीमित मात्रा में हैं। इसी कारण भैंसों की खिलार्इ-पिलार्इ में निश्कृश्ट चारों के साथ कुछ हरे चारे, कृषि उपोत्पाद, भूसा, खल आदि का प्रयोग होता है। गाय की अपेक्षा भैंस ऐसे भोजन का उपयोग करने में अधिक सक्ष्म है जिनमें रेषे की मात्रा अधिक होती है। इसके अतिरिक्त भैंस गायों की अपेक्षा वसा, कैल्षियम, फास्फोरस एवं अप्रोटीन नाइट्रोजन को भी उपयोग करने में अधिक सक्षम है। जब भैंस को निश्कृश्ट चारों पर रखा जाता है। तो वह इतना भोजन ग्रहण नहीं कर पाती जिससे उसके अनुरक्षण बढ़वार, जनन, उत्पाद एवं कार्यों की आवष्यकताओं की पूर्ति हो सके। इसी कारण से भैंसों में आषातीत बढ़वार नहीं हो पाती और उनके पहली बार ब्याने की उम्र 3.5 से 4 वर्श तक आती है। अगर भैंसों की भली प्रकार देखभाल व खिलार्इ-पिलार्इ की जाये और आवष्यक पोशक तत्व उपलब्ध करवाये जायें तो इनकी पहली बार ब्याने की उम्र को तीन साल से कम किया जा सकता है और उत्पादन में भी बढ़ोतरी हो सकती है।
पोषण का उद्देश्य
- शरीर को सुचारू रूप से कार्य करने के लिए पोषण की आवश्यकता होती है, जो उसे आहार से प्राप्त होता है। पशु आहार में पाये जाने वाले विभिन्न पदार्थ शरीर की विभिन्न क्रियाओं में इस प्रकार उपयोग में आते हैं।
- पशु आहार शरीर के तापमान को बनाये रखने के लिए ऊर्जा प्रदान करता है।
- यह शरीर की विभिन्न उपापचयी क्रियाओं, श्वासोच्छवास, रक्त प्रवाह और समस्त शारीरिक एवं मानसिक क्रियाओं हेतु ऊर्जा प्रदान करता है।
- यह शारीरिक विकास, गर्भस्थ शिशु की वृद्धि तथा दूध उत्पादन आदि के लिए आवश्यक पोषक तत्व प्रदान करता है।
- यह कोशिकाओं और उतकों की टूट-फूट, जो जीवन पर्यन्त होती रहती है, की मरम्मत के लिए आवश्यक सामग्री प्रदान करता है।
हमारी भैस बहुत ही कमजोर है वह 6 लीटर दूध देती है क्या करें
दी गई लिंक पर देखें
https://kisansamadhan.com/category/animal-husbandry-fishrey/
Kheti me profit
भेस का बच्चा मर जाने के बाद उसको दूध पर कैसे ला सकते हैं।